तथाकथित विकास से पिसते निम्न मध्यम वर्ग को दिखाता उपन्यास (मास्टर प्लान) - समीक्षक -दिलबागसिंह विर्क

SHARE:

तथाकथित विकास से पिसते निम्न मध्यम वर्ग को दिखाता उपन्यास (मास्टर प्लान) .............................. समीक्षक -दिलबागसिंह विर्क डायमंड बुक...

तथाकथित विकास से पिसते निम्न मध्यम वर्ग को दिखाता उपन्यास (मास्टर प्लान)

..............................

समीक्षक -दिलबागसिंह विर्क

डायमंड बुक्स से प्रकाशित युवा लेखिका आरिफा एविस का उपन्यास "मास्टर प्लान" दिल्ली को टोकियो में बदलने के एक निम्न मध्यम वर्गीय परिवार पर पड़ते प्रभाव को दिखाता है। दिल्ली टोकियो तो नहीं बन पाता है, लेकिन इससे हजारों परिवारों का जीवन अंधकारमय बन जाता है। लेखिका ने कथानक में एक मुस्लिम परिवार को चुना है, जो दर्जी के पुश्तैनी धंधे से जुड़ा है और तरक्की के लिए कानपुर से दिल्ली आता है। तरक्की करता भी है, लेकिन कभी कुदरत की मार तो कभी सरकार की मार उसे फिर पुरानी स्थिति में ले जाती है। कुदरत की मार तो परिवार झेल जाता है, लेकिन सरकार का पहला झटका इस घर के बड़े लड़के को पागल बना जाता है तथा दूसरा झटका दूसरे लड़के को भीतर तक हिला जाता है, नायिका की माँ स्वर्ग सिधार जाती है और नई पीढ़ी के युवक से उसकी पढ़ाई छुड़वा लेती है। यह उपन्यास एक और झटके की खबर के साथ समाप्त होता है, जो निश्चित रूप से इस परिवार को प्रभावित करेगा ।

                उपन्यास के केंद्र में मुस्लिम परिवार है और इसके माध्यम से लेखिका ने मुस्लिम परिवार की कुरीतियों को दिखाया है। साम्प्रदायिक सौहार्द दिखाना भी लेखिका का प्रमुख उद्देश्य है। मुस्लिम परिवार को हिन्दू परिवारों से मदद मिलती है, हालांकि बदलते परिवेश की ओर भी इंगित किया गया है। तथाकथित नेता लड़कों के सामान्य झगड़े को सांप्रदायिक रंग देना चाहता है, लेकिन राम लाल की समझदारी उसे ऐसा करने से रोक देती है। यह उपन्यास गाय को लेकर फैली दहशत को दिखाता है, साथ ही उन परिस्थितियों का भी वर्णन करता है, जहाँ मिल-जुलकर रहने वाले हिन्दू-मुस्लिम परिवार भी एक-दूसरे के दुश्मन बन जाते हैं। हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर जो दंगे होते हैं, उनके प्रभाव को दिखाया गया। हुसैन कहता है -

"बेगम, दंगों में भी गरीब ही पिसा, उन्हीं का रोज़गार छूटा।"

और यह स्पष्ट किया गया है कि यह सब राजनीति का विषय है -

"मैंने तो अंजुम से न जाने कितनी बार कहा है, हिन्दू से नफरत या हिंदुओं का मुसलमानों से नफरत करना ये सब सियासी मसले हैं। तुमने देखा नहीं था राम बाबू को सियासी लोगों ने कितना भड़काया था।"

दंगे की दहशत के कारण अंजुम नहीं चाहती कि उसका पति दिल्ली जाए -

"देखिए, अब आप दिल्ली काम पर न जाओ। आप तो दिल्ली चले जाओगे पर यहाँ रहकर मेरा दिल घबराता रहेगा। वहाँ जाने के बाद आपकी न कोई चिट्ठी, न ही कोई खोज खबर बताने वाला। वक्त का क्या भरोसा आगे भी कोई दंगा फसाद हो गया तो फिर क्या होगा? मुझे सोचकर ही घबराहट होती है।"

दंगे के बाद घबराहट का माहौल सामान्य बात है। दंगे भले हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर होते हैं, लेकिन सामान्यतः सब मिलकर रहते हैं। हुसैन कहते हैं -

"बेशक देश में हिन्दू-मुस्लिम के दंगे हुए थे, लेकिन गरीब जनता धार्मिक पचड़ों में नहीं पड़ती, जिन्हें रोजी रोटी का जुगाड़ नहीं वो धार्मिक मामलों में क्या सुध लेंगे। ये हिन्दू-मुस्लिम तो लोगों को आपस में बाँटने के लिए हैं। क़ुरआन छपती है, उनकी बाइंडिंग कोई हिन्दू कारीगर भी करता है।"

        धर्म के विषय में लेखिका ने विस्तार से लिखा है। अंजुम बहुत ज्यादा कट्टर है। हिंदुओं द्वारा दिया खाना वह नहीं खाती। वह कहती है -

"मदद अपनी जगह है और खाना पीना अपनी जगह।"

कावड़ियों के वस्त्र तैयार करने में उसे परेशानी होती है, लेकिन वह गाय को हिन्दू मानने को तैयार नहीं है और इसे पालने की ज़िद करती है। इस्त्मे जाने के बाद उसका कट्टरपन बढ़ा है। वह बहू के साड़ी पहनने को पसंद नहीं करती।

"मुसलमान घरों की औरतें साड़ी नहीं बाँधती पर शबीना बाँधती है।"

जब-जब विपत्ति आती है, परिवार अंधविश्वास की तरफ झुकता है, धर्म से ज्यादा जुड़ता है। परिवार में आशा आधुनिक ख़्यालों वाली है। उसकी पढ़ाई उसके विरोध की धार को तेज करती है। रफी भी शुरू में विरोधी है, वह संगीत को लेकर सवाल करता है -

"पर अब्बू, मोहम्मद रफी भी तो गाते हैं, साहिर लुधियानवी गीत लिखते हैं और उस्ताद बिस्मिल्लाह खान शहनाई बजाते हैं और…"

रफी पढ़ नहीं पाता, शायद इसी कारण उसकी विरोधी प्रवृति धीरे-धीरे कुंद होती जाती है। वह धार्मिक लोगों के चंगुल में फँसता है, उन्हें पैसे देता है। आशा बताती है -

"कुछ मोमिन भाइयों ने जो मस्जिद की तरफ से सुबह सुबह गश्त के लिए ले जाने के नाम पर आते थे। वो दीन के नाम पैसा लिया, साथ ही उन्होंने अपने खुद के खर्च के लिए एक लाख के करीब पैसा ले रखा था।"

धर्म को लेकर एक समस्या इसके धर्म ग्रन्थों की भाषा है, जो आमजन की समझ से बाहर है। परिणामतः लोग इसकी व्याख्या के लिए धर्म के ठेकेदारों पर निर्भर करते हैं। इस उपन्यास में भी इस समस्या को उठाया गया है -

"दीनी तालीम अरबी में हम पढ़ तो सकते हैं, लेकिन समझ नहीं सकते।"

लेकिन आम आदमी धर्म के खोखलेपन से अनभिज्ञ हो ऐसा नहीं। कारखाने का दृश्य इसे साबित करता है -

"सिर पर टोपी हो न हो पर हाथ में कपड़ा था जिसको सिलना था, पेट के लिए यही धर्म और ईमान था।"

जब रफी संगीत सुनने की बात करता है तो कारीगर कहता है -

"अगर गाना नहीं सुनेंगे तो कोई काम नहीं कर पायेगा। मनहूसियत में कोई कितने घण्टे काम कर सकेगा। जब भूख लगेगी न ये सब दीन की बातें भूल जाओगे।"

स्पष्ट है, गरीब के लिए रोजगार पहले है, धर्म बाद में।

    उपन्यास का मुख्य विषय सरकार की नीतियों से परिवार की बर्बादी को दिखाना है। सरकार की मंशा पर रफी शुरू में ही सवाल उठाता है -

"मुझे जानना है कि मास्टर प्लान में दिहाड़ी मजदूर, सिलाई मजदूर या रेडी-पटरी, खोमचे वालों के लिए भी कोई योजना है क्या?"

मास्टर प्लान की बात उपन्यास के दूसरे अध्याय में की गई। चुनाव के दौरान नेता इसकी घोषणा करते हैं। बारहवें अध्याय से इसका असर दिखता है। पहले सीलिंग के नाम से लोगों को उजाड़ा जाता है, फिर नोटबन्दी से लोगों को परेशान किया जाता है और अंत में जी एस टी लागू हो जाती है। लेखिका ने सीलिंग का अर्थ भी स्पष्ट किया है -

"रहने लायक जगह को रोजगार यानी व्यापार के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। अब उस जगह का व्यापारिक कामों में इस्तेमाल करना गैरकानूनी है। इसी वजह से पता नहीं कब किसका मकान सीलिंग की जद में आ जाये, सब घबराए हुए हैं।"

कानून और तकनीकी बातों को भी विस्तार से बताया है। सीलिंग के बारे में उनका मत है -

"सीलिंग विलिंग, कुछ नहीं है बस विकास के नाम पर गरीब बस्तियों को उजाड़ने का एक हथियार है।"

नोटबन्दी के बाद की दशा का चित्रण किया है -

"जितना आसान मैं नोट बदलने की प्रक्रिया समझ रहा था वैसा नहीं है। यहाँ लोगों का जन सैलाब चींटियों की मानिंद खड़ा है।"

सरकार अपनी नीतियों के लिए आम जनता को अन्य मुद्दों में उलझाए रखती है-

"सीलिंग, नोटबन्दी की वजह से लोगों के घर तबाह हो रहे हैं पर इस पर घरों में कोई बात नहीं होती। किसी की लड़की कब कहाँ क्यों जाती है, इस पर खूब बात होती है। यह सब सरकारी एजेंडे के तहत हो रहा है कि लोग पारिवारिक मामलों में उलझे रहें और सरकार अपनी नीतियों को लागू करती रहे।"

सरकार का विरोध करने के लिए यूँ तो यूनियन बनी हुई हैं, लेकिन यूनियन में भी सरकार का हस्तक्षेप रहता है -

"बिटिया, यूनियन वुनियन सब नाम की है। यूनियन में भी आधे लोग उन्हीं की पार्टी के हैं।"

     इन दो मुद्दों के अलावा सरकार और राजनीति को लेकर भी इस उपन्यास में बहुत कुछ कहा गया है। सरकार को भगवान से भी ताकतवर कहा गया है -

"अल्लाह आग लगाए तो भी हम बच सकते हैं पर सरकार आग लगाएगी तो कोई नहीं बुझा पाएगा।"

सरकारी योजनाएँ जब आम आदमी तक नहीं पहुँचती तो जनता दुखी भी होती है और सरकार को दोषी भी मानती है, इसी का नमूना है -

"कुछ नहीं करती है यह सरकार वरकार, वोट लेने हैं तो खूब वादे करती है, झूठे शिगूफे दिखाकर निकल लेती है पांच साल के लिए। तुम्हारे अब्बू की एक वृद्ध पेंशन तक बंध नहीं सकी। पेंशन के लिए गए तो तमाम पचड़ों में फंसा दिया। कभी कहते हैं विधायक से लिखाकर लाओ कि तुम गरीब हो। अरे उन्हें शक्ल देखकर नहीं पता चलता कि सामने वाला बन्दा बुजुर्ग और गरीब है। रोज रोज अच्छे दिन का हवाला दे रहे थे, आज तक हमारे अच्छे दिन नहीं आये।"

विकास के दावे किए जाते हैं, लेकिन वास्तविक स्थिति इससे भिन्न है -

"विकास तो दिख रहा था पर ऊपरी तौर पर। सड़कें तो बनी थी पर साथ में गड्ढे भी बने थे। सड़क किनारे शहर को साफ रखने के नारे भी उकेरे थे पर नारे तो थे शहर साफ नहीं था।"

इन्हीं हालातों से तंग आकर कुछ लोग गलत कदम उठा लेते हैं, जैसे रफी कहता है -

"कभी कभी दिल करता है कि कोई बंदूक दे दे और इन नेताओं को उड़ा दूँ।"

लेखिका ने चुनावी माहौल में रैलियों के सच को भी दिखाया है -

"हमने जुम्मन और बलबीर को तीन रैलियों का पेमेंट पहले ही कर दिया है।"

  उपन्यास का फलक बहुत बड़ा होता है, इसलिए इसमें जीवन के टीम विषयों पर चर्चा सहज ही हो जाती है, यह उपन्यास भी इससे अछूता नहीं। नारी समाज का महत्त्वपूर्ण अंग है, लेकिन नारी की स्थिति अच्छी नहीं, इसका चित्रण भी इस उपन्यास में किया गया है। नारी पर अनेक बंदिशें हमारा समाज लगाता है। मुस्लिम समाज में यह स्थिति और अधिक दयनीय है। बुर्के पर आशा कहती है -

"सारा पर्दा औरतों के लिए ही है, मर्द लोग बुरका क्यों नहीं पहनते।"

लड़कियों को पढ़ाने की परंपरा नहीं-

"ये तो मेरे कहने पर तुमको पढ़ा रहे हैं वरना तुम भी अपनी खानदान की लड़कियों की तरह अनपढ़ रहती।"

मुसलमान घरों की स्थिति स्पष्ट की गई है -

"मेरी बच्ची! तुम्हें कैसे समझाऊँ कि मुसलमान घरों की औरतें दीनी तालीम ज्यादा और स्कूली तालीम कम हासिल करती हैं।"

उपन्यास के अंतिम अध्याय में जब आशा लड़कियों से पूछती है कि वे उसके बारे में क्या जानती हैं तो लड़कियों का उत्तर है -

"ये पूछो आपके बारे में क्या नहीं पता। एक आवारा लड़की जो घर नहीं रहती। शादी नहीं कर रही। घर से भाग गई है। किसी से शादी कर ली है। खानदान की नाक काट दी है। जुबान चलाती है।"

ये सब बातें बताती हैं कि लड़की का पढ़-लिखकर नौकरी करने लगना कितना बुरा समझा गया है, हालांकि बदलाव हो रहा है। आशा जब लड़कियों से उनकी पढ़ाई की बात पूछती है तो कोई एम.ए. बता रही है, कोई एल.एल.बी. यानी आशा एक आदर्श के रूप में भी स्थापित हो रही है। रफी भी अपनी पत्नी से कहता है -

"इसीलिए कहते हैं घर में पढ़ी लिखी बहू का होना ज़रूरी है, तुम्हारी सूरत देख के ब्याह लिया, आज पछतावा हो रहा है।"

नारी पर अनेक तरह के अत्याचार होते हैं, जिनमें घरेलू हिंसा भी है, शारीरिक उत्पीड़न भी। घरेलू हिंसा की झलकियाँ इस उपन्यास में भी हैं। शारीरिक उत्पीड़न सिर्फ घर से बाहर निकलने पर हो ऐसा नहीं। आशा कहती है -

"अब्बू जो लड़कियाँ घरों में रहती हैं क्या उनके साथ छेड़खानी, बलात्कार नहीं होते? घर में कौन सुरक्षित है? अपने ही जीजा, चचेरे, ममेरे भाई घर में लड़कियों के साथ गलत काम कर जाते हैं और घर में भनक भी नहीं पड़ती।"

नारी के प्रति समाज का नज़रिया जो भी रहे, ये सच है कि नारी स्वभाव से भी मेहनती है और मेहनत उसकी मजबूरी भी बना दी गई है-

"मुझे तो इतना समझ में आता है कि औरत के लिए भी न रात होती है न दिन। घड़ी की तरह बिना रुके काम किये जाना उसकी नियति हो गई है। जिस तरह घड़ी का रुकना ठीक नहीं उसी तरह औरत का रुकना भी ठीक नहीं माना जाता।"

समाज से जुड़े अन्य अनेक मुद्दे बीच-बीच में आए हैं। शादी को लेकर चर्चा होती है।

"बेवजह लोग कहते हैं कि जोड़े ऊपर से बनकर आते हैं , हमारे यहाँ जोड़े शादियों में ही बनते हैं। यानी शादी माँ बाप के लिए लड़का लड़की पसन्द करने का केंद्र है।"

जैसे हिन्दू धर्म में कन्यादान बहुत महत्त्वपूर्ण है, उसी तरह उपन्यास में कहा गया है -

"बेटी की शादी एक हज की तरह है।"

घरों में बंटवारे के लिए औरत को दोषी ठहराया गया है -

"अलग होने का काम मर्द नहीं करते औरतें करती हैं। सास बहू में तक़रार होगी पर बाप-बेटे में नहीं।"

शिक्षा महँगी है, इसलिए गरीब परिवार उच्च शिक्षा हासिल नहीं कर सकता -

"देखो बेटा, इंसानों का डॉक्टर तो हम बना नहीं सकते। सुना है डॉक्टरी की पढ़ाई में बहुत पैसा लगता है। लोगों के खेत बिक जाते हैं, मैंने तो यहाँ तक सुना है कि इंसान खुद बिक जाता है। हमारी इतनी औकात नहीं।"

गरीब आदमी का कोई महत्त्व नहीं -

"गरीब आदमी की क्या इज्जत और क्या बेइज्जती।"

रोजगार के लिए किस प्रकार भटकना पड़ता है, इसे दिखाया है -

"तुम्हीं बताओ क्या रखा है इस कस्बे में? पहले हम गाँव छोड़कर इस कस्बे में आये। किसलिए? सिर्फ रोजी रोटी के लिए ही न? अगर गाँव में गुजारा चल जाता तो कौन अपना घर परिवार छोड़ना चाहेगा?"

माँ-बेटे के प्रसंग से नेता और उनके भक्तों पर तंज किया गया है -

"जब नालायक औलाद की पैरवी माँ करने लगे तो किसी को क्या कहा जाए? ये तो वही बात हुई नेता बलात्कारी है, लेकिन उसके भक्त उसे बेगुनाह साबित करने पर तुले हुए हैं।"

धन और पूंजी के अंतर को बताया है -

"अब पूँजी धन में बदल रही है।"

    पात्रों की दृष्टि से यह हुसैन के परिवार के सदस्य ही प्रमुख पात्र हैं। हुसैन की पत्नी अंजुम, दो पुत्र रफी और रहमान, एक पुत्री आशा और पुत्रवधू शबीना। हुसैन दर्जी है, वह ज्यादा बड़े सपने नहीं देखता और भाग्यवादी है -

"अल्लाह ने नसीब में जितना लिखा है, उसे उतना ही मिलता है। नसीब से जो मिल रहा है, उसे अल्लाह की रहमत समझकर हँसी खुशी से कुबूल कर लो।"

संगीत विरोधी है, बेटे से असहमत रहता है। भारत के शासक मुस्लिम थे, उसका उसे गर्व है, तभी वह लाल किले को देखकर कहता है -

"यह हमारे पुरखों की निशानी है।"

हालांकि इसे उसका झूठ दंभ समझा जाना चाहिए। अंजुम इस दंभ को नहीं मानती, हालांकि वह हुसैन से ज्यादा कट्टर है। रफी महत्त्वाकांक्षी युवक है, वह कारखाने का सपना देखता है -

"क्या फेल आदमी व्यापार नहीं कर सकता? क्या फेल आदमी सफल नहीं हो सकता? एडीसन भी अपने कई प्रयोगों में असफल हुआ था तो क्या उसने प्रयोग करने छोड़ दिये?"

वह दसवीं में फेल हुआ इसके लिए उसे सदा ताने सुनने पड़ते हैं -

"तुम्हारे पास गुरूर और गुस्से के अलावा कुछ नहीं है। बड़ी-बड़ी बातें करवा लो नेताओं की तरह। इतने बड़े ही ख्वाब थे तो पास हो गए होते, यूँ दसवीं फेल न होते।"

पिता का कथन उसके चरित्र को भी उद्घाटित करता है। व्यापार चौपट होने का असर उसके स्वभाव पर भी पड़ता है। हुसैन कहते हैं -

"नवाब अब कारखाने में लड़ाई करने लगे हैं।"

कारखाने पर कुदरत की मार या सरकार की मार पड़ने पर वह अंधविश्वास में पड़ता है।

   आशा इस उपन्यास का बेहद महत्त्वपूर्ण पात्र है। वह विद्रोही प्रवृत्ति की है। कुरआन में किताब रखकर पढ़ती है। वह सवाल करती है -

"टीवी -रेडियो देखना सुनना हराम है, तो मस्जिद में माइक क्यों है? मौलाना साहब कलाम क्यूँ पढ़ते हैं? बच्चों को नज्म पढ़ने के लिए क्यों कहते हैं? वो खुद कव्वाली क्यों सुनते हैं?"

अम्मी को समझाती है -

"अम्मी! खाने का कोई मजहब नहीं होता। खाना खुद एक मजहब है।"

उसके भ्रम को तोड़ने की कोशिश करती है -

"जब बारिश हुई तब क्या उसने मुस्लिम और गैर मुस्लिम का घर देखा? नहीं ना फिर आप.."

लड़के वालों के व्यवहार पर कहती है -

"लड़की देखने आए थे या सामान खरीदने।"

जीवन को जीने के पक्ष में है -

"गरीब आदमी शौक नहीं शोक करता है। अपने शौक पूरी करना अच्छी बात है। शौक ही नहीं होगा तो आदमी कमाएगा किस लिए।"

उसे खुद पर विश्वास है तभी वह

"हिम्मत ए मर्दा तो मदद ए ख़ुदा" की बजाए

हिम्मत ए मर्दा तो मदद ए इंसा" कहना उचित समझती है।

    उपन्यास में संवाद के माध्यम से पीढ़ीगत अंतर को दिखाया है। समस्याओं को उद्घाटित किया गया है। वातावरण चित्रण में भी लेखिका सफल रही है -

"रात गहरा रही थी। कमरे की छोटी-सी खिड़की पर रखे लैम्प की रोशनी आँगन में ऐसे बिखर रही थी, जैसे वह सुबह का उजाला बनने के लिए तड़प रही हो।"

दिल्ली के इलाकों को चित्रित किया गया है। दिल्ली के बारे में लेखिका लिखती है -

"दिल्ली भी एक नहीं है, दिल्ली के अंदर भी कई दिल्ली हैं।"

    लेखिका ने वर्णनात्मक, संवादात्मक शैली को अपनाया है। मनोविज्ञान का प्रयोग हुआ है। जब-जब कारखाने में समस्या आती है, घर में तनाव बढ़ता है, धर्म और अंधविश्वास की तरफ झुकाव होता है। भाषा सरल और मुहावरेदार है। कुछ नमूने -

"चले थे हरी भजन को ओटन लगे कपास। स्कूल मास्टर ने सही पढ़ा था किताब में कि दूर के ढोल सुहावने ही होते हैं।"

"भला डूबते सूरज को कौन सलाम करता है।"

"लौट के बुद्धू घर को आए।"

"न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी।"

"अंडे में से मुर्गी निकली नहीं कि चूं-चूं शुरू कर दी।"

     हालांकि वाक्य विन्यास को लेकर अभी थोड़े सुधार की ज़रूरत है। हालांकि इन थोड़ी से कमियों के कारण इस उपन्यास के महत्त्वपूर्ण बिंदुओं को नकारा नहीं जा सकता। यह मौजूदा समय का दस्तावेज है। उस दौर में जब मीडिया चारण बनता जा रहा है यह सरकार की आलोचना का साहस भरा क़दम है, जिसकी तारीफ की जानी चाहिए।

पुस्तक का नाम - मास्टर प्लान

लेखिका - आरिफा एविस

प्रकाशक - डायमंड पॉकेट बुक्स

कीमत -150

पृष्ठ - 136

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: तथाकथित विकास से पिसते निम्न मध्यम वर्ग को दिखाता उपन्यास (मास्टर प्लान) - समीक्षक -दिलबागसिंह विर्क
तथाकथित विकास से पिसते निम्न मध्यम वर्ग को दिखाता उपन्यास (मास्टर प्लान) - समीक्षक -दिलबागसिंह विर्क
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiDtZJu8Vk_cciAsmslfUY9AyxwvwkRw7dk2t4pAwM1dLVO0-NrpJ78cNrDqJKHx0sH5VryyGoR2w6j-9XaguN2c0WwNb1m-0TScOV9Wo2g_hz2Rr6EYvoKEWTUf7wiMnxWqwyo/s320/facebook_1583384932832-726647.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiDtZJu8Vk_cciAsmslfUY9AyxwvwkRw7dk2t4pAwM1dLVO0-NrpJ78cNrDqJKHx0sH5VryyGoR2w6j-9XaguN2c0WwNb1m-0TScOV9Wo2g_hz2Rr6EYvoKEWTUf7wiMnxWqwyo/s72-c/facebook_1583384932832-726647.jpg
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2020/03/blog-post_29.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2020/03/blog-post_29.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content