फिर तेरी कहानी याद आई - उर्मिला पचीसिया

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फिर तेरी कहानी याद आई उर्मिला पचीसिया ढलते हुए सूरज की किरणें प्रकाश के साथ-साथ धरती की तपन को भी अपने आग़ोश में समेट कर पलायन के लिए त...

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फिर तेरी कहानी याद आई

उर्मिला पचीसिया

ढलते हुए सूरज की किरणें प्रकाश के साथ-साथ धरती की तपन को भी अपने आग़ोश में समेट कर पलायन के लिए तैयार हो रही थी। हल्के अँधियारे के साथ पवन में भी शीतलता का अहसास होने लगा था। समुद्र की लहरें भी दिन भर की चहल-कदमी से क्लांत विश्राम करने का मन बना रही थी। सागर तट पर तप्त रेत पर मानों किसी ने जल छिड़काव कर अचानक उन्हें ठंडा कर दिया था। ज़िंदगी के संघर्षों से थक कर चूर मानव आकृतियाँ यत्र-तत्र शीतल बालू पर निढ़ाल पड़ी नज़र आ रही थी। केथरीन भी उनमें से एक थी जो अपने शरीर से अधिक अपनी मानसिक क्लांति से कुछ क्षण राहत पाने के इरादे से वहाँ आई थी। अस्त होते रवि को निहारते हुए जाने कब उसकी आँखें भी बंद हो गई थी पर वह सोई नहीं थी। नींद ने तो उसका साथ बरसों पहले ही छोड़ दिया था। अंतिम बार वह कब चैन की नींद सोई थी, उसे ख़ुद याद नहीं था। बंद नैनों के पीछे उसके बचपन की फ़िल्म चल रही थी जब वह सात साल की थी और अपने पापा के साथ ‘बीच’ पर गई थी। वह ‘सी शेल्स’ खोजती हुई कुछ दूर निकल गई थी। अपने इस काम में वह इतना खो गई कि उसे समय का ध्यान ही नहीं रहा। तभी उसे पापा का स्वर सुनाई पड़ा, “कैथी कैथी”।

उसकी कल्पना इतनी जीवंत थी कि उसे पापा का स्वर उस समय भी स्पष्ट सुनाई दे रहा था। पापा की स्मृति मात्र से उसके नयन नम हो गए। तभी उसे अपने समीप किसी की उपस्थिति का एहसास हुआ और साथ ही उसके दिवास्वप्न को भंग करता हुआ उनका स्वर !

“कैथी कैथी, अपनी आँखें खोलो “

अपने सम्मुख एक अधेड़ उम्र की महिला को खड़ा देख केथरीन सकपका कर बैठ गई और अपने आप को व्यवस्थित कर उसने महिला को संबोधित करते हुए कहा,

“आप मुझसे कुछ कह रही थी ?”

“हाँ कैथी मैं तुमसे ही बात करने को यहाँ आई हूँ।”

“पर क्या हम एक दूसरे को जानते हैं ?”

“तुम शायद मुझे नहीं पहचानती हो पर मैं तुम्हें जानती हूँ और पिछले कई सालों से तुम्हें ढूँढ़ रही हूँ।”

“आप मुझे सालों से ढूँढ रही है, पर क्यों ?”

“मुझे तुम्हारे पापा का संदेश तुम्हें देना है”

“मेरे पापा...वो ज़िंदा हैं.. कहाँ हैं मेरे पापा..”

कहते-कहते कैथी फफक-फफक कर रोने लगी। उस महिला ने उसे अपनी बाँहों में भर लिया।

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कैथरीन अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी। पिता बहुत रईस नहीं थे पर उसे राजकुमारियों की तरह हमेशा हथेली पर रखा। वह पाँच साल की थी जब उसकी माँ असमय काल का ग्रास बन गई। दो- तीन दिन के तेज़ बुखार ने उसकी जान ले ली थी। पिता ने दोबारा शादी नहीं की थी। उनकी दुनिया कैथी के इर्द गिर्द ही घूमती रहती थी। कैथी के लिए भी उसके पिता दुनिया के सबसे बड़े हीरो थे। पिता साथ होते तो उसे और किसी की कमी महसूस नहीं होती थी।

कैथी ग्यारह साल की हुई तो जर्मनी में हिटलर ने सरकार की डोर सँभाली। वे लोग यहूदी थे और यहूदियों से हिटलर को बहुत नफ़रत थी। नित नए क़ानून बनाकर वह यहूदियों के जीवन को नारकीय बनाने पर आमादा था। पहले उसने सभी यहूदियों की सूची बनाई और उन्हें पहचान-चिह्न के रूप में एक पीले रंग का बिल्ला हर वक़्त पहनने के लिए बाध्य किया। उन्हें शिनाख्त के लिए अपने पहचान के काग़ज़ात हर समय अपने साथ लेकर निकलना पड़ता था।

यहूदियों के प्रति हिटलर की नफ़रत दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही थी। यहूदियों को प्रताड़ित करने के वह नित नए तरीक़े सोचता था। यहूदियों को उनके घर से बेघर कर के उन्हें भेड़ -बकरियों की तरह बसों और ट्रेनों में भर-भर कर दूसरी जगहों पर बने ‘कॉन्संट्रेशन कैम्प’ में भेज दिया जाता था।

हिटलर के सिपाहियों से बचने के लिए कैथी और उसके पापा ने एक तहख़ाने में शरण ली, जिसमें उनके जैसे अनेक प्रताड़ित यहूदी परिवार सामूहिक रूप से रहते थे। इस तहख़ाने में सूर्यास्त के बाद बत्ती जलाने में भी लोग डरते थे कि सड़क पर उस प्रकाश की आभा से उनके छिपने के स्थान का पता जर्मन सैनिकों को ना लग जायेगा और वे पकड़े न जाएँ।

फिर वह मनहूस दिन कैथी की ज़िंदगी में आया। उसके पापा अपने काम के बाद तहख़ाने की तरफ जाने का मौक़ा तलाश रहे थे कि सिपाहियों ने आकर उन्हें गिरफ़्तार कर लिया और संदिग्ध आचरण के तहत उन्हें जेल में डाल दिया। उस रात कैथी सो नहीं पाई। रोते-रोते उसकी आँखें सूज गई। रात के सन्नाटे में उसकी सिसकियाँ बाक़ी सब लोगों की नींद को ख़राब कर रही थी, सभी उसको सांत्वना देकर थक कर अपने-अपने बिस्तर पर जाकर लेट गए थे। अंधेरे में उसने किसी का हाथ अपने हाथ पर महसूस किया और उसकी फुसफुसाहट जो उसे उसके साथ तहख़ाने के गलियारे में चलने को कह रही थी। कैथी चुपचाप उठ कर उसका हाथ पकड़े उसके पीछे चल पड़ी। गलियारे के रोशनदान से सड़क की बत्ती का उजाला अंदर आ रहा था। उसकी हल्की रोशनी में कैथी ने अपने साथी को पहचानने का प्रयत्न किया। अरे वह तो जॉन था ! पिछले महीने ही उसे तहख़ाने में रहने वाले मिस्टर स्मिथ अपने साथ एक शाम को लेकर आए थे। उन्होंने बताया था कि जॉन अब इस दुनिया में अकेला था। किसी ने भी फिर इस बारे में अधिक जिज्ञासा नहीं दिखाई थी। हिटलर और उसकी सेना के अत्याचारों की वारदातें सुन-सुन कर सबके मन बुरी तरह आहत हुए थे और निराशावादी इस माहौल में मन को और गहरे अँधेरों में धकेले ऐसी बातों से परहेज़ करने की सबने मौन स्वीकृति सी दे रखी थी। जॉन बहुत गुमसुम रहता था और किसी से बात नहीं करता था। उसका इस तरह उसे हाथ पकड़ कर यहाँ लाना कैथी को न जाने क्यों अच्छा लग रहा था। जॉन से बातें करके और पहली बार उस के मुँह से उसकी कहानी सुनकर कैथी को अपना दुख उसके ग़म के सामने बहुत कम लगा।

पापा की अनुपस्थिति में जॉन कैथी का सहारा बना। दोनों की दोस्ती धीरे-धीरे प्रेम में परिणत हो रही थी। तहख़ाने में आने के बाद वे दोनों अपना समय इकट्ठे ही बिताते थे। काफी समय बीत चुका था और लोगों ने तहख़ाने की ज़िंदगी से मानो समझौता कर लिया था फिर भी स्वतंत्रता की आस एक चिंगारी के रूप में हर यहूदी के दिल में तब भी मौजूद थी।

इस दौरान अपने पापा की सहमति लेकर कैथी ने जॉन के साथ विवाह कर लिया। उन दोनों ने किसी दूसरे तहख़ाने में एक कमरा भाड़े पर ले लिया था। अपने इस छोटे से कमरे से ये लोग हिटलर के विरूद्ध इंक़लाब लाने में जुट गए। इस कमरे में छुप कर क्रांतिकारी पत्र बना कर, उसकी अतिरिक्त प्रतियाँ निकाल कर चोरी-छिपे यहूदियों के बीच वितरित करते थे।

कैथी जहाँ काम करती थी।, वहाँ एक नया यहूदी काम पर लगा था। उसे भी अपने घर- परिवार से विभक्त हो अकेले जीने पर मजबूर कर दिया था जर्मनी की सरकार ने। उसकी कहानी सुनकर कैथी का मन द्रवित हुआ। घर पहुँच कर उसने जॉन के सम्मुख उस आदमी का ज़िक्र किया। जॉन ने पूरी बात ध्यान से सुनने के बाद उसे सावधान रहने की चेतावनी दी। यहूदियों को पकड़ने के लिए हिटलर के जासूस चारों तरफ फैले हुए थे, जो क्रांतिकारियों को रंगे हाथ पकड़ने के लिए आम लोगों की तरह नौकरी भी कर लेते थे।

उनका यह डर एक दिन फिर यथार्थ में परिवर्तित हो ही गया। अपने नए यहूदी मित्र को कैथी ने अपने घर भोजन के लिए बुलाया। जॉन उससे मिला और धीरे-धीरे घनिष्ठता इतनी बढ़ी कि वह अक्सर उनके साथ ही दिखता था। फिर एक दिन जॉन और कैथी ने उसे अपने क्रांतिकारी आंदोलन के बारे में बताया। उसके उत्साह की सच्चाई से प्रभावित होकर उन दोनों ने उसे हिटलर के विरोध में बनाए गए पर्चे भी दिखाए। उसने इस गतिविधि में पूर्ण सहयोग देने का आश्वासन दिया और चला गया।

उसे गए कुछ ही समय बीता था कि दरवाज़े पर दस्तक हुई। उन्हें लगा वही वापस कुछ कहने या कुछ सामान लेने आया होगा। उनका अनुमान काफी हद तक सही था। पर इस बार वह अकेला नहीं आया था, उसके साथ हिटलर के सिपाही भी आए थे। वे हिटलर के जाल में फँस चुके थे। उनके घर की छानबीन हुई और क्रांतिकारी का ठप्पा उन पर लगा, उनके हाथों में हथकड़ी डाल कर सड़क पर सबके सामने इस उद्घोषणा के साथ कि वे बाग़ी हैं, घसीटते हुए जर्मन सैनिक उन्हें ले गए और स्टेशन पर खड़ी एक ट्रेन के डिब्बे में, जिसमें पहले से ही लोग ठूँस ठूँस कर भरे हुए थे, उन्हें भी उसमें धक्के मार-मार कर किसी तरह घुसा कर कोच का दरवाज़ा बंद कर दिया। ट्रेन तुरंत चल पड़ी। मानो उनके लिए ही रूकी हुई थी।

खचाखच भरे उस कोच में अपना संतुलन बनाए रखना दूभर था। आसपास चिपक कर खड़े लोग महीनों से बिना नहाए, दुर्गन्ध और रोगग्रस्त थे। उस भीड़ में साँस लेने के लिए हवा का अभाव था, उस पर यह असहनीय बदबू ! रह रह कर कोई कै करता या अचेत हो रहा था। जॉन ने कैथी का हाथ कस कर पकड़ रखा था और वह जगह बनाता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था। तभी कोने में गठरी की तरह गोल हुए एक रूग्ण वृद्ध पर उसकी निगाह गई और वह ठिठक कर खड़ा हो गया। बुज़ुर्ग को क्षण भर देखने के बाद उसने कैथी का ध्यान उसकी तरफ आकर्षित किया। कैथी देखते ही “पापा पापा” कहती उस आदमी के निकट जाकर बैठ गई। उसकी आवाज़ सुनकर बूढ़े ने बड़ी मुश्किल से अपनी आँखें खोल कर उसे देखा। इंसान जब जीवन से निराश हो मृत्यु को वरण कर लेता है तो उसके मन की आशा भी सुप्त हो निश्चल हो जाती है। उस व्यक्ति की हालत भी शायद कुछ ऐसी ही थी। उसने अपने प्राणों से प्यारी पुत्री को पहचानने में इतना समय लिया कि कैथी तो निराश हो रोने ही लगी।

“कैथी, मेरी बच्ची, क्या मैं सपना देख रहा हूँ”

अपने पापा का बेहद क्षीण स्वर कानों में पड़ते ही कैथी के शरीर में स्फूर्ति का संचार हो उठा। उसने उनके सिर को अपनी गोद में रख लिया। इस तरह ज़िंदगी में दोबारा मिलना ईश्वर कृपा से कम नहीं था। कुछ कहने सुनने की अवस्था में पिता को असमर्थ देख, कैथी उनके सिर को सहलाती उन्हें चुपचाप निहारती रही। उस एक वाक्य के उच्चारण में उनके शरीर की पूरी शक्ति लग गई थी शायद क्योंकि उसके बाद वे चेतना शून्य हो गए थे। उनकी हालत बहुत ख़राब थी। उनकी पाचनशक्ति इतनी क्षीण हो गई थी कि एक चम्मच पानी भी उनकी देह बाहर निकाल फेंकती थी। उन्हें देख कर ऐसा लग रहा था कि वे बस चंद ही दिनों के मेहमान हैं।

जॉन कैथी के क़रीब बैठ गया और उसका हाथ अपने हाथ में ले कर सहलाने लगा। ऐसा लगता था मानो वह किसी गहन चिंतन में हो। काफी देर तक वैसे ही बैठे रहने के पश्चात वह धीरे से कैथी के कान में बोला,

“कैथरीन इस ट्रेन की गति बीच-बीच में बिल्कुल कम हो जाती है।”

“हाँ … तो..?”

“अगर हम ट्रेन की गति धीमी होते ही नीचे कूद जाएँ तो शायद ज़िंदगी जीने का एक और मौक़ा हमें दे दे।”

“पर पापा बहुत बीमार हैं, वे कैसे कूद पायेंगे ..?”

“पापा हमारे साथ नहीं जा पायेंगे केथरीन”

“इतने वर्षों बाद पापा मिले हैं, मैं उन्हें छोड़ कर कैसे जा सकती हूँ ?”

“कुछ घंटों से ज़्यादा ये तुम्हारा साथ नहीं निभा पायेंगे केथरीन”

“फिर भी..मैं इनको इस हाल में छोड़कर नहीं जा पाऊँगी।”

“इस बार ट्रेन की गति धीमे होते ही मैं उतर जाऊँगा। तुम्हारा इंतज़ार करूँगा।”

केथरीन असमंजस की स्थिति में पिता के सिर को अपनी गोदी में लिए बैठी रही। पापा ने बीच में दो-तीन बार आँख खोल कर उसको देखा पर उनकी नज़र में अपनत्व के बदले एक विरक्त भाव था और पता नहीं वे अपनी कैथी को पहचान भी पा रहे थे या नहीं। उन्हें देखने से जीवन संघर्षों से हतोत्साहित एक ऐसा व्यक्ति दिखाई पड़ता था जिसने जीने की आस ही छोड़ दी हो। जीवन से नाउम्मीद होने वाले इंसान को बचा पाना मुश्किल होता है। ज़िंदगी के कटु अनुभवों ने केथरीन को इतना समझदार तो बना ही दिया था। कुछ घंटों पहले तक तो वह अपने पापा के अस्तित्व से भी अंजान  थी। केथरीन इस उधेड़बुन में ही थी कि उसे गाड़ी की चाल धीमी होने का अहसास हुआ।

“केथरीन केथरीन”

जॉन उसे बुला रहा था। जॉन उसका वर्तमान था और शायद भविष्य भी। पापा उसका सुनहरा अतीत थे, जिसके साथ वर्तमान और भविष्य दोनों अस्पष्ट थे। समय नहीं था और निर्णय तुरंत लेना ज़रूरी था।

रात के गहन अँधकार में रेल की गति कम हुई और जॉन ने छलाँग लगाई। उसके पीछे ही किसी और के कूदने की भी आवाज़ आई। कौतूहलवश जॉन आवाज़ की दिशा की तरफ दौड़ा। केथरीन की तो उम्मीद नहीं थी फिर भी एक आस थी। वह बेतहाशा दौड़ रहा था मानो ज़िंदगी हाथ से निकल रही हो। एक मिनट में ट्रेन ने इतनी कितनी दूरी तय कर ली कि फ़ासला इतना अधिक हो गया….?

“जॉन जॉन”

“केथरीन मैं आ रहा हूँ”

अँधेरे में दिख रही आकृति को देखते ही जॉन ने उसे अपनी बाँहों में भर लिया। टूटे हुए बाँध के पानी की भाँति केथरीन की सिसकियाँ का सैलाब फूट पड़ा।

“केथरीन हम हिटलर के चंगुल से आज़ाद हो गए हैं। ईश्वर ने हमें जीवनदान दिया है एक नई शुरूआत करने का, एक नई ज़िंदगी जीने का, जिसका कोई अतीत नहीं होगा, जिसमें कोई ग़म नहीं होगा, बस सिर्फ खुशियों का संसार होगा। चलो, उठो, अब पीछे मुड़कर मत देखना।”

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“कैसे हैं मेरे पापा ? वे स्वस्थ हैं न ? कहाँ हैं वे ? मुझे उनसे मिलना है। आपको पता है उनसे जुदा होकर मैं कभी चैन से सो नहीं पाई हूँ।”

“ कैथी अपने आप को संभालो। आओ चलो हम उस बेंच पर बैठते हैं।”

दोनों महिलाएँ पास की बेंच पर जाकर बैठ जाती हैं और बुज़ुर्ग महिला अपनी पानी की बोतल में से एक गिलास में पानी निकाल कर केथरीन को देती है।

“ कैथी”

“मुझे इस नाम से सिर्फ मेरे पापा बुलाते हैं, आपको यह नाम कैसे पता चला ?”

“तुम्हारे पापा से। तुम लोगों के ट्रेन से कूदने के कुछ समय के बाद तुम्हारे पापा को होश आया और उन्होंने तुम्हारा नाम ‘कैथी’ कह कर तुम्हें पुकारा। आसपास के लोगों ने उन्हे बताया कि तुम अपने पति के साथ ट्रेन से कूद चुकी हो। तो वे ख़ुश हुए और बोले -

“आप में से कोई भी कभी मेरी बेटी से मिले तो उसे मेरा एक संदेश दे देना। उससे कहना कि मैं उसके निर्णय से बहुत प्रसन्न हूँ, मुझे छोड़कर जाने की ग्लानि वह अपने मन में ना रखे क्यों कि मैं तो ख़ुद इस ज़िल्लत की ज़िंदगी से मुक्त हो रहा हूँ।”

“इसके बाद उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।”

पापा की मृत्यु की ख़बर से कैथी विचलित हुई पर उनका संदेश उसके मन को ग्लानि के भाव से मुक्त कर गया। बीमार पापा को अकेले छोड़ कर आने के पश्चात्ताप में वह तिल- तिल कर सूख रही थी। जिस चिंता में वह पागल हुई जा रही थी ,इस महिला के संदेश ने बरसों की क़ैद से यकायक उसे आज़ाद कर दिया था। उसे एक सुखमय हल्कापन अपने दिल व दिमाग़ पर महसूस होने लगा था।

“ आप लोग पर हिटलर की गिरफ़्त से मुक्त कैसे हुए ?”

“ईश्वर की कृपा कह सकती हो। जब ट्रेन अपने गंतव्य पर पहुँची और कोच का दरवाज़ा खोल कर हमें निकाला गया तो सभी लोग मृत पाए गए। मैं बेहोशी की हालत में थी, सैनिकों ने मुझे भी मरा हुआ समझा होगा। इतनी दुर्गन्ध में खड़े रह पाना उनके लिए भी मुश्किल था। लाशों को वहीं फेंक कर वे वहाँ से चले गए। बाद में पास के गाँव वालों ने सभी लोगों का अंतिम संस्कार किया। उन्हीं लोगों ने मेरा उपचार कर मुझे बचाया।

स्वस्थ होने के बाद से मैं भ्रमण पर निकल गई। मुझे तुम्हारे पापा का संदेश जो तुम तक पहुँचाना था।

“मैं किन शब्दों में आपका शुक्रिया अदा करूँ ,आपने आज फिर मुझ में जीने की उम्मीद जगा दी है। आपकी दयालुता ने इंसानियत पर भरोसा करने का सबक़ मुझे दिया है। मैं आजीवन आपकी आभारी रहूँगी। आप बताएँ मैं आपके लिए क्या कर सकती हूँ।”

“मैं बहुत थक गई हूँ, आराम करना चाहती हूँ।” मुस्कुराते हुए वह महिला बोली।

“मुझे माफ़ किजीएगा, भावनाओं में बह कर मैं शिष्टाचार ही भूल गई। चलिए मेरा घर पास ही है, वहाँ चलकर आप आराम कर सकती हैं।”

अगली सुबह जब केथरीन उन्हें नाश्ते के लिए बुलाने उनके कमरे में गई तो उनके निर्जीव शरीर को एक संतुष्ट मुस्कान के साथ लेटा हुआ पाया। केथरीन को लगा मानो उसके पापा का संदेश देने के लिए ही उनकी साँसें चल रही थी। जिनसे न जान-पहचान थी और न ही कोई रिश्ता, अंजान लोगों की भावनाओं पर जिसने अपना जीवन न्योछावर कर दिया,उस महान आत्मा का अंतिम संस्कार कर के केथरीन को बहुत संतोष हुआ मानो उसने अपने पिता को विधिपूर्वक विदा किया हो। केथरीन ने उनकी क़ब्र पर उनका नाम “इंसानी फ़रिश्ता “लिख कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।

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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: फिर तेरी कहानी याद आई - उर्मिला पचीसिया
फिर तेरी कहानी याद आई - उर्मिला पचीसिया
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