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रचनाकार.ऑर्ग नाटक / एकांकी / रेडियो नाटक लेखन पुरस्कार आयोजन 2020
प्रविष्टि क्र. 16 - सबक
सुधा शर्मा
नाटक
सबक
पात्र - प्रवेशानुसार
नाम आयु वर्ष
मि. ए. के. गुप्ता लगभग 62
आयुष " 16
व्यक्ति समूह " विभिन्न आयु
बिहारी " 28
अँजुली " 25
सुजाता " 60
अनुराग " 38
शमिता " 36
प्रथम अंक
रलवे प्लेटफार्म।मंच की प्रतीकात्मक सज्जा। मंच पर दो बैंच। बैंचों पर स्त्री पुरुष बैठे हुए हैं। भीड अधिक नहीं है। एक बैंच पर मि. ए. के.गुप्ता बैठे है। पास में पानी की प्लास्टिक की बोतल। ऊपर पंखा चल रहा है
(मि. ए. के गुप्ता ने पानी की बोतल का ढक्कन खोला थोडा पानी उंडेला और गले में डालकर गला तर कर लिया। वह दिल्ली के एम्स में अपना चैक अप करा कर अपने शहर वापिस लौट रहे हैं। गाड़ी के आने में देरी है। वह नियत समय पर आने का अपना वादा पूरा नहीं कर पा रही है। तभी एक किशोर भी उसी बैच पर आकर बैठ गया। उसके बाल नये फैशन के है। कानों व गुद्दी के पास मशीन से सफाचट और ऊपर से गोल छतरी की भाँति डेढ इंची बाल खडे़ हैं। बाल नीचे से ब्राऊन तथा ऊपर से गोल्डन रंगे हुए। वह देखने में ही विद्यार्थी लग रहा है।)
ए..गुप्ता-(रूमाल से माथे पर आये पसीने को पोंछते हैं।(स्वगत) देखने में तो लड़का पढने वाला लगता है। शायद कहीं आस पास पढ़ता होगा और डेली अप डाऊन करता होगा, (काफी देर सोचने के बाद) लेकिन लड़के में न कहीं जाने की जल्दी न कोई बेचैनी । बिलकुल शांत बैठा है जैसे कोई टाईम पास करने आया हो। अपनी जिज्ञासा को शांत करने हेतु पूछते हैं) - कहाँ जा रहे हो बेटा"?
लड़का- कहीं नहीं अंकल, बस यूँ ही जरा घूम आउँगा।
गुप्ता जी- "पढते हो "?
लड़का- "जी। "
गुप्ता जी- कौन सी क्लास में?
लड़का-ट्वैल्थ फर्स्ट ईयर सेंट जोजफ कॉलिज में।
(लड़के के चेहरे पर थोड़ी सी झुँझलाहट आ गई उसने रेड एंड व्हाइट की एक सिगरेट निकाली और लच्छेदार धुआँ छोड़ता हुआ सिगरेट पीने लगा।)
गुप्ता जी- तुम सिगरेट भी पीते हो? बेटा! अभी से।
लड़का- ओह सर! मुझे ओल्ड मैन इसीलिए पसंद नहीं है,वो टोका टाकी ज्यादा करते हैं। उन्हें लैक्चर देने की बहुत बुरी आदत होती है। मैं अपने दादाजी के पास भी कम बैठता हूँ। जेनरेशन गेप समझते ही नहीं। बस अपने जमाने की बड़ाई, अपने आदर्श और हमें नसीहत--------जमाने के अनुसार चलना चाहिए।"( लड़का झुंझलाकर सिर झटकता है।)
गुप्ता जी- हाँ बेटा ! ये तुम सही कहते हो। जमाने के अनुसार ही चलना चाहिए।"
( कहकर गुप्ता जी चुप हो गए। अब धीरे- धीरे स्टेशन पर भीड़ बढ़ रही है। प्रो. गुप्ता बड़ी बेचैनी से गाड़ी की प्रतीक्षा कर रहे हैं क्योंकि शरीर की पीड़ा बढ़ रही है और गर्मी यौवन की ओर अग्रसर है। समय बिताने के लिए लड़के से बातचीत करते हैं।)
गुप्ता जी- तुम्हारा नाम क्या है बेटा?
लडका- आयुष।
गुप्ता जी- तो आज तुम कॉलिज नहीं जा रहे बेटा!
आयुष- नहीं।
गुप्ता जी- क्या मैं जान सकता हूँ क्यों? ना-------------ना------------ना नाराज मत होना । यदि ऐतराज ना हो ; तो बताना।
आयुष- नहीं ऐसी कोई बात नहीं।( मूड नहीं है।)
गुप्ता जी- ओह मूड नहीं है। मैंने तो कमर पर स्कूल बैग देखकर पूछ लिया।
आयुष- हाँ घर से तो स्कूल के लिए चला था । लेकिन नहींं,
आज स्कूल नहीं।
गुप्ता जी- तो पिकनिक पर जाने का विचार होगा?
आयुष- (लापरवाही से जुल्फों में उँगली घुमाते हुए) हाँ टाईम पास करने के लिए कहीं घूम फिर आऊँगा।
गुप्ता जी- लेकिन पिकनिक मनाने के लिए भी किसी का साथ चाहिए अकेले तो बोर हो जाओगे। अपने दो- चार साथियों को साथ लेते।
आयुष- (चेहरे पर झुँझलाहट) चीट कर गये सा-----ल(शब्द को दाँतों में पीस कर अधूरा छोड़ते हुए) प्रोग्राम तो साथ चलने का ही था। बट डोंट वरी सर! मैं अकेले ही बहुत इन्जॉय कर लूँगा।
गुप्ता जी- अकेले तो किसी काम में भी आनन्द नहीं आता। ना घूमने- फिरने में, न पिक्चर देखने में।
आयुष- हाँ सर! ये तो सही बात है।
गुप्ता जी- चलो कोई बात नहीं। आजकल कोई अकेला नहीं।; सबसे अच्छा हम सफर मोबाइल है। हर रिश्ते की, हर गुरू की, हर चीज की कमी पूरी कर दी है मोबाइल ने। अकेले ही सारी दुनिया को अपने आप में समाये हुए है।
आयुष- आप ऐसा मानते हैं सर!
गुप्ता जी- ऑफ कोर्स, सच्चाई से कैसे मुँह मोड सकते हैं?
मोबाईल तो बहुत बडी क्रांति है जीवन में। अनेक उपकरणों की, अनेक लोगों की सेवा प्रोवाइड कराता है मोबाइल।
आयुष- आप कितने मॉडर्न है सर! एक वो है बूड्ढा खूसट
(दाँतों में शब्दों को पीसते हुए) साले ने मोबाईल छीन लिया।
गुप्ता जी- किसने मोबाईल छीना आपका? यह तो सरासर अन्याय है तुरंत कम्पलेंट लिखाओ बेटा! कोई मिसयूज कर सकता है।
आयुष- वो बात नहीं है सर!
गुप्ता जी- इस बात को सीरियसली लो।
आयुष- एक्च्युली सर! मोबाइल प्रोफेसर ने छीना है।
गुप्ता जी- ये तो गलत बात है। आज का युवक तो मेबाइल के बिना जी भी नहीं सकता। ( अपने मन में क्रोध को दबाते हुए अपने आप में बड़बड़ाते हैं ) ये है अंग्रेजी शिक्षा का चमत्कार-- अपने शिक्षक को भी गाली, और बुजुर्गों का सम्मान नहीं )
आयुष- सर! केवल मोबाइल ही नहीं छीना, मुझे पाँच दिन के लिए स्कूल से सस्पैंड भी कर दिया है।
गुप्ता जी- तो फिर स्कूल का बै-----ग ?
आयुष- कॉलिज नहीं जाऊँगा। पास में ही एक होटल है वहाँ खाऊँगा,पीऊँगा, मौज-मस्ती करूँगा और चार-पाँच घंटे में लौट आऊँगा। इससे टाईम पास हो जाएगा और मम्मी पापा को पता भी नहीं चलेगा।
गुप्ता जी- डरते हो मम्मी पापा से?
आयुष- नहीं----नहीं (मुँह से किट का स्वर करते हुए) डरने की कोई बात नहीं सर! बस मैं उन्हें दुखी नहीं देखना चाहता
वो मुझे बहुत प्यार करते हैं। मैं मम्मी को बहुत प्यार करता हूँ।
● गुप्ता जी- मम्मी-पापा की चिंता है, वैसे तुम्हें कोई अफसोस नहीं?
आयुष- (थोडा मुस्कराते हुए लापरवाही से) सब चलता है सर,गीता में श्री कृष्ण ने कहा है "सुख -दुख,मान-अपमान में समान रहना चाहिए "
गुप्ता जी- अच्छा, तुमने गीता पढ़ी है।
आयुष-नो सर, एक दो श्लोक तो हमारी हिंदी की बुक में भी मिल जाते हैं। रियली ऐसी वैसी बातें ------ यू नो सस्पैंड ---- तो हमारी जनेरेशन में आम बात हो गई है। प्रोफेसर वगैहरा हमारी पीढ़ी को भली भाँति जानते हैं। खास बात यह है कि दोस्तों की निगाह में नहीं गिरने चाहिए।
गुप्ता जी- ओह, दोस्तों की निगाह में( हँसते है) ऐसा क्या हुआ ?
आयुष- कुछ नहीं सर बस वैसे ही (मुँह मुँह में बडबडाता है) दिमाग खराब है साले बुड्ढे का।
(गुप्ता जी भी सुन लेते हैं।
गुप्ता जी- सस्पैंड क्यों हुए बेटा!
आयुष- आप तो बहुत सवाल करते हैं सर!
गुप्ता जी- ऐसा कुछ नहीं, आपकी बातें बडी इन्टरेस्टिंग है़ बेटा! आप जैसे जैन्टिल बच्चे को सस्पैंड क्यों कर दिया गया?
आयुष- सर, मेरे दोस्त मेरी मजाक उड़ाने लगे क्योंकि मेरी कोई गर्ल फ्रैंड़ नहीं है। अपने दोस्तों की नजर में गिरना नहीॆ चाहता था इसलिए एक लड़की को इम्प्रेस करने के लिए मैसेज कर रहा था। टीचर ने पकड़ लिया। और बूढे खूँसट ने सस्पैंड कर दिया।
गुप्ता जी- अब तुम्हें उस प्रोफेसर के सामने लज्जित होना पडे़गा।
आयुष- ओह, यू मीन शेम । नो, नो। लज्जित होने का क्या मतलब? इट इज नेचुरल। ये तो कुछ दकियानूसी लोगों ने जबरदस्ती प्रतिबन्ध लगाए है । कृष्ण भी तो गोपियों के संग रास रचाया करते थे। हम कृष्ण के फॉलोवर है, बच्चे हैं। वो तो भगवान थे। उसने ही तो मेल फीमेल का पेयर बनाया है फिर इंसान क्यों इंटरफेयर करेगा सर, व्हाइ ? व्हाइ?
गुप्ता जी- बहुत बड़ी बड़ी बातें करते हो बेटा!, कृष्ण को समझने के लिए तुम अभी बहुत छोटे हो। कृष्ण को समझने के लिए तो लोगों का जीवन निकल जाता है। केवल कृष्ण का नाम लेकर तुम अपने आप को संतुष्ट नहीं कर सकते हो, और क्या जानते हो कृष्ण के बारे में?
आयुष- यही कि वो बचपन से ही बहुत शरारती थे। माखन चोर थे, गोपियों को छेड़ा करते थे, उनके संग रास रचाया करते थे। तॊ
गुप्ता जी- मुश्किल तो यही है कि धर्म के नाम पर सबसे ज्यादा भ्रम है। विशेषरूप से कृष्ण के बारे में। इसलिए अपने को सही ठहराने का प्रपंच कर सकते हो।
आयुष-इतनी गंभीर बातें जानने के लिए तो सारी उम्र पडी है अभी तो मैं जानता हूँ कि लाईफ मौज मस्ती के लिए है और इससे अधिक जानना भी नहीं चाहता।
(नेपथ्य से गाडी का स्वर गूंजता है। पर्दा खुलता है मंच पर चित्रात्मक प्रस्तुति । गुप्ता जी रेलगाड़ी में चढ़ने का अभिनय करते हैं। लड़का भी गाड़ी के दरवाजे को पकडकर खड़ा हो जाता है।
मंच पर दो -तीन व्यक्तियों का स्वर उभरता है"अरे अन्दर आकर आराम से बैठो ऐसे हवा में झूलना खतरनाक है। जिंदगी दाँव पर लगाना ठीक नहीं। लड़का नहीं सुनता ।
फिर नेपथ्य से स्वर गूँजता है" अरे जवानी के जोश में अँधा है। इसे भला बुरा कुछ दिखाई नहीं देता।)
गुप्ता जी- वाह गाड़ी चलने पर कितना अच्छा लग रहा है खिड़की से हवा आने पर गर्मी से थोड़ी में राहत मिली है।
(नेपथ्य से लगातार गाड़ी के छुकछुक का स्वर गूँजता रहता है। गुप्ता जी आँखें बंद करके बैठ गये लेकिन उनका दिमाग पूर्ण सक्रिय है। लड़के के विचार उनके मस्तिष्क पर घन की भाँति प्रहार करने लगे,जो अपने युग का प्रतिनित्व कर रहा था। लेकिन तभी उनका अतीत उनकी आँखों के सामने आकर खड़ा होकर मुँह चिढ़ाने लगा।और फिर वो अपने अतीत में खो गए।)
गुप्ता जी मंच पर अकेले यथावत आँखें बंद किये बैठे है। मंच पर नीले रंग का प्रकाश फैल जाता है। मंच पर आवाज़ गूँज रही है।
( लक्ष्मी देवी की उन पर विशेष कृपा रही। कभी दुख से परिचय होने ही नहीं दिया। पैतृक संपत्ति ने सदैव सुख के पालने में झुलाया । उसने कभी भूख,लाचारी का मुँह नहीं देखा। अँशुमाल की प्रखर किरणों से साँत्वना पाने के लिए वे गर्मियों के महीने में नैनीताल, मसूरी,शिमला, काठमांडू घूम आते। वैसे भी सर्दी- गर्मी की उग्रता को सामान्य बनाने का हर साधन घर में मौजूद था। मई-जून की भयंकर लू से उसका परिचय नहीं था। विद्युत की साजिश को रूठी हुई पत्नी की धमकी के समान जेनेरेटर असफल कर देता। लेकिन उसकी इस बीमारी ने उसके मन को इन सब सुविधाओं से विरक्त कर दिया है। क्योंकि इस बिमारी के सामने लक्ष्मी जी का जादू हार गया है। घरवालों ने उसे वृद्धाश्रम नहीं पहुँचाया, बस उनकी यही कृपा है। लेकिन घर में ही एकांतवास सा हो गया है। एक नौकर को उनकी सेवा में छोड़कर परिवार वालों के कर्तव्यों की इतिश्री हो गई धी ) इतने में ही लक्षित स्टेशनआ गया।
पर्दा गिरता है।
मंच पर रिक्शावाला खड़ा है। गुप्ताजी रिक्शा में सवार होते है। रिक्शा मंच पर दो चक्कर लगाकर रुक जाती है । गुप्ता जी उतरते हैं।
परदा उठता है
( मंच पर प्रतीकात्मक सज्जा। एक सोफा रखा है। गुप्ता जी सोफे पर बैठ जाते हैं। पसीना पोंछते हैं चेहरे पर थकावट के भाव । )
गुप्ता जी- (स्वगत) आदमी कितना नादान है। मानव जीवन की सच्चाई जानता ही नहीं और जब तक समझता है तब जीवन साथ छोड़ने को तैयार हो जाता है। हम पर भी जवानी का नशा और पैसे का नशा ऐसा चढ़ा कि अपने खास रिश्तों को ही महत्व नहीं दिया। अब वो भी हमें कुछ नहीं समझते। इसीलिए किसी से कोई शिकायत नहीं है।-----
हूँ ।(एक व्यंगात्मक हँसी उनके होठो पर तैर गई। )
तभी मंच पर एक नौकर प्रवेश करता है।
बिहारी- मालिक! बत्ती जला दूँ पंखा चलाऊँ या ए. सी?
गुप्ता जी- ( आह भरते हुए ) रहने दो बिहारी ! अब इन भौतिक सुख- साधनों से घिन्न सी आने लगी है। क्योंकि इनके मोह में अधिक पड़कर भी व्यक्ति पतन के गर्त में गिरता जाता है।
बिहारी- क्या मालिक?
गुप्ता जी- कुछ नहीं । तुम्हारी समझ में कुछ नहीं आयेगा।(थोड़ा रूककर ) घर के सब लोग कहाँ है?
बिहारी- बडे बिटवा और बहू तो कहीं गए हैं। बिटिया टेप चलाकर डानिस (डांस) कर रही है। छोटे बिटवा तैयार होकर कलब ( क्लब ) गये हैं। मालकिन आराम कर रहीं हैं।
गुप्ता जी- ( चेहरे पर गुस्से के भाव, मन ही मन में बडबड़ाते है़ं ) किसी की क्या गलती ? जो अब तक देखा है उसे ही तो दोहराएँगे। बच्चों का आदर्श बनने के लिए स्वयं को पहले संयम की भट्टी में तपाना पड़ता है। संस्कार कोई दूध का कटोरा नहीं ,जो गटागट एक बार में ही पिला दिया जाए। संस्कार तो अपने नित- प्रतिदिन के व्यवहार से बच्चों में डाले जाते हैं।
(स्वगत) आज मैं अपनी बीमारी का नाम बताऊँगा। और उन्हें समझाऊँगा' खुश रहना मनुष्य के लिए आवश्यक है। लेकिन खुश रहने के लिए अय्याशी की बैसाखी थामना आवश्यक नहीं। आन्तरिक खुशी सात्विक होती है। दैहिक खुशी क्षणिक होती है। एड्स ने बता दिया कि एक से अधिक से यौन सम्बन्ध बनाना असाध्य बीमारी को न्यौता देना है।
गुप्ता जी का मन- ये तो प्रकृति का नियम है। अपने को दोष देना छोड़ो। आवश्यकता से अधिक धन-दौलत मनुष्य को मार्ग से विचलित कर ही देता है।
आत्मा- किसी को दोष देना छोडो। अत्यधिक गरीबी, लाचारी भी अधर्म के मार्ग पर ले जाती है। यह सब स्वयं पर निर्भर करता है। सम्पन्नता तुम्हें सही मार्ग पर भी ले जाती है।
मन- अपनी गलती का दोष दूसरों पर मढ़ना तो मानव का स्वभाव है।
गुप्ता जी- ( मन में तड़प जाते हैं ) सही है, सब सही है। जब कोई दोष लगाने के लिए नहीं मिलता तो मनुष्य आईने में ही दोष ढूँढने लगता है जब कि कलंक की टीका उसके माथे पर ही होता है।
(इतने में ही पत्नी ने कमरे में प्रवेश किया गुप्ता जी पत्नी को आवाज लगाते है। )
गुप्ता जी- सुजाता! आज पाँच मिनट के लिए मेरे पास बैठ जाओ।
सुजाता- ( पहले उपेक्षा से गुप्ता जी की ओर देखती है फिर बिना कुछ कहे पास रखे स्टूल पर बैठ जाती है। )
गुप्ता जी- क्या तुम एक बार मेरे पास सोफे पर नहीं बैठ सकती?
(सुजाता चुपचाप सोफे पर आकर बैठ जाती है।)
गुप्ता जी- ( अति विनम्र शब्दों में ) मैं जानता हूँ कि तुम मुझे कभी माफ नहीं करोगी लेकिन भगवान ने मुझे सजा दे दी है।
( सुजाता अपनी मोटी - मोटी आँखें फाड़कर गुप्ता जी की ओर देखती है लेकिन उसकी आँखें उसकी नाराज़गी की चुगली कर देती हैं।)
गुप्ता जी- मुझे एड्स है।
( सुजाता गुप्ता जी तरफ देखती है और लम्बी आह भरकर आँखें बन्द कर लेती है। उसकी आँखों से दो मोती ढुलक जाते है लेकिन होठों ने शायद न बोलने की कसम खा रखी थी। दोनों एक- दूसरे की ओर निशब्द होकर एकटक देख रहे हैं ) पर्दा गिरता है
पुन: पर्दा उठता है। मंच की प्रतीकात्मक सज्जा। शानदार कोठी । कोठी के सामने कार। घर में नौकर चाकर। तभी नवयुवक गुप्ता जी कार से उतरकर घर में प्रवेश करने का अभिनय करते हैं।
गुप्ता जी- सुजाता ओ सुजाता! कहाँ हो?
तभी मंच पर लगभग 28-29 वर्षीय एक महिला मंच पर प्रवेश करती है। गुप्ता जी सुजाता के पास जाकर
गुप्ता जी- सुजाता! हमारे कुछ प्रोफेसर्स की आपस में पार्टी है। मुझे रात को आने में देर हो जाएगी।
सुजाता- तपन की तबियत ठीक नहीं है। उसे डॉं को दिखाना है कब से तुम्हारी वेट कर रही हूँ।
गुप्ता जी- कमाल करती हो यार! बच्चे की तबियत खराब है और तुम वेट कर रही हो मेरी। अरे तुम पढी लिखी हो, समझार हो । डॉईवर को लेकर अपने फैमली डॉ को दिखा लाती या फोन करके बुला लेती
सुजाता- तपन की तबियत ज्यादा खराब है । ऐसी कौन सी ऐसी पार्टी है ,जो बच्चे की जान से ज्यादा कीमती है?
गुप्ता जी- बिन बात की बात तो किया मत करो। मैं बाहर की सारी जिम्मेदारी सँभालता हूँ ,तुम घर की जिम्मेदारी नहीं सँभाल सकती।
सुजाता- सब जानती हूँ तुम्हारी जिम्मेदारियाँ। मुझे भी तुम्हारी जिम्मेदारियों की भनक कहीं न कहीं से मिल जाती है।
गुप्ता जी- अगर तुम्हें पता ही है तो मुझसे क्या सुनना चाहती हो। तुम्हारी जिम्मेदारी निभाने में क्या चूक करता हूँ । तुम्हारा मान- सम्मान, आवश्यकताएँ,सब पूरी करता हूँ। चाहे मैं दुनिया में घूमूँ ,अन्त में आता तो घर ही हूँ, । घर की स्वामिनी तुम हो।, तुम्हारी जगह कोई नहीं ले सकता। फिर तुम्हारी परेशानी क्या है।
( सोचकर गुप्ता जी की नजर झुक गई । सुजाता बिन कुछ कहे ही चली गई थी। )
(स्वगत) तुम्हारा कोई दोष नहीं सुजाता। तुम एक अच्छी बेटी,अच्छी बहन, अच्छी पत्नी हो, अच्छी माँ हो। तुमने मेरे जैसे पति का घर नहीं छोडा, अकेले ही पारिवारिक दायित्वों को पूरा कर दिया। यही क्या कम अहसान है मुझ पर। शायद इसी गुण के कारण स्त्री पुरूष से महान है स्त्री चरित्रहीन पति का भी साथ निभा देती है। और पुरूष चरित्रहीन पत्नि को दंड देता है। और चरित्रवान पत्नी के साथ भी बेईमानी करता है । केवल आर्थिक आवश्यकताएँ पूरी कर पारीवारिक दायित्वों के निर्वहन का दम्भ भरता है।
ये बीमारी मेरे कर्मों का परिणाम है और पत्नी की उपेक्षा उसकी सुगंध। मुझे कोई शिकायत नहीं तुमसे। तुम बिल्कुल सही हो सुजाता । जब मुझे सुख में अन्य स्त्री याद रही है तो मैं दुख में तुम्हें क्यों याद कर रहा हूँ? तुम्हारा भी स्वाभिमान है, जो जिंदा रहना चाहिए।)
(गुप्ता जी आँखों पर हाथ रखकर लेट जाते हैं।तभी कमरे में उनकी शिष्या प्रवेश करती है )
अँजुलि (नमस्ते सर )
गुप्ता जी- नमस्ते बेटा, आ गई तुम।
अँजुलि- क्यों नही आऊँगी सर। आप तो मेरे पिता समान है।
पिता की मृत्यु के बाद आपने ही सँभाला है। आप न साथ देते तो मै बी ए पास ही रह जाती। नाम के सामने डॉ लगाने का श्रेय तो आपकी दया के कारण ही मिला है।
गुप्ता जी - सब अपने कर्मों का प्रतिफल है तुमने कोई अवश्य ही अच्छा काम किया होगा।
अँजुलि- लेकिन सर! आपने कौन सा बुरा कर्म किया जो आपके हिस्से में ये बीमारी आ गई। ऊपर से परिवार जन रूष्ट; सब अपनी मस्ती में चूर। पता नहीं यह मानसिकता कहाँ से पनप रही है कि अपने जन्मदाता की ओर ध्यान नहीं देते। यह नहीं सोचते कि जिस औलाद को हम इतना प्यार कर रहे हैं कल वो भी हमारे साथ ऐसा ही करेगी जैसा हम अपने माता- पिता के साथ कर रहे हैं। जिन माता- पिता की हम उपेक्षा कर रहें हैं ,उन्होंने भी हमें इतने ही प्यार से पाला होगा। हूँ------- ये भी कोई बात हुई।
गुप्ता जी- ( खामोश है लेकिन मन में द्वन्द्व चल रहा है ) मेरी छात्रा है इसे कैसे बताऊँ? (अत: गुप्ता जी के भावों को प्रकट करने के लिए मंच पर आवाज गूँजती रहती है।) कि मैंने अपनी पतिव्रता पत्नि को बस स्पष्ट तलाक नहीं दिया लेकिन कभी पत्नि का सम्मान भी नहीं दिया। बच्चों को अपनी जिम्मेदारी और पत्नी को गृहस्वामिनी, वंश की संचालिका समझा। शादी के रूप में साथ रहने का, कुलदीपक प्राप्त करने का समाज से प्रमाण पत्र पत्नी से मिला था बस ये सोचकर उसको घर में स्थान दिया, अन्यथा मेरे जीवन में उसका कोई महत्व नहीं रही। इतना अपमान सहन करके भी वह मेरे साथ रही यह क्या उसका मुझपर कम अहसान है।(उसकी आँखों से दो आँसू छलक पडते हैं।
अँजुलि- सर! आज ही मैंने एक पत्रिका में पढ़ा है एड्स से डरने की कोई बात नहीं। यह संक्रामक रोग ही नहीं है। न यह हाथ से छूने से फैलता, न किस करने से, न साथ रहने से और यदि एड्स ग्रसित व्यक्ति की बहुत अच्छी तरह देखभाल की जाए तो उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाई जा सकती है। इस प्रकार इस बीमारी के कारण होने वाली मृत्यु को टाला जा सकता है।
गुप्ता जी- अब जीने की कोई लालसा नहीं।
अँजुलि- आप तो अपनी कीमत नहीं जानते, आप मेरे लिए पिता समान हैं और मैं पिता को पुन: खोना नहीं चाहती।
(अँजुलि भावुक हो जाती है। उसकी आँखों में आँसू छलक पडते हैं। सुनकर गुप्ता जी भी भावुक हो जाते हैं।)
अँजुलि- अच्छा सर! मैं चलती हूँ। कल मैं जल्दी आऊँगी; दोपहर की दवा मैं अपने हाथों से दूँगी।
अच्छा बेटा
(अँजुलि मंच से चली जाती है। तभी मंच पर एक स्त्री और पुरुष प्रवेश करते हैं)
गुप्ता जी- ( स्वगत) सुजाता ने अनुराग के पैदा होने के दो वर्ष बाद ही जुडव बच्चों को जन्म दिया लेकिन मैंने उनके पालन-पोषण में जरा भी सहयोग नहीं दिया । मैं सुजाता के साथ- साथ बच्चों का भी दोषी हूँ। सजा तो मुझे मिलनी ही चाहिए।
स्त्री व पुरूष- (हाथ जोड़ कर) नमस्ते पापा
गुप्ता जी- (सोते से जाग पडते हैं। आश्चर्य से देखते हुए) बेटा! तुम और बहू भी साथ में। आओ बेटा आओ । लेकिन क्यों आये हो आज?
कुछ भी नहीं बदला है मैं तो वही हूँ।
शमिता- माफ कर दो बाऊजी हमें। हम बहुत बड़ी गलती पर थे।
अनुराग -पापा! हम अपने आप से भागते हैं, अपनों से भागते हैं, लेकिन भाग्य से नहीं भाग सकते।
गुप्ता जी- ऐसा क्यों कह रहे हो बेटा?
अनुराग- पापा! इस घर के चिराग को एड्स बीमारी ने जकड़ लिया।
(गुप्ता जी सुनकर बिल्कुल सन्न रह जाते हैं। वे फटी आँखों से एक टक अनुराग को घूरतें रहते हैं।शमिता फूट -फूट कर रोने लगती है)
गुप्ता जी- इस मासूम ने क्या अपराध किया है? भगवन!
अनुराग- हमने अपराध किया है न पापा, हमने आपका तिरस्कार किया है। माँ बाप ,माँ बाप होते है। आपने हमें पाल पोसकर,पढ़ा- लिखा कर यहाँ तक पहुँचाया और हमने आपकी इतनी उपेक्षा की ,इससे बडा अपराध तो कोई हो ही नहीं सकता।
शमिता- हाँ पापा हम इंसान है और हमें इंसान बनकर ही रहना चाहिए।
गुप्ता जी- लेकिन इसे ये बिमारी क्यूँ?
अनुराग- पापा ये बिमारी संक्रमित सुंई, संक्रमित रक्त या एड्स रोगी से अच्छे व्यक्ति के रक्त के संम्पर्क के कारण भी हो जाती है। इससे ग्रस्त रोगी से नफरत करने का कोई औचित्य नहीं।
गुप्ता जी- हाँ बेटा! ये तो द्वितीय कारण है मेन कारण तो यौन संम्पर्क ही है न, इसका उदगम तो यौन संबन्ध ही है।; हम चाहे अपने को कितना भी निर्दोष सिद्ध करें प्रकृति हमें दंडित अवश्य करती है। यह हमारी तर्कशक्ति है कि हम किसी न किसी तरह अपने को सही सिद्ध कर ही लेते है।
अनुराग- हाँ पापा! सिद्धांत तो वही है चाहे अच्छाई का हो या बुराई का ,पेड़ बड़े लगाते हैं, फल आने वाली पीढ़ी खाती है।
शमिता- पापा हमें अपनी गलती समझ में आ गई है। आप हमारे साथ रहेंगे पहले की तरह।
अनुराग- हाँ पापा! बिमारी तो केवल हमारे शरीर पर प्रहार करती है, लेकिन अपनों का व्यवहार हमारी आत्मा पर प्रहार करता है। और व्यक्ति इतना बिमारी से नहीं टूटता जितना व्यवहार से टूट जाता है।
( गुप्ता जी की आँखों से आँसुओं की बरसात होने लगती है । उनके एक कंधे से शमिता और एक कंधे से अनुराग लग जाता है।
गुप्ता जी- हम अपने बेटे को इतना प्यार देंगे कि प्यार भी प्यार पाने को इच्छुक हो जायेगा; भरपूर पौष्टिक आहार देंगे और अपने प्रयासों एड्स को हरा देंगे। जब सावित्री अकेले यमराज को हरा सकती है हम तो पूरा घर मिलकर यमराज के विरूद्ध अभियान चलाएँगे। देखना जीत हमारी होगी
अनुराग व शमिता- जीत हमारी नहीं हमारी ही होगी।
पर्दा गिर जाता है।
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