लोक कथा - 1 - मछली बोल नहीं सकती - नौर्स देशों की लोक कथाएँ-2// सुषमा गुप्ता

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देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–नौर्स देश–2 : नौर्स देशों की लोक कथाएँ–2 संकलनकर्ता सुषमा गुप्ता Cover Title : Norse Deshon Ki Lok Kathayen-2...

देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–नौर्स देश–2 :

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नौर्स देशों की लोक कथाएँ–2

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संकलनकर्ता

सुषमा गुप्ता

Cover Title : Norse Deshon Ki Lok Kathayen-2 (Folktales of Norse Countries-2)

Cover Page picture: Royal Palace, Gamia Stan, Sweden, Europe

Published Under the Auspices of Akhil Bhartiya Sahityalok

E-Mail: sushmajee@yahoo.com

Website: http://sushmajee.com/folktales/index-folktales.htm

Read More such stories at: www.scribd.com/sushma_gupta_1

Copyrighted by Sushma Gupta 2018

No portion of this book may be reproduced or stored in a retrieval system or transmitted in any form, by any means, mechanical, electronic, photocopying, recording, or otherwise, without written permission from the author.

Map of Norse Countries

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Norse, or Nordic, or Scandinavian countries include 5 countries –

Iceland, Norway, Sweden, Finland and Denmark

विंडसर, कैनेडा

मार्च 2018

Contents

सीरीज़ की भूमिका

नौर्स देशों की लोक कथाएँ

1 मछली क्यों नहीं बोल सकती

2 चुहिया राजकुमारी

3 केटी वुडिनक्लोक

4 भालू ने अपनी पूंछ कैसे खोयी

5 एक लड़का और उत्तरी हवा

6 काली कठफोड़वा

7 गरट्रूड चिड़िया

8 बागीचे में बकरियाँ

9 तीन बिल्ली बकरे ग्रफ़

10 बारह जंगली बतखें

11 दो सौतेली बहिनें

सीरीज़ की भूमिका

लोक कथाएँ किसी भी समाज की संस्कृति का एक अटूट हिस्सा होती हैं। ये संसार को उस समाज के बारे में बताती हैं जिसकी वे लोक कथाएँ हैं। आज से बहुत साल पहले, करीब 100 साल पहले, ये लोक कथाएँ केवल ज़बानी ही कही जातीं थीं और कह सुन कर ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को दी जाती थीं इसलिये किसी भी लोक कथा का मूल रूप क्या रहा होगा यह कहना मुश्किल है।

आज हम ऐसी ही कुछ अंग्रेजी और कुछ दूसरी भाषा बोलने वाले देशों की लोक कथाएँ अपने हिन्दी भाषा बोलने वाले समाज तक पहुँचाने का प्रयास कर रहे हैं। इनमें से बहुत सारी लोक कथाएँ हमने अंग्रेजी की किताबों से, कुछ विश्वविद्यालयों में दी गयी थीसेज़ से, और कुछ पत्र्किाओं से ली हैं और कुछ लोगों से सुन कर भी लिखी हैं। अब तक 1200 से अधिक लोक कथाएँ हिन्दी में लिखी जा चुकी हैं। इनमें से 400 से भी अधिक लोक कथाएँ तो केवल अफ्रीका के देशों की ही हैं।

इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि ये सब लोक कथाएँ हर वह आदमी पढ़ सके जो थोड़ी सी भी हिन्दी पढ़ना जानता हो और उसे समझता हो। ये कथाएँ यहाँ तो सरल भाषा में लिखी गयी है पर इनको हिन्दी में लिखने में कई समस्याएँ आयी है जिनमें से दो समस्याएँ मुख्य हैं।

एक तो यह कि करीब करीब 95 प्रतिशत विदेशी नामों को हिन्दी में लिखना बहुत मुश्किल है, चाहे वे आदमियों के हों या फिर जगहों के। दूसरे उनका उच्चारण भी बहुत ही अलग तरीके का होता है। कोई कुछ बोलता है तो कोई कुछ। इसको साफ करने के लिये इस सीरीज़ की सब किताबों में फुटनोट्स में उनको अंग्रेजी में लिख दिया गया हैं ताकि कोई भी उनको अंग्रेजी के शब्दों की सहायता से कहीं भी खोज सके। इसके अलावा और भी बहुत सारे शब्द जो हमारे भारत के लोगों के लिये नये हैं उनको भी फुटनोट्स और चित्रें द्वारा समझाया गया है।

ये सब कथाएँ “देश विदेश की लोक कथाएँ” नाम की सीरीज के अन्तर्गत छापी जा रही हैं। ये लोक कथाएँ आप सबका मनोरंजन तो करेंगी ही साथ में दूसरे देशों की संस्कृति के बारे में भी जानकारी देंगी। आशा है कि हिन्दी साहित्य जगत में इनका भव्य स्वागत होगा।

सुषमा गुप्ता

मई 2018


नौर्स देशों की लोक कथाएँ–2

संसार में सात महाद्वीप हैं – एशिया, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, अन्टार्कटिका, यूरोप और आस्ट्रेलिया – सबसे पहले सबसे बड़ा और सबसे बाद में सबसे छोटा। साइज़ में यूरोप आस्ट्रेलिया से पहले आता है। यूरोप की बहुत सारी लोक कथाएँ अंग्रेजी भाषा में भी मिल जाती हैं।

इस महाद्वीप का अपना लिखा साहित्य और इसके बारे में लिखा साहित्य और दूसरे महाद्वीपों की तुलना में काफी मिलता है और इसी वजह से हमने इस महाद्वीप की केवल कुछ लोक कथाएँ ही हिन्दी भाषा में प्रस्तुत करने का विचार किया है क्योंकि इनके बिना दुनिया का लोक कथा साहित्य अधूरा लगता है। इस महाद्वीप में कुल मिला कर 50 से ज्यादा देश है पर इतने सारे देशों में से केवल कुछ ही देशों की ही लोक कथाएँ ज़्यादा मिलती हैं जैसे ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, इटली आदि। इसलिये इन देशों की लोक कथाएँ इन देशों के नाम से ही दी गयीं हैं।

इस महाद्वीप के सुदूर उत्तर में स्थित पाँच देशों को स्कैन्डेनैवियन या नौर्स या नौरडिक देशों[1] के नाम से पुकारा जाता है। इन पाँच देशों के नाम हैं – आइसलैंड, डेनमार्क, फ़िनलैंड, नौर्वे और स्वीडन। इन देशों की संस्कृति यूरोप के दूसरे देशों की संस्कृति से बिल्कुल अलग है।

इस पुस्तक में हम इन्हीं पाँच देशों की लोक कथाएँ दे रहे हैं। क्योंकि इन देशों की लोक कथाएँ भी काफी हैं इसलिये इन देशों की लोक कथाओं को हम दो संग्रहों में प्रकाशित कर रहे हैं। इसका पहला संग्रह “नौर्स देशों की लोक कथाएँ–1” प्रकाशित हो चुका है। उसमें हमने केवल डेनमार्क देश की लोक कथाएँ प्रकाशित की थीं। नौर्स देशों की लोक कथाओं का यह दूसरा संग्रह अब प्रस्तुत है “नौर्स देशों की लोक कथाएँ–2”। इसमें फिनलैंड और नौर्वे देश की लोक कथाएँ हैं। अन्त में इस संग्रह में कुछ लोक कथाएँ ऐसी दी गयी हैं जिनके देशों के नाम का पता नहीं हैं।

यहाँ के देशों की लोक कथाओं में “उत्तरी हवा” भी एक मुख्य चरित्र् है। इन देशों में इसकी कई कथाएँ प्रचलित हैं।

आशा है यह लोक कथा संग्रह भी तुम लोगों को इसके पहले भाग की तरह से पसन्द आयेगा और इस लोक कथा संग्रह का भी हिन्दी साहित्य जगत में भव्य स्वागत होगा।

संसार के सात महाद्वीप

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1 मछली क्यों नहीं बोल सकती[2]

यह लोक कथा यूरोप के नौर्स देशों के पाँच देशों में से फ़िनलैंड देश की लोक कथाओं से ली गयी है।

इस समय हम तुमको उस समय की तरफ चलते हैं जब दुनिया बनी ही बनी थी। पहाड़ बढ़ रहे थे, नदियों ने बहना शुरू ही किया था और मैदान ओस से ढके हुए थे।

एक दिन दुनिया बनाने वाले ने उन सबको बुलाया जो सुन सकते थे और उन सबसे कहा — “सुनो जो अब मैं तुमसे कहता हूँ। मैं तुम लोगों को तुम्हारी पसन्द की आवाज देना चाहता हूँ,। ताकि जब तुम लोग काम कर रहे हो और इधर उधर घूम रहे हो तो तुम लोग आपस में बोल सको, बात कर सको। ”

सब पहाड़ दुनिया बनाने वाले के सबसे पास थे जहाँ वह आसमान में रहता था। सो जब दुनिया बनाने वाला धरती पर आया तो पहाड़ों की चोटियों के साथ साथ बहुत ज़ोर की आवाज करता आया।

पहाड़ों को वह आवाज बहुत अच्छी लगी और उन्होंने उन्हीं बादलों की सी गरज की आवाज में बोलना निश्चय कर लिया। इसी लिये आज पहाड़ जब हिलते हैं और धरती काँपती है तो हम उसी गरज की आवाज सुनते हैं।

हवा भी बहुत ज़ोर से बोलना चाहती थी पर वह ज़ोर से बोलना तो पहाड़ों ने ले लिया था तो हवा ने जब दुनिया बनाने वाले की सीटी की और झुनझुने की आवाजें सुनी तो हवा ने वे आवाजें नकल कर लीं।

clip_image010नदी को दुनिया बनाने वाले की उँगलियों की हार्प[3] पर संगीत बजाने की आवाज सुनायी पड़ी तो उसने वह संगीतमयी आवाज अपने बुलबुले उठने की आवाज में नकल करके मिला ली।

पेड़ों को दुनिया बनाने वाले की पोशाक की बाँहों के हिलने की सरसराहट की आवाज अच्छी लगी तो उन्होंने उसकी वह आवाज ले ली। चिड़ियों ने दुनिया बनाने वाले की बाँसुरी और गाने की आवाज सुनी तो उन्होंने उसकी वह आवाजें ले ली।

कुछ चिड़ियें जो गाने में अच्छी नहीं थीं उनसे जितना अच्छा हो सकता था वे चीखने, या काँव काँव करने, या फिर हू हू करने लगीं।

जो जीव जमीन पर रहते थे उन्होंने दूसरे किस्म की आवाजें बनानी सीख लीं – कोई भौंकता था तो कोई म्याऊँ बोलता था। कोई फुसफुसाता था तो कोई गुर्राता था। कोई बा बोलता था तो कोई कुहुकता था। कोई चिल्लाता था तो कोई गुनगुनाता था। मतलब यह कि सबने अपनी अपनी पसन्द की आवाजें बना लीं।

इन सबमें आदमी सबसे ज़्यादा होशियार निकला। वह इन सारी आवाजों को मिला कर बोल सकता था। वह न केवल जानवरों की आवाजों की नकल भी कर सकता था बल्कि वह अपनी अलग से भी आवाज बना सकता था।

आदमी ने इसे बात करने का नाम दिया। वह सोचता था कि केवल वह ही बात कर सकता है पर वह यह भूल गया कि जानवर उसकी तरह से तो बात नहीं कर सकते थे पर उनका बात करने का अपना तरीका है।

दुनिया बनाने वाला सबको आवाज दे कर बहुत खुश था। पर समुद्र के जीव आवाज नहीं पा सके। क्योंकि सारी किस्म की मछलियाँ पानी के अन्दर थीं इसलिये उनको यही पता नहीं चला कि उनके ऊपर धरती और आसमान में क्या हो रहा है।

उन्होंने पहाड़ों को गिरते हुए देखा और उनके हिलने को महसूस किया। उन्होंने हवा को तेज भागते हुए देखा पर वे उसकी सीटी की और झुनझुने की आवाज नहीं सुन पायीं।

उन्होंने चिड़ियों को और दूसरे जानवरों को अपना मुँह खोलते और बन्द करते हुए तो देखा तो पर उनकी चहचहाहट और गाना और वे आपस में क्या कह सुन रहे हैं यह नहीं सुन पायीं।

वे अपना सिर पानी के ऊपर निकाल कर सुन सकतीं थीं और यह जान सकतीं थीं कि बाहर क्या हो रहा हैं पर वे सब डरी हुईं थीं इसलिये वे पानी के अन्दर ही रहीं और बस अपने मुँह को खोलती और बन्द करती रहीं पर बोलना नहीं सीख सकीं।

कुछ लोग इस कहानी को यहीं खत्म कर देते हैं और कहते हैं कि “इसी वजह से मछली बात नहीं कर सकती। ” पर अगर तुम देखो तो कई बार उड़ती हुई मछलियाँ हवा में उछलती हैं और नाव में बैठे लोगों की बातें सुनने की कोशिश जरूर करती हैं।

पर वे खुद कोई बात नहीं कर सकतीं।

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[1] The Scandinavian or Nordic or Norse countries are a geographical and cultural region of five countries – Denmmark, Finland, Iceland, Norway and Sweden in the far Northern Europe and North Atlantic. Politically they do not form a separate entity.

[2] Why Fish Cannot Talk? - a folktale from Finland, Europe. Adapted from the Web Site :

http://www.mikelockett.com/stories.php?action=view&id=122

Collected and retold by Mike Lockett

[3] Harp is a western string music instrument. See its picture above.

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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से सैकड़ों लोककथाओं के पठन-पाठन का आनंद आप यहाँ रचनाकार के  लोककथा खंड में जाकर उठा सकते हैं.

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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया 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रचनाकार: लोक कथा - 1 - मछली बोल नहीं सकती - नौर्स देशों की लोक कथाएँ-2// सुषमा गुप्ता
लोक कथा - 1 - मछली बोल नहीं सकती - नौर्स देशों की लोक कथाएँ-2// सुषमा गुप्ता
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