संस्मरण - माँ के हाथों की रोटियां- सच्ची बात - अवधेश कुमार निषाद मझवार

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माँ के हाथों की रोटियां-  सच्ची बात                      ...................................................................... बचपन के दिन...

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माँ के हाथों की रोटियां-  सच्ची बात                     

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बचपन के दिन याद करके बहुत रोता हूं। भला आज मैं अपनी मां के हाथों की बनाई हुई "रोटियां नहीं खा पा रहा हूं। वह लोग किस्मत वाले होते हैं । जो कम से कम अपने "माता-पिता" के साथ बैठकर शाम को खाना खाते हैं। ना तो मैं उनके दर्शन कर पा रहा हूं । मुझे याद है जब मैं कक्षा 7 में "जूनियर हाई स्कूल फतेहाबाद" में पढ़ने जाता था। तब मेरी मां मेरे लिए हमेशा खाने का टिफिन बांध कर रखती थी, ताकि मैं स्कूल में खाना खा सकूं।

एक रोज की बात है, जब मैं सो रहा था । चिड़ियों के चहकने की चें चें की तेज आवाज आ रही थी। पिताजी मुझे जगा कर कह रहे थे, कि उठ जा बेटा तुझे स्कूल जाना है। 8 बज चुके हैं। इतने में घर के अन्दर से मां की आवाज आती है। अभी उसे सोने दो, मैं उसके लिए खाना बना रही हूं। स्कूल का समय 10:00 बजे से है। चला जाएगा। माता पिता जी के बीच बातें होने से मैं उठ गया । पिताजी को प्रणाम करके। स्कूल के लिए तैयार होने चला गया। तैयार होकर आया। तो मैंने देखा मां ने मेरे लिए दिन का खाना बांध दिया था। मां ने बोला बेटा तू खाना खा ले। मैंने मां से बोला मां तुम खा लेना। मैं स्कूल में खा लूंगा। मुझे स्कूल के लिए देर हो रही है। जैसे ही मैंने अपनी साइकिल उठाई, तो पिताजी ने आवाज लगाई। बेटा प्रमोद आज मैं "आगरा" जा रहा हूं। बोलो तुम्हारे लिए क्या लेके आना है।  मैंने कहा पिताजी आप अपने हिसाब से देख लेना। और में स्कूल के लिए निकल पड़ा। जैसे ही मैं चौराहे के नजदीक पहुंचा। एकदम अचानक सामने से एक बिना नंबर की गाड़ी ने टक्कर मार दी। सड़क पर तेज गिरने से घुटने व सिर में चोट लगी। देखा तो सिर से खून बह रहा था। मेरी साइकिल कहीं और मेरा स्कूल का बस्ता कहीं। बैग की तरफ देखा तो मां ने जो खाना रखा था। वह जमीन पर बिखर चुका था। वह बिना नंबर वाली गाड़ी जो उत्तर प्रदेश में "जुगाड़" नाम से फैमस थी। फिलहाल भारत सरकार ने उस पर प्रतिबंध लगा दिया है। अब "जुगाड़" पूर्ण रूप से बंद हो चुकी हैं।

मैं धरती पर बैठ कर ये सोच रहा था कि ये क्या हो गया। अचानक मेरा हाथ ऊपर की तरफ उठने लगा। मैंने देखा तो मेरा दोस्त "आकाश" था उसने कहा चलो खैरियत है। सब कुछ ठीक है। केवल तुम्हारी साइकिल का पहिया ही टूटा है, बाकी सब सलामत  है। आकाश अपनी साइकिल पर बिठा कर ले गया और फिर उसने "डाक्टर मोहम्मद अफ़रोज़ जी के क्लीनिक" पर घुटने व सिर की पट्टी कराई। डॉ० साहब ने हमसे पट्टी के रूपये नहीं लिए। उन्होंने कहा आप जाओ आप बच्चों पर कहा से रुपए आए। उसके बाद मुझे आकाश स्कूल ले गया। काश आकाश जैसा दोस्त हर किसी को मिले। उस दिन स्कूल में एक बजे पहुंचे। हमारी "अध्यापिका कमलेश मैम" ने पूछा आज इतनी देर क्यों हुई। मैंने उन्हें पूरी घटना के बारे में बताया। उन्होंने कहा कोई बात नहीं, आज आप घर जाओ। कल से स्कूल आ जाना।

लगभग 3:00 बज चुके थे। भूख बहुत तेज़ लग रही थी। आज आकाश भी खाना नहीं लाया था। उस समय हमारे पास 10 रुपए से ज्यादा नहीं हुआ करते थे। फिर भी हम बहुत खुश रहते थे। आज हज़ारों हाथों में व लाखों बैंक खाते में रहते हैं। फिर भी इतनी खुशी नहीं मिलती। जितनी कि बचपन में मिलती थी। मैंने अपना बस्ता उठाया और चलने लगा। मैं तेज दर्द से कराह उठा। मैम ने कहा आकाश आज तुम इसको इसके घर पहुंचा कर आओ। आकाश ने अपनी साइकिल उठाई और मुझे बिठाकर घर की तरफ चल पड़ा। और मैं मेरा दोस्त घर पहुंचे। घर पर केवल मां थी। पिता जी सुबह ही आगरा निकल चुके थे,  मेरी मां ने मेरी हालत देखी। तो  एकदम से रो पड़ी और बोली क्या हुआ मेरे दिल के टुकड़े को। ये सब कैसे हुआ। आकाश की तरफ देखते हुए कहा। आकाश ने पूरे घटनाक्रम की जानकारी मां को दी।

मां ने बोला जब तक तू ठीक नहीं हो जाता तब तक कतई स्कूल नहीं जाएगा। जैसे ही मैं मां से कहने वाला था। तब तक वह मेरे लिए खाना लेकर आ गई । मैं सोचता रह गया भला उन्हें कैसे पता चला कि मैं भूखा हूं। आखिर बाद में समझ आया ये मां नहीं भगवान हैं। मैं और मेरा दोस्त खाना खाने के लिए बैठे। तो मैंने मां से पूछा आपने खाना खा लिया। मां ने कहा आज मुझे सुबह से भूख नहीं लग रही थी। मैंने एक निवाला तक नहीं खाया है, क्योंकि जो तू सुबह घर से बिना खाना खाएं चला गया था। तो मुझे भूख नहीं लग रही थी। दुनिया में अगर कोई किसी के लिए भूखा रह सकता है तो वो केवल मां है मां अपनी संतान के लिए निस्वार्थ दिन-रात मेहनत करके  भरण-पोषण करती हैं। सन्तान अपने माता-पिता के लिए एक प्रतिशत अपना कर्ज अदा नहीं कर सकती |

ये दुनिया की सबसे बड़ी सच्चाई है | भला में किस खेत की मूली हूं। मैंने कहा ठीक है ना अब तो खाना खा लो। हम तीनों एक साथ खाना खाने लगे। कि तभी पिताजी आ गये । वे मुझे इस हालत में देखकर घबरा गए । उन्होंने मां से पूछा ये सब कैसे हुआ। मां ने जो घटना घटित हुई थी। उस घटना के बारे मैं पिता जी को अवगत कराया। पिता जी ने मुझे सलाह दी। कि किसी भी काम को जल्द बाजी में मत करो। उन्होंने बताया कि मैं तुम्हारे लिए "स्कूल की ड्रेस" लेकर आया हूं। मैं ड्रेस पाकर बहुत खुश हुआ  नई ड्रेस का नाम सुनते ही मेरा दर्द छूमंतर हो गया।

आज समय बदल चुका है। मेरी "शादी" भी हो चुकी है, "नौकरी" भी मिल चुकी है। बचपन जैसी खुशी फिर भी नहीं मिल पाती है। नौकरी के सिलसिले में मुझे अक्सर महीने के 21 दिन तक घर से बाहर रहना पड़ता है। जाने देश में कितने शहरों में घूम कर देख लिया। बड़े से बड़े पांच सितारा होटलों में खाना खा कर देख लिया। "पिज्जा बर्गर फास्ट फूड" आदि सब बेकार है। जो स्वाद मां के हाथों की रोटियों में आता है। वह अब कहां मिल पाता है। घर से बाहर खाने में वो चूले की राख में सिकी रोटियों जैसा स्वाद नहीं आता है। जितना मां के हाथों की बाजरे की रोटी में "गुड़ मिलाकर मदीले" में आता था। जब भी मैं घर जाता हूं। तब मां के हाथ का बना खाना ही खाता हूं। और महसूस  करता हूं कि आज बचपन जैसा खाना खाने को मिला | अब भी मेरी मां शाम को अपने पास दो- तीन रोटियां जरूर बचाके रखती है। उन्हें आश होती हैं, कि जाने मेरा लाल कब अा जाए। वो भूखा अा रहा होगा इसी आस में मां रोटियां बचाकर रखती हैं। जब भी मैं घर पहुंचता हूं। तो सबसे पहले माता-पिता जी से मिलता हूं। उन्हें व मुझे मिलकर अत्यन्त ख़ुशी मिलती है, मानो कि दुनिया की सब ख़ुशी मुझे मिल गई हो। मैं कहता हूं कि मैंने भगवान को नहीं देखा है। मेरे भगवान तो मेरे माता-पिता हैं। माता-पिता से बड़ा संसार में कोई भगवान नहीं है। इस भारत देश में कभी किसी  भगवान तो कभी किसी भगवान को पूजा करने को कहा जाता है। धर्म के नाम पर देश में लड़ाया जाता है। किसी को हिंदु कह कर तो किसी को मुस्लिम कह कर। मानव मानव को आपस में राजनीति के चक्कर में एक-दूसरे से लड़ाया जाता है।

मैं अवधेश कुमार मझवार यह कहता हूं। आप कभी भी किसी की कोई पूजा मत करो। केवल अपने माता-पिता की सेवा करो। उनसे बड़ा कोई भगवान नहीं है। उनकी आंखों में आपकी वजह से आंसू मत आने दो। आप इस तरह सोचो कि आप उनका कर्ज कभी नहीं चुका सकते हो। क्योंकि जो उन्होंने आपके लिए निस्वार्थ किया है। दुनिया में कोई दूसरा कभी नहीं कर सकता | ध्यान रहे उनसे बड़ा कोई भगवान नहीं है। कुल मिलाकर रोटियों की बात करें। तो इस संसार में मां के हाथों से बनी रोटियों से ज्यादा किसी में स्वाद नहीं है। मां तुम्हारी बहुत याद आती है,  मां के हाथों की रोटी नहीं अमृत हैं अमृत....

अवधेश कुमार निषाद मझवार

ग्राम पूठ पुरा पोस्ट उझावली

फतेहाबाद आगरा  (उ० प्र०)   

Email- avadheshkumar789@gmail.com

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रचनाकार: संस्मरण - माँ के हाथों की रोटियां- सच्ची बात - अवधेश कुमार निषाद मझवार
संस्मरण - माँ के हाथों की रोटियां- सच्ची बात - अवधेश कुमार निषाद मझवार
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