लोककथा // ईकटोमी और बड़ा चूहा // सुषमा गुप्ता

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देश विदेश की लोक कथाएँ — उत्तरी अमेरिका–ईकटोमी : चालाक ईकटोमी संकलनकर्ता सुषमा गुप्ता 9 ईकटोमी और बड़ा चूहा [1] एक बार सफेद झील के किनारे लगे...

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देश विदेश की लोक कथाएँ — उत्तरी अमेरिका–ईकटोमी :

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चालाक ईकटोमी


संकलनकर्ता


सुषमा गुप्ता


9 ईकटोमी और बड़ा चूहा[1]

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एक बार सफेद झील के किनारे लगे एक बड़े से विलो के पेड़ के नीचे ईकटोमी नंगी जमीन पर बैठा था। वहीं पास में बुझी हुई राख पड़ी थी जो यह बता रही थी कि अभी अभी कुछ देर पहले वहाँ आग जली हुई थी।

ईकटोमी वहाँ पालथी मार कर बैठा हुआ था और उसकी टाँगों के बीच में रखा था एक सूप का बरतन। उस बरतन में थी स्वादिष्ट उबली हुई मछली।

उसको बहुत भूख लग रही थी इसलिये वह उस सूप के बरतन के ऊपर झुका हुआ था। उसने जल्दी से एक काले सींग की चम्मच सूप पीने के लिये सूप में डुबोयी।

ईकटोमी के खाने का कोई समय निश्चित नहीं था। जब भी उसको खाना मिलता वह बेचारा तभी खा लेता था। अक्सर जब वह भूखा होता तो वह बिना खाने के भी रह जाता।

झील और जंगली चावल के खेत के बीच वह ठीक से छिपा हुआ बैठा था और केवल अपने मछली के बरतन की तरफ देखते हुए वह यह सोच रहा था कि न जाने अब उसे अगला खाना कब मिलेगा।

तभी उस जंगली चावल के खेत में से उसे एक आवाज आयी — “हलो मेरे दोस्त। ”

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सुन कर ईकटोमी चौंक गया। उसका सूप उसके गले में अटक गया और उसकी सींग की चम्मच हवा में ही लटकी रह गयी। वह जहाँ बैठा था वहीं से उसने लम्बे लम्बे सरकंडों[2] के बीच में से झांका पर उसे कोई दिखायी नहीं दिया।

इतने में वही आवाज उसको फिर से सुनायी दी — “हलो मेरे दोस्त। ”

इस बार वह आवाज उसको और पास से आती सुनायी दी, बिल्कुल उसके बराबर से।

ईकटोमी ने पीछे मुड़ कर देखा तो एक बड़ा चूहा[3] उसके पीछे पानी में भीगा खड़ा था। वह बड़ा चूहा अभी अभी पानी में से निकल कर आ रहा था।

ईकटोमी बोला — “अरे यह तो मेरा दोस्त है बड़ा चूहा जिसने तो मुझे बस डरा ही दिया। मुझे लगा कि इस जंगली चावल के खेत में से कोई आत्मा या भूत मुझसे बातें कर रहा था। तुम कैसे हो मेरे दोस्त?”

वह बड़ा चूहा वहाँ मुस्कुराता हुआ खड़ा रहा। अगर उसका दोस्त ईकटोमी उस समय उससे यह कहता — “आओ मेरे दोस्त, मेरे पास बैठो और मेरे साथ खाना खा लो। ” तो वह तुरन्त ही यह कहता “हाँ हाँ क्यों नहीं। ”

यह वहाँ के मैदानों में रहने वालों का रिवाज था कि खाने के समय अगर कोई आता था तो उसको खाना जरूर खिलाया जाता था पर ईकटोमी तो चुप बैठा था। वह तो कुछ बोला ही नहीं।

उस बड़े चूहे को इस तरह आता देख कर ईकटोमी ने नाच के एक पुराने गाने की धुन गुनगुनानी शुरू की और अपने मछली के बरतन पर भैंस के सींग से बनी चम्मच से ताल देनी शुरू की।

उस बड़े चूहे को वहाँ इस तरह खड़े खड़े बहुत ही अजीब लग रहा था क्योंकि ईकटोमी तो उसकी सामान्य मेहमानदारी भी नहीं कर रहा था। उसको लगा कि उसको तो पानी में ही रहना चाहिये था।

काफी देर के बाद ईकटोमी ने अपनी चम्मच से मछली के बरतन पर अपनी ताल देना बन्द किया और बड़े चूहे के चेहरे की तरफ देख कर बोला — “दोस्त चलो एक दौड़ दौड़ते हैं और देखते है कि मछली का यह बरतन कौन जीतता है।

अगर मैं जीतता हूं तो मुझे इसको तुमसे बांटने की कोई जरूरत नहीं है। पर अगर तुम जीतते हो तो इसमें से आधा हिस्सा तुम्हारा। ”

और यह कहने के तुरन्त बाद ही वह उठ खड़ा हुआ और उसने अपने पेट की पेटी कस ली।

भूखा बड़ा चूहा बोला — “ईकटो, मैं तुम्हारे साथ नहीं दौड़ सकता क्योंकि मैं तेज़ भागने वालों में से नहीं हूं और तुम तो हिरन की तरह से भागते हो। इस तरह तो मैं यह दौड़ कभी जीत ही नहीं सकता। हम यह दौड़ नहीं दौड़ेंगे। ”

यह सुन कर ईकटोमी अपनी ठोड़ी पर हाथ रख कर चुपचाप बैठा सोचता रहा कि वह अब क्या करे। उसकी आंखें हवा में किसी चीज़ पर जमी रहीं।

उधर वह बड़ा चूहा भी अपना सिर बिना हिलाये अपनी आंखों के कोने से देखता रहा। उसको लग रहा था कि ईकटोमी अब कोई दूसरा जाल बिछाने के बारे में सोच रहा था। और यह सच था। वह वाकई यही सोच रहा था।

ईकटोमी ने कुछ सोचा और अचानक उस बिन बुलाये मेहमान की तरफ देख कर बोला — “हाँ हाँ, यह तो तुम ठीक कहते हो। तुम मेरे साथ नहीं भाग सकते।

तो ऐसा करते हैं कि मैं एक बड़ा सा पत्थर अपनी कमर पर बांध लेता हूं इससे मेरे भागने की रफ्तार कम हो जायेगी। और तब हम दोनों एक सी रफ्तार से भाग पायेंगे। ”

ऐसा कह कर उसने अपना मजबूत हाथ उस बड़े चूहे के कन्धे पर रखा और दोनों झील की तरफ चल दिये। जब वे वहाँ पहुंचे तो ईकटोमी ने वहाँ एक भारी सा पत्थर ढूंढना शुरू किया।

उसको एक ऐसा पत्थर वहाँ पानी में आधा गड़ा हुआ मिल गया जिसको वह अपनी पीठ पर बांध कर भाग सकता था। उसने वह पत्थर निकाल कर पहले सूखी जमीन पर रखा और फिर उसको अपने कम्बल में लपेट लिया।

फिर वह बड़े चूहे से बोला — “अब तुम इस झील के बांयी तरफ दौड़ो और मैं इस झील के दॉयी तरफ दौड़ता हूं। जो कोई भी उस बरतन में रखी उबली हुई मछली के पास पहले पहुंच जाये। ”

बड़े चूहे ने उस भारी पत्थर को उठाने में ईकटोमी की सहायता की और उसको उसकी पीठ पर रख दिया। उसके बाद वे लोग अलग हो गये। दोनों ने झील के किनारे जाता हुआ सरकंडे के पेड़ों से घिरा हुआ तंग रास्ता लिया।

ईकटोमी को वह बोझा बहुत भारी लग रहा था। दौड़ते दौड़ते उसके माथे पर पसीना आ गया और वह हाँफने लगा।

उसने झील के उस पार देखा कि बड़ा चूहा कितनी दूर तक पहुंचा पर उसका तो उधर कहीं नामो निशान ही नहीं था। उसने सोचा “वह तो जंगली चावलों के पौधों के नीचे धीरे धीरे दौड़ रहा होगा। ”

सो फिर उसने चावल के पौधों को भी ध्यान से देखा कि शायद वहाँ उसको कुछ दिखायी दे जाये पर वहाँ भी उसको चावल के पौधों का एक पत्ता भी हिलता नजर नहीं आया।

उसने फिर सोचा “क्या वह इतनी तेज़ भाग गया कि उसके चले जाने के बाद भी चावल की ये लम्बी लम्बी घासें शान्त हो गयीं?”

बस यह सोचते ही ईकटोमी का माथा ठनका और उसने अपनी पीठ से पत्थर का वह बोझ उतार फेंका और बोला “बस काफी हो गया। ” कहता हुआ वहाँ से अपने दोनों हाथों से अपनी छाती पीटता हुआ अपनी मछलियों के बरतन की तरफ भाग लिया।

भागते समय घास और सरकंडे के पेड़ उसके पैरों के नीचे आ कर कुचले जा रहे थे। जब तक वे अपना सिर उठाते तब तक तो ईकटोमी वहाँ से बहुत दूर चला गया होता था। बहुत जल्दी ही वह अपनी ठंडी आग के पास पहुंच गया।

पर ईकटोमी तो वहाँ जा कर ऐसे रुक गया जैसे कोई किसी पहाड़ की चढ़ाई पर रुक जाता है। वहाँ तो सारी जगह खाली पड़ी थी। वहाँ तो उसको अपनी उबली हुई मछली का बरतन भी कहीं दिखायी नहीं दिया और वह बड़ा चूहा भी उसको कहीं दिखायी नहीं दिया।

यह देख कर उसने एक लम्बी सांस ली और बोला — “काश, मैंने एक सच्चे डकोटा[4] की तरह उसको अपना खाना दे दिया होता तो मैंने आज अपना सारा खाना न खोया होता।

मुझे यह पहले से ही पता क्यों नहीं चला कि वह बड़ा चूहा तो पानी के अन्दर से भाग जायेगा। जितनी तेज़ जमीन पर मैं भाग सकता हूं वह तो उससे कहीं ज़्यादा तेज़ पानी में तैर सकता है। और यही उसने किया भी। और यही उसके लिये ठीक भी था।

मुझे यकीन है कि जब मैं बोझा उठा कर भाग रहा था तब वह मुझ पर जरूर ही हँस रहा होगा और उसी समय वह तीर की तरह तैर कर चला गया होगा। ”

इस तरह रोते हुए ईकटोमी नदी के किनारे पानी पीने के लिये चल दिया। वहाँ जा कर उसने अपने दोनों हाथ पानी पीने के लिये पानी में डाले और पानी में दूर तक झांका और चिल्लाया — “अरे मेरे दोस्त तुम मेरे मछली के बरतन को लिये हुए यहाँ छिपे बैठे हो। मुझे बहुत भूख लगी है। कम से कम चबाने के लिये मुझे एक हड्डी तो दे दो। ”

बड़ा चूहा ज़ोर से हँस पड़ा और बोला — “हा हा हा। ”

पर यह हँसने की आवाज पानी में से नहीं आ रही थी बल्कि ईकटोमी के सिर के ऊपर विलो के पेड़ के ऊपर से आ रही थी।

ईकटोमी ने उस बड़े से विलो के पेड़ के ऊपर की तरफ देखा तो बड़े चूहे को उस पेड़ के ऊपर बैठा पाया।

घुटनों के बल बैठे ही बैठे मुंह खोल कर उसने फिर उस बड़े चूहे से एक हड्डी देने की प्रार्थना की तो उस बड़े चूहे ने एक बहुत नुकीली हड्डी ईकटोमी की तरफ इस तरह फेंकी जो सीधे उसके खुले गले में जा कर पड़ी।

ईकटोमी तो उससे मर ही जाता अगर वह उसको जल्दी ही अपने गले से न निकाल देता।

बड़ा चूहा पेड़ पर बैठा बहुत ज़ोर ज़ोर से हँस रहा था। हँसते हँसते ही वह बोला — “आगे से जब भी तुम्हारे पास कोई तुम्हारा दोस्त आये तो उसको बोलो “आओ यहाँ मेरे पास बैठो। मेरे साथ खाना खाओ। ”


[1] Iktomi and the Muskrat – a folktale from Native Indians of North America.

Adapted from the Web Site : http://www.manataka.org/page146.html.

[2] Translated for the word “Reeds”. See its picture above.

[3] Translated for the word “Muskrat”. Muskrat is a small size semi-aquatic rodent native to North America. See its picture above.

[4] North Dakota and South Dakota are two states of the USA one over the other located in the North-Western region. North Dakota is bordered by the Canadian Provinces, and South Dakota is in its South.


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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से क्रमशः  - रैवन की लोक कथाएँ,इथियोपिया व इटली की  ढेरों लोककथाओं को आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.

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रचनाकार: लोककथा // ईकटोमी और बड़ा चूहा // सुषमा गुप्ता
लोककथा // ईकटोमी और बड़ा चूहा // सुषमा गुप्ता
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