लोककथा // 4 यह सच है // नौर्स देशों की लोक कथाएँ–1 // सुषमा गुप्ता

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4 यह सच है [1] यह यूरोप महाद्वीप के डेनमार्क देश की बात है कि एक बार एक मुर्गी वहाँ रात को शहर के एक घर में बैठी थी। सोने का समय हो रहा था। ...

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4 यह सच है[1]

यह यूरोप महाद्वीप के डेनमार्क देश की बात है कि एक बार एक मुर्गी वहाँ रात को शहर के एक घर में बैठी थी।

सोने का समय हो रहा था। वह बोली — “यह मुर्गीखाने की एक बड़ी भयानक कहानी है। जब मुझे उस कहानी की याद आती है तो मैं इतना डर जाती हूँ कि मैं रात को अकेली नहीं सो सकती। यह बड़ी अच्छी बात है कि इस समय यहाँ पर हम बहुत सारी मुर्गियाँ हैं तो मुझे यहाँ कोई डर नहीं है। ”

और उसने अपनी साथिन मुर्गियों को एक कहानी सुनायी जिसको सुन कर उनके भी पंख खड़े हो गये और मुर्गों की कलगियाँ नीचे को झुक गयीं। और यह कहानी नहीं बल्कि सच्ची घटना है।

उसने कहना शुरू किया — “लेकिन हम यह कहानी शुरू से ही कहना शुरू करेंगे। यह सब एक ऐसी जगह शुरू हुआ जो यहाँ से कुछ दूरी पर है और शहर के दूसरे हिस्से में है। वहाँ बहुत सारे मुर्गे मुर्गियाँ रहते थे।

सूरज डूब चुका था और सारे मुर्गे मुर्गियाँ अपनी अपनी जगह पर सोने के लिये पंख फड़फड़ा रहे थे। वहाँ एक ऐसी मुर्गी भी थी जिसके पंख बिल्कुल सफेद थे। उसकी टाँगें बहुत छोटी थीं।

वह मुर्गी बराबर अंडे देती थी और वहाँ की सब मुर्गियों में सबसे ज़्यादा इज़्ज़तदार मुर्गी समझी जाती थी। जैसे ही वह अपने सोने की जगह पर कूदी कि उसने अपनी चोंच अपने पंखों में मारी और उसका एक छोटा सा पर नीचे गिर पड़ा।

वह उसको देख कर हँसते हुए बोली — “जितना ज़्यादा मैं अपने पंखों में अपनी चोंच मारूँगी और पर गिराऊँगी मैं उतनी ही ज़्यादा सुन्दर लगूँगी। ”

अब क्योंकि वह सारी बतखों में सबसे ज़्यादा हँसी मजाक करती थी इसलिये किसी ने उसकी इस बात पर ध्यान नहीं दिया और वह सोने चली गयी।

रात हो चुकी थी और सब मुर्गे मुर्गियाँ अपनी अपनी जगह पर बराबर बराबर सोये हुए थे। पर एक मुर्गी जो उस सफेद मुर्गी के बराबर में बैठी थी उसकी आँखों में नींद नहीं थी। उसने उस सफेद मुर्गी की बात कुछ सुनी कुछ नहीं सुनी।

वैसे तो ऐसा ही होता है कि जिसको जो करना होता है वह वह करता है और जो नहीं करना चाहता वह वह नहीं करता पर वह यह बात अपनी पड़ोसन से कहे बिना नहीं रह सकी।

वह अपनी पड़ोसन से बोली — “क्या तुमने सुना कि यहाँ अभी किसी ने क्या कहा? मैं किसी का नाम नहीं लेती पर यहाँ एक मुर्गी है जो सुन्दर दिखायी देने को लिये अपने पर नोचना चाहती है। मैं अगर मुर्गा होती तो मैं उसको जरूर ही उसको बुरा कहती। ”

जब यह मुर्गी यह सब कह रही थी तो एक माँ उल्लू अपने पति और बच्चों के साथ वहीं बैठी थी। उन सबके कान बहुत तेज़ थे। सो उन सबने अपनी पड़ोसन के वे सारे शब्द सुने जो उनकी पड़ोसन ने कहे थे।

उन सबने अपनी आँखें चारों तरफ गोल गोल घुमायीं और माँ उल्लू अपने पंख फड़फड़ा कर बोली — “उसकी बात मत सुनो। पर मुझे लगता है कि तुम सबने उसकी बात पहले ही सुन ली है कि उसने क्या कहा था। मैंने भी उसकी सारी बात अपने कानों से सुनी है। सबको सब कुछ सुनना भी चाहिये।

इन मुर्गियों में से एक मुर्गी ऐसी है जो यह भूल गयी है कि एक मुर्गी का बरताव क्या होना चाहिये। कितनी खराब बात है कि वह अपने पंख एक एक करके मुर्गे के सामने निकाल रही है। ”

पिता उल्लू ने माँ उल्लू को डाँटा — “यह सब तुम क्या कह रही हो? यह क्या कोई बच्चों से करने की बात है?”

“मैं जा कर अपनी पड़ोसन मादा उल्लू को बताऊँगी। वह बहुत अच्छी है वह मेरी बात सुनेगी। ” और वह माँ उल्लू अपनी पड़ोसन मादा उल्लू को यह सब बताने के लिये उड़ गयी।

वहाँ जा कर उसने यह कहानी मादा उल्लू को बतायी और फिर वे दोनों फाख्ताओं के घर की तरफ उड़ गयीं और वहाँ जा कर बोलीं — “क्या तुमने सुना? क्या तुमने सुना? एक मुर्गी है जिसने एक मुर्गे के लिये अपने पंख नोच दिये हैं। अगर वह अभी तक नहीं मरी है तो अब वह ठंड में जरूर मर जायेगी। ”

पास में बैठे कबूतरों ने सुना तो वे बोले — “क्या? क्या? क्या कहा तुमने? कहाँ, कहाँ?”

“अरे यहीं। पास वाले मुर्गीखाने में। मैंने उसको अपनी आँखों से देखा है। सारी कहानी तो बार बार नहीं दोहरायी जा सकती पर है यह बिल्कुल सच। ”

कबूतरों ने अपने कबूतरखाने में जा कर कहा — “विश्वास करो, विश्वास करो। तुम लोग हमारा विश्वास करो। यह कहानी नहीं है सच है कि एक मुर्गी है।

पर कुछ का कहना है कि एक नहीं दो मुर्गियाँ हैं जिन्होंने अपने सारे पंख नोच कर फेंक दिये हैं और इसी लिये वे अब दूसरी मुर्गियों की तरह दिखायी नहीं देतीं।

ऐसा उन्होंने इसलिये किया है ताकि वे मुर्गों का ध्यान अपनी तरफ खींच सकें। ऐसा करना बड़ा खतरनाक काम है क्योंकि ऐसा करने से किसी को ठंड लग सकती है, कोई बुखार से मर सकता हैं। और इसी लिये वे दोनों मर गयीं। ”

मुर्गा चिल्लाया — “जागो जागो। ” और वह एक तख्ते पर जा कर बैठ गया।

उसकी आखें अभी भी नींद से झुकी जा रहीं थीं फिर भी वह खूब ज़ोर से चिल्लाया — “तीन मुर्गियाँ दिल टूटने की वजह से मर गयीं। उन्होंने अपने सारे पर नोच कर फेंक दिये थे। यह बड़ी भयानक कहानी है। मेहरबानी करके यह बात औरों को भी बता दो। ”

चिमगादड़ चिल्लाये — “इस कहानी को औरों को भी बता दो। ”

सारे मुर्गे और बतखें चिल्लाये — “इस कहानी को औरों को भी बता दो। ”

इस तरह यह कहानी एक मुर्गीखाने से शुरू हो कर दूसरे मुर्गीखाने और कबूतरखाने तक होती हुई फिर वहीं आ पहुँची जहाँ से वह शुरू हुई थी।

और उस मुर्गीखाने में मुर्गियों ने सुना — “ऐसा कहा जाता है कि पाँच मुर्गियों ने अपने पंख केवल इसलिये नोच डाले ताकि वे दिखा सकें कि उनमें से कौन सबसे पतला था और फिर उन्होंने आपस में एक दूसरे को चोंच मार मार कर मार डाला।

इस तरह उन्होंने अपने अपने परिवारों को बहुत बदनाम किया और साथ में अपने मालिकों का भी बहुत नुकसान किया।

और वह मुर्गी जिसने अपना केवल एक ही छोटा सा पंख गिराया था, अपनी कहानी तो भूल गयी और एक इज़्ज़तदार मुर्गी होने के नाते बोली — “मुझे उन मुर्गियों से सख्त नफरत है जिन्होंने इस तरह अपने पंख नोच कर फेंक दिये हालाँकि ऐसी और भी बहुत सारी मुर्गियाँ होंगी जो ऐसा करती होंगी।

किसी को भी इस तरह की चीज़ों को बढ़ावा नहीं देना चाहिये। मैं इसके लिये जो कुछ भी मुझसे हो सकता है वह करने की कोशिश करूँगी। मैं इस कहानी को अखबार में छपवाऊँगी ताकि यह सारे देश में पहुँचे। इससे दूसरी मुर्गियों और उनके परिवारों को सीख मिलेगी। ”

फिर यह कहानी अखबार वालों को दे दी गयी। अखबार वालों ने इसे अखबार में छापा। और यह कहानी सच है कि एक मुर्गी का छोटा सा पंख किस तरह पाँच मुर्गियों की मौत में बदल गया।



[1] It is Quite True - folktale from Denmark, Europe. Adapted from the Web Site :

http://www.worldoftales.com/European_folktales/European_folktale_9.html

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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से सैकड़ोंलोककथाओं के पठन-पाठन का आनंद आप यहाँ रचनाकार के  लोककथा खंड में जाकर उठा सकते हैं.

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रचनाकार: लोककथा // 4 यह सच है // नौर्स देशों की लोक कथाएँ–1 // सुषमा गुप्ता
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