गज़ल - एक लोगों ने दिल तोड़ के देखा होगा नज़रें अपनी मोड़ के देखा होगा।। मुहतरम शायद कभी नाराज थे ज़िद पुरानी छोड़ के देखा होगा।। रात गुजर...
गज़ल - एक
लोगों ने दिल तोड़ के देखा होगा
नज़रें अपनी मोड़ के देखा होगा।।
मुहतरम शायद कभी नाराज थे
ज़िद पुरानी छोड़ के देखा होगा।।
रात गुजरी करवटें लेते हुए
कुछ अंधेरा ओढ़ के देखा होगा।।
जिंदगी वीरान क्यूँ कैसे हुई
हर कडी को जोड़ के देखा होगा।।
काफ़िला गुजरा उधर खुशियों भरा
भीड में फिर ढूंढ के देखा होगा।।
जब हुई आहट गली में दूर से
छत से हमको दौड़ के देखा होगा।।
सामने आए बढी तब धड़कनें
सांसे अपनी रोक के देखा होगा।।
गज़ल - दो
आज रोने को जी चाहता है
गम पिरोने को जी चाहता है।।
अपनी हाथों से यूँ रेत फिसली
अब न खोने को जी चाहता है।।
बेवफा तुम सही, है न परवां
प्यार पाने को जी चाहता है।।
इश्क अपना रहे यूँ सलामत
गम में जीने को जी चाहता है।।
हम जिए बिन तेरे है न आसां
साथ होने को जी चाहता है।।
न मिले गम तुम्हें चाहूं हरदम
दर्द ढोने को जी चाहता है।।
जो हुआ है गलत माफ करना
पाप धोने को जी चाहता है।।
गजल - तीन
खुशी अपनी लुटाना चाहिए
गमों को खुद छिपाना चाहिए।।
अगर हो झूठ अपने सामने
हकीकत सच बताना चाहिए।।
जरूरत तो तभी काबिज रहे
नहीं हिम्मत जुटाना चाहिए।।
नहीं कुछ फायदा है रौब का
वजन उसका घटाना चाहिए।।
नियम कानून हैं अपनी जगह
सियासत आजमाना चाहिए।।
अगर हो प्यार उल्फत पे यकीं
नजर तब ही मिलाना चाहिए।।
गलतफहमी नहीं कुछ काम की
गिले शिकवे मिटाना चाहिए।।
मिले माहौल तो हंसिए। वही
मजा भरसक उठाना चाहिए।।
नज़र अंदाज करना सीख लो
हमेशा मुस्कुराना चाहिए।।
गजल - चार
कोई कहानी बना रहा था ।।
कोई जवानी लुटा रहा था।।
किया किसी ने अगर है जादू
खुदी को मूरख बना रहा था।।
लिखी कभी थी उन्हीं के खातिर
वहीं गजल गुनगुना रहा था।।
बहुत उतारा चढा जो कर्जा
नगद उधारी भुना रहा था।।
सभी गलत थी हमारी बाते
हुजूर कमियां गिना रहा था।।
हमें गरज है बहुत तुम्हारी
न पूछो क्यों गिड़गिडा रहा था।।
कई फसाने बने फसादी
नयी दीवारें चुना रहा था।।
बहारें लायी नये नज़ारे
शमा वो खुद ही जला रहा था।।
गज़ल - पांच
उनके दिल में मुहब्बत नहीं
हम पे करते मुरब्बत नहीं ।।
साफ दिखती मुझे बेरुखी
इसको कहते हैं इज्जत नहीं ।।
बेदिली से हुए है ख़फा
उनके दिल में वो शिद्दत नहीं ।।
तुम रहो खुश यही आरजू
प्यार की कोई मुद्दत नहीं ।।
मेरी मुश्किल न समझे कभी
तुम हंसो हमको दिक्कत नहीं ।।
ये शिकायत नहीं सच कहें
अब चुभाओ तो नश्तर नहीं ।।
गज़ल - छह
खोल खिड़की चांद का दीदार कर
तू किसी एक से तो आंखें चार कर।।
प्यार करने की कोई सीमा नहीं
गैर से पहले खुदी से प्यार कर ।।
अपने हिस्से में बहुत से काम हैं
जिन्दगी अपनी न यूँ बेकार कर।।
प्यार अपनो या परायों से करे
उस मुहब्बत का कभी इजहार कर।।
अपनी जिद को छोडिए फिर देखिए
दूसरे की बात पे इकरार कर ।।
रिश्ते नाते जैसे चलते चलने दो
खाईयों की मत खडी दीवार कर।।
आज से कल बेहतर होगा जरूर
अपने को कल के लिए तैयार कर।।
अपनी उम्मीदों को खोना तुम नहीं
अपने इरादों में थोड़ी धार कर।।
ये समय अब लौट आएगा नहीं
वक्त रहते वक्त पे अधिकार कर।।
गज़ल - सात
तीखी बातें हजम कैसे करते
सुनके आखिर वहम कैसे करते।।
करते रहते थे गलती पे गलती
माफ वापस उन्हें कैसे करते।।
राज जब जब छिपाए उन्होंने
दिल बडा औ नरम कैसे करते।।
हो गया साफ मुद्दा सीसे सा
आईने पे भरम कैसे करते।।
पाप औ पुण्य बिन माईने के
भारी - भरकम करम कैसे करते।।
कौन परवाह करता है किसकी
लोग खुद से शरम कैसे करते।।
आदमी है वफादार लेकिन
सब बेचारे धरम कैसे करते।।
गज़ल - आठ
उसूल समाये ठंडे बस्ते में
ज़मीर यहाँ बिके हैं सस्ते में।।
नहीं है फिक्र दिलकश हो फ़िजा
सजाये फूल फर्जी, गुलदस्ते में।।
हंसी है खोखली किस काम वह
समाए झूठ सारे बालिश्ते में।।
नहीं मंजूर हैं गुस्ताखियाँ
दरारें पड गयी हैं रिश्ते में।।
जहर को हम कैसे अमृत कहे
ख़ुदा होता जुदा एक नुक्ते में।।
किसी को हर्ज क्या,परवाह क्या
बिके चाहे कोई भी कित्ते में।।
समझ कर बन रहा अंजान वह
खडा है आदमी चौरस्ते में।।
गज़ल - नौ
हम परेशान हैं उनके गम देख कर
इश्क उनसे किया दिल नरम देख कर।।
थी शिकायत मगर फिर भी बोले नहीं
मुस्काराए हमे क्यूँ सनम देख कर ।।
मैं भी हैरत में हूँ जब सुनी सिसकियां
रोए उस रात मेरा भरम देख कर ।।
हैं नहीं वो सितमगर ये दिल कह रहा
क्यूँ न समझा उन्हें आंखे नम देख कर।।
उनके ज़ज्बों से वाकिफ नहीं कोई भी
दिल तो रोया बहुत ये बहम देख कर ।।
गज़ल - दस
दुनिया का किस्सा छोड़ चलो
उलफ्त से रिश्ता जोड़ चलो।
पद ऊंचा हो या नीचा हो
फोकट का रुत्बा छोड़ चलो।
कुछ हल्की फुल्की बातों से
लोगों को हंसता छोड़ चलो।
मिट जाए हस्ती इक पल में
खाली इक नुक़्ता छोड़ चल़ो।
दौलत जाती है साथ नहीं
लालच का चसका छोड़ चलो।
हैं गैर जरूरी जो मसले
उनमें क्या रख्खा छोड़ चलो।
गज़ल - ग्यारह
दूर तक छाए थे बादल और कहीं साया न था
इस तरह बरसात का मौसम कभी आया न था।
मुस्तक़िल खुशियां हमारे सामने बिखरी हुई
ज़िन्दगी ने यूँ तो पहले हमको तरसाया न था।
बिन तुम्हारे ये नजारे हैं नहीं कुछ काम के
था यहां मौसम गुलाबी पर नशा छाया न था।
है तेरी तसबीर दिल के आईने में हूबहू
वो नहीं वैसा कोई नजदीक हमसाया न था।
लोग थे मशगूल अपने जश्न में खोए हुए
हमने अपना दर्द दुनिया में कभी गाया न था।
था तेरा माक़ूल कहना लोग दुनिया की तरह
मोतमिद थी बात हमने गौर फरमाया न था।।
मोतमिद-भरोसा
- नागेंद्र नाथ गुप्ता
- बी०1 / 204, नीलकंठ ग्रीन्स
- मानपाडा,ठाणे (मुंबई )
- पिन 400610
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