गांधी जी के १५०वें जन्म वर्ष में - महात्मा गांधी का स्वास्थ्य उनका स्वच्छता अभियान और छूत की बीमारियां विवेक रंजन श्रीवास्तव ए १, शिला कुंज...
गांधी जी के १५०वें जन्म वर्ष में -
महात्मा गांधी का स्वास्थ्य उनका स्वच्छता अभियान और छूत की बीमारियां
विवेक रंजन श्रीवास्तव
ए १, शिला कुंज, रामपुर, जबलपुर
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पहचान उनके अहिंसा के आदर्श के साथ ही स्वच्छता अभियान, अस्पृश्यता निवारण व कुष्ठ रोगियों तक की सेवा में खुले दिल से उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को लेकर है.
अपनी आत्मकथा " सत्य के साथ मेरे प्रयोग" में, गांधी लिखते हैं -' मैं सोलह वर्ष का था. मेरे पिता, फिस्टुला से पीड़ित थे. मेरी मां घर की सेवा करते-करते बुजुर्ग हो चुकी थी, और मैं उनका प्रमुख परिचारक था. मैंने एक नर्स की भांति उनकी सेवा में अपना कर्तव्य निभाया... हर रात मैं उनके पैरों की मालिश करता था और तब तक करता रहता था, जब तक कि वे सो ना जाएं. मुझे यह सेवा करना पसंद था.
'गांधी जी का पहला बच्चा उनके घर में ही पैदा हुआ था. उन्होंने साउथ आर्मी में रहते हुए नर्सिंग सीखी थी. उन्होंने लिखा है, 'मुझे छोटे अस्पताल में सेवा करने का समय मिला... इसमें मरीजों की शिकायतों का पता लगाने, डॉक्टर के सामने तथ्यों को रखने और पर्चे बांटने का काम शामिल था. इसने मुझे पीड़ित भारतीयों के साथ घनिष्ठ संपर्क में ला दिया, उनमें से अधिकांश तमिल, तेलुगु या उत्तर भारत के पुरुष थे.... मैंने बीमार और घायल सैनिकों की नर्सिंग के लिए अपनी सेवाओं की पेशकश की थी... मेरे दक्षिण अफ्रीका में दो बेटे पैदा हुए और अस्पताल में किये गये मेरे कार्य का अनुभव उनके पालन-पोषण में मददगार रहा.
अपने माता पिता की बीमारियों की परिस्थितियों का सामना करने के दौरान गांधी जी को शरीर, स्वास्थ्य और दवाओं के बारे में काफी जानकारी मिली और इसका उनपर गहरा प्रभाव पड़ा. एक तरफ स्वच्छता की भूमिका और दूसरी ओर पारंपरिक प्रथाओं की तुलना में आधुनिक सर्जरी की उत्कृष्टता ने उन्हें गहराई से प्रभावित किया.
हाल ही उनकी हेल्थ फाइल पहली बार सामने आई है. इसमें गांधी जी के स्वास्थ्य को लेकर कई विवरण सामने आये हैं। इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च (IJMR) के स्पेशल एडिशन में इससे जुड़े फैक्ट्स पहली बार प्रकाशित किए गए हैं.
गांधीजी हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित थे. 1939 में उनका वजन 46.7 किलो और ऊंचाई 5 फिट 5 इंच थी. उन्हें 1925, 1936 और 1944 में तीन बार मलेरिया हुआ. उन्होंने 1919 में पाइल्स और 1924 में अपेन्डिसाइटिस का ट्रीटमेंट करवाया था. लंदन में रहने के दौरान वे प्लूरिसी के रोग से भी पीड़ित रहे. गांधी जी प्रतिदिन औसत 18 किमी पैदल चला करते थे. 1913 से लेकर 1948 तक की कैंपेनिंग के दौरान वे करीब 79 हजार किमी पैदल चले. गांधीजी स्वयं को प्राकृतिक तरीकों से स्वस्थ रखते थे. नेचुरोपैथी में उनका भरोसा था. संतुलित आहार, प्राकृतिक इलाज और फिजिकल फिटनेस की महत्ता को वे समझते थे. उन पर जनता की आकांक्षा का दबाव तो था ही साथ ही अंग्रेजी शासन से जूझने की नीति तय करने का दबाव भी था, क्रांति की सामान्य सोच के विपरीत अहिंसा की सोच थी किंतु इतने तनाव के बाद भी गांधी जी के हृदय में कभी कोई समस्या नहीं आई, उनकी 1937 में हुई ईसीजी जांच से यह तथ्य स्पष्ट होता है. वे कहते थे कि जो मानसिक श्रम करते हैं, उनके लिए भी शारीरिक परिश्रम करना बेहद जरूरी है. वे शाकाहार के प्रबल समर्थक थे.गांधी जी ने हाइड्रोथेरेपी या जल-शोधन, फाइटोथेरेपी (पौधों द्वारा उपचार), मिट्टी के पुल्टिस (मिट्टी और कीचड़ द्वारा उपचार), और आत्म-नियमन पर जीवन पर्यंत जोर दिया. पुस्तक हिंद स्वराज में वे कहते हैं, 'मैं एक समय चिकित्सा पेशे का बड़ा प्रेमी था. देश की खातिर मैं डॉक्टर बनना चाहता था.
लंबे समय तक भारत में क्षय रोग तथा चेचक बहुत घातक बीमारियां थी. चेचक के बारे में समाज में धारणा थी कि किसी गलती, पाप या दुराचार के परिणाम स्वरूप यह बीमारी होती थी. गांधी जी ने कहा कि सावधानी के साथ चेचक के रोगियों को छूने व उनकी सेवा करने से यह बीमारी नहीं हो जाती. गांधी जी दवाओं के पेटेंट एवं चिकित्सा हेतु विज्ञापनों के विरोधी थे. वैकल्पिक रूप से, उन्होंने स्वच्छता व प्राकृतिक जीवन शैली पर जोर दिया जिससे बीमारियां होने ही न पावें. जिस समय बापू लोगों को आजादी के लिए एकजुट करने में लगे हुए थे तब भारत में अस्पृश्यता और छुआछूत का बोलबाला था, कुष्ठ रोग के प्रति समाज में उपेक्षा का भाव था. गांधी जी ने स्वयं जमीनी कार्यकर्ता के रूप में सफाई अभियान को अपनाया, कुष्ठ रोगियों की सेवा से वे कभी पीछे नहीं हटे.
गांधी की पुण्य तिथि को भारत सरकार एंटी लिपरेसी डे के रूप में मनाती है. गांधी जी ने अपने चंपारण प्रवास के दौरान विशेष रूप से कुष्ठ रोगियों की बहुत सेवा की थी तब अंग्रेजों द्वारा किसानों से जबरदस्ती नील की खेती कराई जाती थी. नील की खेती के साइड अफेक्ट के रूप में किसानों को कुष्ठ रोग होने लगा था. गांधी जी ने चम्पारण सत्याग्रह से चम्पारण वासियों को नील की खेती करने पर मजबूर करने वाले जमींदारों के आतंक तथा शोषण से मुक्ति दिलाई तथा स्वच्छता और स्वास्थ्य के प्रति लोगों को जागरूक कर अपनी अवधारणाओं को प्रतिपादित किया. यह आंदोलन स्वतंत्रता इतिहास का स्वर्णिम अध्याय का सृजित करता है. चम्पारण के किसान शरीर से दुर्बल और बीमार रहते थे, नील की खेती से किसान कुष्ठ व क्षय रोग के शिकार हो रहे थे. गांधी जी व स्वयंसेवकों ने मैला ढोने, धुलाई, झाडू-बुहारू तक का काम किया. स्वास्थ्य जागरूकता का पाठ पढाते हुए लोगों को उनके अधिकारों का ज्ञान कराया गया, ताकि किसान स्वस्थ रह सकें और अपने में रोग प्रतिरोधक क्षमता को विकसित कर सकें. गांधीजी ने स्वच्छ और स्वस्थ रहने के संदर्भ में कहा था कि हमें अपने संस्कारों और स्थापित विधियों को नहीं भूलना चाहिए. स्वच्छ रहकर ही हम स्वस्थ रहेंगे.
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