इटली की लोक कथाएँ–2 : 11 - तीन बुढ़ियाँ // सुषमा गुप्ता

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एक बार तीन बहिनें थीं और तीनों जवान थीं। उनमें से एक की उम्र 67 साल थी, दूसरी की 75 साल थी और तीसरी 95 साल की थी। इन लड़कियों के घर में एक स...

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एक बार तीन बहिनें थीं और तीनों जवान थीं। उनमें से एक की उम्र 67 साल थी, दूसरी की 75 साल थी और तीसरी 95 साल की थी।

इन लड़कियों के घर में एक सुन्दर सी छोटी सी बालकनी थी जिसके बिल्कुल बीचोबीच एक बड़ा सा छेद था जिसमें से वे सड़क पर आते जाते लोगों को देख सकती थीं।

एक बार उस 95 साल वाली लड़की ने एक बहुत ही सुन्दर नौजवान को सड़क पर आते हुए देखा तो जैसे ही वह उसकी बालकनी के नीचे से गुजरा तो उसने अपना खुशबूदार बढ़िया रूमाल उठाया और उसको नीचे फेंक दिया।

उस नौजवान ने उस रूमाल को उठा लिया, उसकी खुशबू महसूस की और सोचा कि यह रूमाल जरूर ही किसी बहुत सुन्दर लड़की का होगा।

पहले तो वह थोड़ी दूर आगे चला गया पर फिर वापस आया और उस घर का दरवाजा खटखटाया जिसकी बालकनी से वह रूमाल नीचे गिरा था।

उन तीनों बहिनों में से एक बहिन ने दरवाजा खोला तो उस नौजवान ने उससे पूछा — “क्या आप मुझे बतायेंगी कि यहाँ कोई जवान लड़की रहती है क्या?”

“हाँ हाँ, और एक ही नहीं है तीन तीन हैं।”

वह नौजवान वह रूमाल दिखाते हुए बोला — “क्या आप मुझे उस लड़की के पास ले चलेंगी जिसका यह रूमाल है?”

“नहीं, यह तो मुमकिन नहीं है। क्योंकि यह हमारे घर का नियम है कि शादी से पहले लड़की नहीं देखी जा सकती।”

वह नौजवान उस लड़की की सुन्दरता को सोच सोच कर पहले से ही बहुत उत्साहित था सो वह बोला — “यह कोई बड़ी बात नहीं है। मैं उससे उसको बिना देखे ही शादी कर लूँगा।

अभी तो मैं यह खबर अपनी माँ को बताने जा रहा हूँ कि मैंने एक सुन्दर सी लड़की ढूँढ ली है जिससे मैं शादी करने जा रहा हूँ।”

इतना कह कर वह तुरन्त ही वहाँ से चला गया। वह घर पहुँचा और जा कर सारा किस्सा अपनी माँ को बताया। तो माँ बोली — “बेटा, अपना ख्याल रखना। उनको तुम अपने आपको धोखा मत देने देना। कुछ करने से पहले सोच लेना।”

नौजवान बोला — “माँ, वे लोग कुछ ज़्यादा नहीं माँग रहे हैं। और अब तो मैंने उनको जबान भी दे दी है। और एक राजा को अपनी बात तो रखनी ही चाहिये।”

अब यह नौजवान इत्तफाक से एक राजा था। माँ से बात करके वह लौट कर फिर दुलहिन के घर आया और फिर से उसके घर का दरवाजा खटखटाया।

फिर से पहले वाली बुढ़िया ही बाहर निकल कर आयी तो राजा ने उससे पूछा — “क्या आप उसकी दादी हैं?”

“तुमने ठीक जाना। मैं उसकी दादी ही हूँ।”

“अगर आप उसकी दादी हैं तो मेरे ऊपर एक मेहरबानी कीजिये। मुझे उस लड़की की कम से कम एक उँगली ही दिखा दीजिये।”

“नहीं, अभी नहीं। इसके लिये तुमको कल आना पड़ेगा।”

नौजवान राजा ने उसको गुड बाई कहा और वहाँ से चला आया। जैसे ही वह नौजवान चला गया उन बुढ़ियों ने एक दस्ताने की उँगली की नकली उँगली बनायी और उस पर एक नकली नाखून लगा दिया।

नौजवान राजा भी घर चला तो गया पर उस उँगली को देखने की उत्सुकता में वह रात भर सोया नहीं। अगले दिन आखिर सूरज निकला तो वह जल्दी से तैयार हो कर दुलहिन के घर की तरफ दौड़ा।

दरवाजा खटखटाने पर फिर उसी बुढ़िया ने दरवाजा खोला तो नौजवान बोला — “दादी माँ, मैं अपनी दुलहिन की उँगली देखने आया हूँ।”

“हाँ हाँ, अभी लो। तुम इस चाभी वाले छेद में से उसे देख सकते हो।”

दुलहिन ने वह नकली उँगली उस छेद में से बाहर कर दी। नौजवान ने उस उँगली को चूमा और हीरे की एक अँगूठी उसको पहना दी।

प्यार में पागल उसने उस बुढ़िया से कहा — “मुझे उससे अभी शादी करनी है दादी माँ। मैं अब और इन्तजार नहीं कर सकता।”

“अगर तुम चाहो तो तुम उससे कल ही शादी कर सकते हो।”

“बहुत बढ़िया। मैं उससे कल ही शादी कर लूँगा। यह एक राजा का वायदा है।”

वे तीनों बुढ़ियें खुद भी बहुत अमीर थीं सो रात भर में ही उन्होंने शादी का छोटे से छोटा सब सामान इकठ्ठा कर लिया। अगले दिन दुलहिन की दोनों बहिनों ने दुलहिन को सजा दिया।

राजा भी अगले दिन आ गया और बोला — “दादी माँ मैं आ गया।”

“ज़रा ठहरो, हम उसको तुम्हारे पास अभी लाते हैं।”

उसके बाद दुलहिन अपनी दोनों बहिनों की बाँहों में बाँहें डाल कर सात परदों से ढकी वहाँ आ गयी।

उसकी बहिनों ने राजा से कहा — “याद रखना, तुम उसके चेहरे को तब तक मत देखना जब तक तुम अपने कमरे में न पहुँच जाओ।”

फिर वे सब चर्च चले गये और वहाँ उनकी शादी हो गयी। उसके बाद राजा दुलहिन को शाम के खाने के लिये ले जाना चाहता था पर उन बुढ़ियों ने मना कर दिया।

उन्होंने कहा — “दुलहिन को ऐसी बेवकूफियाँ अच्छी नहीं लगतीं। वह वहाँ नहीं जायेगी।”

सुन कर राजा बेचारा चुप रह गया।

तो अब तो वह बस रात का इन्तजार कर रहा था जब वह अपनी दुलहिन के साथ अपने कमरे में अकेला होगा और उसका सुन्दर चेहरा देखेगा।

आखिर वह समय भी आया जब वे बुढ़ियें उसकी दुलहिन को उसके कमरे में ले गयीं पर उन्होंने राजा को अन्दर नहीं घुसने दिया। उसको कमरे के बाहर ही खड़े रखा।

कुछ देर बाद ही उन्होंने उसको अन्दर जाने दिया। अन्दर जा कर उसने देखा कि दुलहिन तो चादर से ढकी लेटी हुई थी और उसकी दोनों बुढ़िया बहिनें कमरे में कुछ कुछ करती इधर उधर घूम रही थीं।

राजा ने अपने कपड़े बदले और वे बुढ़ियें लैम्प ले कर कमरे से बाहर चली गयीं। पर राजा अपनी जेब में एक मोमबत्ती ले कर आया था सो उसने वह मोमबत्ती निकाली और जला ली।

उस मोमबत्ती की रोशनी में उसने देखा कि वहाँ तो झुर्रियों से भरे हुए चेहरे वाली एक बुढ़िया थी।

उस बुढ़िया को देख कर एक पल के लिये तो वह सन्न रह गया और डर के मारे हिल भी नहीं सका। फिर गुस्से में आ कर उसने अपनी पत्नी को पकड़ा और हवा में घुमा कर खिड़की से बाहर फेंक दिया।

इत्तफाक से खिड़की के नीचे बेलों से ढकी हुई कुछ डंडियाँ खड़ी थीं। गिरते समय उस बुढ़िया की स्कर्ट उनकी एक डंडी में अटक गयी और वह नीचे गिरने की बजाय हवा में ही लटकी रह गयी।

इत्तफाक से उस रात तीन परियाँ बागीचे में घूम रही थीं कि वे उस डंडी के नीचे से गुजरीं तो उनको वह झूलती हुई बुढ़िया दिखायी दे गयी।

यह नजारा देख कर तो उन तीनों परियों की हँसी छूट गयी। और वे तब तक हँसती रही जब तक उनके पेट में हँसते हँसते बल नहीं पड़ गये।

जब उनकी हँसी कुछ रुकी तो एक परी बोली — “अब जब कि हम उसकी इस हालत पर इतना हँस चुके हैं तो अब हमें इसकी कुछ सहायता भी करनी चाहिये।”

दूसरी परी बोली — “हाँ यह तो ठीक है। हमको इसकी कुछ सहायता तो जरूर ही करनी चाहिये।”

पहली परी बोली — “मैं इसको दुनिया की सबसे सुन्दर लड़की बना दूँगी।”

दूसरी परी बोली — “मैं भी। कि इसको दुनिया में सबसे सुन्दर पति मिले और वह इसको ज़िन्दगी भर दिल से प्यार करे।”

तीसरी परी बोली — “मैं भी। कि यह ज़िन्दगी भर बहुत ही भली औरत बन कर रहे।”

और उसके बाद वे परियाँ वहाँ से चली गयीं।

अगले दिन जब राजा सो कर उठा तो वह पिछली बातों को याद करने लगा। यह यकीन करने के लिये कि कल वाली बातें सब सच थीं सपना नहीं थीं उसने अपनी खिड़की खोली और देखा कि जिस बुढ़िया को उसने कल रात खिड़की से बाहर फेंका था वह वहाँ है कि नहीं।

पर उसको तो यह देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ कि उस डंडी पर तो दुनिया की सबसे सुन्दर लड़की बैठी हुई थी। उसने अपना सिर पीट लिया — “ओह, यह मैंने क्या किया?”

उसको तो यह समझ ही नहीं आ रहा था कि वह उसको उस डंडी से ऊपर कैसे खींचे। लेकिन फिर उसने बिस्तर की एक चादर ली और उसका एक सिरा उस लड़की की तरफ फेंक दिया।

उस लड़की ने वह सिरा पकड़ लिया और राजा ने उस चादर का दूसरा सिरा पकड़ कर उसे अपने कमरे में खींच लिया।

एक बार उसको फिर अपने पास देख कर राजा बहुत खुश हुआ और उसने उससे माफी माँगी। उस लड़की ने तुरन्त ही उसको माफ कर दिया और फिर वे आपस में बहुत अच्छे दोस्त बन गये।

कुछ देर बाद किसी ने दरवाजा खटखटाया तो राजा बोला — “शायद दादी माँ होगी। अन्दर आ जाओ, अन्दर आ जाओ दादी माँ।”

बुढ़िया अन्दर घुसी और उसने बिस्तर की तरफ देखा तो देखा कि वहाँ तो उसकी 95 साल की बुढ़िया बहिन की बजाय एक बहुत ही सुन्दर लड़की बैठी हुई है।

वह लड़की उससे ऐसे बोली जैसे कुछ हुआ ही न हो — “क्लैमेन्टाइन , ज़रा मेरी कौफ़ी तो बना लाना।”

लड़की की बुढ़िया बहिन ने अपने मुँह से निकलने वाली आश्चर्य भरी चीख को रोकने के लिये अपना हाथ अपने मुँह पर रख लिया। फिर यह दिखाते हुए कि सब कुछ साधारण था वह वहाँ से चली गयी और अपनी बड़ी बहिन के लिये कौफ़ी ले आयी।

पर जैसे ही राजा ने अपने काम के लिये घर छोड़ा वह उसकी पत्नी के पास दौड़ी गयी और उससे पूछा — “यह कैसे हुआ? तुम इतनी सुन्दर जवान लड़की कैसे बन गयी?”

पत्नी ने अपने मुँह पर उँगली रख कर उसको चुप करते हुए कहा — “श श श श। ज़रा धीरे बोल। मैंने क्या किया यह मैं तुझे अभी बताती हूँ। यह सब मैंने अपने आपको एकसार करवाया ।”

“एकसार करवाया? एकसार करवाया? किसने तुमको एकसार किया? और तुमने किससे अपने आपको एकसार करवाया? मैं भी अपने आपको ऐसे ही एकसार करवाना चाहती हूँ।”

“बढ़ई से। मैंने बढ़ई से एकसार करवाया।”

वह बुढ़िया बढ़ई की दूकान पर भागी गयी और बोली — “ओ बढ़ई, ओ बढ़़ई, क्या तुम मुझे भी अच्छी तरह से एकसार कर दोगे जैसे तुमने मेरी बड़ी बहिन को किया?”

बढ़ई चिल्लाया — “ओह मेरे भगवान। तुम तो पहले से ही मरी हुई लकड़ी हो। अगर मैने तुमको एकसार किया तो तुम तो स्वर्ग पहुँच जाओगी।”

“तुम इस बात को ज़रा भी न सोचो कि मैं कहाँ पहुँचूँगी बस तुम मुझे एकसार कर दो।”

“क्या कहा तुमने? क्या मैं यह ज़रा भी न सोचूँ कि तुम कहाँ पहुँचोगी? अरे अगर मैंने तुमको मार दिया तो फिर मेरा क्या होगा? मैं तो मर ही जाऊँगा न।”

“तुम चिन्ता न करो। मैं तुमको बताती हूँ कि तुम क्या करो। यह तुम एक थेलर लो और जैसा मैं कहती हूँ तुम वैसा ही करो।” जब बढ़ई ने थेलर का नाम सुना तो उसने अपना विचार बदल दिया।

उसने उससे थेलर लिया और उससे कहा — “तुम यहाँ मेरी काम करने वाली मेज पर लेट जाओ और मैं तुम्हें उसी तरह से एकसार कर दूँगा जैसे तुम चाहोगी।”

यह कह कर वह उसका जबड़ा एकसार करने के लिये बढा़ तो बुढ़िया की तो चीख ही निकल गयी। तो बढ़ई बोला — “अगर तुम इस तरह चीखोगी तो मैं कोई काम नहीं कर पाऊँगा।”

वह पलट गयी तो बढ़ई ने उसका दूसरा जबड़ा एकसार करना शुरू किया। पर अब की बार वह बुढ़िया चिल्लायी नहीं। क्योंकि वह मर चुकी थी।

उस तीसरी बुढ़िया के बारे में फिर कुछ और नहीं सुना गया कि वह डूब गयी, या फिर उसका गला चीरा गया, या फिर वह बिस्तर में ही मर गयी – कोई नहीं जानता।

केवल दुलहिन ही अपने जवान राजा के साथ घर भर में बच गयी थी और फिर वे दोनों हमेशा के लिये खुश खुश रहे।  

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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं की एक अन्य पुस्तक - रैवन की लोक कथाएँ में से एक लोक कथा यहाँ पढ़ सकते हैं. इथियोपिया इटली की बहुत सी अन्य लोककथाओं को आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.

(क्रमशः अगले अंकों में जारी….)

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रचनाकार: इटली की लोक कथाएँ–2 : 11 - तीन बुढ़ियाँ // सुषमा गुप्ता
इटली की लोक कथाएँ–2 : 11 - तीन बुढ़ियाँ // सुषमा गुप्ता
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