अंग्रेजो भारत छोडो के बाद –नौकरशाही भारत छोडो--- मनीराम शर्मा

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वर्तमान अनिश्चित राजनीतिक परिदृश्य की पृष्ठभूमि में, देश के  वातावरण में  न तो हमारे संवैधानिक अधिकार और न ही संसद के निर्वाचित सदस्य, और न ...

वर्तमान अनिश्चित राजनीतिक परिदृश्य की पृष्ठभूमि में, देश के  वातावरण में  न तो हमारे संवैधानिक अधिकार और न ही संसद के निर्वाचित सदस्य, और न ही विधानमंडल के सदस्य संबंधित लोक सेवकों को जनता का काम करने के लिए लोगों की सहायता कर पा रहे हैं, जब तक कि स्व-प्रेरणा से उच्च न्यायालय और शीर्ष अदालत कुछ जनादेश देने के लिए सरकार और विशेष रूप से संबंधित लोक सेवक को कानूनी रूप से कार्य करने और / या अवैध भूमिका से दूर रहने के लिए हस्तक्षेप नहीं करता है । हमारे बुद्धिमान, ईमानदार, ईमानदारी से चुने हुए प्रतिनिधियों के लिए स्वतंत्रता का जयंती के 50 वें समारोह में लोगों को ठीक से जानने और महसूस करने के लिए स्थिति का जायजा लेना चाहिए। सार्वजनिक प्रशासन को कुछ   रूढ़िवादी, अनम्य, असंवेदनशील लोगों  द्वारा चलाया और प्रबंधित किया जा रहा है । 'नौकरशाहों' के रूप में जाने जाने वाले लोक सेवक एक शब्द में तुच्छ अवांछनीय असंतुष्टीकारक और जन विरोधी हैं।

यह कटु अनुभव है कि उन्हें वास्तव में कोई पता ही नहीं है, बल्कि वे लोगों की वास्तविक समस्याओं और आकांक्षाओं की नब्ज और धड़कन की अनुभूति और चिंता को अनदेखा करते हैं । यह अनम्यता और सार्वजनिक प्रयोजनों के मामले में असंवेदनशीलता, सार्वजनिक समस्याएं मानो विशेषताएं बन गई हैं बल्कि हमारे दिन-प्रतिदिन की पुरानी समस्याओं  के लिए सार्वजनिक प्रशासन, जहाँ दक्षता और जनता के प्रति जवाबदेही हमेशा सबसे निचले स्तर पर होती है और बहुत सहज मुद्दों को  हवाओं में उडा  दिया जाता है । जब हम इसे इतनी ज़िम्मेदारी के साथ साथ कहते हैं, तो इसे भी यहाँ स्पष्ट करना होगा और अब इस स्तर पर किसी भी अनावश्यक गलतफहमी से बचें, केवल यह नहीं है कि प्रत्येक राजनेता या लोक सेवक पर जनविरोधी, नौकरशाह होने का आरोप लगाया जाता है। ऐसा नहीं है और वास्तव में ऐसा नहीं हो सकता। हर काले बादल की तरह   जिसमें कुछ खूबसूरत चमकीली रेखायें भी होती हैं।

सार्वजनिक-प्रशासन की तरह कथित रूप से निराशाजनक काले बादलों में भी कुछ  वास्तविक, उम्मीदवान और आदर्श किंतु नगण्य लोक सेवक भी हैं, जिनके पर  देश गर्व कर सकता है, जो उनकी हर तंत्रिका को तनाव में रखते हैं जिन्होंने वास्तव में सार्वजनिक रूप से काफी मदद की, सेवा की जो कि एक परीक्षात्मक तरीके से प्रदान करता है आशा की रजत रेखा  की तरह सरकार में लोगों की कुछ आशा को बनाए रखनी चाहिये। परन्तु फिर मामले या राज्य या देश के समग्र दृष्टिकोण को छोड़कर अपवादों के बीच कुछ और दूर जहां 'नौकरशाही संस्कृति' ने दुर्भाग्य से मुख्य रूप से शिकंजे में जकड़ लिया है ।अपनी चुनी हुई सरकार में लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों, मूल्यों और उम्मीदों के लिए, सार्वजनिक हित को कभी नहीं रोका जा सकता है, इसके बावजूद यह वांछित सीमा तक नहीं बढ़ पाया है।

बारबार की राजनीतिक अस्थिरता , पार्टियों की  सरकारें तेजी से बदल रही है और अभी और फिर चक्रवाती  राजनीतिक हवाओं की हर कानाफूसी के साथ 'मौसम सूचक मुर्गा' की दिशा बदल रही है ।  इस मामले का पूर्वोक्त दृष्टिकोण की वास्तविकता यह है कि यह कठोर, कड़वा है, 'लोक नियम' के अनुसार  कानून 'देश पर शासन करने के लिए, सरकारी प्रशासन को रवैया, चरित्र और काम करने की गुणवत्ता को आवश्यक रूप से बदलना होगा बल्कि 'नौकरशाही' शब्द के साथ इसकी बदसूरत पहचान संविधान के तहत लोगों के परम संप्रभु अंतिम अधिकारों के लिए पर्याप्त और घोर विरोधी है । क्या हमने कभी किसी एक मिनट में शैतान को देश से बाहर निकालने, चंगुल से देश को निकालने और बचाने की बात, 'नौकरशाही पंथ', जिसके कारण सभी व्यापक, प्रकट अक्षमता, लाल-फीताशाही, गैर जिम्मेदारापन ने लोगों को अपंग, कुचल और निचोड़ दिया है ,के लिये विचार और योजना बनाई है? यह दुखद स्थिति स्वतंत्रता और स्वतंत्रता का फल भोगने में बाधक है। अगर ऐतिहासिक वर्ष 1942 ने सफलतापूर्वक अंग्रेजों को चुनौती दी और 'भारत छोड़ो', वर्ष चला तो  1997 भी एक और ऐतिहासिक वर्ष होना चाहिए जो 'नौकरशाही पंथ' को स्पष्ट जनादेश और आदेश दे 'भारत छोड़ो' और इसके लिए हम सभी को इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। कारण स्पष्ट है 'लोकतंत्र' और 'नौकरशाही ’, वस्तुतः एक तरह से एक-दूसरे के विरोधी, विपर्यय, विरोधाभास के संदर्भ में हैं। सेवा में ही  सही, सार्थक लोकतंत्र है, ।

जनता के पास मतदान करने का अधिकार है, अगर सत्ता में रहने वाली पार्टी उनकी समस्याओं का समाधान नहीं करती है, तो लोक सेवक के साथ भी एक ही जवाबदेही और पारदर्शिता परीक्षण से कुछ उचित तरीकों और साधनों को प्रभावी ढंग से विनियमित और नियंत्रित करने के लिए निपटा जाना चाहिए और खोजने के लिए विद्यमान परिधि से बाहर निकलना चाहिए । मशीन या तंत्र जब भी पकड़, दक्षता खोता है और वांछित और अपेक्षित सेवा नहीं देता है, उचित समय पर ध्यान देने की आवश्यकता है, सर्विसिंग, पेंचिंग और टोनिंग-अप इस उद्देश्य की पूर्ति करेगा और यदि इन सभी चीजों को करने के बावजूद, यदि स्थिति में सुधार नहीं होता है, तो आगे की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए समकक्षों को भी बदलने की आवश्यकता होती है और यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो इसके अलावा कोई विकल्प नहीं रह जाता है कि निंदा के रूप में 'कबाड' के रूप में उपयोग के लिये यह सारा कचरा फेंक देना और नष्ट या बंद करना निपटाने के लिए उत्तम है।

अपरिहार्य स्थिति की समस्या को हल करने के लिए सामना करना होगा। दूसरे शब्दों में, सही मायने में लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम रखने और उसके ऊपर राज्य, लोकतांत्रिक अधिकार, मूल्यों और लोगों की संस्कृति, घातक “नौकरशाही के वायरस’ को पहली बार में सख्त निगरानी और नियंत्रण में रखना होगा, देश लोकतंत्र के अपने चरित्र और गुणवत्ता को बनाए रखना चाहता है, और दूसरे ओर वैकल्पिक रूप में जहां इसका समूल  उन्मूलन तुरंत संभव नहीं है। यदि ऐसा नहीं किया जाता है, तो यह मान लें कि तथाकथित 'लोकतंत्र' केवल नाम के लिये होगा और लोगों को शैतान द्वारा शासित और शोषित  किया जाएगा और 'ब्यूरोक्रेसी' का अभिशाप, सफलतापूर्वक खरपतवारों द्वारा जालों के आसपास कताई होगी और कताई से लोगों और उसकी सरकार के बीच दूरी बढ़ती जायेगी।

अगर पूर्णिमा के  चांद की भांति स्वतंत्रता और लोकतंत्र ने अपनी सुंदरता खो दी तो हमारे देश में यह पूरी तरह से  इसका दोहरा घातक नौकरशाहों और भ्रष्ट राजनेतों की महत्वाकांक्षाओं द्वारा ग्रहण लग जायेगा।

समय रहते हमें जागना पडेगा।

जय भारत...

( गुजरात उच्च न्यायालय के खियालदास बनाम गुजरात राज्य प्रकरण में दिनांक 31.31997 को दिये गये निर्णय पर आधारित ) --- मनीराम शर्मा

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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ 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रचनाकार: अंग्रेजो भारत छोडो के बाद –नौकरशाही भारत छोडो--- मनीराम शर्मा
अंग्रेजो भारत छोडो के बाद –नौकरशाही भारत छोडो--- मनीराम शर्मा
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