पानी के कारण उन दिनों चाँद और सूरज धरती पर ही रहा करते थे। पानी से उनकी बड़ी मित्रता थी। वे अक्सर पानी के घर उससे मिलने आया करते थे। लेकिन पा...
पानी के कारण
उन दिनों चाँद और सूरज धरती पर ही रहा करते थे। पानी से उनकी बड़ी मित्रता थी। वे अक्सर पानी के घर उससे मिलने आया करते थे। लेकिन पानी कभी चाँद –सूरज के घर नहीं जाता था। सूरज को इस बात से दुख होता था। एक दिन सूरज ने पानी से पूछा –“तुम मेरे घर क्यों नहीं आते हो दोस्त ?’’
पानी ने कहा –“देखो, तुम्हारा घर छोटा है। मेरे अंदर बहुत सी मछलियाँ, मगरमच्छ वगैरह रहते हैं। अगर मैं इनके साथ तुम्हारे घर आया तो वहाँ बैठने को भी जगह नहीं मिलेगी।‘’
सूरज ने कहा –“मैं एक बहुत बड़ा घर बनाऊँगा। तुम मेरे घर जरूर आना।“
सूरज ने अपने लिए एक बहुत बड़ा घर बना लिया। तब पानी अपने दल –बल के साथ उसके घर गया। कुछ ही देर में सूरज के घर में घुटने भर पानी जमा हो गया। और थोड़ी देर में पानी चाँद- सूरज के गले तक पहुँच गया। चाँद –सूरज छत पर चले गए। पानी वहाँ भी पहुँच गया। चाँद –सूरज उठकर आकाश में चले गए। यह जगह उन्हें सुरक्षित लगी। तब से वे वहीं रहने लगे।
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मगरमच्छ की बहन
एक नदी में एक मगरमच्छ रहता था। वह दूसरे जानवरों को मारकर अपना पेट भरता था। एक बार एक मुर्गी नदी के किनारे गई। मगरमच्छ उसको खाने पानी से बाहर निकल आया। उसको अपनी ओर आते देख मुर्गी बोली –“मेरे भाई ! मुझे नहीं खाना !”
मगरमच्छ ने सोचा –‘इसने मुझे भाई कहा तो मैं इसे कैसे खा सकता हूँ ?’वह पानी के अंदर चला गया।
दूसरे दिन मुर्गी फिर से नदी के किनारे आई और मगरमच्छ ने उसे फिर से खाना चाहा। मुर्गी ने फिर उससे निवेदन किया –“मेरे भाई !मुझे नहीं खाना !”
मगरमच्छ ने उस दिन भी उसे छोड़ दिया। लेकिन एक बात उसकी समझ में नहीं आ रही थी कि मुर्गी उसकी बहन कैसे हो सकती है ?वह सोचता रहा लेकिन उसे इस बात का जवाब नहीं मिल सका। तब वह अपने मित्र गिरगिट के पास चला गया। उसने गिरगिट को अपनी समस्या बताई। गिरगिट बोला –“देखो, मुर्गी हो या कछुआ, गिरगिट हो या मगरमच्छ ,सभी अंडे देते हैं। देते हैं न ?”
मगरमच्छ बोला –“हाँ !”
‘’तब हम सब भाई –बहन हुए ? या नहीं ?” गिरगिट ने फिर पूछा।
“ हाँ, हाँ, हम सभी भाई –बहन हुए ! मुर्गी भी मेरी बहन हो गई !”
मगरमच्छ यह बात समझ गया था। तभी तो वह कभी मुर्गियों को नहीं खाता !
तोड़ी सियार से दोस्ती
सियार और कुत्ते में गहरी दोस्ती थी। दोनों जंगल में साथ रहते थे। मिलकर शिकार करते थे। एक दिन उन्हें कोई शिकार नहीं मिला। दोनों को भूखे पेट ही सोना था। रात ठंड भी कुछ ज्यादा थी। भूखे पेट उन्हें नींद नहीं आ रही थी। अचानक कुत्ते को कुछ दूरी पर कोई लाल चीज चमकती दिखाई दी। सियार ने उसे बताया कि ‘वह आग है। यहाँ से कुछ ही दूरी पर एक गाँव है जहाँ लोग आग जलाकर जाड़ा दूर भागते हैं।‘ कुत्ते ने सियार से आग लाने को कहा। आग से कम –से –कम ठंड तो दूर भाग जाती ? लेकिन सियार गाँव जाने को तैयार नहीं हुआ। उसने साफ –साफ कह दिया –“तुम्हें जाना हो तो जाओ, मैं नहीं जा पाऊँगा।“
कुत्ते को आदमी से बहुत डर लगता था लेकिन उसने सोचा कि ‘आग के आस -पास कुछ हड्डियाँ भी फेंकी हो सकती हैं। वहाँ जाने पर भूख और ठंड दोनों समस्याओं का अंत हो सकता है।‘ वह चल पड़ा। जब वह जलती हुई आग के पास पहुँचा, एक आदमी घर से बाहर निकाल आया। उसे देखकर कुत्ते को बहुत डर लगा। उसने आदमी से निवेदन किया –“मुझे बहुत ठंड लग रही है। क्या मैं थोड़ी देर आग के पास बैठ सकता हूँ ?थोड़ी देर में मैं चला जाऊंगा। “
आदमी ने कहा –“ठीक है, बैठो। लेकिन जैसे ही तुम गर्म हो जाओ, यहाँ से चले जाना।“
कुत्ता आग के पास बैठ गया। वहीं पास में कुछ हड्डियाँ पड़ी थीं ,वह उन्हें खाने लगा।
कुछ देर में आदमी फिर से बाहर आया और कुत्ते को जाने को कहा। कुत्ता बोला –“अभी मुझे ठंड लग ही रही है। थोड़ी देर और बैठ लेने दीजिए न ?”
कुछ देर बाद फिर आदमी बाहर निकला। इस बार कुत्ते ने कहा –“हाँ अब मैं गर्म हो गया हूँ लेकिन मैं जंगल जाना नहीं चाहता ! वहाँ मैं अक्सर भूखा रहता हूँ। ठंड से भी परेशान रहता हूँ। आप मुझे यहीं नहीं रहने दे सकते ?मैं पक्षियों और जानवरों के शिकार में आपकी मदद करूँगा। आप मुझे यहीं रहने दीजिए प्लीज !”
आदमी ने सोचा, कुत्ते के रहने से फायदा ही है। उसने कुत्ते को रहने की अनुमति दे दी।
तभी से कुत्ते आदमी के साथ रह रहे हैं और सियार कुत्ते को पुकार रहे हैं –“काम हुआ?... हुआ?...हुआ ?”
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बिल्ले पर विश्वास ?
अपनी जवानी के दिनों में बिल्ले ने अनेक जानवरों का शिकार किया था। चूहे उसे देख घबड़ाते थे। लेकिन जब वह बूढ़ा हो गया, तब चूहों को पकड़ने में असमर्थ हो गया।
एक दिन उसने चूहों से चालबाजी करने का निश्चय किया। वह पीठ के बल बिना हिले -डुले लेट गया। उसे इस तरह लेते देख एक चूहे को लगा कि वह मर गया। वह दौड़ा –दौड़ा अपने दोस्तों के पास गया और खुश होकर बोला –“ बिल्ला मर गया। चलो हमलोग खुशी मनाएँ !”
उस चूहे की बात सुनकर सभी चूहे खुश हो गए। वे उस बिल्ले के चारों ओर घूम –घूम कर नाचने लगे। बिल्ला चुपचाप पड़ा रहा। वह जरा भी नहीं हिल रहा था। निडर होकर एक चूहा बिल्ले के सिर पर चढ़ गया। वह वहीं से बोला –“बिल्ला पूरी तरह मर गया है। तुमलोग भी इसके सिर पर चढ़ जाओ और नाचो !”
तभी अचानक बिल्ला ऊपर उछला और अपने सिर पर नाच रहे चूहे को पकड़ लिया। बाकी चूहे अपनी जन बचाकर वहाँ से भाग पड़े।
तभी से चूहे इस बात को नहीं भूलते हैं –“बिल्ले पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए !”
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संजीव ठाकुर