पूर्वीय अफ्रीका की लोक कथाएँ // सौ जानवर // सुषमा गुप्ता

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देश विदेश की लोक कथाएँ — पूर्वीय अफ्रीका की लोक कथाएँ जिबूती, ऐरिट्रीया, केन्या, मैडागास्कर, रीयूनियन, सोमालिया, सूडान, यूगान्डा संकलनकर्ता ...

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देश विदेश की लोक कथाएँ —

पूर्वीय अफ्रीका की लोक कथाएँ

जिबूती, ऐरिट्रीया, केन्या, मैडागास्कर, रीयूनियन, सोमालिया, सूडान, यूगान्डा

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संकलनकर्ता

सुषमा गुप्ता

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2 सौ जानवर[1]

यह लोक कथा पूर्वीय अफ्रीका के केन्या और उसके आसपास के देशों में जहाँ स्वाहिली जाति के लोग रहते हैं कही सुनी जाती है। स्वाहिली जाति के लोग पूर्वी अफ्रीका के कई देशों में रहते हैं – केन्या, तन्ज़निया, मोज़ाम्बीक, यूगान्डा। इसलिये यह कथा किसी एक खास देश की नहीं है बल्कि स्वाहिली जाति के लोगों की है।

एक बार की बात है कि पाटा नाम के गाँव[2] में एक आदमी अपनी पत्नी और अपने एकलौते बेटे के साथ रहता था। उनके पास अपने पहनने के कपड़े और एक टूटी सी झोंपड़ी जिसमें वे रहते थे के अलावा केवल 100 जानवर थे।

अपने बेटे की छोटी ही उम्र में पिता चल बसा। उसके जाने के बाद अब उस बेटे को ही उन जानवरों की देखभाल करनी पड़ती थी। उसकी माँ घर में रह कर खाना बनाती थी।

पर कुछ साल बाद उस लड़के की माँ भी चल बसी और अब वह लड़का अपने माता पिता के छोड़े हुए 100 जानवरों के साथ अकेला रह गया।

और एक साल बीत गया तो उसको लगा कि अब उसको शादी कर लेनी चाहिये। वह अपनी जाति में अपने दोस्तों के पास गया और उनको अपने इस फैसले के बारे में बताया। वे सब उसके इस फैसले से बिल्कुल राजी थे कि इस समय उसको एक पत्नी की सख्त जरूरत थी।

उन्होंने कहा — “तुम्हारे लिये इस समय एक पत्नी बहुत ही फायदेमन्द साबित होगी पर तुमको कैसी लड़की चाहिये? तुम किससे शादी करना चाहते हो?”

उस नौजवान ने जवाब दिया — “वह लड़की अपने गाँव से नहीं होनी चाहिये। मुझे एक दूसरे ही तरीके की लड़की चाहिये। क्या कोई उसको चुनने की जिम्मेदारी लेगा?

मैं अभी छोटा हूँ और मेरे जितनी उम्र वाले के लिये यह ठीक नहीं होगा कि वह खुद अपनी शादी के लिये किसी लड़की का हाथ माँगे। खास करके जब जबकि वह किसी दूसरे गाँव की हो। ”

उसके दोस्तों ने इस बात पर भी हामी भरी और उनमें से उसका एक दोस्त इस काम की जिम्मेदारी लेने के लिये तैयार हो गया। उसने कहा कि वह उसका दूत बन कर जायेगा और उसके लिये लड़की देखेगा।

वह वहाँ से चला गया और कुछ समय बाद लौट आया। उसने उस नौजवान से कहा — “मैंने तुम्हारे लिये पड़ोस के गाँव से एक बहुत ही अच्छी लड़की ढूँढ ली है। ”

नौजवान दुलहे ने पूछा — “कौन है वह?”

वह आदमी बोला — “वह एक अमीर आदमी अब्दुल्ला की अकेली बेटी है। अब्दुल्ला के पास 6000 जानवर हैं। ”

इस खबर को सुन कर तो उस नौजवान को और भी ज़्यादा लगने लगा कि उसको एक पत्नी की जरूरत है। उसने अपने दोस्त से कहा कि वह उस गाँव में जाये ओर शादी की सब बात पक्की कर आये। वह आदमी वहाँ से चला गया।

उसकी बात सुन कर अब्दुल्ला ने कहा — “उस लड़के से कहना कि अपनी बेटी के बदले में मुझे 100 जानवर चाहिये। अगर उसे मेरी बात मंजूर है तो फिर कोई और अड़चन नहीं है। ”

आदमी ने आ कर नौजवान को बताया कि उस लड़की के पिता ने क्या कहा था।

नौजवान ने इस बारे में काफी देर तक सोचा और बोला — “अगर मैं उसको अपने 100 जानवर दे देता हूँ तो मेरे पास तो कुछ रह ही नहीं जायेगा क्योंकि मेरे पास तो हैं ही कुल 100 जानवर। फिर मैं और मेरी पत्नी कैसे गुजारा करेंगे?”

आदमी ने कहा — “यह तुम सोच लो और अपना जवाब मुझे बता दो। फिर मैं उसको अब्दुल्ला को बता आऊँगा। मुझे तो अपना काम करना ही है न। ”

नौजवान सोचने लगा कि वह इस हालत में क्या करे। वह अपना सिर खुजलाता हुआ इधर से उधर चक्कर काटने लगा।

आखिर उसने फैसला कर लिया और उस आदमी से कहा — “ठीक है जाओ और उससे जा कर कह दो कि मैं तैयार हूँ। मैं उसको 100 जानवर दे दूँगा जो वह अपनी बेटी के लिये माँग रहा है। ”

वह आदमी अब्दुल्ला के पास गया और उन दोनों की मुलाकात का इन्तजाम किया गया।

दुलहे ने अपनी होने वाली दुलहिन को देखा। उसको लड़की बहुत सुन्दर लगी सो उसने उसके पिता से शादी की शर्तें तय की। तीन दिन बाद उसने अपने 100 जानवर अब्दुल्ला को दे दिये और एक महीने बाद उन दोनों की शादी हो गयी।

दुलहिन अपने पति के गाँव में उसके घर में रहने के लिये आ गयी। कुछ हफ्तों तक सब कुछ ठीक चला। घर में खाने की कोई कमी नहीं थी। घर में दूसरी चीज़ों की भी कोई कमी नहीं थी।

पर जल्दी ही घर में खाने का सामान खत्म होने लगा तो वह नौजवान अपनी पत्नी से बोला — “प्रिये, अब हम लोग गरीब हैं। मेरी पूरी सम्पत्ति तो वही मेरे जानवर थे। मैं गायों को दुहता था और बैलों से खेत जोतता था।

मैंने अपने सारे जानवर तुमको पाने के लिये दे दिये ओर अब मेरे पास कुछ नहीं है। अब मेरे पास एक ही रास्ता है कि मैं अपने पड़ोसियों के पास जाऊँ और उनके लिये काम करूँ।

मुझे बहुत नीचे और बहुत थकाने वाले काम करने पड़ेंगे पर उस काम करने से जो कुछ मैं कमाऊँगा उससे हमारे पास कम से कम खाने के लिये तो कुछ होगा। ”

पत्नी ने उसके आगे अपना हाँ में सिर झुकाया पर वह बोली कुछ नहीं। अब वह नौजवान हर सुबह अपने पड़ोसियों के घर जाता और थोड़े से दूध, एक थैला अनाज या फिर एक छोटे से माँस के टुकड़े के बदले में उनकी मजदूरी करता।

कभी वह उनकी गायें दुहता, कभी वह उनकी लकड़ी काटता, कभी वह उनकी छत ठीक करता, तो कभी वह उन स्त्रियों के लिये नदी से पानी ले कर आता जो घर में अकेली खाना बनाने के लिये रह जातीं। पर इन सब कामों के लिये वे सब उसको बहुत कम पैसे देते।

इस बीच गाँव के एक बहुत ही खास आदमी के एक सुन्दर लड़के ने किसी विदेशी लड़की[3] को गाँव में देखा तो उस पर उसका दिल आ गया और वह उससे प्रेम करने लगा।

सो रोज जब उस लड़की का पति काम पर चला जाता तो वह लड़का उसके घर जाता और उसके घर के आस पास घूमता रहता ताकि वह उससे कुछ बात कर सके।

उस लड़की ने भी उसको यह दिखाया कि जैसे उसमें कुछ गलत नहीं था पर वह इसके बारे में अपने पति से कुछ नहीं कह सकी।

क्योंकि इससे उसको लगा कि इससे उसका पति घर ठहर जाता और जो थोड़ा बहुत काम उसको मिलता था वह भी नहीं मिलता। इससे जो थोड़ी बहुत कमाई होती थी वह भी नहीं होती और उनको खाना भी नसीब नहीं होता।

उस लड़की की शादी हुए करीब करीब छह महीने बीत गये तो अब्दुल्ला ने सोचा कि वह अपनी बेटी और दामाद[4] को देख कर आये कि वे कैसे हैं। सो बिना बताये ही वह उनसे मिलने के लिये चल दिया।

जब वह अपने दामाद के घर पहुँचा तो उसने उसके घर का दरवाजा खटखटाया तो आश्चर्य कि उसकी बेटी दरवाजा खोलने आयी।

जब उसने अपने पिता को दरवाजे पर देखा तो सोचा कि “अच्छा है कि मेरा घर थोड़ा ठीक से रखा हुआ है और मैंने भी अपनी आखिरी अच्छी वाली पोशाक पहनी हुई है वरना मेरे पिता मेरे बारे में जाने क्या सोचते। ”

अपनी शरम छिपाते हुए उसने अपने पिता को अन्दर बुलाया और उनको आराम से बिठाया। उसने उनको ताजा फल खाने को दिये। उसका पिता बोला — “सो मेरी बेटी, तुम कैसी हो? क्या तुम अपने पति के साथ खुश हो?”

उसने कुछ हिचकिचाते हुए कहा — “जी पिता जी। ”

पर वह अपना दुख छिपाने पर भी नहीं छिपा सकी सो वह अपने पिता के लिये चाय बनाने के लिये पानी लाने का बहाना करके वहाँ से चली गयी।

वह अपने कमरे में गयी और जा कर फूट फूट कर रोने लगी। “और अब मैं क्या करूँ? घर में खाने के लिये कुछ भी नहीं है पर मुझे कम से कम अपने पिता को खाना तो खिलाना ही है। ”

वह इसका कोई हल सोच ही रही थी कि उसने उस नौजवान लड़के को देखा जो काफी दिनों से खिड़की से उससे बात करने की कोशिश में उसके घर के चक्कर काट रहा था।

उसने कुछ सोचा और अपने आँसू पोंछ लिये। अपने आपको ठीक किया और इस उम्मीद में पीछे वाले दरवाजे से बाहर गयी कि शायद वह उस नौजवान को वहाँ देख सके।

वह उसे वहाँ मिल गया। उसको बाहर देख कर वह बोला — “मेहरबानी करके मेरे इस पागलपन को माफ करना पर जबसे मैंने तुम्हें देखा है न तो मुझे नींद आती है न मुझे भूख लगती है।

मेरे पिता बहुत अमीर हैं। तुम इस भिखारी को छोड़ो और मेरे साथ भाग चलो। मैं तुमको बहुत खुश रखूँगा और तुमको रानी बना कर रखूँगा। ”

लड़की ने उससे कुछ प्यार की बातें कीं फिर बोली — “यह मेरी गलती थी कि मैंने एक ऐसे आदमी से शादी की जिसके पास अपने खाने के लिये भी कुछ नहीं था। वह मुझे कहाँ से खिलाता।

अगर तुम मुझसे सच्चा प्यार करते हो तो मुझे यहाँ से ले चलो। मैं इस गरीबी में रहते रहते तंग आ गयी हूँ। मैंने बहुत दिनों से पेट भर कर खाना भी नहीं खाया है और कोई नया कपड़ा खरीदने की बात तो छोड़ो। ”

वह नौजवान तो यह सुन कर बहुत ही खुश हो गया “ओह आखिर मैं अपने काम में सफल हो ही गया। ” और उस लड़की से बोला — “तो चलो फिर आज ही चलते हैं। और आज ही क्यों अभी क्यों नहीं। ”

लड़की बोली — “थोड़ा रुको। आज ही मेरे पिता मुझसे मिलने के लिये आये हैं और मैं उनसे बहुत दिनों से नहीं मिली हूँ,। मुझे अभी उनके लिये अच्छा खाना भी बनाना है।

पर जैसा कि मैंने तुमसे अभी कहा मेरे पास उनके लिये खाना बनाने के लिये कुछ भी नहीं है। तुम ज़रा जा कर खाने के लिये माँस का एक अच्छा सा टुकड़ा ले आओ ताकि मेरी मेज खाली खाली न लगे। उसके बाद मैं तुम्हारे साथ चली चलूँगी। ”

उस नौजवान ने खुश होते हुए कहा — “ठीक है। मैं तुम्हारे लिये माँस ले कर अभी आया। ”

कुछ मिनटों में ही वह उसके लिये एक चौथाई गाय ले कर आ गया और उससे बोला — “यह लो एक चौथाई गाय और अब अपना वायदा याद रखना। ”

लड़की बोली — “तुम चिन्ता मत करो। ” और वह गाय के माँस के उस बड़े टुकड़े को ले कर उसको पकाने के लिये अन्दर चली गयी।

खाना बनाते बनाते शाम के खाने का समय हो गया। उसका पति भी पड़ोसी के लिये कुछ छोटा मोटा काम करके घर वापस आ गया। जब उसने अपने घर में अपने ससुर को देखा तो वह कुछ घबरा गया।

वह उस समय उसको वहाँ देखने की उम्मीद नहीं कर रहा था। पर उसने अपने आपको किसी तरह सँभाला और यह दिखाते हुए कि सब कुछ ठीक था उसने उनको इज़्ज़त से सलाम किया।

फिर वे दोनों कुछ देर तक बात करते रहे। उसके बाद नौजवान ने उनसे माफी माँगी और अपनी पत्नी को रसोईघर में देखने चला गया।

उसने आश्चर्य से पूछा — “अरे तुम खाना बना रही हो? पर घर में तो कुछ था ही नहीं। ”

लड़की हिचकिचाते हुए बोली — “मुझे कुछ माँस मिल गया था उसी से खाना बना रही हूँ। ”

“मिल गया था का क्या मतलब है? किसने दिया तुम्हें यह?”

“देखो अब तुम गुस्सा मत हो। मैंने पड़ोसी से कहा कि मेरे पिता यहाँ खाना खाने के लिये आये हैं पर मेरे पास उनको खिलाने के लिये कुछ नहीं है तो उन्होंने मुझे यह माँस दे दिया। ”

नौजवान कुछ नहीं बोला। उसका सिर नीचे झुक गया और उसको बहुत शरम आयी कि अब उसकी यह हालत हो गयी थी कि उसको पड़ोसियों से भीख माँगनी पड़ी। क्या वह इतना गिर गया था?

उसको इतना दुखी देख कर उसकी पत्नी ने उसको तसल्ली देने की कोशिश की — “देखो तुम खुश रहो, इसमें इतना सोचने की कोई बात नहीं है। हम उन्हें इस माँस के बदले में कुछ दे देंगे फिर हम उनके ऐहसान के नीचे नहीं दबे रहेंगे।

पर अब तुम जाओ और पिता जी के पास बैठो। खाना अभी तैयार हुआ जाता है। तुम वहाँ बैठो और मैं खाना लगाती हूँ। ”

इस बीच यह देख कर कि वह लड़की अभी तक नहीं आयी वह नया नौजवान उसको देखने के लिये सामने के दरवाजे की तरफ गया ताकि वह उसको बाहर आने के लिये इशारा कर सके।

पर जब वह उसके खुले दरवाजे के सामने इधर उधर घूम रहा था तभी उस लड़की के पति ने उसको देख लिया।

उसने उसको पहचान लिया कि वह तो उनके एक पड़ोसी का बेटा था जो उसको कभी कभी काम देता रहता था। सो उसने उसको सलाम किया और उसको खाने के लिये अन्दर बुला लिया।

वह नया नौजवान उसको मना नहीं कर सका और उसके बुलावे पर अन्दर चला गया। जा कर वह दूसरों के साथ मेज पर बैठ गया। सो तीनों – पिता, पति और वह नौजवान मिल कर बात करने लगे जैसे सब कुछ सामान्य हो।

कुछ समय बाद माँस मेज पर लाया गया और लड़की उन तीनों को वहाँ एक साथ बैठा देख कर बिना किसी आश्चर्य के मुस्कुरायी और बोली — “ओ बेवकूफ लोगों, खाना तैयार है। ”

यह सुन कर सबको बड़ी शरम आयी और सबके दिल में गुस्से की एक लहर दौड़ गयी।

अपनी बेटी के शब्दों के बाद उसके पिता ने सबसे पहले खामोशी तोड़ी — “तुमने मुझे बेवकूफ क्यों कहा?”

लड़की बोली — “पिता जी, आप गुस्सा न हों। पहले आप खुशी खुशी खाना खा लें उसके बाद मैं आपको बताऊँगी कि मैंने आपको बेवकूफ क्यों कहा। ”

पर उसका पिता बोला — “नहीं। पहले मैं तुमसे सुन लूँ कि मैं बेवकूफ क्यों हूँ तभी मैं खाना खा सकूँगा। अभी तो तुम्हारी बात सुन कर मेरी भूख ही खत्म हो गयी है। ”

इस पर उसकी बेटी निडर हो कर बोली — “पिता जी, आप बेवकूफ इसलिये हैं कि आपने अपनी इतनी कीमती चीज़ एक बहुुत ही छोटी सी चीज़ के लिये दे दी। ”

उसका पिता बोला — “मैंने? और वह कीमती चीज़ क्या है जो मैंने बहुत छोटी सी चीज़ के लिये दे दी?”

“आपको पता नहीं कि आपकी कीमती चीज़ क्या है? पिता जी मैं अपने बारे में बात कर रही हूँ। ”

पिता बोला — “तुम मेरे लिये बहुत कीमती हो यह सच है पर अगर तुम इसको ज़रा और साफ करके कहो , , ,। ”

बेटी बोली — “यह तो साफ है पिता जी। आप जानते हैं कि आपके मेरे अलावा और कोई दूसरा बच्चा नहीं है और फिर भी आपने मुझे केवल 100 जानवरों के बदले में दे दिया हालाँकि आपके अपने पास 6000 से ज़्यादा जानवर हैं। शायद वे 100 जानवर आपके लिये मुझसे ज़्यादा कीमती थे। ”

यह सुन कर पिता को बहुत शरम आयी। उसका चेहरा शरम से लाल पड़ गया। वह बोला — “बेटी, तुम ठीक कहती हो। मैं सचमुच में ही एक बेवकूफ हूँ। ”

उसके बाद उस लड़की के पति की बारी थी — “और तुमने मुझे बेवकूफ क्यों कहा?”

उसकी पत्नी ने उसकी तरफ देखा और बोली — “तुम तो मेरे पिता से भी ज़्यादा बेवकूफ हो। तुमको तुम्हारे माता पिता से केवल कुछ जानवर विरासत में मिले और तुमने वे सब केवल मुझे पाने के लिये दे दिये।

अगर तुमने कोई लड़की अपने गाँव की ली होती तो शायद उसकी तुम्हें इतनी कीमत न देनी पड़ती। पर तुम तो कोई विदेशी लड़की चाहते थे और इसी लिये तुम इतने गरीब हो गये।

इतना ही नहीं तुमने तो मुझे भी गरीब बना दिया क्योंकि हमारे पास इतना खाना भी नहीं है कि हम रोज पेट भर कर खाना खा सकें। अगर तुमने कुछ जानवर भी अपने पास रख लिये होते तो तुम आज पड़ोसियों के घर में काम नहीं कर रहे होते। ”

और पति को यह मानना पड़ा कि उसकी पत्नी ठीक कह रही थी। वह वाकई अपने ससुर से ज़्यादा बेवकूफ था।

वह नौजवान भी जो उसको ले जाना चाहता था जानना चाहता था कि वह बेवकूफ क्यों था।

वह लड़की बोली — “तुम तो मेरे पिता और पति दोनों की बेवकूफियों को मिला कर उनसे भी ज़्यादा बेवकूफ हो। यह मैं यकीन के साथ कह सकती हूँ। ”

“इसका क्या मतलब है?”

“तुम तो गाय के माँस के इस चौथाई टुकड़े के बदले में वह चीज़ लेना चाहते थे जिसको उसके पिता ने 100 जानवर ले कर दी थी और उसके पति ने 100 जानवर दे कर हासिल की थी। क्या तुम मेरे पिता और पति दोनों से ज़्यादा बेवकूफ नहीं हो?”

वह नौजवान भी शरम और डर से लाल पड़ गया। उसने सोचा कि उसके लिये अब यही अच्छा है कि इससे पहले कि बात और आगे बढ़े और उस लड़की का पति उसको मारे उसको अब यहाँ से चले जाना चाहिये और वह वहाँ से उठ कर चला गया।

उधर लड़की का पिता अपने गाँव चला गया पर वहाँ जा कर उसने तुरन्त ही अपने दामाद के 100 जानवर वापस कर दिये और उसको उसे माफ करने के लिये ऊपर से 200 जानवर और दे दिये।

इस तरह से वे पति पत्नी दोनों अब अमीर हो गये थे और वे खुशी से रहने लगे।


[1] One Hundred Cattle – a folktale from Swahili people, Eastern Africa.

Adapted from the book “African Folktales” by A Ceni. English Edition in 1998.

Swahili people and language span several of Eastern African states – Kenya, Tanzania, Mozambique and Uganda. These people are mostly Muslims.

[2] Pata named village

[3] Translated for the word “Foreigner”. Here Foreigner does not mean from some other country, but from some other village and from some other tribe.

[4] Translated for the “Son-in-Law” – the husband of daughter.

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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से सैकड़ों लोककथाओं के पठन-पाठन का आनंद आप यहाँ रचनाकार के लोककथा खंड में जाकर उठा सकते हैं.

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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: पूर्वीय अफ्रीका की लोक कथाएँ // सौ जानवर // सुषमा गुप्ता
पूर्वीय अफ्रीका की लोक कथाएँ // सौ जानवर // सुषमा गुप्ता
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