उपन्यास - अमावस्या का चांद - भाग 11 // बैरिस्टर गोविंद दास // अनुवाद - दिनेश माली

SHARE:

भाग 1 भाग 2 भाग 3 भाग 4 भाग 5 भाग 6 भाग 7 भाग 8 भाग 9   भाग 10 मन ही मन कहने लगे, “मनीषा, मेरी मदद करो। मैं तुम्हें मुक्ति दे रहा हू...

image

भाग 1 भाग 2 भाग 3 भाग 4 भाग 5 भाग 6 भाग 7 भाग 8 भाग 9 भाग 10

मन ही मन कहने लगे, “मनीषा, मेरी मदद करो। मैं तुम्हें मुक्ति दे रहा हूं। मेरा कर्तव्य पूरा हो गया। ” निर्विच्छिन्न भाव से मनीषा के नारीत्व के नव-कलेवर की तरफ देखते रहे।

मगर काउल मन ही मन सोच रहे थे, इतने सानिध्य और आत्मीयता के बावजूद मनीषा किसी और के साथ विवाह करने की सोच रही है? अन्य के साथ अपना यह प्रस्ताव?उसने जान-बूझकर मौका दिया है! मनीषा तुम रूपवती जरूर हो, गुणवती भी हो, मगर नारी की दुर्बलता से ऊपर नहीं उठ पाई हो। देख रही हो, किसी और के निवेदन को अपने गौरव के लिए। जिसे नारी खूब गर्व के साथ स्वीकार किया करती है।

मनीषा, तुमने मेरी भी तुलना देसाई के साथ की होगी। सोच रही होगी, कौन-सा पुरुष अधिक उपयुक्त है? मगर ऐसा मौका आने ही क्यों दिया? क्यों मेरी इस ममता का तुमने अपमान किया? शायद अतीत के मेरे दान के कारण तुम मेरी ओर आकृष्ट भी हो। मगर वह तो तुम्हारी कृतज्ञता होगी, तुम्हारा प्रेम नहीं। जो आज तुलना कर सकता है, वह कल भविष्य में परित्याग भी कर सकता है। मेरे इस पापी जीवन के बावजूद भी मैं तुमसे एकनिष्ठता चाहता था। मगर और यह संभव नहीं है।

दुख और अपमान से विचलित हो गए काउल। मनीषा से उन्हें वितृष्णा होने लगी। काउल ने कहा, “थोड़ी बेचैनी लग रही है। सोचता हूं, होटल जाकर आता हूं। ”

मनीषा ने कहा, “नहीं, हमारे साथ आइए आप। ”

देसाई ने कहा, “तबीयत खराब है तो आराम करना जरुरी है। काउलको रोकना ठीक न होगा। ”

मनीषा के विशेष अनुरोध पर काउल गाड़ी में बैठ गए। देसाई के निर्देश पर अगली सीट पर बैठ गई मनीषा। देसाई गाड़ी चला रहे थे। काउल पीछे बैठे हुए थे। देसाई ने मनीषा के कंधे पर हाथ रखकर कहा, “रास्ता तय करने का दायित्व मेरा है, जगह पसंद करने का तुम्हारा काम। पिक्चर, मैरिन ड्राइव, हैंगिंग गार्डन या क्लब?”

आंखों के आगे देख रहे थे काउल इतिहास की वही पुरानी कहानी। ईंट से ईंट सजाई जा रही थी। बीच में थी अनारकली। वह विनती कर रही थी, रो रही थी, चीत्कार कर रही थी। समाधि क्रमशः पूरी होती जा रही थी। फिर बंद हो गई समाधि। शरीर दिखाई देना बंद हो गया।

अनारकली ने विश्राम लिया। इस क्षेत्र में जहाँगीर की कोई अनारकली नहीं है! वह खुद ही कब्र में दफन हो रहा था। सांस रुक रही थी, सीने में हलचल हो रही थी। काउल ने कहा, “मेरी होटल इस गली में है, बस यही छोड़ दो। ”

मनीषा ने कहा, “काउल साहब, अकेले आप नहीं जा सकेंगे। मेरे साथ आइए या फिर मुझे अपने साथ चलने दीजिए। ”

काउल ने कहा, “कोई आवश्यकता नहीं है, मैं यही से विदा लेता हूं। फिर होटल बहुत छोटा है, साफ-सुथरा नहीं है। ”मनीषा ने कहा, “काउल, देसाई नहीं जा पाएंगे, मेरे लिए तुम्हारी हर जगह सुंदर है। मुझे इजाजत दो। ”

काउल ने कहा, “मनीषा, जो घृण्य, अस्पृश्य है, वह सबके लिए समान है। ”

गाड़ी से उतरकर काउल के सामने खड़ी हो गई मनीषा। देर तक सिर्फ उधर देखती रही। उसने कहा, “रमेश! ”

काउल यह सुनने के लिए तैयार नहीं थे। वह कहने लगे, “मनीषा, तुम्हारे मित्र प्रतीक्षा कर रहे हैं। जल्दी चली जाओ। ”

मनीषा ने कहा, “मेरे मित्रों के कर्तव्य की तुम अवहेलना नहीं करते, मगर मेरे प्रति तुम्हारा क्या कर्तव्य नहीं है? क्या कोई दायित्व नहीं है? क्या कोई आशा भी नहीं है?”

काउल ने कहा, “मनीषा, जो देवता पर चढ़ने लायक है, उसका स्थान कूड़े का ढेर नहीं हो सकता है। फिर तुम और असहाय नहीं हो। ”

मनीषा ने कहा, “वह ख्याल मेरा होगा, वह फैसला मेरा होगा। उस बारे में मैं विचार कर चुकी हूँ, और फैसला भी। ” कुछ समय रुककर कहा, “रमेश, एक बार अपना मुंह खोलो, अपना उत्तर दो। ”

देसाई ने आवाज लगाई, “मनीषा, यहाँ गाड़ी और नहीं रुक सकती। यहाँ पार्किंग करना मना है। ”

काउल ने कहा, “मनीषा, जाओ। ”

“आज जवाब लेकर जाऊँगी। आखिरी जवाब। ”

“अस्वाभाविक परिस्थिति पैदा न करो। सड़क पर जिंदगी के फैसले नहीं हुआ करते हैं। ”

“ इस सड़क से तो एक दिन उठाया था मुझे, काउल! ”

दूर से देसाई ने फिर आवाज लगाई।

मनीषा ने कहा, “रमेश, कल सुबह तक मुझे उत्तर चाहिए। ” नमस्कार किया मनीषा ने। दोनों सुरम्य पंखुड़ियों के मिलन वाली नमस्कार-मुद्रा। वही निवेदन भरी दृष्टि। वे ही कांपते होंठ। वही शांत मूर्ति, मनीषा।

मनीषा गाड़ी के पास चली गई। लाइट जलाकर वह गाड़ी चल पड़ी। काउल कुछ समय के लिए खड़े रहे। आँखों से बहती आंसुओं की दो धाराओं से नमस्कार का उत्तर दिया काउल ने।

मनीषा को काउल की आखिरी अलविदा।

आशा जहां असीम होती है, वहाँ जरा-सा व्यतिक्रम प्रलय पैदा कर देता है। मनीषा से काउल ने जो आशा की थी, वह तो दुनिया का कोई मामूली-सा संबंध नहीं था, वह तो गंभीर आत्माओं का शाश्वत मिलन की आकांक्षा थी। काउल जहां रहना चाहते थे, वह पार्थिव जगत का कोई वास्तविक वक्ष-स्थल नहीं है, वह अतिभौतिक, अतींद्रिय मनीषा का अक्षय हृदय-स्थली हैं।

वर्तमान में काउल अपने अस्तित्व का मनीषा के पास में होने का संदेह कर रहे थे। अपनी स्थिति से संशय पैदा हो रहा था। अतीत और भी भयंकर, कुत्सित लग रहा था।

ठेस पहुंची काउल को। प्रत्याख्यान का प्रतिक्षेधक है, मगर अपमान का कोई उपशम नहीं है। जो अग्नि भस्म नहीं कर पाती, जलन पैदा करती है;जो व्याधि मृत्यु नहीं दे पाती, वेदना देती रहती है, जो अपूर्ण प्रेम सृष्टि नहीं करता, प्रलय की भूमिका बनती है- वही अग्नि, वह ही व्याधि और उसी तरह क्षत-विक्षत अधूरे प्रेम ने रमेश काउल को पराजित और असहाय बना दिया।

8.

इस विराट प्रासाद के प्रांगण में सुबह-सुबह आकाश की लालिमा की ओर देख रही थी मनीषा। आकाश की यह निर्विच्छिन्न कोमलता। सिंफोनी की तरह आकाश। उसी मधुर संगीत से झंकृत यह प्रकृति।

क्यों? कल शाम को काउल की आँखें इसी तरह रंगीन होती जा रही थी आंसुओं के पहले स्पर्श की तरह। काउल, तुमने त्याग, उपभोग करना सीखा है, मगर अधिकार जताना नहीं। हरपल मैं प्रतीक्षा करती रही कि तुम कहोगे, “मनीषा, मेरे पास आओ। ”

केवल इन तीन शब्दों के लिए कितनी रातें मैंने जागते हुए काटी। कितने विनीत निवेदन किए। एक दिन भी मेरा स्पर्श नहीं किया। कभी हल्का-सा इशारा नहीं किया। तुम्हारा जरा-सा इशारा पाकर मैं अपना सारा विश्व तुम्हारी चरणों में लुटा देती। तुम्हारे हृदय में खो जाती। कितने प्रसंग गढ़े। कितने छलावे दिखाएं। कभी जाहिर नहीं होने दिया तुमने अपना अधिकार। न शरीर की चाह रही, न मन की। केवल दूर ही रहे किसी मधुर सपने की तरह। मगर क्यों? क्या बाधा थी?

शायद बीमारी। मगर तुम तो एकमात्र ऐसे व्यक्ति हो, जिसने अपनी सारी संपदा लूटा दी। अपनी एकाग्रता, निष्ठा, जी-जान से मेहनत करके। इस व्याधि के लिए तुम नफरत करोगे, मुझे नहीं लगता है। रात-दिन उस बिस्तर के पास मैंने देखा मन के बाहर और भीतर देखा है।

एक बात जानते हो?जीने की अगर तमन्ना थी तो केवल तुम्हारे लिए। आशा थी बस तुम्हें पाने के लिए। मैंने भगवान को पुकारा सिर्फ तुम्हारे खातिर, भगवान तुम्हारी कोशिश सफल करें ।

तुमने एक बार भी निमंत्रण नहीं दिया मुझे अपने पास आने के लिए। मेरे शरीर के सस्ते उपभोग की भी इच्छा नहीं की। मैं तो उसके के लिए प्रस्तुत थी।

मैंने सोचा अपने विवाह के बात मैं खुद उठाऊंगी। उसके लिए कुछ साधारण संकेत तो दोगे। देसाई को लाकर तुम्हारे आगे हाजिर किया। फिर भी तुम मौन रहे। क्या अपना अहंकार दिखाना चाहते थे? मैं सिर्फ उसके लिए एक आयुध-मात्र थी! मगर अब भी मेरा मन इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है।

फिर ये आंखे उदास क्यों है, तुम्हारी दृष्टि विचलित क्यों है ?

मनीषा ने उसी पल काउल के होटल में जाने का निश्चय किया। निर्लज्ज होकर कहूँगी, “ काउल, मैं तुम्हें चाहती हूं- तुम्हारी घृणा और उपेक्षा के बावजूद भी। अपने कदमों में मुझे जरा-सी जगह दे दो। मैं कुछ सुनना नहीं चाहती। मेरी कोई शर्त नहीं है। मेरे इस पिंड में जिसने प्राणों का संचार किया हैं, वह केवल इसका अधिकारी है। ”

सूरज तब तक आकाश में ऊपर नहीं चढ़ा था। चुपचाप मनीषा बाहर निकल पड़ी। रास्ते से टॅक्सी लेकर होटल पहुंची। कमरे का दरवाजा खटखटाया, मगर कोई जवाब नहीं मिला। उसने धक्का देकर दरवाजा खोला। कोठरी एकदम खाली थी। मन में डर-सा लगा। एक अनजान आशंका की सिहरन मनीषा के शरीर में दौड़ गई।

काउल होटल छोड़कर जा चुके थे। बहुत समय तक उस सूने कमरे में वह इधर-उधर भटकती रही। आखिरकर वह होटल से बाहर निकल आई।

कोई भी काउल का अता-पता नहीं बता पाया।

****

काउल को ढूंढने के लिए मनीषा कलकत्ता गई। वहाँ भी उसकी कोई खबर नहीं मिली। चेन्नई गई। महाराष्ट्र में उनके गांव गई। कहीं कोई पता नहीं चला। पुलिस में इत्तला की। जितने भी काउल के मित्र थे, उनसे मुलाक़ात की। दुनिया के कोने-कोने में पत्र लिखे। मगर कुछ भी पता नहीं चला।

अपने अंतिम समय तक काउल की प्रतीक्षा करती रही मनीषा।

काउल के साथ जिस कैंसर अस्पताल में सबसे पहले भेंट हुई थी, वहाँ अब मनीषा सेविका थी। काउल की प्रतीक्षा के लिए वह अपना पाथेय संग्रह कर रही थी। सेवा करती थी कैंसर के मरीजों की। एक छोटे-से कमरे में काउल का बड़ा फोटोग्राफ लगाकर रखी थी वह। उस फोटो पर हर-रोज मनीषा पुष्पांजलि अर्पित करती थी। जो स्मृतियाँ विगत वर्ष से काउल के साथ जुड़ी हुई थी, उन्हें मन ही मन तरोताजा कर काउल का सानिध्य पाती थी। जितने भी वार्तालाप हुए थे, उन सबका विस्तृत लेखा-जोखा तैयार किया था उसने। उसे वह रोज पढ़ती रहती थी बाइबल, गीता की तरह। उसके जीवन का एकमात्र उद्देश्य था, एक पल के लिए ही सही काउल के दर्शन करने का।

कहा जाता है कि स्वामी निगमानंद ने अपनी मृत पत्नी को योग-बल से जीवित कर दिया था। मगर काउल तो जिंदा है। वह योग-साधना भी तो मनीषा के बस की बात नहीं है।

काउल मुझे इतना चाहते थे। मेरा जिंदा रहना ही पर्याप्त था। तुम्हारे साथ अवश्य मुलाक़ात होगी काउल! किसी न किसी दिन मैं तुम्हें अपना बनाकर ही रहूंगी।

अब मनीषा बीमार है। पूछने पर कहती है, “काउल मेरा नारीत्व नहीं चाहते थे। मेरी इस बीमार काया को देखकर आकर्षित हुए थे। शायद मुझे इसी हालत में उनका संस्पर्श प्राप्त हो जाए। ”

अचानक एक दिन मनीषा ने खुद को दुल्हन के वेश में सजाया। जितने पैसे उसके पास थे, उनके गहने खरीद लिए। काउल की दी हुई हरी साड़ी पहन ली। जुडे में फूल लगाए। पैरों में घुँघरू बांधे। ललाट पर रंगीन बिंदी और मांग में सिंदूर भर लिया।

परिजनों को आमंत्रित किया। वह बिस्तर पर सोई हुई थी। उसे तेज बुखार था। शरीर दुर्बल हो गया था। शहनाई वादक भी आए। रात भर शहनाई बजती रही। मनीषा ने काउल के फोटोग्राफ खूब सजाया। काउल के माथे पर चंदन की बिंदियों का मुकुट बनाया। गले में फूलों का हार पहनाया। परिजनों को कहने लगी, “आज मेरे विवाह का शुभ-लग्न है। आप लोग सादर आमंत्रित है। ”

काउल कहते थे, मनीषा, भाग्य नाम की भी कोई चीज होती है। उसीसे असंभव संभव हो जाता है। मगर मेरा ऐसा क्या भाग्य है, जिससे संभव भी असंभव हो गया। जिसने आश्रित को बेसहारा कर दिया।

उस रात के अंतिम प्रहर में मनीषा ने प्राण त्याग दिए। उसकी डायरी में एक खत लिखा हुआ था काउल के नाम।

मेरे प्राणों के काउल,

प्रतीक्षा करते-करते मेरा शरीर अवश हो गया हैं! अब मेरे काबू में नहीं है। बहुत इच्छा थी कि एक पल के लिए ही सही तुम्हें निबिड भाव से अपनी गोद में रख पाती। मगर तुम्हारे उस ‘भाग्य’ ने ऐसा नहीं होने दिया। यह दंड मुझे क्यों दिया?तुम क्यों निर्वासन में चले गए? तुम भोले-भाले हो।

काउल, सच में आज बहुत जी कर रहा है मेरे इन आखिरी क्षणों में तुम्हें देखने के लिए। तुम्हारी वे नशीली आंखें, उदास होठ, मासूम चेहरा अपने हृदय में एक मर्तबा सँजो लेना चाहती थी। भले, एक पल के लिए ही सही। इतने देवी-देवता है, क्या कोई भी थोड़ी-सी सहायता नहीं करेगा? मेरी आखिरी बात सुन लो, काउल। मैं विदा ले रही हूं। विदा की घड़ी नजदीक है। मगर मेरी बात अवश्य मानोगे, मुझे वचन दो। मेरे मृत शरीर की सौगंध। इस पत्र को पढ़ने के बाद तुम शीघ्र लौट आना मेरे पास। दूर आकाश के दिग्वलय के पास जहां से नीला-हल्का प्रकाश दिखाई देता है- वहाँ पर। कितनी बार तुमने मुझे वह जगह दिखाई है। तुम्हें वह जगह याद है?

मैं वहाँ पर तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगी।

आज मेरी आँखों के सामने हर पल की घटनाएँ गुजर रही है। जिस दिन तुमने मुझे पहली बार उठाया था सड़क से, याद है? सुलाया था अपनी गोद में, याद है? गाड़ी में बहुत पीड़ा हो रही थी, मगर तुम नहीं जान पाओगे कि तुम्हारा वह संस्पर्श मुझे कितनी शांति दे रहा था!

उठने तक की भी मैंने कोशिश नहीं की। लगता था जैसे मैं अपनी मां की गोद में निश्चिंता से सोई हुई हूं। उस दिन मन में विश्वास पैदा हुआ। जैसे मैं तुम्हारे पास आजीवन रहूँगी, तुम्हारी गोद में। याद है, डयूरिक की होटल में जब तुम्हारी तबियत खराब हुई थी, मैं तुम्हारे पाँवों के पास सोई हुई थी, तुम्हारे पाँवों में मेरा चेहरा छुपाकर। तुम सो रहे थे। रात- दिन मैं तुम्हें देखती रही। सोच रही थी, यही तो मेरा है। और जब तुम पूरे मेरे हो जाओगे तो मैं सब-कुछ तुम्हें बता देती, प्रत्येक घटना, प्रत्येक विक्षिप्त चिंता। तुमने यह सामान्य मौका भी मुझे नहीं दिया।

आंखों के आगे नाच उठा सड़क का वह दृश्य। धीर, शांत, हताश शिशु की तरह खड़े थे, मगर क्यों? क्यों तुमने अपना अधिकार नहीं जताया?क्यों मेरी विनती स्वीकार नहीं की?

कितनी जोर-जबरदस्ती कर रहे थे देसाई, उनकी बहन, अंकल, आंटी सभी मेरे विवाह के लिए।

बाद में कहने लगे, विवाह भले ही मत करो, मगर यही रहो हमारे घर में। मगर काउल मेरी आंखों के आगे केवल दिख रहा था तुम्हारा निरीह त्यागी चेहरा, तुम्हारी भीगी पलकें। उस दिन तुम्हारे कमरे में बिस्तर पर बैठकर दीवारों को सहलाती रही। ऐसा लगा जैसे मैं तुम्हारे शरीर की सुगंध को सूंघ रही हूँ। उस दिन मैं डर गई, शायद तुम्हें और नहीं पा सकूंगी। वह भय आज सत्य में बदल गया।

मैं तुम्हें इतना प्यार करती हूँ काउल, दुनिया में कभी तुम्हें इतना प्यार नहीं मिलेगा और कोई इतना प्यार कर भी नहीं पाएगा। लौट आओ काउल; अभी भी आशा लगाए रखी हूँ। तुम जरूर आओगे।

कष्ट हो रहा है और ज्यादा लिखने के लिए हाथ भी नहीं चल रहा है। मगर क्या लग रहा है, जानते हो-यह खत लिखने तक ही मैं जिंदा हूँ। मैं तुम्हें अपने पास अनुभव कर रही हूँ। जैसे तुम्हारी साँसे भी मेरे चेहरे पर लग रही है। जिस समय यह पत्र लिखना बंद हो जाएगा-तुम फिर मुझसे दूर चले जाओगे- बहुत दूर। जो मैं इस जीवन में नहीं पा सकी, मरने के बाद तुमसे उसे पाने की तमन्ना बहुत तीव्र हो गई है। मेरा आलिंगन स्वीकार करो, निबिड, घनिष्ठ, एकांत आलिंगन।

इति

तुम्हारी पत्नी

मनीषा

(समाप्त)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: उपन्यास - अमावस्या का चांद - भाग 11 // बैरिस्टर गोविंद दास // अनुवाद - दिनेश माली
उपन्यास - अमावस्या का चांद - भाग 11 // बैरिस्टर गोविंद दास // अनुवाद - दिनेश माली
https://lh3.googleusercontent.com/-hrxM-tUhNWU/WsW0MeN_JFI/AAAAAAABAp8/-yNBsbB6msEuOu2CJx3CJyvDBD-q4nbTgCHMYCw/image_thumb%255B1%255D?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-hrxM-tUhNWU/WsW0MeN_JFI/AAAAAAABAp8/-yNBsbB6msEuOu2CJx3CJyvDBD-q4nbTgCHMYCw/s72-c/image_thumb%255B1%255D?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/04/11_5.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/04/11_5.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content