संस्मरण लेखन पुरस्कार आयोजन - प्रविष्टि क्र. 108 : सत्ता पर कमान // नवनीता कुमारी

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प्रविष्टि क्र. 108 'सत्ता पर कमान ' नवनीता कुमारी अनुराग बाबू ! जिंदाबाद ! जिंदाबाद ! हमारा नेता कैसा हो ? अनुराग बाबू जैसा हो ! जो...

प्रविष्टि क्र. 108

'सत्ता पर कमान '

नवनीता कुमारी

अनुराग बाबू ! जिंदाबाद ! जिंदाबाद ! हमारा नेता कैसा हो ? अनुराग बाबू जैसा हो ! जो भी अनुराग बाबू के द्वारे आएँगे, वो खाली हाथ न जाएँगे ---------- नारेबाजी लगाता हुआ एक बड़ा हुजूम रामपाल भाई के घर के सामने से होकर गुजरा। कुछ ठीक से सुनाई नहीं दिया, शायद रामपाल अपनी पत्नी से कुछ मसख़री कर रहे थे,  जो चुनाव -संबंधी ही जान पड़ता था । इतने में दूसरा हुजूम नारेबाजी लगाता हुआ, फिर से आ धमका जो शायद उम्मीदवार गिरिजा प्रसाद के लिए लगाया जा रहा था। इधर रामपाल जो देखने में बुजुर्ग लेकिन तर्जुबेदार एवं काफी अनुभवी जान पड़ते थे, ज्योंही घर से बाहर कदम रखे, उनका ध्यान एक अभीष्ट भीड़ की तरफ आकृष्ट हो गया और वे भी उस भीड़ में शामिल हो गए।

उन्होंने देखा कि एक काफी शानदार रंगमंच गिरिजा प्रसाद के आदेश पर उनके पदागमन के पूर्व ही निर्मित किया गया था, जो किसी दुल्हन के मंडप से कम सुसज्जित न लग रहा था और उस रंगमंच की सुंदरता में चार चाँद लगाने के लिए गिरिजा प्रसाद ने बड़ी -बड़ी नामचीन हस्तियों का सहारा लिया था, और इस उपलक्ष्य में पैसे पानी की तरह बहाए जा रहे थे। भीड़ काफी बढ़ती जा रही थी ! इस लुभावने रंगमंच पर हर मोहिनी -मंत्र एवं साम दंड –भेद नीति अपनाने के लिए नए -नए नुस्खे ईजाद किए जा रहे थे। तभी अचानक रंगमंच पर खड़े अभीष्ट व्यक्ति ने माइक को लहराते हाथों से पकड़ा और अपनी वर्षों की बड़ी मशक्कत से ईजाद की अदा को मोहिनी जाल बनाकर जनता पर फेंकते हुए इस बात की सूचना दी कि अभी आप लोगों के सामने नामी -गिरामी हस्तियों का आगमन, आपके इस छोटी सी अर्ध-स्वर्ग-तुल्य बस्तियों में होने जा रहा है, तो मेजबान, कद्रदानो दिल थामकर बैठिए !

आजतक आप जिस मुंबई नगरिया के चकाचौंध से आपकी आँखें चुंधिया जाती थी और जिसको स्वप्नलोक समझकर जागते आँखों से गोते लगाते आ रहे थे, उसी स्वप्नलोक के भंग होने पर आपकी सारी सुखद कल्पना जिंदगी के वास्तविक रूप में आने पर फिर उसी अनगढंत झमेले में पड़ जाते थे, जो आपके सारे अरमानों पर पानी फेर देता था और आपकी सारी की सारी खुशियाँ काफूर हो जाती थी, तो नौवजवानों , भाई-बहनो एवं माई-बाप आपके इसी स्वप्नलोक को हकिकत में बदलने आ रहे हैं आपके नवजागृत उम्मीदवार गिरिजा प्रसाद । माई -बाप आप लोग गिरिजा प्रसाद को अपने घर का सदस्य ही समझे और उनको अपना बहुमूल्य मत देकर उन्हें जितावें। घर के सदस्य की जीत आपकी जीत होगी।

इसी क्रम में फूलझरियाँ अपनी माँ से कह रही थी -अरे ! माई जानत हऊ अजवा सिनेमवा में के हाकीकाप्टर पर अइह सन चल ना देखल जाने कईसन होईहे सन।आ! सुनना ऊ आपन रघु चाचा कहत रहलन कि ऊ गिरिजा प्रसाद से कहके आपन टूटल मड़ईयाँ ईटा वाला पक्का बनवा दिह सन। तब हमनी के घर में बरसात के दिन मे पानी ना चुई! फूलझरियाँ की बातें सुन उसकी माँ से रहा न गया और वह उसे झिड़कती हुई बोली  - अरे! हट, हम जानत हई ई सब तोहर बहाना ह ताकि काम ना करे के पड़ी। अरे! हमनी के दो के रोटीये प्यारा बा।जब तक हमनी के ऊहाँ देखे जाईल जाई तब तक चार बखारी गेहुँआ ना द्वा लहल जाई। ऊँ सब त बड़का बाबू लोगन के देखे वाला चीज बा! हम गरीबन के भाग में एतना सुख कहाँ कि हमनी के चैन के दो पल बिना मेहनत के गुजारी सन.

लेकिन वास्तविकता तो यह थी कि फूलझरियाँ के माँ के मन में भी अपने जमाने के हीरो -हीरोइन को देखने की ललक उठ रही थी और वह ललक कसक बनकर उसे भीतर -ही भीतर पीड़ा पहुँचा रही थी। वह एक दिन के दो जून की रोटी तथा  'दोजख की लंका 'भूख से बगावत नहीं करना चाहती थी, लेकिन वह अपनी मन की व्यथा को किससे कहे । इसलिए कवि रहीम ने इस संर्दभ में ठीक ही रचना की है -

" रहिमन निज मन की विथा मन ही राखो गोय

सुनि अठिलैहे लोग सब बाँटि न लोहे कोस " !!

लेकिन इसी दरम्यान जब पड़ोस की शीला की माँ आती हैं और उससे कहती है -अरे ओ !फूलझरियाँ के माई! सुनत हऊ, तभी फूलझरियाँ की माँ हाथ पोंछती हुई अपनी मड़ईयाँ से बाहर आई और मुँह पर ऊँगली रखकर शीला की माँ को धीरे बोलने का इशारा करती हुई कहती है -का! ह दीदी जी! का बात बा  !शीला की माँ आँखो मे चमक लाते हुई कहती है -अरे! जानत हऊ कलवा हमरा घरवा जवन सिनेमवा मे हीरोउवा के देखलू! भरे आपन हई छोटका रमनवा में आए वाला बाड़न  ! तु हेलीकेप्टर देखले बाज़ू ---- प्रश्नमुद्रा मे शीला की माँ फूलझरियाँ की माँ से पूछती है, तो फूलझरियाँ की माँ अपनी बेबसी और लाचारी व्यक्त करते हुए कहती है  -अरे दीदी जी  ! हमनी के भाग में हाकीकाप्टर देखें के कहाँ बा! हमनी के त गोबरवा के चिपरी पाथते

जिनकी सिरा गईल! बाकिर चली ई झमेला त हमेशा लागले रही, कबहूँ फुर्सत ना मिली! रघुचाचा कहत रहल हउवे कि ओकनी के बात सुनला से जान (बुद्धि) मिलेला। इ देही के कौन ठीक बा। कब पाख -पखेरू उड़ जाई! हाँ ऊ फूलझरियाँ से जन (मत) कहेम हम ओकरा के काम में भीड़वले बानी! ऊहो चली त कलवा के राशन कईसे बनी।अब कबले ओने से आवे के टाइम मिली ।आ! सुनिना तनि भूजा-भरी रख लेम खाईल जाई! अच्छा त रऊवे जाके फूलझरियाँ से कह दी कि हमनी के मिली के सगुन में जात बानी!

शीला की माँ और फूलझरियाँ की माँ जल्दी -जल्दी पैर बढ़ाते हैं और वे भी लाखों की भीड़ में शामिल हो जाते हैं। इधर बाल विद्या मंदिर विद्यालय के सभी बच्चे इस बात से अवगत हैं कि आज फील्ड में नामी -गिरामी हस्तियों का आगमन होने जा रहा है। सभी मचल उठते है, लेकिन मन -मसोस कर रह जाते हैं। करें तो क्या करें। प्रिंसिपल साहिबा छुट्टी देने को तैयार ही नहीं । एक नटखट बच्चा जो अपने क्लासरूम में अपनी शरारत की वजह से हमेशा मशहूर रहता था। उसको एक शरारत सूझी। वह सिर पकड़कर जोर -जोर से कराहने का प्रयास करने लगा। कुछ देर के बाद वह अपने क्लास टीचर से बोला -मैडम! सिर में बहुत जोर से दर्द हो रहा है, सिर दर्द से फटा जा रहा है । उस वर्ग की मैडम बहुत ही दयालु थी और वह अभी -अभी इस स्कूल में नई आयी थी इसलिए वह नरेश की शरारतों से वाकिफ न थी, वे बोली -चलो! प्रधानाध्यापिका के पास, छुट्टी मांगकर घर चले जाना! प्रधानाध्यापिका के पास जाने के नाम पर नरेश के चेहरे पर बारह बज गए! वह रुआँसा चेहरा बनाने का उपक्रम करता हुआ प्रिंसिपल साहिबा के पास पहुँचा तो प्रिंसिपल साहिबा उस वक्त प्रयोगशाला में थी जहाँ प्रयोग करने के डॉक्टरी थर्मामीटर रखा था तथा गर्म दूध से कुछ प्रयोग किया जा रहा था| इधर नरेश की हालत देखने योग्य थी  !नरेश रुआँसा चेहरा बनाने का उपक्रम कर रहा था कि अचानक उसके गालों पर आँसू के दो बूँद लुढ़क आए, ये तो वही बात हो गई कि बिल्ली के भाग्य से छींके दूर हो गया 'लेकिन यह प्रिसिंपल साहिबा को यकीन दिलाने के लिए काफी न था । अचानक नरेश को थर्मामीटर और गर्म दूध देखकर शरारत सूझी। इधर प्रिसिंपल साहिबा और मैडम आपस में बाते करने लगी! नरेश इन्हीं बातचीत के सिलसिले का फायदा उठाना चाहता था और वह इस साम दंड भेद नीति में सफल भी रहा। वह कुर्सी पर रखे थर्मामीटर को धीरे से गर्म दूध में डाल दिया जब थर्मामीटर में दूध का तापमान अधिक नजर आया तो उसे उठाकर वह पुनः उसी स्थान पर रख दिया जहाँ से उठाया था। तब नरेश रुआँसा चेहरा बनाकर प्रिंसिपल साहिबा से बोला -'मुझे बुखार लगने का अहसास हो रहा है और सिर दर्द से फटा जा रहा है '| प्रिसिंपल साहिबा ने नरेश का हाथ छुआ तो उन्हें वह बेहद नॉर्मल लगा। फिर वे थर्मामीटर उसके मुँह में डालकर बुखार का जायजा लिया तो गर्म दूध का तापमान उसके शरीर का तापमान बन चुका था जैसे मोमबत्ती की आकृति पिघलकर विकृति का रूप धारण कर लेता है और उसे फौरन छुट्टी दे दी गई । नरेश के ये दो बूँद आँसू के बड़े समय पर काम आया लेकिन ये आँसू कैसे उसके गालों पर लुढ़क आए यह स्वयं नरेश भी नहीं जानता था, शायद ऐसा हीरो-हीरोइन देखने की जिजीविषा में हुआ था।

खैर छोड़िए! नरेश को इन सब बातों को सोचने की फुर्सत कहाँ थी?  वह मस्ती में उछलता -कूदता चल पड़ा अपने संजोए अरमानों को पूरा करने! क्लासरूम के सारे बच्चे उसकी नकल करने लगे लेकिन प्रिंसिपल साहिबा जानती थी कि ये सभी बहाने बना रहे हैं, इन्हें कुछ भी नहीं हुआ है। वे गुस्से से लाल -पीली होती हुई बच्चों का शोर सुनी तो क्लासरूम में जाकर सभी बच्चों को दो-दो छड़ियाँ लगाई और मुर्गा बनने का सजा दे गई! इसलिए ठीक ही कहा गया है "नकल में भी अकल होनी चाहिए "|

इधर चुनाव प्रचार के रंगमंच पर एक -से -एक बड़ी हस्तियाँ आते और थोड़ा सा अपनी कला का प्रदर्शन करते और लोगों से वोट देकर गिरिजा प्रसाद को जीताने की याचना करते। गरीबों के लिए वे बड़े भोले-भाले होते हैं। वे राजनीति के दाँवपेंच से उसी प्रकार अनजान होते हैं, जिस तरह एक पतंगा अपनी रौशनी प्रियता में अपने मौत के पैगाम से बेखबर होता है। वे तो इतने भोले होते हैं कि उन्हें फूलों में छिपा मकसद भी नजर नहीं आता है, बल्कि उन्हें तो बाहरी सजावटी फूल ही दिखाई पड़ते हैं। खैर छोड़िए गिरिजा प्रसाद फूलों का हार पहने ज्योंही माइक के सामने आए वैसे ही अचानक एक युवक हाँफता हुआ भीड़ को चीरता हुआ आया और मंच पर चढ़कर तेजी से गिरिजा प्रसाद के हाथों से माइक छीन लिया इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता कि माजरा क्या है भरी सभा में उनकी आलोचना शुरू कर दिया वह जनता को संबोधित करते हुए बोला-भाईयों एवं बहनों! आप जिस शक्स को अपनी रखवाली की आशा कर रहे हैं वह रक्षक की आड़ में भक्षक का डुप्लीकेट रोल निभा रहा है और जब आम आप इस सफेदकुर्ताधारी इंसान का दागनुमा चरित्र सामने आएगा तो आपके रोंगटे खड़े हो जाएँगे ।आप इस दोजख के रेंगते कीड़े के बहकावे में मत आइए और इन बड़ी हस्तियों का आगमन मात्र एक छलावा है, आपको जाल में फांसने का एक महज साजिश है और न जाने कितनी पाप किए हैं इसने और अब सौ चूहे खाकर हज को जाना चाहता है। न जाने क्या -क्या बोलता चला जा रहा था वह नौजवान जिसका नाम अभय था और वह अपना होशो-हवास खो बैठा था! और खोता भी क्यों न! गिरिजा प्रसाद ने उसके पूरे परिवार को मरवा दिया और उसको ही अपने परिवार के मौत का दोषी भी बना दिया! इतना कहते हुए उसकी आँखें भर आई!

इतना सबकुछ होने के बावजूद गिरिजा प्रसाद चूँ से चाँ तक नहीं बोले बल्कि वे अभय की तारीफों के पुल बाँधते चले गए। वे बोले -ये देखिए! आदर्श पर मर मिटने वाला इंसान! बहादुरी का एक जीता जागता नमूना आपके सामने है। मैं तो इसके हिम्मत की दाद देता हूँ कि इसने मेरे ही सामने मेरी इज्जत का जनाजा निकाला इसमें सच्चाई को बेधड़क कहने की हिम्मत है जो दूसरे नौजवान में कहाँ? शाबाश बेटे! इसी तरह तुम काँटों से कभी घबराना नहीं और सच्चाई को वरण करना! देखना एक दिन तुम देश के नेता अवश्य बनोगे। तालियाँ-तालियाँ! और अभय जैसे बीत ही बन चुका था मानो उसमें गिरिजा प्रसाद के खिलाफ बोलने का साहस  ,वो जज्बा कही खत्म हो चुका था जो उसमें जेल जाते समय उसके खून में दौड़ रहा था! एक बार फिर से जनता इस काले -करतूतों के यमराज को पहचाननें में धोखा खा गई! कहते हैं कि जनता जनार्दन होती हैं " लेकिन इतना अधिकार प्राप्त होने के बावजूद वे उसी जाल में फंस गए जिसमें से वे निकलना चाहते थे!

लेकिन स्पष्ट रूप से यह कहा नहीं जा सकता कि यह राजनीति कब अपना रूख मोड़ लेगी! आगे- देखिए होता है क्या ? गिरिजा प्रसाद इतनी आलोचनाओं के बावजूद फिर से जनता के सहानुभूति के अधिकारी बन बैठे! जितनी मुँह उतनी बातें| भीड़ में कानाफूसी होने लगी । किसी ने कहा -दाद देनी पड़ेगी गिरिजा प्रसाद के सब्र की, जो इतनी आलोचनाओं के बावजूद उस नौजवान की प्रशंसा करते चले गए और अगर उस नौजवान के साथ इतना सबकुछ हुआ तो वह गिरिजा प्रसाद का कॉलर क्या नहीं पकड़ा?

बड़े आए मनगढ़ंत कहानियाँ बनाने वाले। दूसरे ने कहा -अरे! जब गिरिजा प्रसाद ने अपने घर काम करने वाले को कही नहीं छोड़ा तो वो जनता का भला क्या खाक करेगा। वह तो पहले अपने वादों से मुकरेगा और अपनी तिजोरी भरेगा। तीसरे ने कहा -लगता है कि किसी ने

उसके कान भर दिया है तभी इतनी बहकी -बहकी बात कर रहा था वरना गिरिजा प्रसाद इतने भलेमानस हैं कि उन्होंने कभी मच्छर नहीं मारा किसी की बगिया क्या उजाड़ेंगे। भीड़ में से किसी ने कहा -अरे! कुछ नहीं सब पब्लिसिटी का धंधा है । भीड़ में कानाफूसी से खलबली मच गई ।

भोली जनता फिर से गिरिजा प्रसाद के राजनीतिक दाँवपेंच में फंस गई और गिरिजा प्रसाद भारी मतों से विजयी हुए होममिनिस्टर के पद पर आसीन हुए! सर्वप्रथम, वे पहला विकास -कार्य की अग्रणी सूची में उस नौजवान की हत्या करवाकर मामूली एक्सीडेंट करार देकर इस लोक से अजय के लिए वे मोक्ष -मुक्ति का साध्य बने और 2 हजार रुपये उसके दाह -संस्कार के लिए देकर अभय की जिंदगी की कीमत लगाई और इस दुनिया के लिए महात्मा की उपाधि बड़े गर्व से हासिल की! गिरिजा प्रसाद एक बार फिर नकाब ओढ़ चुके थे जिसमें वो खुद को भी पहचानने में असमर्थ थे।

वे प्रवेश कर चुके थे रक्षक बनकर जुर्म की दुनिया में! उन्होंने  ' सत्ता पर कमान ' तो किया लेकिन उस सत्ता के कमान की नींव चोरी, डकैती, धोखाधड़ी जैसी वारदात की बुनियाद पर खड़ी थी! देश में न जाने कितने नेता हुए है, जो सत्ता का कमान संभालते है और संभालते आ रहे हैं और भविष्य में भी संभालेंगे, जो बड़ी हस्तियों के दर्शन का लोभ देकर होनेवाले भावी देश के कर्णधार बच्चों का भविष्य तो अंधकारमय बनाते ही है, साथ-ही-साथ देश का भी अस्तित्व भी खतरे में डालते हैं और इनके कारण ही ईमानदारी ,सज्जनता, देशप्रेम के बदले झूठ, चोरी और डकैती जैसी असामाजिक तत्वों को बढ़ावा मिलता है और मिल रहा है ।

COMMENTS

BLOGGER: 5
  1. नवनीता कुमारी . (सत्ता पर कमान) हमे संस्मरण लेखन पढ़ने मे अच्छा लगा ।

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  2. बेनामी12:45 pm

    Today's harsh reality.... Very thoughtful, keep writing

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  3. बेनामी12:51 pm

    Nicely written😊 & very thoughtfull👌 keep it up👍

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  4. बेनामी8:04 pm

    Awesome thoughts...

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  5. बेनामी8:58 pm

    Very thoughtful...keep going gal 👍 👍

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रचनाकार: संस्मरण लेखन पुरस्कार आयोजन - प्रविष्टि क्र. 108 : सत्ता पर कमान // नवनीता कुमारी
संस्मरण लेखन पुरस्कार आयोजन - प्रविष्टि क्र. 108 : सत्ता पर कमान // नवनीता कुमारी
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