कहानी संग्रह // तर्जनी से अनामिका तक ( प्रेरणादायक कहानियाँ एवं संस्मरण ) - भाग 1 // राजेश माहेश्वरी

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कहानी संग्रह तर्जनी से अनामिका तक ( प्रेरणादायक कहानियाँ एवं संस्मरण ) राजेश माहेश्वरी मेरे अत्यंत आत्मीय, सहृदय अभिन्न मित्र के.कुमार (चार्...

कहानी संग्रह

तर्जनी से अनामिका तक

( प्रेरणादायक कहानियाँ एवं संस्मरण )

राजेश माहेश्वरी

कहानी संग्रह //  तर्जनी से अनामिका तक ( प्रेरणादायक कहानियाँ एवं संस्मरण )  // राजेश माहेश्वरी

मेरे अत्यंत आत्मीय, सहृदय अभिन्न मित्र के.कुमार (चार्टर्ड एकाउंटेंट) की स्मृति में सादर समर्पित।


आत्मकथ्य


नवनिर्माण

जीवन में मंथन से

अनवरत् सृजन

सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य और मान-सम्मान

प्राप्त करने हेतु

मानव कर रहा है सतत् प्रयत्न

जीवन में धर्म से कर्म

बनाता है कर्मवीर

मोह-माया, दुख और सुख हैं

हमारी छाया,

जीवन रहे व्यस्त

निरन्तर रहे सृजनशील

और रहे प्रयासरत्

धैर्य सहित आत्म-मंथन में

ऋतुओं का आगमन और निर्गमन

होता ही रहेगा

और मानव जीवन की दिशा

प्राप्त करता ही रहेगा।

--


जीवन का आधार

मेहनत, ईमानदारी, लगन,

तप, त्याग और तपस्या,

सत्य, अहिंसा, सदाचार,

सहृदयता और परोपकार

इनका नहीं है कोई विकल्प।

ये सभी हैं हृदय में

स्पंदन के प्रणेता।

इनके होने से ही

मन कहलाता है मंदिर।

सत्य की होती है पूजा

पाप और पुण्य का निर्णय

जीवन में सही लक्ष्य और

सही राह चुनने की

अपेक्षा व प्रतीक्षा हो

ऐसा लो मन में संकल्प।

मनसा-वाचा-कर्मणा

जीवन का एक रूप बनेगा।

जीवन में सफलता का आधार

और इनके चिंतन-मनन व प्रेरणा से

होता है जीवन का समग्र विस्तार।


उपरोक्त स्वरचित कविताएँ मेरे जीवन का आधार हैं और इनकी भावनाएँ मेरे लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं। मानव अपने जीवन की पहली श्वांस से मृत्यु की अंतिम श्वांस तक संघर्षरत् रहकर अपनी कल्पनाओं को हकीकत में परिवर्तित करने हेतु प्रयासरत् रहता है। मैंनें कभी खुशी कभी ग़म के बीच जीवन के चौंसठ बसंत बिताकर अभी तक के जीवन में जो कुछ देखा सुना और समझा उन्हें प्रेरणादायक घटनाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया है। यह रोचक होने के साथ-साथ प्रेरणास्पद भी रहे, ऐसा मेरा प्रयास है। इस पुस्तक को सजाने, सँवारने में श्री श्यास सुंदर जेठा, श्री राजेश पाठक एवं श्री देवेन्द्र राठौर का अमूल्य सहयोग प्राप्त होता रहा है। मैं उनके प्रति हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।

राजेश माहेश्वरी

106 नयागांव हाऊसिंग सोसायटी

रामपुर, जबलपुर 482008 (म.प्र)

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अनुक्रम

1- दृढ़ संकल्प

2- हृदय परिवर्तन

3- प्रतिभा पलायन

4- संत का मार्गदर्शन

5- विश्वास

6- गुमशुदा बचपन

7- कर्तव्य

8- कर्म करें मालिक बने

9- वन्य जीव संरक्षण

10- महानता

11- समानता का अधिकार

12- शिक्षा ही स्वर्णिम भविष्य का आधार

13- सब दिन होत ना एक समाना

14- सकारात्मक सोच

15- आत्सम्मान

16- दिशा बोध

17- विद्यादान

18- एक नई परिकल्पना

19- सृजन

20- योगयात्रा

21- जहाँ लक्ष्मी वहाँ सरस्वती का वास

22- प्रभु भक्ति

23- संगति का प्रभाव

24- कर्तव्य से संतुष्टि

25- आध्यात्मिक ज्ञान की आवश्यकता

26- प्रायश्चित

27- नैतिकता

28- संकल्प

29- अंतिम दान

30- चापलूसी

31- आपातकाल मेरे जीवन का स्वर्णिम काल

32- धर्म और कर्म

33- सेवा भाव

34- अनुभूति

35- लक्ष्य एक रास्ते अनेक

36- वटवृक्ष

37- सब का दाता है भगवान

38- आपदा प्रबंधन

39- जुए की लत

40- नवोदय

41- संकल्प ही सफलता का सूत्र है

42- अक्षय पात्र

43- शव की शवयात्रा

44- भ्रात प्रेम

45- विदाई

46- उपचार या उपकार

47- अप्रतिम चाहत

48- प्रायश्चित

49- हिम्मत

50- नवजीवन

51- हुनर

52- कर्तव्य परायणता

53- नेता जी

54- यम्मा

55- भिखारी की सीख

56- ईमानदारी

57- उपकार

58- नियति

59- एक नया सवेरा

60- शहादत और समाज

61- जागरूकता

62- सच्चा संत

63- सच्चा स्वप्न

64- मूर्तिकार

65- सेवक की सेवा

66- आशादीप

67- सफलता आधार

68- वाणी पर नियंत्रण

69- ईश्वर कृपा

70- देहदान

71- संत जी

72- लघुता एवं प्रभुता

73- शांति

74- सुंदरता

75- दृष्टिकोण

76- भ्रात द्रोह

77- अहंकार

78- सुख

79- सुख की बंदरबाँट

80- मित्र हो तो ऐसा

81- समाधान

82- ज्ञान

83- मार्गदर्शन

84- रहस्य

85- समय की पहचान

86- मानवीयता

87- खंडहर की दास्तान

88- सीख

89- राष्ट्र का विकास

90- शिक्षा

91- फिजूलखर्ची का दुष्परिणाम

92- सच्चा जीवन

93- करूणामयी व्यक्तित्व

94- हृदय परिवर्तन

95- साहसिक निर्णय

96- हेन सेंग की व्यथा

97- ज्ञान की खोज

98- अनुकरणीय आदर्श

99- चाणक्य

100.जनसेवा

101. नैतिकता का तालाब

102. जीवन को सफल नहीं सार्थक बनाए

103. युवा

104. अनुभव

105. शिल्पकार की कला

106. सेठ गोविंददास की सिद्धांतवादिता

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दृढ़ संकल्प

ठंड से ठिठुरती हुयी, घने कोहरे से आच्छादित रात्रि के अंतिम प्रहर में एक मोटरसाइकिल पर सवार नवयुवक अपने घर वापिस जा रहा था, उसे एक चौराहे पर कचरे के ढ़ेर में से किसी नवजात बच्चे के रूदन की आवाज सुनाई दी। जिसे सुनकर वह स्तब्ध होकर रूककर उस ओर देखने लगा, वह यह देखकर अत्यंत भावुक हो गया कि एक नवजात लड़की को किसी ने कचरे के ढ़ेर में फेंक दिया है। अब उस नवयुवक के भीतर द्वंद पैदा हो गया कि इसे उठाकर किसी सुरक्षित जगह पहुँचाया जाए या फिर इसे इसके भाग्य के भरोसे छोड़ दिया जाए। इस अंतर्द्वंद में उसकी मानवीयता जागृत हो उठी और उसने उस बच्ची को उठाकर अपने सीने से लगा लिया और उसे तुरंत नजदीकी अस्पताल ले गया। वहाँ पर उपस्थित चिकित्सक से उसने अनुरोध किया कि आप इस नवजात शिशु की जीवन रक्षा हेतु प्रयास करें यह मुझे नजदीक ही कचरे के ढ़ेर में मिला है। इसकी चिकित्सा का संपूर्ण खर्च मैं वहन करने के लिए तैयार हूँ। यह सुनकर डॉक्टर उस नवजात को गहन चिकित्सा कक्ष में रखकर इसकी सूचना नजदीकी पुलिस थाने में दे देता है।

कुछ समय पश्चात पुलिस के दो हवलदार आकर उस नवयुवक जिसका नाम राकेश था, उससे कागजी खानापूर्ति कराकर अपनी सहानुभूति व्यक्त करते हुए उसकी प्रशंसा करते हुए चले जाते है। दूसरे दिन सुबह राकेश अपने घर पहुँचता है और अपने माता पिता को रात की घटना की संपूर्ण जानकारी देता है। जिसे सुनकर उसके माता पिता भी स्तब्ध रह जाते है और कहते है कि आज ना जाने मानवीयता कहाँ खो गयी है। वे राकेश की प्रशंसा करते हुए कहते है कि तुमने बहुत नेक काम किया है। वह नवजात बच्ची जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष करते हुए अंततः प्रभु कृपा से बच जाती है। उस बच्ची को देखने के लिए राकेश के माता पिता भी अस्पताल पहुँचते है। वे उस लड़की का मासूम चेहरा देखकर भावविह्ल हो उठते है और आपस में निर्णय लेते है कि अपने परिवार के सदस्य की तरह ही उसका पालन पोषण करेंगें। इस संबंध में राकेश सभी कानूनी कार्यवाही पूरी कर लेता है। वे बच्ची का नाम किरण रख देते है। कुछ वर्ष पश्चात राकेश के माता पिता उसके ऊपर शादी के लिए दबाव डालने लगते है। यह सब देखकर राकेश एक दिन स्पष्ट तौर पर उन्हें बता देता है कि वह शादी नहीं करना चाहता और सारा जीवन इस बच्ची के पालन पोषण और उज्जवल भविष्य हेतु समर्पित करना चाहता है। राकेश की इस जिद के आगे उसके माता पिता भी हार मान जाते है।

किरण धीरे धीरे बडी होने लगती है और अत्यंत प्रतिभावान और मेधावी छात्रा साबित होती है। कक्षा बारहवीं प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण करने के पश्चात वह उच्च शिक्षा के साथ साथ राकेश के पैतृक व्यवसाय दुग्ध डेरी का कार्य भी संभालने लगती है और अपनी कडी मेहनत और सूझबूझ से अपने व्यवसाय को बढाकर उसे शहर के सबसे बडे डेयरी फार्म के रूप में विकसित कर देती है। उसकी इस प्रतिभा के कारण मुख्यमंत्री द्वारा उसे प्रदेश की बेटी कहकर संबोधित करते हुए उत्कृष्ट महिला उद्यमी के रूप में सम्मानित किया जाता है। वह दिन राकेश के लिए अविस्मरणीय बन जाता है।

समय धीरे धीरे व्यतीत हो रहा था और राकेश के मन में किरण के विवाह की चिंता सता रही थी। एक दिन उसने अपने इन विचारों को किरण के सामने रखा और किरण ने आदरपूर्वक उन्हें बताया कि अभी उसने विवाह के विषय में कोई चिंतन नहीं किया है। अभी फिलहाल मेरा सारा ध्यान आपकी सेवा और पढाई एवं व्यवसाय की उन्नति के प्रति है। इस के बाद भी राकेश ने कई बार इस बारे में बात करने का प्रयास किया परंतु हर बार किरण उसे वही जवाब देकर इस विषय को टाल देती थी।

एक दिन डेयरी के कार्य से दूसरे शहर से लौटते समय किरण को एक जगह भीड़ लगी दिखाई देती है। उसके पूछने पर पता होता है कि कोई अपनी नवजात कन्या को यहाँ छोड़ गया है। यह सुनकर उसका हृदय द्रवित हो उठता है और वह गाडी से उतरकर उस बच्ची को अपने साथ तुरंत अस्पताल ले जाती है। जहाँ पर डॉक्टरों के प्रयास से उस बच्ची को बचा लिया जाता है और सभी औपचारिकताएँ पूरी करने के बाद वह उसे अपने घर ले आती है। राकेश को जब इन बातों का पता होता है तो वह किरण की बहुत प्रशंसा करता है और अपने कमरे में जाकर पुरानी यादों में खो जाता है जहाँ उसे वे दिन और घटनायें याद आने लगती है जब वह किरण को अपने घर लाया था।

समय ऐेसे ही निर्बाध गति से आगे बढ़ रहा था परंतु एक दिन अचानक ही हृदयाघात से राकेश की मृत्यु हो जाती है। यह देखकर किरण स्तब्ध और किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाती है और अत्यंत गमगीन माहौल में वह स्वयं अपने पिता का अंतिम संस्कार करने का निर्णय लेती है। कुछ दिनों बाद सारे सामाजिक कर्मकांडों से निवृत्त होकर वह एक दिन राकेश के लॉकरों को बंद करने के लिए बैंक जाती है और उन लॉकरों में उसे फाइलों के सिवा कुछ नहीं मिलता है। वह सारी औपचारिकताएँ पूरी करके उन फाइलों को घर ले आती है। उसी दिन रात्रि में वह उन फाइलों के देखती है और पढ़ने के बाद स्तब्ध रह जाती है कि वह राकेश की सगी बेटी नह़ी है बल्कि कचरे के ढेर में मिली एक लावारिस बच्ची है जिसे राकेश ने अपनी बेटी के समान पाल पोसकर बडा किया और वह सुखी रह,े इसलिए शादी भी नहीं की। राकेश के त्याग, समर्पण व स्नेह की यादें लगातार उसके मन में आती रही और सारी रात वह इन्ही विचारों में खोयी रही।

कुछ वर्ष पश्चात शहर में एक सर्वसुविधा संपन्न अनाथ आश्रम एवं चिकित्सा केंद्र का उद्घाटन हुआ जिसमें अनाथ बच्चों के लालन पालन, शिक्षा एवं चिकित्सा की समस्त सुविधाएँ उपलब्ध थी और इसका निर्माण किरण ने अपने पिता स्वर्गीय राकेश की स्मृति में कराया था। ऐसे बच्चों की सेवा को ही उसने अपना ध्येय बना लिया था और इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने अपने पिता के समान ही आजीवन अविवाहित रहने का दृढ संकल्प ले लिया था।

 हृदय परिवर्तन

नर्मदा नदी के किनारे एक संत करते थे। उनके आश्रम के बगल में ही एक कसाई रहता था जिसकी नीयत स्वामी जी के आश्रम की जमीन हड़पने की थी। वह चाहता था कि स्वामी जी किसी प्रकार से यहाँ से चले जाये और वह जमीन पर कब्जा कर ले। अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए वह प्रतिदिन एक मुर्गी को मारकर उसकी हड्डियाँ, आश्रम के मुख्य द्वार के पास फेंक आता था इससे वहाँ पर बदबू फैलने के कारण स्वामी जी एवं आश्रम में आने जाने वाले उनके अनुयायियों को काफी कष्ट होता था। यह जानकर वह कसाई मन ही मन प्रसन्न हुआ करता था। उसके विचित्र स्वभाव के कारण उसकी पत्नी और उसका बेटा उसके छोड़कर अन्यत्र निवास करते थे।

कुछ माह के पश्चात शहर में प्लेग नामक बीमारी का प्रकोप अचानक फैल गया। शहर में रहने वाले लोग इसके प्रकोप से बचने हेतु शहर छोड़कर बाहर जाने लगे। इसी दौरान वह कसाई भी इस बीमारी की चपेट में आ गया। उसकी पत्नी और बेटा पहले ही शहर छोड़कर जा चुके थे। स्वामी जी ने ऐसी विकट परिस्थितियों में उसकी बहुत सेवा की जिससे अभिभूत होकर उसने एक दिन स्वामी जी से पूछा कि मै तो आपका अहित चाहता था और आपके आश्रम की जमीन हड़पना चाहता था। मेरे इतने दुर्भावना पूर्ण व्यवहार के बाद भी आप इतने तन, मन से मेरी सेवा कर रहे है। ऐसा क्यों ?

स्वामी जी ने मुस्कुराते हुए कहा कि मानव में मानवीयता के साथ मानव की सेवा करने की मन में भावना एवं उसे कार्यरूप में परिणित करना ही वास्तविक धर्म है। मैंने केवल अपने कर्तव्य का पालन किया है। यह सुनकर वह कसाई स्वामी के चरणों में गिरकर अपने द्वारा किये गये पूर्व कृत्यों के लिए माफी माँगता है। स्वामी जी की बातों से उसका हृदय परिवर्तन हो चुका था। उसने अपनी जमीन भी आश्रम को दान देकर स्वयं उनका शिष्य बनकर सेवा का संकल्प ले लिया। इससे हमें यह शिक्षा प्राप्त होती है कि निस्वार्थ सेवा के द्वारा कठोर व्यक्ति का भी हृदय परिवर्तन हो सकता है।

प्रतिभा पलायन

भारतीय रेल्वे में अपनी उत्कृष्ट व कर्तव्यनिष्ठ सेवा प्रदान करने हेतु डायेरक्टर जनरल के स्तर पर गोल्ड मैडल, जनरल मैनेजर अवार्ड आदि से सम्मानित आई आई टी मुंबई से उत्कृष्ट अंकों से उत्तीर्ण सचिन शुक्ला वर्तमान में जबलपुर में डिप्टी जनरल मैनेजर के पद पर कार्यरत है।

उन्होंने अपना अनुभव बताते हुए कहा कि वे जब आई आई टी मुंबई में इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में पढ़ रहे थे तब उनके अधिकतर मित्र व सहपाठी अमेरिका के विश्वविद्यालयों में उच्च अध्ययन हेतु जाने के लिये लालायित थे। अमेरिका के विश्वविद्यालय भी भारत के अच्छे अंक प्राप्त करने वाले आई आई टी के छात्रों को बहुत पसंद करते है क्योंकि ऐसे विद्यार्थी बहुत मेहनती, बुद्धिमान एवं अपने कार्य के प्रति समर्पित रहते है। मेरे अधिकांश सहपाठियों को अमेरिका के विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा छात्रवृत्ति देकर उन्हें प्रवेश प्राप्त हो गया था और वे सब इतने खुश हुये कि मानो भगवान ने उन्हें एक नयी जिंदगी दे दी हो।

मुझे भी मेरे मित्रों ने सुझाव दिया कि तुम भी अमेरिका चले जाओ क्योंकि यहाँ अपने देश में योग्यता का सही मूल्यांकन नहीं है। यहाँ तो सिर्फ जातिगत आरक्षण और भ्रष्टाचार है। यहाँ अच्छे और ईमानदार लोगों को तरक्की के अवसर मिलने में बहुत कठिनाई होती है। यदि तुम अमेरिका चले जाओगे तो तुम्हें उन्नति के अवसर आसानी से प्राप्त होते रहेंगें और तुम आर्थिक रूप से भी बहुत संपन्न हो जाओगे। उनकी बात मानकर मैं भी अमेरिका जाने हेतु प्रयासरत हो गया और प्रभु कृपा से मुझे भी छात्रवृत्ति के साथ वहाँ प्रवेश मिल गया। मैंने जाने की तैयारी शुरू कर दी थी परंतु इससे मुझे बहुत प्रसन्नता महसूस नहीं हो रही थी और मैं अपनी अंतरात्मा में सोचता था कि अपनी अच्छी जिंदगी के लिए देश छोडकर विदेश में क्यों बस जाऊँ ? क्या अपने देश में ही ईमानदारी से काम करना संभव नहीं है ? यदि हमारे देश की प्रतिभाओं का इसी तरह पलायन होता रहेगा तो हमारे देश की उन्नति और तरक्की कैसे हो सकेगी ?

मैं इसी उधेड़बुन में उलझा हुआ था तभी मुझे भारतीय रेल्वे में उच्च पद पर कार्य करने का अवसर प्राप्त हो गया, फिर भी लोगों का मत था कि अपने देश में केवल चापलूस और भ्रष्ट लोगों की जल्दी प्रगति होती है। तुम अमेरिका में बस जाआगे तो आराम से रहोगे। इसी उधेडबुन में मैं उलझा हुआ था तभी मुझे बचपन में पढा हुआ एक श्लोक याद आया कि जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी अर्थात जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान होती है। यह स्मरण आते ही मैंने दृढ़ निश्चय कर लिया कि यदि हम स्वयं ऐसी स्थिति को आगे बढ़कर समाप्त करने का प्रयास नहीं करेंगे तो हमें ऐसे तंत्र को दोष देने का कोई अधिकार नहीं है।

किसी भी शासन तंत्र को सुव्यवस्थित ढंग से चलाने हेतु शासन प्रणाली में अच्छे लोगों की आवश्यकता रहती ही है। यदि ईमानदार और समर्पित लोग नहीं होंगे तो शासन तंत्र जनता के हित में सुचारू रूप में कैसे चल पायेगा ? मन में यह विचार आते ही मैंने अमेरिका जाने की सेच को अलविदा करके भारत में ही रहकर भारतीय रेल में नौकरी करने का निश्चय कर लिया। मेरा युवाओं को संदेश है कि मैंने जीवन में जो रास्ता चुना वह सही था। मेरी प्रतिभाशाली युवाओं से प्रार्थना है कि वे सिर्फ आर्थिक दृष्टिकोण के कारण देश से पलायन करने का निर्णय ना लेकर अपने देश में ही रहकर सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ने हेतु कृत संकल्पित हों।

संत का मार्गदर्शन

एक ग्रामीण इलाका जो कि शहरी विकास से बहुत दूर था, प्रतिवर्ष गर्मी के दिनों में सूखे से प्रभावित होता रहता था जिससे वहाँ के निवासी तो कष्टप्रद जीवन तो जीते ही थे इसके साथ ही साथ उन्हें पशुधन की भी हानि उठानी पडती थी। एक दिन एक संत वहाँ पर आये और उन्हें जब इस कठिनाई का पता हुआ तो उन्होंने इसे दूर करने का बीडा उठा लिया। उन्हें वहाँ के निवासियो से पता हुआ कि उपर पहाडी पर एक बरसाती झरना है जो कि बरसात के दिनों लबालब बहता रहता है। उस पानी का कोई उपयोग नहीं हो पाता है और वह व्यर्थ ही बह जाता है। यह सुनकर संत जी ने गांव वालों के सहयोग से एक तालाब को खुदवाया और उसमें ऐसी व्यवस्था कर दी कि बरसात में उसे झरने से बहने वाला जल सीधे तालाब में आकर इकट्ठा होने लगा इसके साथ साथ उन्होंने बरसात के पानी से भूमिगत जल स्तर बढाने के लिए गांव में कुए खुदवाये एवं आसपास फलदार वृक्ष लगवाकर एवं पौधारोपण को बढावा दिया। स्वामी जी के इन प्रयासों से अगली बरसात में तालाब पानी से लबालब भर गया एवं पौधारोपण के कारण भूमिगत जल का स्तर जो लगातार नीचे जा रहा था वह भी बढ़ने लगा। बारिश की वजह से कुएं भी पानी से भर गये। इस प्रकार उनके एवं गांववालो के संयुक्त प्रयास से बरसाती जल को इकट्ठा करने के कारण सूखे की समस्या का हमेशा के लिये निदान हो गया। वहाँ पर वृहद पौधारोपण के कारण हरियाली भी बढ़ गयी। इस प्रकार एक महात्मा के निस्वार्थ सेवा एवं मार्गदर्शन के कारण उस गांव को आदर्श ग्राम के रूप में शासन ने चुन लिया और अब उसी आधार पर अन्य सूखा प्रभावित गांवों में भी विकास कार्य प्रारंभ हो गये।

क्रमशः अगले भाग में जारी...

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जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: कहानी संग्रह // तर्जनी से अनामिका तक ( प्रेरणादायक कहानियाँ एवं संस्मरण ) - भाग 1 // राजेश माहेश्वरी
कहानी संग्रह // तर्जनी से अनामिका तक ( प्रेरणादायक कहानियाँ एवं संस्मरण ) - भाग 1 // राजेश माहेश्वरी
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