प्रकृति मानवीय संवेदनाओं की संवाहक है // सुशील शर्मा

SHARE:

महर्षि चरक कहते हैं- ‘तच्येतनावद्‌ चेतनञ्च‘ अर्थात्‌-प्राणियों की भांति उनमें (वृक्षों में) भी चेतना होती है। आगे कहते हैं ‘अत्र सेंद्रियत्व...

image

महर्षि चरक कहते हैं- ‘तच्येतनावद्‌ चेतनञ्च‘

अर्थात्‌-प्राणियों की भांति उनमें (वृक्षों में) भी चेतना होती है।

आगे कहते हैं ‘अत्र सेंद्रियत्वेन वृक्षादीनामपि चेतनत्वम्‌ बोद्धव्यम्‌

अर्थात्-वृक्षों की भी इन्द्रिय है, अत: इनमें चेतना है। इसको जानना चाहिए।

सुखदु:खयोश्च ग्रहणाच्छिन्नस्य च विरोहणात्‌।

जीवं पश्यामि वृक्षाणां चैतन्यं न विद्यते॥

वृक्ष कट जाने पर उनमें नया अंकुर उत्पन्न हो जाता है और वे सुख, दु:ख को ग्रहण करते हैं। इससे मैं देखता हूं कि कि वृक्षों में भी जीवन है। वे अचेतन नहीं हैं। वृक्ष अपनी जड़ से जो जल खींचता है, उसे उसके अंदर रहने वाली वायु और अग्नि पचाती है। आहार का परिपाक होने से वृक्ष में स्निग्धता आती है और वे बढ़ते हैं। पौधे जड़ नहीं होते अपितु उनमें जीवन होता है। वे चेतन जीव की तरह सर्दी-गर्मी के प्रति संवेदनशील रहते हैं, उन्हें भी हर्ष और शोक होता है। वे मूल से पानी पीते हैं, उन्हें भी रोग होता है। यद्यपि वृक्ष ठोस जान पड़ते हैं तो भी उनमें आकाश है, इसमें संशय नहीं है, इसी से इनमें नित्य प्रति फल-फूल आदि की उत्पत्ति संभव है। वृक्षों में जो ऊष्मा या गर्मी है, उसी से उनके पत्ते, छाल, फल, फूल कुम्हलाते हैं, मुरझाकर झड़ जाते हैं। इससे उनमें स्पर्श ज्ञान का होना भी सिद्ध है। यह भी देखा जाता है कि वायु, अग्नि, बिजली की कड़क आदि होने पर वृक्षों के फल-फूल झड़कर गिर जाते हैं। इससे सिद्ध होता है कि वे सुनते भी हैं।पौधों में पूर्ण विकसित तंत्रिका-तंत्र तथा न्यूरान का सुसंचालित व विकसित जाल का अभाव होने के कारण ही क्रियात्मक आवेग में कमी पायी जाती है। इस आवेग को सर्वप्रथम सन 1960 से 70 के दशक में आणुविक और कोशिकीय आधार पर ज्ञात किया गया। सन् 1970 के बाद इस विषय पर अनेकों अनुसंधान हुए।

अमेरिकन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने स्वीकारा कि यह आवेग कोशिका के प्लाज्मोडेस्मेटा द्वारा प्रसारित होता है। कोशिकाभित्ति पर अवस्थित सूक्ष्मरन्ध्र को ही प्लाज्मोडेस्मेटा कहते हैं। आवेग इन्हीं छिद्रों के माध्यम से गुजरता है।जीवधारियों की सबसे बड़ी विशेषता है उनमें सन्निहित क्रियात्मक आवेग। वनस्पति जगत में उसकी मात्रा कम होती है, परन्तु जीव-जंतुओं में अधिक। जीवों में यह प्रक्रिया त्वरित एवं जटिल होती है।पेड़-पौधों में चेतना का स्तर एक विशेष प्रकार का होता है और यह जीव-जन्तुओं से भिन्न होता है। इस मान्यता के जनक थे प्रसिद्ध भारतीय वनस्पतिविद् जगदीश चन्द्र बसु। इन्होंने पौधों में संवेदनशीलता के अस्तित्व का सफल प्रयोग करके अनुसंधान का एक नूतन आयाम जोड़ा। इससे वनस्पति जगत में खोज की एक प्रक्रिया चल पड़ी। जगदीश चन्द्र बसु के इस प्रयोग का अनेकों वैज्ञानिकों ने सूक्ष्म विश्लेषण किया। आधुनिकतम अन्वेषणों से भी पता चला है कि पौधों में संवेदना होती है। उच्चवर्ग के पौधों में यह विकसित होती जाती है। निम्नवर्ग के जंतुओं में संवेदना मिश्रित होती है। पौधों के तंत्रिका-तंत्र में रासायनिक तत्वों का विशेष महत्व होता है। इन रसायनों को न्यूरोट्राँसमीटर कहा जाता है। हर न्यूरान में न्यूरोट्राँसमीटर भिन्न होता है तथा विशिष्ट कार्य को सम्पादित करने के लिए प्रयुक्त होता है। पेड़- पौधे वातावरण से बहुत प्रभावित होते है। वातावरण और वनस्पति जगत का सम्बन्ध बहुत गहरा एवं विस्तृत है। दोनों एक -दूसरे पर अन्योऽन्याश्रित है। पेड़ वातावरण की सूक्ष्म हलचलों को ग्रहण करने की सामर्थ्य रखते है। वैज्ञानिकों ने स्पष्ट किया है कि सृष्टि-संचालन प्रक्रिया में एक कोड होता है, जो समस्त गतिविधियों को अपने में समाहित किए रहता है। आयुर्वेद सूत्र ‘प्रसन्नात्मेद्रिय मनः’ अनुसार मन एवं इन्द्रियों की प्रसन्नता को स्वास्थ्य का आधार मानता है और आधुनिक विज्ञान भी स्वास्थ्य के लिए मानसिक एवं शारीरिक रूप से स्वस्थ होने को स्वस्थ जीवन का आधार मानता है I अमेरिका की यूनिवर्सीटी आफ एक्सटर के शोधकर्ताओं के अनुसार वृक्ष एवं पौधे हमें स्वस्थ एवं खुश रहने में मददगार होते हैं,अर्थात पेड़ पौधे एक नेचुरल एंटीडीप्रेसेंट का कार्य करते हैं I

पौधे अति सुग्राही तथा संवेदनशील होते है। संसार और प्रकृति में देने और लेने की दो प्रमुख क्रियाएँ होती है। जो देता है, बाँटता है, वह लाभ में रहता है एवं अनेकों गुना अधिक परिणाम में प्राप्त करता है, जबकि कृपण अनुदार और स्वार्थी घाटे में रहते है। किसान मक्के का एक बीज बोकर सैकड़ों दाने प्राप्त कर लेता है। पेड़ पौधे हर वर्ष मनुष्यों और पशुओं के लिए फल-फूल पैदा करते और प्रकृति अनुदान के रूप में दूसरे वर्ष फिर उन्हें प्राप्त कर लेते हैं। बादल निःस्वार्थ होकर बरसते है अतः नदियों और समुद्रों का अनुदान उन्हें मिलता रहता है। सूर्य अनादिकाल से ऊर्जा, ऊष्मा और प्रकाश बिखेरता आ रहा है।

भावसंवेदना का अभाव मनुष्य को क्रूर और बर्बर बना देता है। आज का अति सभ्य समाज और संसार संभवतः पुराने युग की ओर अग्रसर होता प्रतीत हो रहा है। आयोवा कॉलेज ऑफ मेडिसिन, यूनिवर्सिटी के न्यूरोलॉजी विभाग के अध्यक्ष आर. डोमसीसो के अनुसार वर्तमान मानवजाति के असामान्य और असभ्य व्यवहार का कारण है, संवेदनशून्यता। इन्होंने आगे स्पष्ट किया है कि मस्तिष्क के विचार केन्द्र ‘रीजनिंग’ तथा इसके लिए जिम्मेदार तंत्र ‘डिसीजन मेकिंग’ संवेदना और भावना से जुड़े होते हैं। इनका पारस्परिक साम्य ही उस संतुलन का आधार है, जिसे गीताकार ने आदर्श मानकर योग को ‘समत्वं योग उच्यते’ उक्ति से परिभाषित किया है।

पक्षियों में भी बुद्धि और भाव-संवेदना होती है, उनमें भी विचार व्यक्त करने की क्षमता होती है । उनकी चहचहाहट में प्रसन्नता, , पीड़ा, जानकारी आदि की सूचनाएं होती हैं जिन्हें उसकी बिरादरी के पक्षी सहजता से समझते हैं और उसी के अनुरूप आचरण करते हैं । उनके दैनन्दिन जीवन को गहराई से देखने पर ही पता चलता है जैसे सभी के जीवन का एक ही उद्देश्य है और वह यह कि 'प्रत्येक क्षण का आनन्द लो` । प्रकृति ने शायद उन्हें यही सिखाया है कि अपना प्रत्येक काम प्रसन्नता और प्रफूल्लता से करो । प्रकृति की प्रेरणा से ही पक्षी आजीवन उत्साह और उमंग से जीवन जीते हैंऔर सदा स्वस्थ और प्रसन्न रहते हैं । यही कारण है कि पक्षी यदा-कदा ही बीमार पड़ते हैं और जब कभी बीमार होते हैं तो अपना इलाज प्रकृति में ही ढूंढ़ लेते हैं ।

पिछले दो सौ वर्षों में मनुष्य ने प्रकृति के साथ अपने संबंध को पूरी तरह बदल दिया है। औद्योगिक क्रांति के बाद यानी मशीनी समाज के क्रमशः विकसित होने के साथ ही प्रकृति के साथ मनुष्य का रिश्ता बदल गया है. इन दो सौ वर्षों में मनुष्य ने अपनी सुविधाओं के विकास में जो प्रगति हासिल की है, वह मनुष्य समाज के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ था। इस दूरी ने उसके अंदर की संवेदना को संकुचित किया। संवेदनाओं के इस संकुचन ने बेरहमी के साथ पारिस्थितिकी और पर्यावरण के दोहन को खुली छूट दी।

पर्यावरण को लेकर मानव समाज की दुर्गति मनुष्य के विकास के प्रति इस निरर्थक विश्वास के कारण हुई कि प्रकृति में हर वस्तु केवल उसी के उपयोग के लिये है । प्रकृति की उदारता, उसकी प्रचुरता और दानशीलता को मनुष्य ने अपना अधिकार समझा, इसी दृष्टिकोण से प्रकृति के शोषण से उत्पन्न असंतुलन की स्थिति भयावह हो चुकी है ।समाज में पारिवारिकता का ह्रास हो रहा है ,आपसी रिश्तों की मर्यादायें टूट रही हैं। आधुनिकता का नाम लेकर संबंधों में फूहड़ता पनप रही है। समाजों की नकारात्मक मानसिकता ने पारिवारिक संबंधों,प्रकृति ,पर्यावरण एवं मानवीय संवेदनाओं का क्षरण किया है। हवा,पानी,वृक्ष,जीव एवं सम्पूर्ण धरती इसका शिकार हो रहें हैं। पुरानी परम्पराओं ने इन सब में ईश्वर इस लिए प्रतिस्थापित किया था क्योंकि इनमें जीवन पलता है। किन्तु वर्तमान में इन सब का दोहन करके मनुष्य स्वयं को विखंडित एवं असुरक्षित कर रहा है। आज जरुरत है की प्रकृति के सान्निध्य में मनुष्य अपनी संवेदनाओं को उच्चतर स्तर पर विकसित करे और नई पीढ़ी को यह सबक देने की कोशिश हो कि प्रगति यदि मानवीय संवेदनाओं और मूल्यों के आधार पर होती है तो वह शाश्वत ,सृजनशील एवं सबका कल्याण करने वाली होती है।

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: प्रकृति मानवीय संवेदनाओं की संवाहक है // सुशील शर्मा
प्रकृति मानवीय संवेदनाओं की संवाहक है // सुशील शर्मा
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhoi2W8xtSZ44VjphRKsCi6EgfqqCsj9WRQjxZkMKr_mRkqSczGV3TGfNo8-fUwMXZdGQXisojXf9l3AUE7Lh53-zN0rIPVVaQ-3UuYNTBMuQxMpMh9pP7je2HowHglWPOC6adB/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhoi2W8xtSZ44VjphRKsCi6EgfqqCsj9WRQjxZkMKr_mRkqSczGV3TGfNo8-fUwMXZdGQXisojXf9l3AUE7Lh53-zN0rIPVVaQ-3UuYNTBMuQxMpMh9pP7je2HowHglWPOC6adB/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/02/blog-post_47.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/02/blog-post_47.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content