नाटक लेखन पुरस्कार आयोजन 2020 - प्रविष्टि क्र. 10 - मिट्टी की खुशबू - ज्योति झा

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रचनाकार.ऑर्ग नाटक / एकांकी / रेडियो नाटक लेखन पुरस्कार आयोजन 2020

प्रविष्टि क्र. 10 - मिट्टी की खुशबू

- ज्योति झा


पहला दृश्य

स्थान – काफी हाऊस

रम्या – दीदी अगर आपने कह दिया है तो मिल लूँगी एक बार पर आप तो माँ पापा

को जानती हैं न .मिलने का मतलब हाँ न समझ ले ,इसलिए पहले ही उन्हें अच्छे से समझा दीजियेगा कि उत्तर नकारात्मक ही होगा , मुझे तो अपने इस छोटे से शहर से दूर जाने के नाम पर ही पता नहीं क्या क्या होने लगता है ? इस शहर की मिट्टी में ही मेरी आत्मा रची बसी है और आप तो .....

प्रिया – कौन कह रहा है तुम्हें शादी करने ? किन्तु तुम्हें भी तो मालूम ही है न कि आजकल भारत में भी ज्यादातर लड़के अपने रिश्ते कालेज में ही तय कर लेते हैं ,सो तो तुमने किया नहीं .इसलिए तो मैं मारीशस से , जीजू का मौसेरा भाई है ,देखा जाना घर है .

रम्या – हाँ कालेज में कोई ऐसा लगा ही नहीं ,किसी को देखकर कोई भाव ही नहीं जागे ..मन के तार को किसी ने छुआ ही नहीं .

प्रिया – क्यों ? एक था न जो तुम्हें पसंद था ,क्या तो नाम था उसका ....

रम्या – हाँ सोनल ,पर उस वर्ष मैं दो दो विषय में फेल हो गई और मुझे लगा मैं इस रिश्ते में अगर आगे बढ़ी तो इतनी मेहनत से किये गये सारे प्रयास पर पानी फिर जाएगा और उससे दूर हो गई .

प्रिया – हाँ सब याद है ,घर में सब कितने दुखी थे ,कोई सोच भी तो नहीं सकता था कि तुम दो दो विषय में फेल हो जाओगी .

रम्या -

हाँ पर उसके बाद तुम्हें तो याद हैं न किस तरह पागलों की भाँति मैं रात रात भर पढ़ती रहती थी ,न कहीं जाना ,न कोई मौज मस्ती ?

प्रिया - लेकिन तुमने खूब मेहनत भी तो किया था उसके बाद .ऋतु की शादी में भी नहीं गई थी .मौसा मौसी कितने नाराज हुए थे .ऋतु ने तो कितने दिनों तक तुमसे बातचीत बंद रखा था .

रम्या - हाँ ,माँ भी कितनी नाराज थी मुझसे .

प्रिया – हाँ ,पर रिजल्ट निकलने के बाद वही सबसे ज्यादा खुश भी तो थी ,

रम्या – हाँ दीदी ,आज अधिकांश जानने वाले लोग मुझसे ईर्ष्या करते हैं पर वे कहाँ जानते हैं कि मैंने कितना कुछ त्याग किया है यहाँ तक पहुँचने के लिए .

प्रिया – हाँ पर तुम आदर्श भी तो हो कई आंटियाँ अपने बच्चों को तुमसे मिलने भी तो लेकर आती हैं .

रम्या – हाँ शायद सभी सही कहते हैं कि ईश्वर किसी को भी हर सुख नहीं देते हैं ,पर दी मैं खुश हूँ ,अपनी इस जिन्दगी से .शादी ही तो सब कुछ नहीं है न , .मेरी कितनी सहेलियाँ तो शादी करने के बाद भी अकेली है ,मीनू ,सोना अर्पिता तीनों का तलाक हो चुका है ,नेहा अलग ही रहती है , तो मैं ही ठीक हूँ न ,मजे से माँ पापा के पास रहती हूँ अगले वर्ष बत्तीस की हो जाऊँगी ,नाहक तुम परेशान रहती हो .

प्रिया - तुम्हारी कुछ सहेलियों का नहीं बना इसका मतलब ये तो नहीं है न कि तुम शादी ही न करो ,फिर तनु और पारुल को देखो कितनी खुश हैं वे .अभी इस उम्र में नहीं की तो फिर आगे जाकर पछताने के अलावा कोई चारा नहीं रहेगा ,और हर वक्त माँ पापा कितने तनाव में रहते हैं , जानती हो न ? क्या उनकी इच्छा कुछ भी नहीं है तुम्हारे लिए ?”

रम्या – ठीक है ,मिल लूँगी , पर अजीब सा लगता है .

प्रिया – कोई बात नहीं शुरू में यह सब सबको अजीब ही लगता है ,सिर्फ मिलने के लिए ही तो कह रही हूँ न .

रम्या - ठीक है पर मिलने के बाद अगर मैंने मना किया तो कोई मुझसे कुछ भी नहीं पूछेगा

प्रिया – “ खुश होते हुए .” ओके डन.

दूसरा दृश्य

{ स्थान – घर का सजा सजाया बैठक

दरवाजे पर दस्तक होती है ,प्रिया दरवाजा खोलती है .}

प्रिया –अरे आओ , आओ विनोद ,कैसे हो ?

विनोद –ठीक हूँ भाभी ,आप कैसी हैं ?

प्रिया – मजे में हूँ ,मायके का मजा ले रही हूँ ,

विनोद – हाँ इस बार आप काफी दिनों के बाद आई हैं .

प्रिया – ये है मेरी छोटी बहन रम्या .

विनोद –झेंपता हुआ हाँ ,हैलो

प्रिया –तुम बैठो मैं चाय लेकर आती हूँ .

रम्या – नहीं दीदी आप बैठिये ,मैं चाय लेकर आती हूँ .

प्रिया –तुमसे मिलने आया है मुझसे नहीं “ हँसती हुई चली जाती है .”

{दोनों में बातचीत होती है ,थोड़ी ही देर में प्रिया आती है चाय का ट्रे लेकर }

प्रिया –

लो तुम चाय पीते पीते बातें करो . “ कहती हुई दोनों की ओर देखती है ,दोनों मुस्कुरा रहे हैं .”

रम्या – दीदी मुझे विनोद पसंद है .

विनोद और रम्या एक साथ “ हम राजी हैं .”

प्रिया - क्या सच ?

रम्या – हाँ दीदी सच.

विनोद केवल मुस्कुराता है .

प्रिया - “ लगभग चिल्लाकर .” माँ पापा शादी की तैयारी शुरू कीजिये ,

“ माँ पापा आते हैं विनोद पैर छूता है .वे आशीर्वाद देते हैं .”

तीसरा दृश्य

स्थान –मारीशस के ग्रां बे , समुद्र का किनारा ”

“ छह महीने बीत चुके हैं .

प्रिया – बहुत देर कर दी तुम्हारे भाई ने ...

राकेश –तुम्हारी बहन को सजने में बहुत समय लगता है .उसपर से तुमने उसे कुछ बनाने को भी कह दिया है ,

“ तभी विनोद की गाड़ी सामने आकर आकर रूकती है ,रम्या और विनोद गाड़ी से सामान उतारते हैं .”

रम्या – दीदी मैं कुर्सी लाना भूल गई .

प्रिया – कोई बात नहीं .चादर बिछा देंगे ,हम दोनों चादर पर बैठ जाएँगे

रम्या –लाओ मैं बिछा दूँ .कहाँ है चादर ?

प्रिया – उस बड़े वाले हरे बैग में ,

“ चादर बिछाकर रम्या खाने का सामान निकाल कर रख देती है और बैठ जाती है .”

विनोद – भाभी कोक या जूस क्या लेंगी आप ?

प्रिया – मैं तो आज बीयर पीऊँगी ,बहुत ठंढ है .

राकेश – तुम्हारी भाभी पूरी पियक्कड़ हो गई है ,

प्रिया – वाह पहले जब नहीं पीती थी तब सुनती थी ,अब पीने लगी हूँ तब भी तुम्हें चैन नहीं .

“ रम्या को छोड़ सभी हँसते हैं , रम्या उदास सी आँखों से बहते समुद्र की ओर देख रही है .”

प्रिया – रम्या क्या सोच रही हो ?

रम्या – कुछ नहीं दी .मैं सोच रही थी गरम गरम अदरक वाली चाय मिल जाती तो कितना मजा आता ?

राकेश – विनोद चल पहले थोड़ा पैर गीला कर आएँ ,फिर बैठेंगे .

“ वे दोनों चले जाते हैं .”

प्रिया – रम्या एक बात सच सच बताओ ,तुम्हारे रिश्ते में सब कुछ सामान्य हैं न ?

रम्या – हाँ दीदी ऐसे क्यों पूछ रही हो ?

प्रिया – ऐसे ही

, विनोद ठीक से तो रहता है न , कोई लड़ाई झगड़ा तो .....

.रम्या – नहीं तो ,

नहीं दीदी ,पर क्यों पूछ रही हो ऐसे सवाल ?

प्रिया –क्योंकि तुम्हारे चेहरे पर जो पुलक के भाव होने चाहिए वह मैं नहीं देख पाती हूँ ,तुम्हारा हँसता ,खेलता ,प्रफ्फुल्लित चेहरा हमेशा मुरझाया सा लगता है कोई बात है तो बताओ ,मैं बात करूँगी .

रम्या – नहीं कोई बात नहीं है .

प्रिया –फिर तुम खुश खुश क्यों नहीं दिखती हो ? क्या तुम खुश नहीं हो यहाँ पर ?

रम्या “ कुछ देर चुप रहती है फिर अपलक शांत समुद्र की ओर देखती हुई कहती है .” - हाँ ,मुझे कोई तकलीफ तो नहीं है , किन्तु मैं खुश नहीं हूँ यहाँ पर .यहाँ सब कुछ है पर गति नहीं है , यहाँ सब कुछ रुका रुका सा ,थमा थमा सा लगता है ,सागर के पानी को भी देखो न , बाँध कर रोक दिया गया है , कहीं कोई शोरगुल नहीं ,गरम समोसे की खुशबू नहीं ,गोलगप्पे के दोनों से गिरते हुए इमली पानी की खटास नहीं ,होली के रंग नहीं ,होलिका दहन की ज्याला नहीं , दीवाली की घूम नहीं .

प्रिया – हाँ और सड़क के दोनों ओर फैले कचड़े की दुर्गन्ध नहीं ,सांस लेने में घुटन नहीं , बालू , धूल , मिट्टी नहीं ,सडकों पर रेलमपेल नहीं ,भूखे अधनंगे भीख माँगते भिखारी नहीं .

रम्या – तो क्या हुआ ? हम तो उसके अभ्यस्त हैं न ,और अपना घर बुरा है तो छोड़ थोड़ी न देंगे ,सुधारने की कोशिश करेंगे न ,याद करो दी गर्मी से तपते हुए बदन ,लू से सायं सायं करती हवा के बाद वर्षा की बूंदों की पहली बौछार का मजा , पहली बारिश में भीगते हम कैसे भागा करते थे .यहाँ तो बादल जब तब यों ही बरसते रहते हैं ,सच कहूँ तो मैं अपने देश से दूर रहकर खुश नहीं रह सकती हूँ ,मुझे हर वक्त वहाँ की यादें सताती रहती हैं .

प्रिया – ये तो तुम्हें पहले सोचना चाहिए था न .

रम्या – नहीं सोच सकी , परिवेश इस तरह मन पर हावी होता है, नहीं समझ सकी ,कोशिश कर रही हूँ तुम परेशान मत हो ,

“ तभी दोनों भाई वापस आ गए .”

चौथा दृश्य

स्थान – विनोद के घर का बैठक

विनोद टीवी देख रहा है ,उसकी माँ हाथ में दूध का ग्लास लेकर आती है और उसके पास रखे स्टूल पर रख देती है ,”

शीला – बहू नहीं दीख रही है ,कहीं गई है क्या ?

विनोद – इतनी रात में कहाँ जायेगी ? अपने कमरे में होगी .

शीला – तुम भी जाओ सो जाओ ,

विनोद – हाँ जाता हूँ ,

“ कहकर वहीं बैठा रहता है, फिर उठकर बाहर की ओर चला जाता है ,शीला भी चली जाती है , तभी रम्या आती है ,चुपचाप बैठ जाती है ,छोटी छोटी सिसकियाँ सुनाई पड़ती है जैसे बहुत रोने के बाद चुप हुई हो ,शीला कुछ भूल गई थी फिर से वापस आती है ,

शीला – घबड़ा कर

क्या हुआ बहू? क्या हुआ ?

रम्या – कुछ नहीं माँ .कुछ भी तो नहीं , वह जरा सर्दी हो गई है .

शीला – “ गौर से उसकी ओर देखती हुई .” विनोद के साथ कुछ हुआ क्या ?

रम्या - नही माँ,

“ आँखें पोछती हुई .” चलिए मैं आपकी मदद करती हूँ ,

शीला - नहीं पहले सच बताओ .मुझसे कोई बात हो गई या फिर ..

रम्या – नहीं कुछ भी नहीं हुआ , बस घर की याद आ गई ,

शीला – बेटा बिना बात इस तरह रोना अपशगुन होता है ,कोई कष्ट है तो बताओ मुझे ,मैं भी एक स्त्री हूँ समझूँगी तुम्हे ,तुम्हारी भावनाओं को ,

रम्या –माँ मैं बहुत कोशिश कर रही हूँ पर मेरा मन नहीं लगता है यहाँ पर ,

शीला - “ अचरज से उसे देखती हुई .” ये कैसी बात हुई भला ? पति के पास मन नहीं लगेगा तो और और कहाँ लगेगा ?

रम्या – मुझे अपने देश की बहुत याद आती है ,यहाँ सब कुछ बहुत अलग है .

शीला – सब कुछ ,यानि ? पर कितनी ही लडकियाँ यहाँ भारत से आई है, उन्हें तो कुछ भी नहीं लगता ,खुद तुम्हारी दीदी ? कितनी खुश है यहाँ पर .ठीक है ऐसा करो कुछ दिनों के लिए चली जाओ , मिल आओ सबसे ,बात करूँ विनोद से ?

रम्या – नहीं अभी नहीं ,

मैं खुद कर लूँगी .

शीला - ठीक है तुम आराम करो ,रसोई का काम मैं निपटा लूँगी , मुझे आदत है . मुझे मालूम है कि भारत में महरी ही ये सब काम करती है इसलिए तुम्हें आदत नहीं है ,इसके लिए कुछ सोचने की जरूरत नहीं है .

रम्या – ये सही है , पर आप इस तरह सारा दिन काम करती हैं तो मुझे अच्छा नहीं लगता है

शीला – ठीक है रख लेंगे किसी को ,मेरी छोटी भाभी का बहन करती है , काम कह दूँगी उसे ,दूसरी जगह का काम छोडकर यहाँ कर ले ,

“ रम्या अचरज से देखती है .”

शीला – “ हँसकर .” यहाँ ये कोई लज्जा की बात नहीं है ,

“ फिर गम्भीर स्वर से .” – बेटा तुम दोनों की ख़ुशी में ही हमारी ख़ुशी है , विनोद के पापा के जाने के बाद बड़े दुःख भरे दिन बिताये हमने , बड़ी मुश्किल से हमारे घर में खुशियाँ वापस आई हैं ,विनोद तुम्हें बहुत प्यार करता है ,जान से ज्यादा चाहता है तुम्हें ,हो सकता है , तुम्हें समझ नहीं पाता हो ,सो खुलकर बात करो और ...और ....

रम्या – माँ आप निश्चिन्त रहें ,मैं कोशिश कर रही हूँ , सब ठीक हो जाएगा ,

पाँचवाँ दृश्य

स्थान – मारीशस हवाई अड्डा

प्रिया – पहुँचते ही फोन करना . अपना ध्यान रखना ,पहली बार जा रही हो .

रम्या –दीदी मैं कोई बच्ची नहीं हूँ ,आप नाहक परेशान होती हैं .

विनोद –जाते ही अपने लिए नेकलेस खरीद लेना .मैंने पैसे ट्रान्सफर कर दिए हैं , तुम्हारे अकाउंट में .

प्रिया – वाह किस ख़ुशी में भाई ?

विनोद – शादी की वर्षगाँठ पर ले गया था मैं इसे पर यहाँ के डिजाइन पसंद नहीं आये ,इसलिए .

प्रिया – “ मुस्कुराती हुई ” या जल्दी लौट आने के लिए घूस है ,फिर तो मैं भी जाती हूँ रम्या के साथ , बिना लौटने की टिकट लिए ,

“ सभी हँसते हैं ,लेकिन रम्या अनमयस्क भाव से बिना कुछ कहे जल्दी जल्दी अंदर चली जाती है .सभी उसे बाय बाय करते हैं पर वह एक बार भी मुड़कर नहीं देखती है .”

अंतिम दृश्य

स्थान – विनोद के घर का बैठक

“ माँ बेटा बैठे हैं .”

विनोद – माँ बेकार में रम्या का इन्तजार मत करो ,मैं जानता हूँ वह नहीं आएगी ,जाने के लगभग एक महीने हो गये हैं , एक बार भी उसने फोन तक नहीं किया है , मेरे फोन करने पर हाँ या न में जवाब दे देती है बस .

माँ - लेकिन बेटा .मेरा दिल कहता है वह जरूर आएगी .

विनोद - माँ तुम बहुत भोली हो ,वह तय करके ही गई थी अन्यथा वापिस का टिकट नहीं लेती ? उसने अबतक गिफ्ट भी नहीं खरीदे हैं ,कितनी बार मैंने कहा ,

माँ - पर बेटा ..?

विनोद - “ उदास स्वर से ” माँ मेरे प्यार में कुछ कमी रह गई शायद .या फिर उसे समझ न सका ,तुम जितनी जल्दी इस बात को मान लो उतना ही हमारे लिए अच्छा है ,

फोन की घंटी बजती है ,विनोद फोन उठाता है - हैलो , “चहकता हुआ ,”- हाँ हाँ कैसी हो तुम ? क्या ...? सच .....?

“ ख़ुशी से उठकर टहलने लगता है ,बातें करते करते बाहर चला जाता है , फिर अंदर आकर माँ को गले से लगा लेता है – माँ रम्या आ रही है परसों की फ़्लाइट से ,

माँ

“ चेहरे पर पुलक के भाव .” - क्या सच ?

विनोद – हाँ उसी का फोन था

माँ - मैंने कहा न था एक स्त्री ही दूसरी स्त्री को समझ सकती है , वह तुमसे बेहद

प्यार करती है ,बस दूसरे देश में एडजस्ट कर पाना उसके लिए थोडा ......

“ विवेक लेकिन सुन नहीं रहा है .”

विवेक -

और और माँ , तुम्हें रम्या का बहुत ख्याल रखना होगा ,

“ माँ जिज्ञासा से बेटे के मुँह की तरफ देखती है .”

विनोद - माँ तुम ...तुम ...

माँ- हाँ हाँ कहो न ..

विनोद –तुम दादी बनने वाली हो ,शीला की आँखों में ख़ुशी के आँसू

विनोद- ये क्या तुम ...

शीला – तू नहीं समझेगा .ये ख़ुशी के आँसू हैं पगले ,चल जा मुझे बहुत सी तैयारियाँ करनी है .

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पर्दा गिरता है

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रचनाकार: नाटक लेखन पुरस्कार आयोजन 2020 - प्रविष्टि क्र. 10 - मिट्टी की खुशबू - ज्योति झा
नाटक लेखन पुरस्कार आयोजन 2020 - प्रविष्टि क्र. 10 - मिट्टी की खुशबू - ज्योति झा
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