संस्मरणात्मक शैली पर लिखी गयी पुस्तक “डोलर हिंडा” का अंक ५ “प्रशिक्षण” लेखक दिनेश चन्द्र पुरोहित

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संस्मरणात्मक शैली पर लिखी गयी पुस्तक “डोलर हिंडा” का अंक ५ “प्रशिक्षण” लेखक दिनेश चन्द्र पुरोहित कार्यालय ज़िला शिक्षा अधिकारी [प्रारम्भिक ...

संस्मरणात्मक शैली पर लिखी गयी पुस्तक “डोलर हिंडा” का अंक ५ “प्रशिक्षण” लेखक दिनेश चन्द्र पुरोहित

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कार्यालय ज़िला शिक्षा अधिकारी [प्रारम्भिक शिक्षा], जिसे अंग्रेजी में कहते हैं “डी.ई.ओ. [एलिमेंटरी]”। इसी कार्यालय के कार्यालय सहायक पद पर बैठे माननीय घीसू लाल शर्मा इस पद की शोभा बढ़ाया करते थे। एक दिन बेचारे घीसू लाल ने हथेली पर ज़र्दा रखा और दूसरे हाथ से थप्पी लगाई ही थी, उसी वक़्त टेबल पर रखे टेलिफ़ोन की घंटी बज उठी। उतावली में उन्होंने दूसरे हाथ से चोगा उठा लिया, और हथेली से उड़ी ज़र्दे की खंक उनके नाक में चली गयी। अब वे बेचारे, बात क्या करते..? यहाँ तो जनाब की नासिका में ज़र्दे की खंक चली गयी, और उनके नाक से छींकें तोप के गोलों की तरह तड़ा-तड़ छूटने लगी। अब भाई घीसू लाल, निदेशक कार्यालय के अधिकारी से बात कैसे करते..? इन छींकों से उनका बुरा हाल हो गया, किसी तरह बेचारे फ़ोन पर बोले “कौन हो, भाई “

“ख़ुदा की पनाह, कहीं हमारा फ़ोन खैराती अस्पताल में लग गया क्या ? कब से मरीज़ों की छींकों की आवाज़, सुनता आ रहा हूँ ?” चोगे से, आवाज़ सुनायी दी।

“अरे हुज़ूर, यह अस्पताल नहीं, मर्ज़ बढ़ाने वाला हमारा दफ़्तर एलिमेंटरी है। यहाँ रोज़ हवाई बिल्डिंग की सीढ़ियां चढ़ते-चढ़ते, ज़रूर हम अस्थमा या ब्लड प्रेशर का मर्ज़ ले बैठेंगे...” खंखारते-खंखारते, घीसू लाल बोले।

“अरे वाह भाई, वाह। अब आपकी आवाज़ सुनकर हमें मालुम हो गया है, आप जनाबे आली घीसू लाल ही हैं ? जिनका अभी हाल में ही परमोशन हुआ है, और कार्यालय सहायक के पद की शोभा बढ़ा रहे हैं। क्या हाल है, जनाब ? प्रशिक्षण ले रहे हैं ?” फ़ोन के चोगे से, आवाज़ आयी। अब घीसू लाल पहचान गए कि, बोलने वाले शख्स ज़हूर मोहम्मद हैं...जो निदेशालय के, सामान्य शाखा के अधिकारी हैं।

“अरे ज़हूर साहब...? आदाब.. हुज़ूर आदाब । हुज़ूर, आपका बहुत अहसान है हमारे ऊपर। आप न होते तो...” घीसू लाल बोले और उन्होंने कुछ आगे कहना चाहा..मगर ज़हूर साहब ने उनको आगे बोलने का मौक़ा नहीं दिया। जनाब फ़ोन में कहने लगे “इस बात को छोड़िये, पंडितजी। यह बात, आप कई दफ़े दोहरा चुके हैं। अब आप काम की बात सुनिए, बात यह है कि ‘राज्य के शिक्षा मंत्री जनाब गुलाब चंद कटारिया आगामी सोमवार को, कार्यालय उप निदेशक कार्यालय जोधपुर में एक बैठक में संबोधित करेंगे। जिसमें संभाग के सभी ज़िला शिक्षा अधिकारियों को, वे प्रशिक्षण देंगे। अत: आपके दफ़्तर की हर शाखा को १२-१२ सूचनाओं के सेट तैयार करने हैं। क्या तैयार करना है, या क्या नहीं करना है ? इसकी सूचना, फेक्स द्वारा आपके कार्यालय में भेजी जा चुकी है। समझ गए, घीसू लालजी ?”

“जी हुज़ूर, काम वक़्त पर तैयार...” घीसू लाल ज़वाब दे रहे थे, और उधर ज़हूर साहब ने क्रेडिल पर चोगा रखकर फ़ोन बंद कर दिया। अब दफ़्तर के इन बाबूओं से सूचना के सेट तैयार करवाने की जिम्मेदारी घीसू लाल के कन्धों पर आ गयी। अब चोगा क्रेडिल पर रखकर, घीसू लाल ने सभी दफ़्तर-ए-निग़ारों को सूचनाओं के सेट वक़्त पर तैयार करने का इज़रा पंजिका में लिखा। इज़रा को क्रियान्वित करने के लिए, इज़रा पर बड़े साहब हस्ताक्षर लेने ज़रूरी थे..अत: उस पंजिका को बड़े साहब के पास भेज दिया। इस तरह आदेश पंजिका वरिष्ठ उप ज़िलाशिक्षा अधिकारी पुष्कर नारायण के पास से गुज़रती हुई, बड़े साहब की टेबल पर चली गयी। मगर घीसू लाल के मानस में एक सवाल छोड़ गयी कि, “क्या ज़िला शिक्षा अधिकारी प्रशिक्षित नहीं है..? होते तो शिक्षा मंत्री इन्हें प्रशिक्षण देने, जोधपुर क्यों तशरीफ़ लाते ? ये ज़िला शिक्षा अधिकारी अक्सर शिविरों में प्रधानाध्यापकों, व्याख्याताओं, वरिष्ठ अध्यापकों, अध्यापकों और दफ़्तर-ए-निग़ारों को इकट्ठा करके, जो प्रशिक्षण देते आये हैं..क्या वह प्रशिक्षण नहीं ? या फिर, ये ज़िला शिक्षा अधिकारी अब-तक प्रशिक्षित नहीं थे..जिन्हें अब प्रशिक्षण दिया जाएगा ? या अब-तक का दिया गया प्रशिक्षण, प्रशिक्षण नहीं था ? हम मानते हैं शिक्षा-सेवा एक जन-सेवा ही है, महकमें का हर अध्यापक सेवा करने के लिए तत्पर रहता है। वह सेवा चाहे जन गणना हो या पशु गणना हो, या फिर प्लस पोलियो..या फिर यदा-कदा यह सेवा अकाल, बाढ़ नियंत्रण या बाढ़ राहत के रूप में बदल जाया करती है। इन सबके लिए, कार्मिक को बार-बार प्रशिक्षण लेना ज़रूरी है। अगर वह एक बार प्रशिक्षण ले लेता है, तो फिर क्यों दूसरी दफ़े उसे प्रशिक्षित किया जाता है ? अत: यह मान लिया जाता है कि, वह प्रशिक्षित होते हुए भी अप्रशिक्षित है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि, ‘प्रशिक्षित होते हुए भी, वह प्रशिक्षु है।’ एक तृतीय वेतन श्रंखला का अध्यापक पदोन्नति पाता हुआ ज़िला शिक्षा अधिकारी बन जाता है, तब तक न जाने वह कितनी बार प्रशिक्षण लेता है..? फिर भी वह प्रशिक्षु ही है, जो हमेशा कटिबद्ध रहता है कि ‘सरकार न जाने कब उसे, अमुख-अमुख प्रशिक्षण लेने का कह दे।’

प्रशिक्षण की पूर्व तैयारियों के महत्त्व को देख घीसूलाल ने, एक लंबा भाषण दफ़्तर-ए-निग़ारों के कानों में उंडेल दिया। और अपने भाषण में, हर दफ़्तर-ए-निग़ार के कार्य का विश्लेषण भी कर डाला।

“क्यों रे, शफ़िया..? सर फिर गया तेरा, कब से पड़ा है रजिस्टर बड़े साहब की टेबल पर। लाता क्यों नहीं, दस्तख़त करवाने में मौत आती है तेरी..?” नाहर की तरह दहाड़ते हुए, घीसू लाल डेपुटेशन पर लगे चपरासी शफ़ी मोहम्मद से कहा, जो होल के दरवाज़े के पास छुपकर खड़ा था। वह बेचारा उनकी एक ही दहाड़ सुनकर घबरा गया, और उसके हाथ में थामी सुलगती बीड़ी दर के मारे छूट गयी..जो जीना चढ़ रहे घसीटा राम के घुटे सर पर आ गिरी, और वहां चिपककर उनके सर की चमड़ी को जलाने लगी। जो बेचारे अपनी मस्ती में, गीत ‘लागा चुनरी में दाग, छुपाऊं कैसे...’ गाते आ रहे थे। मगर इस सुलगती बीड़ी ने उनको कमाल कर दिखलाया, उनका गीत गाना बंद हो गया, और जलन के मारे उनके मुंह से दर्द-भरी चीख निकल उठी।

फिर क्या ? शफ़िया तो झट वहां से, डरकर भागा, और अलादीन के जिन्न की तरह घीसू लाल के सामने हाज़िर हो गया। “हुकूम...हुकूम, मेहरबानी हुज़ूर हमें माफ़ करें..अभी बच्चे छोटे हैं, उनको पालना है।” इतना कहकर, शफ़िया झट, उनका हुक्म तामिल करने चला गया। क्योंकि उसे डर था, कहीं वह लेखाकार घसीटा राम की नज़र आकर उस पर न गिरे। बड़े साहब के दस्तख़त होने के बाद, रजिस्टर वापस घीसू लाल के पास लौट आया। अब वे सोचने लगे कि, इज़रा पर बड़े साहब के हस्ताक्षर ले लिए गए, चलो एक समस्या से तो निज़ात मिली। थोड़ी देर बाद शफ़िया सभी दफ़्तरे निगारों के दस्तख़त रजिस्टर पर करवा लाया, इस तरह घीसू लाल का तनाव काफ़ी कम हो गया। बस, अब इन दफ़्तरे निग़ारों से काम लेना ही शेष रहा। उनका विचार था कि, ‘अगर इन लोगों ने थोड़ी देर कर दी तो, स्पष्ठीकरण रुपी अस्त्र चलाने का आधार तो बन ही जाएगा।’ वे जानते थे, इस स्टाफ से काम लेना बंज़र भूमि में अन्न उपजाने के बराबर है। इनका विचार था कि, इस सदानंद से काम लेना तो उनके लिए टेडी खीर है। जो सरकारी स्टेशनरी के अभाव में, कई दिनों से पेन-डाउन स्ट्राइक मना रहा था।

इस बाधा को दूर करना घीसू लाल के हाथ में नहीं, क्योंकि सरकार स्टेशनरी बज़ट देती नहीं..अब यह बज़ट आख़िर आये, कहाँ से..? एक मछली पूरे समुन्द्र को गंदा कर देती है, भगवान करे ‘कहीं दूसरे दफ़्तरे निग़ार इस सदानंद की तरह, स्टेशनरी का राग न अलाप दे..?’ अब यही भय, घीसू लाल को सताने लगा। उनको लगा कि, इस हर्ज़-मुर्ज़ का निदान उनके विभाग के पास नहीं..इसका समाधान तो केवल बजरंग बली के पास ही है। अब वे, बजरंग बली को याद करने लगे।

वैसे घीसू लाल ठहरे, बजरंग बली के भक्त। दफ़्तर जाने के लिए वे सुबह ९.३० पर घर से बाहर निकलते, तब वे सबसे पहले बजरंग बाग़ की तरफ क़दम बढ़ाया करते। वहां बजरंग बली के मंदिर में जाकर, बालाजी के आगे मत्था टेकते हैं। फिर श्रद्धा से, ललाट पर सिन्दूर का टीका लगाया करते। बाद में दिन-भर दफ़्तर में बैठकर, दफ़्तरे निग़ारों की आरती उतार बैठते थे। वे यह काम, नियम-पूर्वक करते थे। मंदिर जाना उनकी श्रद्धा, और दफ़्तर में दफ़्तरे निग़ारों की आरती उतारना उनका सिद्धांत ठहरा। दफ़्तर से लौटते वक़्त वे पुन: उसी बालाजी के मंदिर में जाते, और बालाजी की मूर्ति आगे मत्था टेककर दफ़्तर का हिसाब बराबर किया करते थे। अध्यापक भंवर लाल बालवंशी बजरंग बली की अनुकम्पा पाकर, पदोन्नति पाकर मेला दरवाज़ा मिसाल स्कूल में हेडमासटर बन गए। हेडमास्टर बनने के बाद उन्हें याद आया कि, उनको अभी-तक सलेक्शन-ग्रेड नहीं मिला। बस, फिर क्या ? वे सलेक्शन-ग्रेड हासिल करने के लिए जुगाड़ बैठाने लगे। clip_image002

इसी जुगाड़ के चक्कर में वे मंदिर में रोज़ जाते उसी वक़्त, जब घीसू लाल वहां हाज़िर होते। तब उनसे मुलाक़ात करके, वे उनसे अच्छे रसूख़ात बनाने लगे। क्योंकि वे जानते थे कि “हमारे प्रजानंत्र में बालाजी की अपेक्षा, दफ़्तर के कार्मिकों के गुड बुक में रहना ज़्यादा ज़रूरी है। अगर वे दफ़्तर के दफ़्तरे निग़ारों के हेड कार्यालय सहायक यानी घीसू लाल के गुड बुक में आ गए तो..सोने में सुगंध। विपत्ति के वक़्त घीसू लाल बड़े साहब के कानों में मन्त्र फूंककर, भंवर प्यारे का काम निकलवा सकते हैं..ऐसा वे अपने दिल में, सोचा करते थे।

“ज़िला शिक्षा अधिकारी को आगामी सप्ताह में शिक्षा मंत्री द्वारा ली जाने वाली मिटिंग में भाग लेने जाना है, जिसके लिए दफ़्तर की हर शाखा के दफ़्तरे निग़ारों से बारह-बारह के सूचना-सेट तैयार करवाने हैं। इस मामले में, बेचारे घीसू लाल की नींद ख़राब हो गयी। जैसे-तैसे उन्होंने रात बिताई, वह उनका दिल ही जनता था। पूरी रात उनको एक ही सपना नज़र आ रहा था कि, ‘उनके मकान मालिक की भैंस ने आकर, उनकी फाइलों को घास समझकर मुंह से दबोच लिया..और वे उन फाइलों को बचाने के लिए, ज़ोर लगाकर उसके मुंह से फाइलें खींचते जा रहे हैं।’ तभी दूसरा मंज़र सपने में दिखाई दिया कि, ‘उन्होंने उसके मुंह से खींचकर अपनी फाइलें बाहर निकाल दी। फाइलें बाहर निकालकर, वे ज़ोर से चिल्लाये “पकड़ लिया, पकड़ लिया।” चिल्लाते ही, उनकी नींद खुल गयी।’ नींद से जगकर, उन्होंने क्या देखा कि “वह भैंस महिषासुर नंदिनी समुन्द्र-मंथन की तरह, उनकी हरे रंग की चादर मुंह में दबाये खींच रही है..?” हुआ यूं कि, दूध निकालने के बाद उनके मकान मालिक ने भैंस की रस्सी खुली छोड़ दी..कारण यह था कि, चरवाहा आने वाला था जो भैंस को जंगल में ले जाने वाला था। इस कारण वह भैंस रस्सी से आज़ाद होते ही, घीसू लाल के कमरे में जा पहुँची..और चादर ओढ़कर सो रहे घीसू लाल की ओर, बढ़ती गयी। और ओढ़ी हुई उनकी हरी चादर को, घास समझकर अपने मुंह से खींचने की हरक़त कर बैठी। अब असल मंज़र में घीसू लाल फाइलों के स्थान पर, अपनी चादर खींचकर उसके मुंह से बाहर निकाल रहे थे। और, उधर उनका पड़ोसी थानेदार मुच्छड़ सिंह उनकी चीख सुनकर, लट्ठ पटकता हुआ उनके घर के दरवाज़े के पास चला आया...और वहां खड़ा रहकर, ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाता हुआ कलोनी के निवासियों को इकट्ठा करने के लिए उन्हें पुकारने लगा “पकड़ो, पकड़ो..चोर आया।” उसकी आवाज़ के पीछे-पीछे कोलोनी वालों की भीड़, घर के दरवाज़े के सामने इकट्ठी होने लगी। जैसे ही मुच्छड़ सिंह कमरे के दरवाज़े के पास आये, और उधर बाहर खड़े इन लोगों का शोर तेज़ हो गया..सुनकर, भैंस डर गयी। फिर क्या ? उस चादर को छोड़कर, वह भैंस तबेले में चली गयी। सर पर अंगोछा लपेटकर घीसू लाल दरवाज़े के पास आये, और वहां खड़े थानेदार मुच्छड़ सिंह से ज़राफ़त पूछ बैठे “पधारिये, मालिक। पधारिये। हुज़ूर ने, कैसे तक़लीफ़ की ?”

बात साफ़ थी, थानेदार मुच्छड़ सिंह के पास इसी क्षेत्र का प्रभार था। इस क्षेत्र में एक हर्राफ चोर ने, उसका जीना हराम कर डाला। इस इलाके में चोरियां बढ़ती जा रही थी, और यह चोर उसके पकड़ में न आ रहा था। इधर उसके उच्च अधिकारियों की लताड़ अलग से मिल रही थी, अचानक सुबह-सुबह घीसू लाल के ज़ोर-ज़ोर से “पकड़ लिया, पकड़ लिया” चिल्लाना सुनकर...उसे चोर के पकडे जाने की उम्मीद बन गयी। इस कारण वह कोलोनी वालों को इकट्ठा करके यहाँ चला आया। और कड़कदार आवाज़ में, रौब से बोला “कहाँ मर गया, कमबख़्त..? इस चोर को सात दिन से ढूंढ रहा हूँ, भाई घीसू लाल। अब बोल भाई, वह कहाँ है ?” इतना कहकर, थानेदार मुच्छड़ सिंह ने एक बार और लट्ठ बजा दिया। फिर बोले “पकड़ लिया, पकड़ लिया कब से चिल्ला रहा है, कमबख़्त...बोल, कहाँ है चोर ?”

मुच्छड़ सिंह की एक ही दहाड़ सुनकर रसोई में खड़ी, मकान मालकिन चुकी बाई घबरा गयी। फिर उसने, घूंघट निकालकर पास खड़े अपने पति धोकल सिंह के कान में फुसफुसाकर मारवाड़ी में बोली “हरामी रौ बेटो हरामी...कांई ध्यान राखो थे..? छोरो पकड़ीज़ग्यो तो आपांणी इत्ता सालां री कमायोड़ी इज्ज़त, धूड़ा में मिळ जावेला।” बेचारा धोकल सिंह अपनी लुगाई की बात सुनकर, घबरा गया। फ़िक्र के मारे उसकी ज़ब्हा पर, पसीने की बूंदे छलकने लगी। वह सोचने लगा कि, ‘कहीं उसका छोरा कमालिया पकड़ा गया तो, सारे कोलोनी वाले जान जायेंगे कि धोकल सिंह का बेटा मुच्छड़ सिंह की बेटी रुपली के साथ प्यार करने की ग़लती कर बैठा। नालायक को कितनी बार समझाया, मगर कमबख़्त मानता ही नहीं। आज़ भी रोज़ की तरह तबेले की दीवार पर चढ़कर, वह रुपली के साथ नैन-मटका कर रहा होगा ? इस बेवकूफ़ की लापरवाही के कारण भैंस खुली रह गयी, और वह घीसू सिंह के कमरे में चली आयी। और, आकर उनकी चादर मुंह से खींचने लगी थी। अब धोकल सिंह मुच्छड़ सिंह के पास आकर एक दफ़े चक्कर काट आया, और वापस आकर उसके लबों पर हाथ रखता हुआ धीरे से बोला “आज़ तो आ रांड इज्ज़त बचग्यी, चूकली। बात कमलिये की नहीं चल रही है, भागवान..बाबा भली करी।”

तभी चूकली की अक्ल काम करने लगी, उसे शंका थी कहीं यह थानेदार तबेले से होकर न गुज़र जाए..? अगर वह वहां चला गया, और उसने वहां कमलिये को दीवार पर बैठे रुपली के साथ नैन-मटका करता देख लिया तो फिर...बेचारे कमलिये की शामत आना, शत फीसदी तय है। मगर यहाँ तो घीसू लाल ने अपनी ग़लती मान ली, और उन्होंने कह दिया “वे नींद में डरकर, चिल्लाए थे।” फिर क्या ? मुच्छड़ सिंह अपनी मूंछे नीची करके, मुख्य दरवाज़े से बाहर निकल गया। और उधर धोकल सिंह, तबेले में कमलिये को डांट रही चूकली से कह रहा था “आज़ तो सांचाणी आ इज्ज़त बचग्यी, चूकली।”

कहते हैं ‘राजा कर्ण की बेला यम राज दिखाई दे जाय, तो फ़र्क नहीं पड़ता। मगर, सुबह-सुबह पुलिस का मुंह दिखाई दे जाय, तो सात जन्म के पाप सर उठा लेते हैं।’ सुबह-सुबह, इस मुच्छड़ सिंह का मुंह क्या देखा..? उनका सारा मूड ऑफ़ हो गया, और अब उनके सामने यह बकवादी भंवर लाल बालवंशी को दफ़्तर में पाकर उस पर वे फट पड़े “मंदिर में दुआ-सलाम हो गया ना, हेडमास्टर साहब ? अब काहे आप हमारे सर पर, चढ़े जा रहे हैं ?”

“हुज़ूर, ब्राह्मण देवता के सर पर चढूं..? राम राम, ऐसी बात कैसे कह दी आपने ? यह बात, दिल में लाने से ही पाप लगता है।” भंवर लाल बालवंशी बोल उठे।

“बिराजिये, अब कुर्सी पकड़ो।” इतना कहकर, बेमन से घीसू लाल ने कुर्सी आगे खिसकाते हुए कहा। बेरुख़ी से भंवर लाल को कुर्सी पर बैठाकर, घीसू लाल ने बाबू पदम सिंह तंवर को अपने पास बुलाया..फिर, कहा “कहो श्रीमानजी, हमने आपसे क्या कहा था..? दफ़्तर की हर शाखा से, आपको सूचनाओं के १२-१२ सेट तैयार करवाकर लेने हैं..बोलो, सभी प्रभारियों से सेट मांगे या नहीं ?”

“कहाँ से मांगकर लाऊं, हुज़ूर ? यह सदानंद तो, अंट भी नहीं खीच रहा है..? और ऊपर से इसने, दूसरे प्रभारियों को और भड़का दिया। अब सब कहते हैं, “जाओ पहले स्टेशनरी लाओ, और फिर सेट ले जाओ।” पदम सिंह बोला।

“ठीक है, फिर तुम अपनी अलमारी से निकालकर इनको दे दो स्टेशनरी..और क्या ? तुम्हारे ए.सी.आर. के काम में, इतनी स्टेशनरी की ख़पत होती नहीं।” यह कहकर, घीसू लाल ने नहला पर दहला मारा। मगर इस पदम ने कच्ची गोलियां खेली नहीं, झट तपाक से घीसू लाल को ज़वाब दे दिया “अब रिमें, कहाँ से बाहर निकालूँ ? आपने शिफ़ायत लगाकर, बाबू गरज़न को सभी काग़ज़ की रिमें दिलवा दी। अब क्या ख़ाक बचेगी मेरे पास, जो इनको बांटता फिरूं ?”

“तब जाओ, और लोगों से मांगो भीख। कह दो इनको दफ़्तर में भूख आयी है, अब आप हमें काग़ज़ की रिमें भीख में दे दो। पदम तूझे एक बात कह दूं, मुझे काम से मतलब है। तूझे किसी हालत में, इन बाबूओं से १२-१२ सेट तैयार करवाकर लाना है..मेरे पास।” क्रोधित होकर, घीसू लाल बोल पड़े। बेचारा पदम डांट खाकर, वहां से चला गया। अभी इस पदम ने ऐसी बात सुना दी घीसू लाल को, जिससे उनका मूड ऑफ़ हो गया। अब उन्होंने इस तनाव को दूर करने के लिए, जेब से मिराज़ ज़र्दे की पुड़िया बाहर निकाली। फिर उसमें से सुर्ती बाहर निकालकर होंठ के नीचे दबाई, और भंवर लाल बालवंशी से बोले “भाई बालवंशी हमारा कर्तव्य है, आप जैसे कर्तव्यनिष्ठ शिक्षकों के प्रजातांत्रिक मूल्यों की रक्षा करना। मगर, करें क्या ? जिस देश का आम अध्यापक अपने अधिकार भी नहीं जानता, और ना समझता है। अब आप ही बताएं कि, उसके प्रजातांत्रिक अधिकारों की रक्षा की बात कैसे पैदा करें ?”

“मैं समझा नहीं, हुज़ूर।” भंवर लाल बालवंशी ने कहा।

“देखो भय्या, ज़िला शिक्षा अधिकारी के आदेशों की पालना करने का अभिप्राय है कि आप जैसे अध्यापकों के अधिकारों की रक्षा। क्यों साहब, आख़िर ज़िला शिक्षा अधिकारी स्वयं शिक्षक यानी अध्यापक होता है या नहीं ?” घीसू लाल अपनी मूंछों पर, ताव देते हुए बोले।

“मगर आप तो हर वक़्त, बाबूओं के मौलिक अधिकारों के लिए सज़ग हैं ..?” भंवर लाल बालवंशी ने कहा।

“ अरे बालवंशी, आप तो भोले रह गए ? समझ नहीं रहे हैं..सुनों, ये बाबू लोग भी तो ज़िला शिक्षा अधिकारी के ही अंग है। यदि इनकी आवश्यकता पूरी नहीं हुई तो कमज़ोरी ज़िला शिक्षा अधिकारी की मानी जायेगी।” पास पड़े ख़ाकदान में, ज़र्दे की पीक थूकते हुए घीसू लाल बोले।

“प्रजातांत्रिक मूल्यों की रक्षा का मुद्दा छोड़िये। इसे आप अपने ढंग से करिए, मुझे तो आप यह समझाइये कि ‘और किन-किन मुद्दों पर, प्रशिक्षण देना है ?’ आपके बाबूओं को जानना भी ज़रूरी है, आख़िर शिक्षा मंत्री ट्रेनिंग देने हेतु मिटिंग क्यों ले रहे हैं..!” भंवर लाल बालवंशी ने कहा, अब इन्हें इस मुद्दे पर चर्चा करने में आनंद आने लगा। फिर उन्होंने चपरासी मोहम्मद शफ़ी को बुलाया, औरउसको चाय लाने का हुक्म दे डाला “जा रे, शफ़िया। भंवरिये की दुकान से चार चाय ले आ, और उसे कहना कि चाय के पैसे मेरे खाते में लिख दें।” फिर, घीसू लाल से वार्ता ज़ारी रखते हुए आगे कहा “हाँ हुज़ूर, बताइये अब...वे कौनसे तथ्य हैं ?”

“शिक्षक किस अधिकारी, प्रधानाध्यापक या फिर शिक्षक संघ वालों का रिश्तेदार है या उसका क़रीबी है...? इसके अनुसार, हमें उनको सम्मान देना हैं।” घीसू लाल बोले।

“यदि शिक्षक में, इनमें से कोई भी योग्यता नहीं हुई तो..?” भंवर लाल बालवंशी ने, सवाल उठाते हुए कहा।

“हमारे कार्यालय में जितने भी पेंडिंग मामले हैं, जिन्हें वक़्त पर नहीं निपटाया गया..उन सभी मामलों में, अध्यापकों को बुक करने का प्रक्षिक्षण दिया जाएगा।” घीसू लाल गंभीर होकर, बोले।

“बुक..बुक..? अरे साहब, मुझे यह बिल्कुल समझ में नहीं आ रहा है..बुक..बुक क्या मतलब ?” भंवर लाल बालवंशी ने, अपना संशय प्रकट किया। और इतना कहकर, जाने की उतावली करने लगे। अन्दर की बात यह थी कि, ‘बेचारे बालवंशी यहाँ आकर क्या बैठे ? इस मोहम्मद शफ़ी ने कई दफ़े इनको पानी पिला दिया, जिससे इनको लघु-शंका का अलील पैदा हो गया। मगर, घीसू लाल में रही बुरी एक आदत...हर बात को घिसते रहने की। आख़िर, इनका नाम भी तो घीसू लाल है। न घसते किसी बात को, तो जनाब घीसू लाल कैसे कहलाते..? बस अब वे, अपने नाम को चरितार्थ करने के लिए बेचारे बालवंशी को कुर्सी से उठने नहीं दिया..? जनाब कहने लगे “ठहरो भाईसाहब, आप यहीं बैठे रहिये। अभी समझाते हैं, आपको।” इतना कहकर, उन्होंने बाबू गरज़न सिंह को आवाज़ लगा दी “अरे भाई गरज़नजी, थोड़ा देखना तो..कबूतर ज़्यादा फुदक रहा है, इसके लिए कुछ इन्तज़ाम करो ना यार।” clip_image005

यह पेमा राम रोज़, एक तश्तरी अनाज के दानों की, और पानी से भरा मिट्टी का पात्र में पानी होल के गलियारे में रखा करता था। होल में रहने वाले कबूतर, यहां दाना चुगते थे। यहाँ पास में ही युरीनल भी था, जिसकी बदबू घीसूलाल और बाबू गरज़न सिंह की सीटों तक आया करती थी। इसलिए, इस युरीनल का दरवाज़ा हर वक़्त बन्द रखना पड़ता था। मगर, कई कुबदी बाबू युरीनल प्रयोग तो कर लेते, मगर जाते समय दरवाज़ा खुला छोड़ जाया करते थे। उनकी इस हरक़त से परेशान होकर घीसू लाल ने, गलियारे के दरवाज़े पर ताला जड़ दिया और उसकी चाबी अपनी सीट के पीछे दीवार पर लटका दी। अब सभी बाबूओं को घीसू लाल से चाबी लेकर, लघु-शंका निवारण के लिए जाना पड़ता था। जब घीसू लाल भंवर लाल बालवंशी से बात कर रहे थे, उस वक़्त पदम सिंह युरीनल जाकर आ गया! मगर, यूरीनल का दरवाज़ा खुला छोड़ गया। जिससे कबूतर दाना चुगना छोड़कर, होल में उड़कर आ गए। जिनमें एक कबूतर बड़ा शरारती निकला, उसने उड़ते हुए गरम-गरम बींट छोड़ दी। जो नीचे बैठे लेखाकार घसीटा राम के घुटे सर पर, आकर गिरी। गरम-गरम बींट की जलन, बेचारे घसीटा राम बर्दाश्त नहीं कर पाए। बेचारे तिलमिलाकर, बोल उठे “ओय पेमला, भगा इस कबूतर की औलाद को। राम..राम। आज़ दिन की शुरुआत, ख़राब रही। सुबह इस हर्राफ़ शफ़ी ने सुलगती बीड़ी मेरी टाट पर डाल दी, और अब यह नालायक कबूतर गरम बींट डाल गया। अब इन सभी कबूतरों को होल से बेदख़ल नहीं किया तो मेरा घसीटा..अरे नहीं शिव राम प्रजापत नहीं।” लेखाकार साहब का हुक्म पाकर, पेमा राम बेमन से उठा। पेमा राम का दिल नहीं मान रहा कि, इन कबूतरों को होल से हटाया जाय ? आख़िर मज़बूर होकर पेमा राम ने कोने में रखा लट्ठ उठाया, और उन कबूतरों को लट्ठ से भगाने लगा। अब बेचारे पेमा राम की हालत, बुरी हो गयी। कभी तो ये कबूतर संस्थापन शाखा की ओर उड़ जाते, तो कभी वापस लेखा शाखा में लौट आते..! इन कबूतरों को उड़ाता-उड़ाता वह बेचारा थक गया, मगर कबूतर इस होल को छोड़ने वाले कहाँ ? पेमा राम को कभी इधर तो कभी उधर दौड़ते देख, नारायण बाबू को हंसी आ गयी। वे रौब से अपनी बाँकड़ली मूंछों को उमेठते हुए गीत गाने लगे “बाँकड़ली मूंछा वालो आयो रे आंगन में..” फिर पेमा राम से बोल उठे “वाह रे, पेमा राम। तू तो कसाई निकला रे, मेरे बाप। शर्म नहीं आती, बेचारे मासूम कबूतरों को..!” सुनकर पेमा राम बाबू ने, बाबू नारायण सिंह को ज़हरीली नज़रों से देखा। और नारायण सिंह की ओर उड़ते कबूतरों को लट्ठ से भगाता हुआ, उसका ध्यान चूक गया..और रास्ते में पड़े तीन पाँव वाले स्टूल से टक्कर खाकर धड़ाम से ज़मीन पर गिरा, और हाथ में थामा हुआ लट्ठ छूटकर जा गिरा नारायण सिंह के सर पर। चोट खाकर नारायण सिंह को, दिन में आसमान के तारे दिखाई देने लगे। झट राठौड़ी मूंछो से हाथ हट गया, और वे दोनों हाथ से सर दबाने लगे। ऐसे रण बाँकुरे जंगजू का यह बुरा हाल देखकर, आस-पास बैठे बाबू और अध्यापक ठहाका लगाकर हंसने लगे।

मोम्मद शफ़ी चाय से भरे कप घीसू लाल, बाबू गरज़न सिंह, भंवर लाल बालवंशी और पुष्कर नारायण को थमाकर, बीड़ी पीने सीढियों की तरफ़ चला गया। चाय की चुस्कियां लेते हुए बाबू गरज़न सिंह, घीसू लाल से बोले “साहब, इंतज़ाम हो गया है, फुदकते कबूतर का। मगर पहले चाय का लुत्फ़ उठा लेते हैं, फिर हलाल करेंगे..इस कबूतर को।”

घीसू लाल और बाबू गरज़न सिंह ने चाय के प्याले उठाये, और चुस्कियां लेते हुए चाय पीने लगे। होल के बाहर जीने के पास खड़ा मोहम्मद शफ़ी ने अपनी जेब में हाथ डाला, मगर हाथ वापस ख़ाली आ गया। अब उसे मालुम हुआ कि, उसकी बीड़ियों का बण्डल गायब हो चुका है..? तभी नारायण सिंह होल के दरवाज़े के पास आकर, मोहम्मद शफ़ी से बोले “शफ़िया, तू तो बड़ा कामचोर निकला रे। तूझे मैं कब से बुला रहा हूँ, लिफ़ाफ़ा पर गोंद लगाने..मगर, तू यहाँ खड़ा क्या कर रहा है मर्दूद ? चल आ अन्दर, और चेप..इन लिफ़ाफ़ों को।

यह शाफ़िया तो बड़ा शातिर ठहरा, बड़ी मुश्किल से नारायण सिंह के हाथ आया। टेबल पर रखे डाक के लिफ़ाफ़े गोंद से चेपने का काम, इस शफ़िया को देकर उन्होंने तसल्ली से अपनी जेब से बीड़ी का बण्डल निकाला। फिर उस बण्डल को, टेबल पर रखा। उस बण्डल पर मोहम्मद शफ़ी की नज़र पड़ते ही, वह बेचारा सहम गया। वह जान गया कि, यह बण्डल तो उसका है। मगर यह बण्डल उड़कर कैसे चला गया, बाबू नारायण सिंह की जेब में ? दिल में संदेह उठा, कहीं नारायण बाबू जादू-टोने में माहिर तो नहीं है ? साल-भर पहले बेचारे मोहम्मद शफ़ी ने, जोधपुर की खानों से पत्थर की शिलाएं लाने के का का धंधा अपने बेटे मोहम्मद रफ़ी से चालू करवाया। धंधे बाबत, उसने अपने नेक दख्तर मोहम्मद रफ़ी को ट्रक ख़रीदकर दी। क़िस्मत की बात है, अभी कुछ रोज़ पहले उसके ट्रक में एक नीम्बू मिला। जिसके चारों ओर, आल पिनें चुभी हुई नज़र आयी। तब से मोहम्मद शफ़ी, इन मैली क्रिया से घबराने लगा।

जैसे ही बाबू गरज़न सिंह ने चाय का अंतिम घूँट लेकर ख़ाली कप टेबल पर रखा, और बाबू पदम सिंह आकर उनके पास रखी ख़ाली कुर्सी पर बैठ गया। और बोला “अरे जनाब, यह क्या ? हमें, भूल गए ? अकेले-अकेले चाय पी गए..? अब आप अभी-अभी हमारे लिए चाय मंगाए, हम भी चाय पियेंगे...चाय पीकर ही, यहाँ से....” बाबू गरज़न सिंह पेड से सलेक्शन ग्रेड की चक्रांकित फ़ेहरिस्त और उसके इज़रा की कोपी बाहर निकालकर पदम सिंह को दे दी, और उसकी बात कटते हुए कहा “पदम तेरी चाय गयी भाड़ में, और साथ में तू भी जा..तेल लगाने, कमबख़्त १२-१२ सेट तैयार करने में आती है तूझे मौत..? और कमबख़्त आ गया यहाँ, मुफ़्त की चाय पीने..? अब जा, ज़रा हेड साहब को ये कोपियाँ देकर आ जा।” इतना कहकर, बाबू गरज़न सिंह ने सलेक्शन ग्रेड की फ़ेहरिस्त और इज़रा की कोपियाँ पदम सिंह के साथ घीसू लाल के पास भेज दी। चाय का प्याला टेबल पर रखकर, घीसू लाल उस सूची को देखने लगे। फिर चहरे पर, बनावटी फिक्रमंद दिखाई देने का भाव लाये। फिर कुछ सीरियस दिखने का अभिनय करते हुए, उन्होंने पास बैठे भंवर लाल बालवंशी से कहा “वैरी सोरी, मास्टर साहब। आप रह गए...आपने अंतिम तारीख़ तक, सलेक्शन ग्रेड का आवेदन नहीं भेजा..जनाब।”

फ़ेहरिस्त देखकर भंवर लाल बालवंशी के हाथ के तोते उड़ गए, अब उन्हें फ़िक्र होने लगी कि, ‘अब वे महाजन से उधार लिए रुपये, कैसे चुकायेंगे ?” अब उनके मानस में, उस महाजन के बोले गए कड़वे शब्द गूंज़ने लगे “मास्टर साहब, एक तारीख़ तक क़र्ज़ का चुकारा कर देना। नहीं किया तो, आपकी यह साइकल हमारी दुकान की पेढ़ी पर गिरवी रख दी जायेगी।” अगर ऐसा हो गया तो, वे घर से स्कूल तक पैदल कैसे जायेंगे ? मिल-गेट से मेला दरवाज़ा तक पैदल आना, कोई खेल नहीं..उनके लिए। इतने दिन-तक उन्होंने बजरंग बाग़ जाकर, बालाजी को मत्था बाद में टिकाया और पहले वहां हाज़िर घीसू लाल को नमस्कार पहले किया..? यह उनकी सारी मेहनत, बेकार सिद्ध हुई। अब वे रामसा पीर को याद करने लगे कि, “ओ रामसा पीर, यह क्या कर डाला ? आपको घणी-घणी खम्मा। किसी तरह आप मेरा सलेक्शन ग्रेड वाला काम करवा दीजिये, मालिक। अगर काम हो गया तो, मैं आपको सवा रुपये के पतासे चढ़ाऊँगा।” अपने दिल में यह मनौति रखकर, वे घीसू लाल से बहुत ज़राफ़त से बोले “साहब, किसी तरह आप ऐसी जुगत लड़ाइये कि, आने वाली एक तारीख़ तक मुझे चयनित वेतनमान के एरियर की राशि भुगतान हो जाए।”

“बात यह है, भय्या। अभी हम सभी लोग, व्यस्त हैं। आपको ध्यान ही है, सभी शाखा-प्रभारियों को सूचनाओं के १२-१२ सेट तैयार करने है। फिर आप सोचिये, आपका काम कौन करेगा ? अगर आप स्वयं अपनी स्कूल के २-४ अध्यापक साथियों के साथ यहाँ बैठकर हमारे काम में सहयोग कर दें, तो शायद आपके काम होने की संभावना बन सकती है।” भंवर लाल बालावंसी पर अहसान जताते हुए, घीसू लाल ने सहज़ता से अपना प्रस्ताव रख दिया। डूबते को तिनखा का सहारा..झट चपरासी को भेजकर अपनी स्कूल से पांच अध्यापक बुला डाले। जिसमें एक अध्यापक को तो, बहुत अच्छा टंकण करने का तुजुर्बा था। मगर, घीसू लाल ने आगे और अपनी फ़रमाइश बढ़ा दी। कहने लगे “फ़ेहरिस्त में आपका नाम लाने के लिए, हमें पूर्व में चक्रांकित की गयी फ़ेहरिस्त रद्द करनी होगी। वापस नयी फ़ेहरिस्त बनाने के लिए, हमें कई काग़ज़ की रिमों की ज़रूरत पड़ेगी। आप क़िस्मत वाले ठहरे, हमने उस फ़ेहरिस्त को कहीं भेजी नहीं है... अभी-तक।” फिर घीसू लाल ने बाबू गरज़न सिंह को देखते हुए, उनसे कहा “ज़रा आप मास्टर साहब को बता दीजिये कि, नयी सूचि तैयार करने के लिए कितनी काग़ज़ की रिमें और कितने स्टेंसिल आपको चाहिए ? और..” उतावले भंवर लाल बालवंशी उनकी बात काटते हुए, बोल उठे “साहब, आपको दफ़्तर में जितनी भी सामग्री चाहिए आप पर्ची पर लिख दीजिये, मैं अभी अपने स्कूल के खाते से सागर बुक डिपो से मंगवा दूंगा।”

फिर भंवर लाल बालवंशी ने घीसू लाल से एक काग़ज़ का टुकड़ा लेकर, उस पर अपने हस्ताक्षर करके घीसू लाल को वापस थमा दिया। इसके बाद उसने रमेश को आवाज़ देकर उसे अपने पास बुलाया, और उससे कहा “साहब जो भी स्टेशनरी सामग्री लाने का कहे, तू जाकर सागर बुक डिपो से लाकर इनको दे देना। पर्ची पर, मैंने अपने दस्तख़त कर दिए हैं।”

फिर क्या ? घीसू लाल ने आभार प्रकट करके, उस पर्ची को अपने कब्जे में ली और बोले “भाई बालवंशी, तुम यह स्टेशनरी सामग्री अपनी इच्छा से दे रहे हो, अपना दिल न जलाना। न कहीं जाकर इसकी शिकायत करना, अगर ऐसी बात है तो तुम अभी अपनी पर्ची वापस ले सकते हो।”

स्टेशनरी आने की संभावना बनती देखकर, बाबू ओम प्रकाश के चेहरे पर ख़ुशी छा गयी, और बाबू पदम सिंह को अपने पास बुलाकर चहकता हुआ कहने लगा “देखा, पदम सिंह..? माँगने से कुछ नहीं मिलता, प्यारे। चीज़ हासिल करने के लिए जुगत लड़ानी पड़ती है, और अपना काम निकालना पड़ता है। बस, यही प्रशिक्षण है बाबूओं के लिए।

उधर पेमा राम ने लट्ठ से इन कबूतरों को खदेड़कर गलियारे में पहुंचा दिया, वहां तश्तरी में रखे अनाज के दानों को देखकर सभी कबूतर उन दानों को चुगने के लिए उन पर एक साथ टूट पड़े। भूखे कबूतरों को खाने के लिए बहुत कुछ मिल गया, अब वे शाति से दाना चुगने लगे और पेमा राम के कटु व्यवहार को भूल गए। उनको दाना चुगने में व्यस्त पाकर, पेमा राम ने झट गलियारे का दरवाज़ा जड़ दिया। अब बाबू गरज़ सिंह ने सम्बंधित फाइलें भंवर लाल बालवंशी को थमाकर, समझा दिया कि ‘सूचनाओं के १२-१२ सेट कैसे तैयार करने हैं ? भंवर लाल बालवंशी और उनके साथी एक टेबल के चारों ओर कुर्सियां लगाकर बैठ गए, और सूचना के १२-१२ सेट तैयार करने कि प्रक्रिया शुरू कर दी। अब भंवर लाल बालवंशी को संतोष हो गया, और सलेक्शन ग्रेड से मिलने वाली राशि की कल्पना करने लगे। मिलने वाली राशि की कल्पना ने, उनके सारे ग़म को भूला दिये। अब उन्हें कहाँ याद, घीसू लाल का रुखा व्यवहार और महाज़न की दी गयी चेतावनी...?

उनको काम में व्यस्त देखकर, बाबू गरज़ सिंह ने दफ़्तर के सभी बाबूओं को इकट्ठा किया। फिर, उन्हें बड़े साहब के कमरे में ले गए। बड़े साहब चले गए थे, अपने घर। वहां बड़े साहब के न होने पर, सभी बाबू वहां बैठ गए। और न मालुम, किस मुद्दे पर वार्ता करने लगे ? दीवार घड़ी का टंकोर, टन-टन की आवाज़ करने लगा। और अब दीवार-घड़ी, शाम के पांच बजने का वक़्त बताने लगी। फिर क्या ? झट घीसू लाल सीट से उठे, टेबल पर बिखरी फाइलों को उठाकर उन्होंने अलमारी में रख दी। फिर अलमारी को बंद करके ताला जड़ दिया, और कुर्सी पर रखे ख़ाकी कोट को उठाकर पहन लिया। बाद में, वे होल के दरवाज़े की ओर बढ़े। कुछ ही देर में, वे हवाई-बिल्डिंग की सीढ़ियां उतरने लगे। सीढ़ियां उतरकर वे नीचे आये, और बाहर दीवार के सहारे रखी साइकल उठाकर उस पर सवार हुए ...और, बजरंग बाग़ की तरफ़ साइकल बढ़ा दी। क्योंकि वहां जाकर उनको बाला जी के आगे मत्था टेककर, कार्यालय का हिसाब-क़िताब ठीक करना था। इस तरह कार्यालय में दफ़्तरे निग़ारो और अध्यापकों को कटु शब्द बोलने का पाप, और बालाजी के आगे मत्था टेकने का पुन्य बराबर करने लगे। अब सभी चपरासी झाड़ू उठाकर, दफ़्तर के होल की सफ़ाई करने लगे।

इधर अब, भंवर लाल बालवंशी सर पर हाथ रखे सोचने लगे कि “सही अर्थो में, घीसू लालजी ने प्रायोगिक रूप देकर उनको समझा दिया कि प्रशिक्षण क्या है ?

(क्रमशः अगले अंकों में जारी...)

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रचनाकार: संस्मरणात्मक शैली पर लिखी गयी पुस्तक “डोलर हिंडा” का अंक ५ “प्रशिक्षण” लेखक दिनेश चन्द्र पुरोहित
संस्मरणात्मक शैली पर लिखी गयी पुस्तक “डोलर हिंडा” का अंक ५ “प्रशिक्षण” लेखक दिनेश चन्द्र पुरोहित
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