विषादेश्वरी भाग 3 // उड़िया उपन्यास // सरोजिनी साहू // अनुवादक - दिनेश कुमार माली

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भाग 1   भाग 2    हर्षा के घर के नजदीक आकर उसने कहा, “मैं जा रहा हूँ। ” "हम कल मिलेंगे?" "मैं नहीं कह सकती। " &...

भाग 1  भाग 2  

हर्षा के घर के नजदीक आकर उसने कहा, “मैं जा रहा हूँ। ”
"हम कल मिलेंगे?"
"मैं नहीं कह सकती। "
"फिर दिल्ली में?"
"कैसे कह सकती हूं, अल्बर्टो? यह दुनिया इतनी बड़ी है, हम कहीं-न-कहीं एक-दूसरे से मिल सकते हैं, मगर सवाल यह है कि हम उस समय एक दूसरे को पहचानने की स्थिति में होंगे या नहीं? "
अल्बर्टो का चेहरा एक पल के लिए उदास हो गया। अगले ही पल उसने मुस्कुराते हुए कहा: " मुझे लगता है कि तुम बड़ी निराशावादी हों। क्या मेरा अनुमान सही है? लेकिन इतनी कम उम्र में जीवन के प्रति इतनी उदासीन क्यों हो ? "

"हे, तुम बहुत गंभीर हो गए हो, अल्बर्टो! बचपन के दिनों से हम समुद्र तट और बड़दांड पर विदेशियों को देख रहे हैं। सभी एक जैसे दिखते हैं। हमें पता नहीं चलता है कि कौन पुरी में पहली बार आया या दूसरी बार ? फिर कौन इतनी दूर बारबार आएगा और क्यों ? मैंने तुम्हें उन विदेशियों में से एक समझकर यह बयान दिया है। मगर मुझे लग रहा है कि तुम दूसरों से अलग हों। "
एक-दूसरे से विदा लेते समय अल्बर्टो ने हर्षा के मोबाइल नंबर लेते हुए कहा: "युधिष्ठिर कभी झूठ नहीं बोलता है, तुम देखोगी, मैं तुम्हें एक दिन दिल्ली में खोज लूँगा। "

घर पहुंचने के बाद हर्षा ने अपनी मां को अल्बर्टो के बारे में बताया। मां अल्बर्टो का नाम 'युधिष्ठिर' सुनकर बहुत हंसी। बहुत दिनों के बाद हर्षा के होंठों पर मुस्कुराहट देखकर पिता को राहत मिली। पिताजी कहने लगे कि जब वह स्कूल में पढ़ रहे थे तो उन्होंने 'जवा कुसुम संकासम' का जप करते हुए सूर्य भगवान को अर्ध्य देते हुए एक विदेशी को देखा था। लोग उसे 'गोरा पंडित' कहते थे। कुछ लोग उसे 'लंदन पंडा' कहते थे। उस दिन हर्षा पिताजी से लंदन पंडा की बात सुनकर खूब जोर से हंसी थी।

ओडिशा में रहने के बाद हर्षा दिल्ली लौट गई। वह ये सारी बातें भूल गई थी, पढ़ाई में व्यस्त रहने के कारण। अचानक एक दिन अल्बर्टो का फोन आया उसके पास।
“ ह्रासा, मुझे पहचान रही हो? मैं अल्बर्टो, युधिष्ठिर। क्या तुम्हें याद है, हम पुरी में मिले थे? "
"हां, अल्बर्टो, क्या तुम दिल्ली लौट आए हो? वापस कब आये ? यह वाकई बहुत बड़ी बात है कि तुमने मुझे याद रखा!”
“मैं कैसे भूल सकता हूँ ? तुम मेरी प्राण रक्षक हो। "
"नहीं, मैं नहीं, भगवान ने तुम्हें बचा लिया। "
"तुम्हारा भगवान में अगाध विश्वास है। "

"क्या तुम्हारा नहीं है ?"
"हां, मेरा विश्वास है, ह्रासा। मैं तुम्हें मिलना चाहता हूँ, बताओ, हम कहां मिल सकते हैं? "
"क्या कुछ काम है?"
"तुम्हें पूछने के लिए बहुत सारे सवाल हैं मेरे पास, फोन से पूछना संभव नहीं है, ह्रासा। मुझे बताओ, कौनसी जगह तुम्हारे लिए सुविधाजनक होगी। क्या मैं तुम्हारे घर आ सकता हूं? "
"नहीं, घर पर संभव नहीं है। इस घर में हम तीन सहेलियाँ एक साथ रहती हैं। मेरी सहेलियों को अच्छा नहीं लगेगा। ठीक है, क्या तुम ग्रीन पार्क आ सकते हो? मैं गेट पर तुम्हारा इंतजार करूंगी। "
हर्षा ने कभी नहीं सोचा था कि अल्बर्टो दिल्ली लौटने के बाद उसकी खोज-खबर लेगा। उसके मन में उत्सुकता पैदा हो गई कि अल्बर्टो का क्या काम हो सकता है? किस तरह के प्रश्न पूछना चाहता है वह ? इस बीच वह उसका चेहरा तक भूल गई है, क्या वह उसे पहचान पाएगी? भगवान ने उसे बचा लिया, वह एक यूरोपीयन से मिलने जा रही है, भारतीय से नहीं।

हर्षा विभाग से सीधे ग्रीन पार्क में गई। वह आदमी क्या सवाल पूछेगा, इस बारे में कोई संकेत भी नहीं दिया था, इसलिए एक भयानक चिंता उसके मन में हो रही थी। ऐसे क्या सवाल है जिसके उत्तर केवल हर्षा ही दे सकती हैं? खैर छोड़, इस बारे में चिंता करने का कोई फायदा नहीं है, मिलने पर अपने आप पता चल जाएगा। हो सकता हैं, वह आदमी झूठे सवालों के बहाने मुझसे दोस्ती करना चाहता हो।
दिल्ली में उसका कोई प्रेमी नहीं था। अंगुल से आए विष्णु महापात्र ने करीब आने के लिए बहुत रुचि दिखाई, तो वह सतर्क हो गई थी। इसी वजह से भैरवी और नवीना उस पर खूब हंसी थी। उन्होंने उसे छेड़ा भी, मगर वह यह कभी नहीं कह पाई कि उसे इस पुरुष- दुनिया से बहुत डर लगता है। वह विष्णु महापात्रा से डर गई थी, मगर कि वह अल्बर्टो के फोन पर कैसे बाहर आ गई? क्या भैरवी और नवीना कभी इस बात पर विश्वास कर पाएँगी? वे कहेंगी: "तुम्हारे जैसी रूढ़िवादी लड़की सीधे विदेशी दोस्त से मिलती है, बढ़िया! मान गए तुम्हें। विष्णु मूर्ख था, जो लाइन मार रहा था। "

क्या वह गलती कर रही थी? पता नहीं क्यों, वह डरी हुई थी। वह रिक्शा बदलकर घर लौट जाना चाहती थी। दिल्ली पुरी शहर की तरह नहीं है, वह एक अजनबी को मिलने के लिए दिल्ली जैसी अनजान जगह में बाहर आ गईं? लेकिन वह रिक्शे से नीचे नहीं उतर पाई और आखिरकार रिक्शा-चालक ने उसे गेट पर छोड़ दिया।
बहुत दिनों के बाद वह अपने खोल से बाहर आकर मानो बदलती दुनिया देख रही हो; कांपते-कांपते उसने गेट के भीतर प्रवेश किया। उसने एक दो कदम बढ़ाए नहीं होंगे कि उसकी नजर अल्बर्टो पर पड़ी।
"हाई, ह्रासा!" उसने हाथ हिलाकर उसे इशारा किया।

आदमी उसे देखते ही पहचान गया? हर्षा ने भी अपना हाथ लहराया। अल्बर्टो उसे देखकर बहुत खुश हुआ और कहा 'नमस्ते'
हर्षा हंसने लगी। यह आदमी भारतीय तौर-तरीके अच्छी तरह से जानता है। दोनों एक बेंच पर बैठ गए।
अल्बर्टो ने पूछा, " कैसी हो?"
"हां, मैं ठीक हूं। तुम कुछ पूछना चाहते थे? "
अल्बर्टो ने कहा, "हां, पहले आराम से बैठ तो जाओ। "

डर और चिंता की लकीरें उसके चेहरे पर दिखाई दे रही थी? क्या वह अल्बर्टो के पास सहज नहीं थी? उसे यहाँ कौन पहचानता है ? फिर इतना संकोच क्यों है ? दोनों चुपचाप बैठे रहे। शाम हो रही थी, कुछ बुजुर्ग लोग वहाँ से गुजर रहे थे। कुछ दूरी पर कुछ लोग अपने हाथ ऊपर उठाकर ज़ोर-ज़ोर से हंस रहे थे। शायद वे आर्ट ऑफ लिविंग का अभ्यास कर रहे थे। अल्बर्टो ने पूछा, "वे लोग इतनी जोर से क्यों हंस रहे हैं, ह्रासा ?"
"वे इस तरह अपने दुख, अवसाद, थकान और निराशा को दूर कर रहे हैं। "
"इस मेकेनिकल हंसी से ?"
"जीवन धीरे-धीरे इतना मेकेनिकल होता जा रहा है कि हम हंसना भूल जा रहे हैं। "

"क्या यह एक्सरसाइज़ है?" अल्बर्टो ने पूछा।
"नहीं, अल्बर्टो, नहीं ... वे जीवन जीने की कला सीख रहे हैं। ठीक है, मुझे बताओ, तुम क्या पूछना चाह रहे थे? "
"मैंने आज एक वेबसाइट में पढ़ा है कि गौतम बुद्ध ओडिशा में पैदा हुए थे, क्या यह सच है?"
"मुझे नहीं लगता कि यह सच है, " हर्षा ने कहा। "हां, यहां कुछ बौद्ध विहार हैं, प्रसिद्ध कलिंग युद्ध यहां लड़ा गया था, जिसके बाद अशोक 'चंडाशोक' से 'धर्माशोक' में बदल गए थे। लेकिन बुद्ध का जन्म यहां हुआ था? हां, कुछ लोग मानते हैं कि भगवान जगन्नाथ के 'नवकलेवर' के समय बुद्ध का एक दांत 'नाभि-ब्रह्म' में रखा जाता है। मगर मैं बुद्ध की जन्म-स्थली ओडिशा को मानने के लिए तैयार नहीं हूं। "
उस दिन उसने भगवान जगन्नाथ के 'नव-कलेवर' की कहानी अल्बर्टो को विस्तार से सुनाई थी। उसके बाद उसने कहा, "ह्रासा, यू आर वंडरफूल। "
"तुम मेरा नाम सही ढंग से उच्चारण करना कब सीखोगे ?” हर्षा ने मुस्कराते हुए पूछा।
"हे! मैं बहुत शर्मिंदा हूं!पता नहीं क्यों, मैं तुम्हारा नाम का ठीक ढंग से उच्चारण नहीं कह पा रहा हूं। "
"ठीक है, ठीक है। नाम केवल नाम है, इसमें क्या रखा है? तुम्हें जो पसंद है, उस नाम से मुझे बुलाओ। "
"सही है। मगर मैं दोषी महसूस करता हूं क्योंकि जब मैं तुम्हारा नाम सही ढंग से बोलने में असमर्थ हूं, तो मैं तुम्हारी संस्कृति कैसे जान सकता हूं? "
"अल्बर्टो नाम के संबंध में एक अच्छी कहानी है! सुनना चाहेंगे? "
"हां, निश्चित रूप से, " छोटे बच्चे की तरह उसकी दिलचस्पी बढ़ गई।

"मदालसा नामक एक महान महिला थी। बचपन से ही शास्त्रों का गहन अध्ययन कर उसने पांडित्य हासिल कर लिया था। उसका राजा शत्रुजीत के बेटे ऋतुध्वज से शादी हो गई। समय पर उसका एक बेटा हुआ। राजा अपने भावी वंशधर को देखकर बहुत खुश था। वीरता क्षत्रियों का सबसे बड़ी गुण होता है, इसलिए उसने अपने बेटे का नाम रखा विक्रांत। बेटा जब बड़ा हुआ, तो एक दिन मदालसा ने उसे कहा, ' तुम्हारा नाम विक्रांत रखा गया है, इसलिए किसी और दिए गए नाम से तुम्हारा कोई संबंध नहीं है। आत्मा ही एकमात्र सच्चाई है, शरीर और नाम चाप अस्थायी और मिथ्या हैं। इसलिए सांसरिक सुख-दुख में अपना समय बर्बाद किए बिना अनासक्त भाव से सच्चाई की तलाश करो। ' अपनी मां के उपदेश से विक्रांत ने संन्यास ग्रहण कर लिया, अपने आपको राजसिंहासन से दूर रखते हुए। धीरे-धीरे समय बीतता गया, उनके दूसरे बेटा पैदा हुआ। इस बार राजा ने उसका नाम सुबाहू रखा। फिर एक और बेटा हुआ, जिसका नाम शत्रुमर्दन रखा गया। उन नामों का मदलासा उपहास करने लगी। मां के संस्पर्श से इन दोनों पुत्रों ने 'आत्म-ज्ञान' प्राप्त किया और इस दुनिया को मिथ्या माना। राजा हमेशा अवसाद में रहने लगा, यदि सारे पुत्र संन्यासी बने गए तो राजा कौन बनेगा ? कौन शासन की बागडोर कौन संभालेगा? जब चौथा बेटा पैदा हुआ था, तो राजा ने उसे नाम नहीं दिया और उसे एक उपयुक्त नाम देने के लिए मदलासा से अनुरोध किया। मदलासा ने उसका नाम रखा 'अलर्क', जिसका अर्थ है पागल कुत्ता। राजा यह नाम सुनकर दुखी हुआ। विक्रांत, सुबाहू या शत्रुमर्दन जैसे नाम दिए बिना रानी ने उसका नाम रखा ‘अलर्क’। रानी ने कहा कि दुनिया में अधिकांश लोग नाम और उपाधि पाने के लिए लगभग पागल कुत्ते बन गए हैं, जबकि ये नाम या उपाधि व्यक्ति की वास्तविक सच्चाई को छिपाती है। इसलिए यदि आप खराब नाम रखते हैं, तो बेटे का नाम के प्रति ज्यादा लगाव नहीं होगा। अंत में अलर्क ने ही सिंहासन की जिम्मेदारी उठाई और अपना शेष जीवन 'वानप्रस्थ' में बिताया।

अल्बर्टो यह कहानी सुनकर बहुत खुश हुआ था, "वास्तव में बहुत अच्छी कहानी है। क्या मैं तुम्हें मदालसा कह सकता हूँ? "
"नहीं, तुम इस नाम का भी सही ढंग से उच्चारण नहीं कर सकते हो। तुम मुझे उस नाम से पुकार सकते हो, जिसका तुम आसानी से उच्चारण कर सकते हो। "
"क्या मैं तुम्हें हाना कह सकता हूँ? यह पुर्तगाली नाम नहीं है, बल्कि एक जर्मन नाम है। तुम जानती हो, मेरी पत्नी क्रिस्टीना जर्मनी में पैदा हुई। "
"वास्तव में ?"
"वह बहुत दिनों से पुर्तगाल की निवासी बन गई हैं। "
"ठीक है। क्या तुम्हारे नामों का हमारे नामों की तरह अर्थ होता हैं, अल्बर्टों ? "
"निश्चित रूप से, उदाहरण के लिए, मेरा नाम ‘अल्बर्टों’ को इंग्लैंड या जर्मनी में 'अल्बर्ट' कहा जाता है, जिसका अर्थ है 'एक स्वच्छ उदार मन। '
"और हाना का अर्थ क्या है?"
" लड़की, हम एक छोटी लड़की को ऐना या हाना कहते हैं। "
उस दिन से अल्बर्टो उसे हाना नाम से बुलाने लगा। मगर हर्षा अल्बर्टो को युधिष्ठिर के नाम से नहीं बुलाती थी, क्योंकि वह नाम उसकी त्वचा के रंग से मेल नहीं खा रहा था। "
"ठीक है, तुम्हारे पास पूछने के लिए बहुत सारे सवाल थे?"
"हाँ थे तो; मैं सोच रहा हूँ कि मैं उन्हें कल पूछूंगा। "

"फिर कल?"
"क्या कोई दिक्कत है, हाना?" अल्बर्टो बेंच से उठा। फुसफुसाते हुए कहने लगा, "मुझे पता नहीं चला, तुम्हारे साथ समय कितना जल्दी बीत गया। अगर हमारी कल मुलाक़ात होती हैं तो मुझे बहुत खुशी होगी। "
"देखते हैं। " कहकर हर्षा उठ गई।

3
वह बहुत बेचैन महसूस कर रही थी। हर पल एक युग की तरह लग रहा था। अपनी उत्कंठा को दबाने में असमर्थ होकर वह बार-बार बालकनी की ओर दौड़ रही थी। यद्यपि वह बहुत अच्छी तरह से जानती थी कि उसकी दौड़ निरर्थक थी। सड़क के उस तरफ से और न ही इस तरफ से कोई रास्ता नहीं था। अल्बर्टो ने कई बार अपने यहाँ आने के लिए कहता था, मगर हर्षा इंकार कर देती थी। जबकि वह वहां पहुंच जाती थी, जहां अल्बर्टो उसे आने के लिए कहता था। अल्बर्टो उसके इस व्यवहार से आश्चर्यचकित था। उत्तर में हर्षा ने समझाया, "नहींअल्बर्टो, मैं नहीं चाहती कि कोई हमारे खिलाफ टिप्पणी करें। तुम जानते हो; मैं अकेले इस घर में नहीं रहती, मेरी सहेलियाँ मेरे साथ रहती हैं। मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता है कि अगर कोई तुम्हारे विरुद्ध कुछ भी बुरा कहता है। "
अल्बर्टो ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा था: "क्यों कोई हँसेगा? हर व्यक्ति को अपना जीवन जीने का अधिकार है, अपनी गोपनीयता की सुरक्षा का अधिकार है। क्यों दूसरे उनके जीवन में झांक कर देखेंगे ? यूरोप में कोई भी किसी के निजी जीवन में सिर नहीं खपाता है। "

बार-बार मना करने वाली हर्षा सोच रही थी कि अगर अल्बर्टो यहाँ पहुंच जाता तो बहुत अच्छा होता। मगर अगले ही पल डर और संकोच उसे जकड़ लेता था। अपराध-बोध कीभावना से खुद को मुक्त नहीं करा पाती थी। यह अपराध-बोध क्यों ? कभी-कभी वह दृढ़ हो जाती थी तो कभी-कभी उसकी सारी दृढ़ता चूर-चूर हो जाती थी।
पहले-पहल ध्रुव-तारा की तरह अल्बर्टो उसके लिए कौतूहल था; धीरे-धीरे वह आदत बन गया और अब नशे की लत। हर दिन घंटे-दो घंटे बात नहीं करने पर उसे बेचैनी लगने लगती। मन के साथ पैर दौड़ना चाहते थे। पहले उसके सवाल अप्रासंगिक लगते थे, फिर बहुत दार्शनिक या तर्कसंगत लगते थे, फिर उसका संसर्ग अच्छा लगने लगा।

धूप धीरे-धीरे नरम होती जा रही थी, फिर भी मोबाइल नीरव था जैसे कि वह गहरी नींद में सो गया हो। उसने सारे दिन अलग-अलग समय में अल्बर्टो के नंबर लगाने का प्रयास किया था। कभी 'पहुँच से बाहर', कभी 'मोबाइल स्विच ऑफ है' या कभी 'यह नंबर मौजूद नहीं है' की सुरीली ध्वनि मोबाइल पर सुनाई देती थी।
हर्षा ने उस दिन अल्बर्टो के लिए सात सवाल तैयार किए थे। एक बार वह जानना चाहती थी: "तुम्हारे पुर्तगाल में प्रश्नोत्तरी का खेल क्यों खेला जाता है? क्या व्यक्तियों से मिलकर उनके गुणों या प्रकृति को नहीं जाना जा सकता है, उनके विधिवत साक्षात्कार की आवश्यकता क्यों है? "

"क्या प्रश्नोत्तरी का खेल हमारे देश में ही प्रचलित है, क्या तुम्हारे यहाँ नहीं है? क्या तुम्हें मालूम नहीं कि यक्षराज ने ‘युधिष्ठिर-यक्षराज संवाद’ में झील के किनारे युधिष्ठिर को बगुला बनकर सारे प्रश्न पूछे थे ? "
पुरानी कपड़ों के लुप्त होते रंग की तरह कई आख्यान-उपाख्यान हर्षा के मन से लगभग उतर चुके थे। उसने जवाब दिया: "हां, मुझे कुछ-कुछ याद आ रहा है। "
"महाभारत में इतने सारे संवाद हैं: 'अष्टावक्र-वली संवाद', 'भीष्म-कर्ण संवाद', 'इंद्र-अंबरीश संवाद ' आदि। क्या मैं सही कह रहा हूं न ?"
"उस दिन हर्षा ने माना कि अल्बर्टों कोई छोटा खिलाड़ी नहीं था। अगर उसने महाभारत के सबसे अंदरूनी प्रसंगों से कुछ पूछा तो वह कहीं की नहीं रहेगी। मगर  वह यह जानकर प्रसन्न थी कि उसे भारतीय संस्कृति के बारे में काफी जानकारी है और उसे भारतीय संस्कृति से प्यार है। कितने विदेशी लोग होंगे, जो सही ढंग से भारत के बारे में जानकारी रखते हैं! ऐसे विद्वान व्यक्ति के लिए प्रश्नावली तैयार करना आसान नहीं था। उसने बहुत मेहनत कर सात सवाल तैयार किए थे

पहला प्रश्न: तुम्हारा सपना क्या है?
दूसरा प्रश्न: तुम्हारी नजरों में एक महिला के लिए क्या गुण होने आवश्यक है?
तीसरा प्रश्न: प्यार के बारे में तुम्हारी क्या राय है?
चौथा प्रश्न: तुम  किस काम के लिए खुद को दोषी मानते हैं?
पांचवां प्रश्न: भीतर से तुम्हें क्या सहज लगता है?
छठवां प्रश्न: तुम्हारे जीवन की सबसे बड़ी गलती क्या है?
सातवां प्रश्न: क्या भौतिकवादी दुनिया तुम्हें विचलित करती है?

हर्षा ने सभी सवालों को एक छोटे से कागज में लिख रखा था, मगर पूरे दिन अल्बर्टो का कोई अता-पता नहीं था। यह अप्रत्याशित था। दिल्ली लौटकर आने के बाद से वह उसके साथ नियमित संपर्क में था। कभी अगर विभाग में काम होता या उसे पुस्तकालय में जाना पड़ता, तो वह उसे फोन पर पहले से सूचित कर देता था।
शाम होने जा रही थी। न अल्बर्टो का फोन आया और न ही नवीना या भैरवी  रूम में लौट आई। हर्षा को बहुत अकेलापन और बेचैनी लग रही थी। हालांकि भैरवी या नवीना से उसकी बनती नहीं थी, मगर उनकी अप्रासंगिक बातों में समय गुजर जाता था। छात्रावास में सीटें नहीं मिलने के कारण उन तीनों ने किराए पर एक मकान लिया था। कभी वे बारी-बारी से ख्नाना बनाते थे तो कभी होटल से मंगा लेते थे। दोनों लड़कियां उससे दो-अढ़ाई साल छोटी थी। वे अपनी वेश-भूषा और आचार-व्यवहार में काफी आधुनिक थीं। मगर हर्षा पुरी के रक्षणशील परिवार की लड़की थीं। वह दस प्रेमियों के साथ डेटिंग की कल्पना कभी नहीं कर सकती थी। इसके अलावा, उसने जीवन की जिसकड़वाहट का सामना किया है, ऐसा कोई कर सकता है ?

हर्षा को कभी-कभी लगता था कि वह एक घने जंगल से घिरी हुई है। वह घने जंगल में अपना रास्ता खो चुकी है और चारों तरफ इधर-उधर भटक रही है। समाप्त नहीं होने वाले इस जंगल में क्या कोई उसका हाथ पकड़कर उसे आश्वस्त करेगा, चल मैं तुझे रास्ता दिखा देता हूँ। चल, समय रहते-रहते इस घने जंगल से बाहर निकल चलते हैं। वह यह नहीं जानती कि अल्बर्टो एक राजकुमार है या लकड़हारा, मगर इस अनन्त जंगल में वह उसे मिला है। सुनहरे देवदूत की तरह वह उसके सामने हाजिर हुआ था उसकी आँखों से आँसू पोंछकर उसके होठों के कोने में थोड़ी-सी मुस्कुराहट पैदा करने के  लिए। ऐसा हो सकता है कि वह कल जंगल से कहीं गायब हो जाएं। हालांकि, वह अल्बर्टो के संसर्ग में  इस भयावह जंगल को भूल गई थी।

पागल अल्बर्टो सब-कुछ जानने के लिए उत्सुक था। कभी-कभी हर्षा उससे पूछती:"तो आज कौनसा चैनल लगेगा ?"
"क्या मैं तुम्हें बोर कर रहा हूँ?" अल्बर्टो ने शर्म से पूछा।
"बिल्कुल नहीं, तुम्हारे साथ गप लगाने के लिए मैं पूरे दिन इंतजार करती रही। मगर क्या मैं तुम्हें हमेशा अपने देश के बारे में बताऊंगी, क्या तुम मुझे अपने देश के बारे में नहीं बताओगे?”
"क्यों नहीं बताऊंगा? तुमने कभी मुझसे पूछा? हाना, मुझे नहीं पता कि तुम्हारी वास्तव में इसमें रुचि हैं। क्या तुम  मेरे देश को प्यार करती हो, जैसे मैं तुम्हारे देश को प्यार करता हूं? "
"क्या तुम वास्तव में मेरे देश से प्यार करते हो?" हर्षा ने उलटा प्रश्न किया।

"हां, मैं भारत को बहुत प्यार करता हूँ। क्या तुमने अभी तक नहीं देखा है? मैं भारत को प्यार करता हूँ, और मैं तुम्हें भी। मैं सही कह रहा हूँ, हाना, तुम  जानते हो कि युधिष्ठिर कभी झूठ नहीं बोलता है। "
"मैं तुम्हें भी प्यार करता हूं। "अल्बर्टो ने इस तरह से कहा कि वह उसे प्यार करता है, क्योंकि वह भारत से प्यार करता है। मगर यह समझ में नहीं आ रहा था कि उस प्यार में उसके लिए वास्तविक प्रेम है या नहीं। एक अन्य मौके पर अल्बर्टो ने उससे पूछा था: "क्या तुम मुझे प्यार नहीं करती हो, हाना?"

"इस विदेशी पक्षी से ? आज यह है, कल नहीं हो सकता है?" हँसते हुए उलटा प्रश्न किया हर्षा ने। उसने हास-परिहास के बीच संयमित भाव से एक सत्य को छुपा दिया। नहीं, वह खुद को किसी भी परिस्थिति में नहीं खोलेगी। किसी भी हालत में यह गोपनीय रहेगा। क्या उसके मन में डर है? यदि उसे सच्चाई पता चल गई , तो वह पास से दूर चला जायेगा? फिर उसे इस  घने वन में अकेले चलना पड़ेगा?
"मगर मैं भारत को प्यार करता हूं; हाना, मुझे उसके महान लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और व्यक्ति स्वातंत्र्य से प्यार है। मुझे वेद-वेदांत अच्छे लगते हैं। मैं शंकराचार्य के दर्शन 'ब्रह्म सत्य-जगत मिथ्या' से प्रभावित हूँ। मुझे तुम्हारी परंपराओं से प्रेम है। ”

धत्! यह अल्बर्टो कितना अजीब है! उसे अपनी भावनाओं को व्यक्त करना भी नहीं आता है। वह यह कह सकता है, मुझे घर से प्यार है, मुझे इस मिट्टी से प्यार है, उसके बगीचे से प्यार है, मगर यह नहीं कह सकता है कि मुझे घर में रहने वाले मनुष्य की आंखों से प्यार है, उसके होंठ और सरल हृदय से प्यार है। वह पूछ सकता था कि मैंने उसे एक विदेशी पक्षी क्यों कहा? क्या प्रवासी पक्षी हर साल इस धरती पर नहीं आते है? हर्षा अनुभव करने लगी कि दोनों के भीतर हिलोरे ले रही छटपटाहट अभी भी संकोच की स्थिति को पार नहीं कर पा रही है।
वह अल्बर्टो के फोन का इंतजार करते-करते थक गई थी। उसने मन-ही-मन यह भी निर्णय लिया कि ऐसी कल्पनाओं से अब वह दूर रहेगी। रविवार सोचकर वह  अल्बर्टो को लंच के लिए बाहर जाने का प्रस्ताव देने वाली थी। वह भैरवी और नवीना की तरह डेटिंग पर नहीं जा सकती थी, मगर वह अल्बर्टो के साथ कुछ घंटे बाहर बिताए तो क्या नुकसान होगा? उसने कभी नहीं सोचा था कि रविवार पूरी तरह बर्बाद चला जाएगा।

वह खुद अपने स्वयं के रूपान्तरण से आश्चर्यचकित थी। उसके माता-पिता ने कितने विश्वास के साथ उसे दिल्ली भेजा था, क्या वह सही कर रही थी? बेशक, उन्होंने उसे नहीं भेजा था, बल्कि वह अपनी जिद्द पर आई थी। पिताजी चाहते थे कि वह उनके साथ रहें और पीजीडीसीए जैसा कंप्यूटर का कोई कोर्स पूरा करें। यदि नहीं तो वह विश्वविद्यालय से पोस्ट-ग्रेजुएशन करें। मगर वह पुराने  वातावरण से मुक्ति चाहती थी। वह अपनों से इतना दूर जाना चाहती थी कि उनकी छाया तक उस पर नहीं पड़ें। उसके इस विद्रोह के सामने किसी की नहीं चली। उन्होंने सोचा कि केवल कुछ ही दिनों की बात है, उसे जाने दो, समय आने पर अपने आप ठीक हो जाएगी। क्या दिल्ली उसे इस तरह की जिंदगी के लिए बुला रही थी?

अल्बर्टो के फोन करने का कोई निर्दिष्ट समय नहीं था। वह समय-असमय फोन करके कहता था: "हाना, आई नीड़ यू। "
"तुम ऐसा क्यों कहते हो, आई नीड़ यू? हर्षा ने शिकायत की, “उसके दिल में कुछ अजीब-सा अनुभव होने लगता है। "
"क्या अजीब-सा अनुभव होता है?" अल्बर्टो ने आश्चर्य से पूछा "मैंने तो ऐसे खराब शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया। ओह, मुझे खेद है कि मेरी अंग्रेजी इतनी अच्छी नहीं है। फिर ‘नीड़ यू ' शब्द का प्रयोग कहाँ किया जाता है, हाना? वास्तव में, मैं तुमसे कुछ पूछना चाहता था। तुम जानती हो, हाना, हमारे देश के अधिकांश लोग अंग्रेजी नहीं बोल सकते हैं। मैंने अपनी इच्छा से तीन साल तक अंग्रेजी का अध्ययन किया था। हाना, मैं बहुत अच्छी तरह फ्रेंच बोल सकता हूं, पढ़ सकता हूं और लिख सकता हूं। मुझे स्पेनिश भी आती है। मैं जर्मन पढ़ सकता हूं। मगर मुझे उनकी बोलचाल की भाषा समझ में नहीं आती हैं। सबसे दिलचस्प बात यह है कि मेरी पत्नी भी जर्मन है। "
"क्या तुम ये सब बातें बता कर मुझे प्रभावित करने का प्रयास कर रहे हो?"

“ प्रयास करने में क्या बुराई है? मैं तुमसे प्यार करता हूँ। तुम्हारे सामने मुझे मेरी छवि तैयार करने की आवश्यकता नहीं है? क्या तुम जानती हो, हाना, तुम्हारी कौनसी चीजमुझे सबसे ज्यादा पसंद है? "
"कौनसी चीज?" हर्षा जानने के लिए उत्सुक थी। उसने सोचा कि अल्बर्टो कहेगा, आकाश से उतरते बादलों की तरह उसकी आंखें, उसकी खूबसूरत नाक या कमर तक लटकते लंबे बाल। मगर अल्बर्टो के जवाब ने उसे आश्चर्यचकित कर दिया: "मैं तुम्हारी बुद्धि से प्रेम करता हूं: मुझे तुम्हारा साफ हृदय पसंद है। "
“तुम शरीर के भीतर खोपड़ी के किसी कोने में छिपी हुई बुद्धि को समझ सकते हो; तुम छाती के भीतर हृदय की सफाई देख सकते हो, मगर मेरे पांच फीट चार इंच ऊंचे शरीर ने तुम्हारा ध्यान आकर्षित नहीं किया ?”
आँखों से चश्मा उतारकर पोंछते हुए अल्बर्टो ने कहा: "मेरी आँखें दिन-ब-दिन कमजोर होती जा रही है। मैं साफ-सुथरा चेहरा नहीं देख पाता हूँ। क्या किया जा सकता है?”

हर्षा ने अल्बर्टो को पीटने के लिए अपना मनी पर्स उठाया।
“मुझे लगता है कि तुम मजाक करना बहुत अच्छी तरह जानते हो। "
"सच बोल, हाना, मेरी आँखों में कुछ समस्या नहीं दिखाई दे रही है। "
हर्षा ने कोई जवाब नहीं दिया। जैसे कि विषाद उसके मन के नीचे गहराने लगा हो। अगर वह उसके चेहरे की तारीफ करती, तो क्या वह झूठ बोलती? कौन जानता है? उसने पहले से बहुत दर्द झेला है। कभी-कभी उसे अपने शरीर से घृणा होती थी। शरीर में कहीं छलकते पानी पर नरम पंखुड़ियों पर बैठता है मन , मगर कुछ लोगों को यह नहीं पता चलता है। वह पहले इस विचार से भयानक पीड़ित थी। अब वह दुखी इसलिए थी कि जो आदमी उसे प्यार करता है, वह उसके शरीर की तरफ एक बार भी ध्यान नहीं देता है।
वह जानती थी कि यूरोपीय लोग सेक्स-टाबू से ग्रसित नहीं हैं। मगर जब वह अल्बर्टो का संयम देखती है तो उसे संदेह होने लगता है। अल्बर्टो के प्यार के बारे में भी संदेह होने लगता है।

किसी काम से तो अल्बर्टो कहीं बाहर नहीं चला गया? बाहर जाने से पहले वह कम से कम हर्षा को सूचित नहीं कर सकता था? हर्षा का प्रेम पर बहुत पहले से विश्वास उठ चुका था। उसकी धारणा बन गई थी कि अपनी भूख को मिटाने के लिए आदमी को महिला की जरूरत पड़ती है। यदि भूख नहीं होती तो पता नहीं, उसे नारी की आवश्यकता होती भी या नहीं? अल्बर्टो से मिलने के बाद उसके पहले वाले विचारों में बदलाव आया था। यह कहना मुश्किल होगा कि क्या वास्तव बदलाव आया, मगर वहएक बिन्दु पर स्थिर हो गई थी, जहां से वह आगे नहीं सोच सकती थी। अल्बर्टो अक्सर कहता था: "हाना, मैं तुमसे प्यार करता हूँ। " मगर यह कहने के अलावा, वह कुछ और चाहता था, कहने में वह बहुत कंजूस था। क्या उसे एशियाई त्वचा के प्रति घृणा है? या फिर वह मानसिक स्तर पर अधिक रक्षणशील है ?

मन-ही-मन हर्षा सोचने लगी कि वह अल्बर्टो के बुलाने पर और नहीं जाएंगी। मगर वह उसका फोन आते ही खुद को रोक नहीं पाई। वे कुछ पार्क या रेस्तरां में कुछ समय बिताते थे। यह जानकार भैरवी और नवीना मजाक में पूछने लगी : "तुम्हारे शाकाहारी संबंध कहाँ तक पहुंचे?" उनके व्यंग्य से हर्षा अंदर से आहत हुई थी, मगर इस बात से आश्वस्त थी कि जो हुआ ठीक हुआ क्योंकि उसे भविष्य में अल्बर्टो के साथ अपने रिश्ते की सफाई नहीं देनी पड़ेगी।

जब हर्षा को यकीन हो गया था कि अल्बर्टो का और फोन नहीं आएगा, बस उसी समय उसका मोबाइल कंपन के साथ बज उठा था। दौड़कर बिस्तर से मोबाइल फोन उठाकर जैसे ही उसने ऑन का स्विच दबाया, दूसरी तरफ से अल्बर्टो की आवाज सुनाई पड़ी: "मैं बहुत बीमार हूं, हाना। आज हमारी मुलाक़ात नहीं हो सकती हैं। "
हर्षा चिंतित हो गई थी, "क्या हो गया अल्बर्टो को? तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया?  तुम अभी हो कहाँ पर ? मैं पूरे दिन तुमसे संपर्क करने की कोशिश करती रही, मगर असफल रही। क्या तुम मुझे अपना नहीं मानते हो? फिर तुमने मुझे अपनी बीमारी के बारे में क्यों नहीं बताया? "
"तुम  इतनी चिंतित क्यों हो?  कुछ भी नहीं हुआ है; बदहजमी के कारण दस्त लग रहे थे। अब मैं ठीक हूँ, मगर मुझे थोडी कमजोरी लग रही है। "

"पागल , तुम मुझे पहले बता सकते थे ? मैं आ रही हूं, अल्बर्टो। "
"नहीं, मत आओ। मैं अब केवल सोना चाहता हूँ, हम कल मिलेंगे। "
यह कहकर उसने मोबाइल डिस्कनेक्ट कर दिया। हर्षा सोचने लगी कि अल्बर्टो उससे कुछ छिपा रहा है। वह अभी तक ठीक नहीं हुआ है। वह विदेश में है, अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के बिना। साउथ ब्लॉक में उसका अपार्टमेंट हर्षा के घर से ज्यादा दूर नहीं था। वह उससे मिलने के लिए हडबड़ाकर बाहर निकली।
शाम का समय होने के कारण यातायात जाम था, फिर भी वह आधे घंटे के अंदर उसके घर पहुंच गई। अल्बर्टो ने कहा, "तुम क्यों आई हो? मैं बिल्कुल ठीक हूं। "

"तुम चुपचाप बैठो। तुम्हें सफाई देने की आवश्यकता नहीं है। पहले बताओ कि तुम्हारी यह हालत कैसे हुई। "
"तुम्हारे देश के भोजन-पानी के कारण। " अल्बर्टो ने मुस्कराते हुए कहा।
(क्रमशः अगले भागों में जारी...)

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जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: विषादेश्वरी भाग 3 // उड़िया उपन्यास // सरोजिनी साहू // अनुवादक - दिनेश कुमार माली
विषादेश्वरी भाग 3 // उड़िया उपन्यास // सरोजिनी साहू // अनुवादक - दिनेश कुमार माली
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