लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन 2019 - प्रविष्टि क्रमांक – 32 से 36 // डॉ आर बी भण्डारकर

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लघुकथा- प्रविष्टि क्रमांक – 32 * लौकी और बैंगन के बहाने * - डॉ आर बी भण्डारकर। गिरधारी बा ने अपने एक खेत में बाकायदा क्यारियाँ बनाकर बैंगन ...

लघुकथा-

प्रविष्टि क्रमांक – 32

* लौकी और बैंगन के बहाने *

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- डॉ आर बी भण्डारकर।

गिरधारी बा ने अपने एक खेत में बाकायदा क्यारियाँ बनाकर बैंगन की पौध लगाई और बागड़ के किनारे किनारे गिल्की और लौकी के बीज बो दिए।

बा साब को बड़ा लगाव था अपनी इस कछवारी (सब्जियों की बाड़ी) से; सो समय पर खाद, पानी देते और यथोचित निदाई-गुड़ाई करते। नतीजा यह हुआ कि ठीक समय पर बैंगन भी फलने लगे और लौकी, गिल्की भी।

लौकी की एक बेल के बिल्कुल पास बैंगन का एक पौधा लगा था। बैंगन के इस पौधे में बैंगन तो बहुत लगे थे पर एक बैंगन खूब तंदुरुस्त, मुस्तण्ड। लौकी की बेल में भी कई छोटी, बड़ी लौकी लटक रही थीं-चिकनी चिकनी, कृशकाय, सुंदर, कमनीय; पर एक लौकी बड़ी ही लम्बी, हृष्ट-पुष्ट थी।

बैंगन से कुछ ऊपर होने के कारण इस लौकी को बड़ा अहंकार होने लगा था। एक दिन उसकी मुस्तण्ड बैंगन से कुछ रार-सी ठन ही गयी।

लौकी कुछ ऐंठ दिखाते हुए बोली-बैंगन भाई आप लोग गुणों से हीन तो हैं ही, आपका ठिगना, मोटा शरीर देखकर मुझे आप लोगों पर बहुत तरस आता है। इसीलिए अधिकांश लोग आपकी सब्जी खाना भी पसंद नहीं करते हैं। एक ओर हम लोगों को देखो; लम्बा, छरहरा चिकन-चट्ट, मुलायम शरीर ; यों समझों एकदम सौंदर्य की मूर्ति। गुण तो इतने कि गृहस्थ हो या साधु, स्वस्थ हो या रोगी, बालक हो या वृद्ध सबको मेरे सेवन की सलाह दी जाती है। मोटे को दुबला होने के लिए और दुबलों को तन्दुरुस्त होने के लिए हमारे सेवन का ही सुझाव दिया जाता है। इसीलिए किसान ने भी मुझे ऊँचाई पर सुरक्षित जगह पर बैठाया है।

और सुनो भाई, हम में संतृप्त और असंतृप्त बसा, कोलेस्ट्रॉल जैसी घातक चीजें बिल्कुल नहीं होती हैं जबकि हम में कई तरह के प्रोटीन, कई तरह के लवण

-कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम पोटेशियम और जिंक भरे पड़े हैं। हम में विटामिन ए और सी अत्यधिक होता

है. ये पोषक तत्व मानव शरीर की कई आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं और शरीर को बीमारियों से सुरक्षित रखते हैं।

आपको मानना ही पड़ेगा भाई हमारी और आपकी कोई तुलना ही नहीं है।

ऐसा नहीं है लौकी बहिन। यह तो सच है कि बहिन की भाई से कैसी तुलना ?बहिन तो बहिन ठहरी। हाँ पर आपको घमण्ड नहीं करना चाहिए।

सुनो बहिन, बालक हो या युवा लौकी खाने से हर कोई नाक भौं सिकोड़ता है। आप को तो रोगियों का भोजन माना जाता है। हमारे ठाठ तो निराले हैं। साधारण से लेकर पंचतारा होटलों में बैंगन-भर्ते की शान देखते ही बनती है। हमसे कितने व्यंजन बनते हैं, जानकर दंग रह जाओगी।

और हाँ रही पोषक तत्त्वों की बात; तो हम में भी केल्शियम, फास्फोरस, पोटेशियम, मैगनीज जैसे खनिज लवण भरपूर मात्रा में रहते है। हम में लौह तत्त्व भी पर्याप्त होते है। केवल इतना ही नहीं विटामिन ए , विटामिन बी कॉम्प्लेक्स और सी प्रचुर मात्रा में विद्यमान रहते हैं। हम में हाई फाइबर की जो मौजूदगी होती है वह हृदय रोगियों के लिए अत्यंत फायदेमंद तो है ही अपने न्यून कार्बोहाईड्रेट के गुण के कारण मधुमेह के रोगियों के लिए हमारी बड़ी उपयोगिता होती है। आपकी तासीर ठंडी तो हमारी तासीर गरम। इसलिए हम ठहरे सर्दियों के राजा। और तो और, आपका तो किसी से मेल भी कम ही बैठता है हम तो आलू से, बेसन से और भी बहुतों से प्रगाढ़ दोस्ती रखते हैं।

बहिन आपकी तुलना में हमारी ऊपरी परत(छिलका)कुछ कठोर अवश्य है पर जल तत्त्व हम में आपसे कम नहीं होता है।

लौकी सोचने पर मजबूर हुई; घमण्ड करना ठीक नहीं। भाई कितने प्यार से अपनी बात कह गया।

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लघुकथा-

प्रविष्टि क्रमांक – 33

* अधुना *

-डॉ आर बी भण्डारकर.

देविका और अधुना जेठानी और देवरानी हैं। देविका ग्रामीण परिवेश में पली-बढ़ी, सुशिक्षित पर संस्कारवान गृहिणी है। उसकी शादी हुए पाँच वर्ष हो गए हैं, उसके पास दो साल की एक बेटी भी है।

अधुना शहर में पली-बढ़ी, उच्च शिक्षित आधुनिका है। उसकी शादी इसी वर्ष जनवरी माह में हुई है फिलहाल वह ससुराल में रहकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही है। संयोग यह कि देविका और अधुना दोनों के पति इसी शहर में नौकरी पर हैं। संयुक्त परिवार है सो वृद्ध सास-ससुर भी साथ में ही रहते हैं।

यह संयुक्त परिवार का ही सौंदर्य है कि देविका अपनी बिटिया, सास-ससुर और पति-देवर का तो ख्याल रखती ही है अपनी देवरानी अधुना का भी पूरा ख्याल रखती है, उसे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी का पूरा अवसर देती है।

"बहू जी ! 27अक्टूबर को करवा-चौथ का व्रत है। यह आपकी पहली करवा चौथ है। माँ जी कह रहीं थी कि आपको करवा चौथ का व्रत रखना चाहिए। आप रखेंगी क्या?रखें तो आपके लिए भी सभी आवश्यक सामान मँगवा दें?"

"व्हाट करवा-चौथ भाभी?"अधुना ने अनखते हुए अपनी जेठानी को टके से जबाब दे दिया।

देविका को बुरा लगा। एक तो यह कि उसके परिवेश में जेठानी को "जीजी" कहा जाता है पर माँजी द्वारा कई बार टोके जाने पर भी अधुना उसे भाभी ही कहती है।

......हुँह!कहे भाई की पत्नी को भाभी, मैं तो उसके जेठ की पत्नी हूँ।

.....और हाँ ये अधुना जी शहर में क्या रह लीं, अंग्रेजी मीडियम से क्या पढ़ लीं; समाज के रीति-रिवाज व्रत त्योहार ही भूल गईं। कमाल है।

"बहू जी, आप तो इतनी पढ़ी-लिखी हैं। यह व्रत, त्योहार हमारी जीवन-चर्या के अभिन्न अंग होते हैं। हम संस्कारवान मनुष्य बने रहें इसलिए इनका पालन आवश्यक होता है। "

"सुनिए बहू जी शास्त्रीय विधान के अनुसार करवा चौथ का व्रत अपने पति के दीर्घायु होने एवम अपने अखण्ड सौभाग्य की कामना के निमित्त हर सुहागिन स्त्री द्वारा प्रति वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चन्द्र व्यापिनी चतुर्थी के दिन किया जाता है। इस व्रत का आरंभ सूर्योदय से पहले से होता है और रात्रि में चन्द्र दर्शन के पश्चात पूजा अर्चना कर इसका समापन किया जाता है। "

"बहू जी, आपकी जानकारी के लिए मैं बता दूँ कि इस दिन बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी पर उमा-शिव, स्वामी कार्तिकेय, गणेश जी और चन्द्र देव की स्थापना कर उनका धूप, दीप, नैवेद्य और विभिन्न व्यंजनों से विधिवत पूजन किया जाता है। तत्पश्चात चन्द्र दर्शन कर पति के दर्शन किये जाते हैं और उनके दीर्घायु होने की कामना की जाती है। बाद में सासू माँ को उपहार भेंट कर उनसे आशीर्वाद लेकर फिर भोजन ग्रहण किया जाता है। "

"ओह भाभी !आप भी क्या !!'..........

" पति की दीर्घायु का पूजा, व्रत से क्या लेना, देना। इसके लिए तो पति को संतुलित भोजन, पौष्टिक आहार लेना चाहिए; अपनी दिनचर्या नियमित रखनी चाहिए। व्यायाम, योग, प्राणायाम आदि करने चाहिए। "

काफी देर से यह बातें सुन रही सासू माँ बोलीं-

"सुनो बड़ी बहू, क्यों लगी हो उसके मुँह। व्रत, त्योहार तो आस्था, विश्वास, श्रद्धा और भक्ति के विषय होते हैं। ऐसे व्रत या कोई व्रत केवल दिखावे के लिए नहीं किये जाते हैं। जब छोटी बहू को इनमें विश्वास ही नहीं है तो हमारे तुम्हारे कहने से व्रत रख भी लेगी तो उसका कोई औचित्य नहीं होगा। "

"यू आर ग्रेट मॉम। "........

" मेरी तरह ही रंजन जी(अधुना के पति) का भी मानना है। " अधुना ने उचकते हुए कहा।

सब चुप; वातावरण ने सन्नाटा छा जाता है।

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लघुकथा-

प्रविष्टि क्रमांक – 34

* वह लड़का *

- डॉ आर बी भंडारकर.

कई दिनों की लगातार की बारिश के बाद आज थोड़ी राहत है, मौसम एकदम सुहाना,

खुशनुमा हो रहा है। विशेष बात यह भी कि आज और कल, लगातार दो दिन की छुट्टी भी है; तृतीय शनिवार और रविवार। बेटी द्वय की भी छुट्टियाँ। मिट्ठू की अर्द्ध परीक्षा में आज विराम है, पीहू के स्कूल में तो हर शनिवार रविवार की छुट्टी होती ही है। तय हुआ कि आज पिकनिक पर चला जाये।

कुहू ने आज दाल, बाफले, चूरमा के लड्डू बनाये। अचार, पापड़, सलाद भी ले लिए। दो बड़े टिफिनों में इन सबको भर लिया।

पति, पत्नी, दोनों बेटियाँ, बेटियों की एकमेव बुआ। सब नहा-धोकर, सज-धज कर तैयार। कार से पहुँचे भोजपुर। भोजपुर भोपाल से लगभग 30 किमी दूर है। यहाँ प्रसिद्ध शिवमंदिर है, पास में ही वेतवा नदी का सुरम्य उद्गम स्थल है।

सबने सर्वप्रथम भगवान शिव के दर्शन किये। आसपास और वेतवा के उद्गम स्थल पर प्राकृतिक दृश्यों का आनन्द लिया।

देर से घूमते रहने से जब थकान हो आई और भूख भी लग आई तो एक स्वच्छ स्थान पर चादर बिछा कर सब लोग खाना खाने बैठ गए। पहले से ही साथ में लाई गई गयी प्लेटों,

कटोरियों में कुहू ने सबको दाल, बाफले, लड्डू,

अचार, पापड़ सलाद आदि परोसे। आधुनिक किस्म के टिफिन होने से खाना गरमागरम था। सुगंध मन मोह रही थी। सब खाने को उतावले थे। वे खाने में जुटने वाले ही थे कि मैले कुचैले कपड़ों से अपना तन ढके एक 6, 7 वर्ष का लड़का सामने आ खड़ा हुआ। सूरत देखने से ही लग रहा था कि वह भूखा है। उसके हाथ बढ़ाते ही कुहू ने उसके हाथ पर एक बाफला, एक लड्डू रख दिया और कागज के एक दौने में थोड़ी दाल भी दे दी। फिर सब खाना खाने में जुट गए।

वह बालक भी उन लोगों से थोड़ी ही दूर एक पत्थर पर बैठ कर खाना खाने ही वाला था कि शरद ने टोका, "ये लड़के जाओ यहाँ से , उधर दूर जाकर खाओ। "

लड़का चला गया।

इधर इनका भोजन समाप्त ही हुआ था कि लड़का फिर हाज़िर। वह दोने वाला बायाँ हाथ थोड़ा पीछे रखकर दायाँ हाथ आगे बढ़ाए था। वर्तन समेटने में व्यस्त कुहू ने कहा, "अरे बेटे सब खाना खत्म हो गया है, चलो अब भाग जाओ। "

लड़का ज्यों का त्यों खड़ा कुछ कहने का प्रयास करता है।

शरद को बड़ी कोफ्त हो रही है , लड़के को डाँटते हुए बोले, "एक बार दे तो दिया खाना, तेरा पेट नहीं भरा, फिर चला आया, भाग। "

लड़के ने दायाँ हाथ फिर आगे बढ़ाते हुए कहा, बाबू जी....।

इतने में ही शरद की नज़र लड़के द्वारा हाथ में पकड़ी हुई अँगूठी पर पड़ी।

शरद अवाक !

"कुहू ?इसके हाथ में क्या यह तुम्हारी अँगूठी है? "

कुहू ने सकपका कर अपना हाथ देखा। अँगूठी नदारद थी। क्षण भर के लिए दिमाग सुन्न।

लड़का बोल रहा है "....आपने मुझे जो छोटा लड्डू दिया था; मैंने उसे खाया, वह मीठा था। फिर बड़ा वाला लड्डू आधा तोड़कर खाया वह मीठा नहीं था सो उसे दाल में डुबोकर खा लिया; फिर बचा हुआ आधा लड्डू तोड़ा तो उसमें यह मुदरिया निकली तो मैंने सोचा कि कहीं बाबू लोग चले न जाएँ, इसलिए चलो पहले मुदरिया दे आएँ, तब लौट कर बचा हुआ लड्डू खा लेंगे। "

कुहू की तन्द्रा टूटती है, स्मृति पट खुलते हैं। .....बाफलों का आटा गूँथते समय हीरे की यह अँगूठी उसकी उँगली में ही थी। फिर चलने की जल्दी में ध्यान ही नहीं दिया, अँगूठी पर। पक्के तौर पर ...........अँगूठी आटे में गिरकर बाफले में चली गयी होगी।

लगभग हाँफते हुए, "हाँ हाँ शरद ! यह अँगूठी मेरी ही है। "

शरद झपट्टा मार कर लड़के से अँगूठी छीनते है।

लेकिन कुहू ...........!

वह बदहवास, लगभग दौड़ती हुई जाकर लड़के को अपनी गोदी में भर लेती है।

"शरद ! मैं तो भाव-विह्वल हूँ इन अभाव ग्रस्तों की ऐसी ईमानदारी पर। "

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लघुकथा-

प्रविष्टि क्रमांक – 35

* नाम के आगे पीछे क्या *

- डॉ आर बी भण्डारकर।

रेलगाड़ी का सामान्य श्रेणी का सवारी डिब्बा। डिब्बे में इक्का-दुक्का सवारियाँ ही हैं। सुमतिराय एक लंबी वाली उस सीट पर बैठते हैं कि उनका मुँह उस ओर होता है, जिस ओर गाड़ी जा रही होती है।

एक तो गाड़ी पिछले स्टेशन से ही खुलती है; दूसरे इसके पहले लम्बी दूरी की दो गाड़ियाँ निकलती हैं, इसलिए इस गाड़ी में भीड़ स्वाभाविक रूप से कम ही रहती है।

गाड़ी के छूटते छूटते एक और सज्जन आकर सुमतिराय के पास बैठ जाते हैं।

"आप कहाँ उतरेंगे भाई साहब ?"

"कानपुर। "

" मैं भी कानपुर ही जा रहा रहा हूँ। "

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"आप कहाँ के रहने वाले हैं भाई साहब ?"

"झांसी। "

"ओह मैं भी झाँसी का ही हूँ। .....आपका क्या नाम है, भाई साहब?"

"सुमतिराय । "

" सुमतिराय ? आगे पीछे क्या ?कुछ तो लिखते होंगे । "

..............

"बताया नहीं आपने, क्या सोचने लगे ?"

" वही जो आप सोच रहे हैं। "

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लघुकथा-

प्रविष्टि क्रमांक – 36

* रेलवे , आपकी संपत्ति *

- डॉ आर बी भण्डारकर.

रेलगाड़ी का सामान्य शयनयान कक्ष है। सुमतिराय अभी बैठ ही पाए थे कि एक युवा उसी सीट पर आकर बैठता है, स्थान देने के लिए सुमतिराय थोड़े से खिड़की की ओर सरक जाते हैं।

आगंतुक युवक-"आप कहाँ तक जा रहे हैं। "

"जी ग्वालियर तक। "

"अच्छा अच्छा मैं भी ग्वालियर ही जा रहा हूँ। "

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" आप झाँसी से ही हैं? कभी परिचय नहीं हुआ। "

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आजकल यहाँ एक दो टी टी ऐसे आ गए हैं, जो मासिक यात्रा पास धारक द्वारा शयनयान श्रेणी में यात्रा करने पर आपत्ति करने लगे हैं।

...अरे भाई हम लोग रोज अप-डाउन करते हैं, सामान्य श्रेणी के भीड़ भरे कोच में रोज रोज यात्रा कैसे कर पाएँगे?...फिर हम लोग रेलवे की आय के नियमित स्रोत भी हैं। हम लोगों के लिए रेलवे को कुछ तो सोचना ही चाहिए।

...भाई साहब, अब तो अन्य साथियों से चर्चा कर इस संबंध में कोई कड़ा कदम उठाना ही पड़ेगा। "

"लेकिन मेरा तो आरक्षण है। ....अप-डाउन मैं भी करता हूँ, लेकिन अग्रिम में ही प्रत्येक दिन का आरक्षण करा लेता हूँ। "

अब उस युवा का चेहरा देखने लायक था-

" झांसी से ग्वालियर तक प्रतिदिन अप -डाउन के लिए प्रतिदिन का आरक्षण ! "

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• (डॉ आर बी भण्डारकर)

जन्म तिथि:-01 जनवरी 1952

शिक्षा:-एम.ए., बी.एड., पीएच.डी., डी. लिट्.

सेवाएं:-मध्य प्रदेश शासन, आदिम जाति (शिक्षा)में प्रवक्ता और प्राचार्य, जवाहर नवोदय विद्यालय में प्राचार्य, सूचना प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार के उपक्रम दूरदर्शन से उप महानिदेशक (भारतीय प्रसारण सेवा) पद से सेवानिवृत्त।

लेखन:-

छै पुस्तकें प्रकाशित-

कविता-

(1) दिशाएँ मौन (2000)

(2) वनजा (2014)

(3)अक्षर अक्षर ब्रह्म (2016)

लघुकथा-

(1) चौधरी धनीराम सिंह (2017)

आलेख-

(1)लागी लगन (2013)

(2)धनमंती (2018)

**देश की अनेक प्रतिष्ठित पत्र, पत्रिकाओं में समसामयिक लेख, निबन्ध, कहानी, लघुकथा, व्यंग्य और कविताएँ आदि प्रकाशित।

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रचनाकार: लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन 2019 - प्रविष्टि क्रमांक – 32 से 36 // डॉ आर बी भण्डारकर
लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन 2019 - प्रविष्टि क्रमांक – 32 से 36 // डॉ आर बी भण्डारकर
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