लोक कथा - किस्सए चार दरवेश - सुषमा गुप्ता - खंड पांच

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भूली बिसरी लोक कथाएँ सीरीज़–24


किस्सये चार दरवेश

अमीर खुसरो – 1300–1325


अंग्रेजी अनुवाद -

डन्कन फोर्ब्ज़ – 1857


हिन्दी अनुवाद -

सुषमा गुप्ता

अक्टूबर 2019

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खंड 5


परिचय

मैं अब अपनी कहानी शुरू करता हूँ। आप ध्यान दे कर सुनें। चार दरवेशों के कारनामे में जैसा कि उसके लिखने वाले ने लिखा है कि रम साम्राज्य[1] में एक राजा राज करता था। वह नौशेरवान की तरह न्यायशाली था और हातिम[2] की तरह दयालु था। उसका नाम था आजाद बख्त। [3] वह कौन्स्टैनटिनोपिल[4] में अपने शाही महल में रहता था।

उसके राज में किसान सुखी थे। उसका खजाना भरा पूरा था। उसकी सेना सन्तुष्ट थी। गरीब लोग भी आराम से रहते थे। वे सब इतनी शान्ति और अमीरी में रहते थे कि उनको हर दिन त्यौहार लगता था और हर रात जैसे बरात की शाम लगती थी।

चोर डाकू जेब काटने वाले धोखा देने वाले जैसे सब बेईमान लोगों के लिये उसके राज में कोई जगह नहीं थी। उसने उन सबको अपने राज्य से निकाल दिया था।

रात भर घरों के दरवाजे खुले रहते थे। बाजार में दूकानें खुली रहती थीं। यात्री और आने जाने वाले सोना खनखनाते चले जाते थे चाहे वे मैदान में जा रहे हों या जंगल से हो कर या पहाड़ों पर।

कोई उनसे यह पूछने वाला नहीं था कि “तुम्हारे मुँह में कितने दाँत हैं?” या “तुम कहाँ जा रहे हो?”

उसके राज्य में हजारों शहर थे जिनके राजकुमार राजा को टैक्स दिया करते थे। हालाँकि वह एक बहुत बड़ा राजा था पर फिर भी एक पल के लिये भी न तो अपने कर्तव्य को भूलता था और न ही अल्लाह की पूजा करना भूलता था।

उसके पास दुनियाँ के ऐशो आराम के सारे साधन थे सिवाय एक बेटे के जो हर किसी की ज़िन्दगी का फल होता है। और उसकी किस्मत के बागीचे में एक यही फल नहीं था। इसलिये वह अक्सर बहुत उदास और दुखी रहता था।

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पाँचों बार अल्लाह की पूजा करके वह अक्सर अपने को बनाने वाले से कहता — “ओ अल्लाह। तूने अपनी अच्छाई से अपने कमजोर प्राणियों को सब आराम दे रखे हैं। पर तूने इस अँधेरे घर को कोई रोशनी नहीं दी। यह इच्छा अकेली ही मेरी ज़िन्दगी का खालीपन है कि मेरे बुढ़ापे की कोई लाठी नहीं है और मेरे मरने के बाद कोई मेरा नाम बढ़ाने वाला नहीं है।

तेरे छिपे हुए खजाने में तो हर चीज़ें है मेहरबानी करके मुझे एक खेलता कूदता बेटा दे दे ताकि मेरा नाम और इस राज्य का नाम बना रहे। ” इसी आशा में राजा अपने 40वें साल में पहुँच गया।

एक दिन जब उसने अपने आईने वाले कमरे[5] में अपनी प्रार्थना खत्म की तो अपना जाप करते हुए उसने अपने कमरे के एक शीशे पर नजर डाली तो उसने देखा कि उसकी मूँछों में तो एक सफेद बाल था। वह उनमें एक चाँदी के तार की तरह चमक रहा था।

यह देख कर राजा की आँखों में आँसू आ गये। उसने एक लम्बी साँस ली और अपने आपसे बोला — “अफसोस तूने अपने इतने सारे साल बिना कुछ किये धरे गुजार दिये। केवल दुनियावी चीज़ों के लिये दुनियाँ उलट पुलट कर दी।

तूने इतने सारे देशों को जीता लेकिन उससे तुझे क्या फायदा हुआ। अब कोई और दूसरे लोग यहाँ आयेंगे और इस धन सम्पत्ति को बरबाद कर देंगे। मौत ने पहले ही तुझको सन्देशा भेज रखा है। और अगर तू कुछ साल और रह भी गया तो क्या। तेरे शरीर की ताकत तो घटती ही जायेगी।

इसलिये ये सब हालात देखते हुए यह साफ साफ कहा जा सकता है कि मेरी किस्मत में मेरी राजगद्दी और मेरे छत्र का कोई मेरा वारिस नहीं है।

एक दिन तो मैं मर ही जाऊँगा और ये सब चीज़ें अपने पीछे छोड़ जाऊँगा इसलिये मेरे लिये ज़्यादा अच्छा तो यही होगा कि मैं यह सब मैं अभी ही छोड़ दूँ और अपनी ज़िन्दगी के दिन अल्लाह की पूजा में लगाऊँ। ”

अपने दिल में यह तय करके वह अपने महल के पेन बाग[6] में चला गया। उसने अपने दरबारियों को अपने पास से हटा दिया और अपने नौकरों से भी यह कह दिया कि कोई उसको तंग न करे पर सब लोग दरबारे आम[7] में आयें और अपने अपने काम करते रहें।

यह कहने के बाद राजा अपने एक प्राइवेट महल में चला गया। वहाँ उसने अपना पूजा करने वाला कालीन बिछाया और अपने दिन रात अल्लाह की पूजा में बिताने लगा। सारा समय वह अल्लाह के ही गुण गाता रहता। वह वहाँ कुछ नहीं करता बस रोता रहता और आहें भरता रहता।

इस तरह आजाद बख्त ने वहाँ कई दिन गुजार दिये। वह सारा दिन खाना नहीं खाता। शाम को केवल एक खजूर और तीन घूँट पानी पी कर वह अपना उपवास तोड़ता। सारा दिन वह अपने पूजा वाले कालीन पर ही पड़ा रहता।

कुछ समय बाद राजा की यह हालत जनता को पता चली। धीरे धीरे सारे राज्य में इस बात की खबर फैल गयी कि राजा ने अपने शासन से अब अपना हाथ खींच लिया है और बिल्कुल अकेले में रहता है।

यह देख कर दुश्मन चारों तरफ से अपना सिर उठाने लगे। जहाँ भी गवर्नर थे वहाँ वहाँ सब अशान्ति हो गयी। चारों तरफ से अशान्ति की खबरें राजा के दरबार में पहुँचने लगीं। यह देख कर सारे दरबारी लोग और दूसरे कुलीन लोगों ने एक मीटिंग की।

उसमें उन्होंने आपस में सलाह की और फिर इस नतीजे पर पहुँचे कि “हिज़ हाइनैस का वजीर बहुत अक्लमन्द है और वह राजा के करीब भी बहुत है उस पर राजा विश्वास भी करता है। काम करने वालों में राजा के बाद वही एक काम करने वाला है।

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तो हम लोगों को उसके पास जाना चाहिये और उससे सलाह करनी चाहिये कि इस बारे में वह क्या कहता है।

सो सारे लोग वजीर के पास गये और बोले — “राजा की और राज्य की हालत तो आपको मालूम ही है। पर अगर यह सब चलते चलते और ज़्यादा देर हो गयी तो यह राज्य जिसे राजा साहब ने इतनी मुश्किल से इकठ्ठा किया है ऐसे ही बेकार में ही हमारे हाथ से निकल जायेगा। और इसको फिर से इकठ्ठा करना बहुत मुश्किल हो जायेगा। ”

राजा का वजीर एक बहुत ही बूढ़ा अक्लमन्द और वफादार वजीर था। उसका नाम था खिरदमन्द[8]। वह अपने नाम के अनुसार बहुत अक्लमन्द था।

वह बोला — “हालाँकि राजा साहब ने उनको तंग करने के लिये बिल्कुल मना किया हुआ है फिर भी तुम जाओ। मैं भी उसके पास जाऊँगा अगर अल्लाह की मेहरबानी होगी तो वह मुझको भी बुला लेंगे। ”

यह कह कर वह उन सबको ले कर दरबारे आम में चला गया। वहाँ उनको छोड़ कर वह फिर दरबारे खास[9] में गया और वहाँ से एक खास नौकर[10] के हाथों यह खबर भेजी “आपका यह बूढ़ा नौकर बाहर आपका इन्तजार कर रहा है। बहुत दिनों से उसने आपको देखा नहीं है। वह आशा करता है कि वह एक बार आपको देख कर आपके कदमों को चूम कर शान्त हो जायेगा। ”

राजा ने वजीर की यह विनती सुनी। इस बात को ध्यान में रखते हुए कि वजीर ने उसकी कितने सालों तक सेवा की है वह कितना अक्लमन्द है उसके अन्दर कितना उत्साह है वह कितना वफादार है और कितनी बार उसने उनकी सलाह मानी है उसने नौकर से कहा— “जाओ और खिरातमन्द को भेज दो। ”

जैसे ही इजाज़त मिली वजीर राजा के सामने जा पहुँचा। झुक कर उनको सलाम किया और छाती पर हाथ बाँध कर खड़ा हो गया। उसने राजा की अजीब सी और बदली हुई शक्ल देखी तो उसने देखा कि रोते रोते और भूख से उसकी आखें गड्ढे में धँस गयी हैं। उसके शरीर का रंग पीला पड़ गया है।

यह सब देख कर खिरातमन्द अपने आपको रोक न सका और राजा को देखते ही उसके पैरों पर गिर पड़ा। राजा ने वजीर का सिर अपने हाथों से उठाया और बोला — “लो अब तो तुमने मुझे देख लिया है अब तो तुम सन्तुष्ट हो? जाओ और अब मुझे फिर बीच में परेशान न करना। जाओ और राज काज सँभालो। ”

खिरातमन्द ने रोते हुए कहा — “आपका यह गुलाम जिसको आपका इतना प्यार मिला है और आपके हालचाल ठीक रहे तो कभी भी किसी राज्य का राजा बन सकता है। पर आपके इस अकेले में रहने की वजह से यह सारा राज्य नष्ट हुआ जा रहा है। इसका अन्त कोई बहुत खुशहाली नहीं है।

आपके इस शाही दिमाग में क्या घुस गया है? अगर आप इस विरासत में मिले हुए राज्य को ठीक से सँभालेंगे तभी आपके लिये सबसे अच्छा रहेगा। आप हुकुम करें तो मैं इस राज्य को राज करने में जो अपनी नासमझी बरती है मैं वह आपको बताऊँ।

अगर आपने अपने गुलामों को इज़्ज़त दी है उनके काम किये हैं तो मैं उसी का वास्ता दे कर आपसे कहता हूँ कि आप आराम से रहें और आपके नौकर लोग काम करते रहेंगे। अगर आप इस तरह की परेशानी सहेंगे तो अल्लाह न करे फिर नौकरों का क्या फायदा। ”

राजा बोला — “यह तो तुम ठीक कहते हो। पर जो दुख मेरे दिल पर है उसका कोई इलाज नहीं है। ”

राजा आगे बोला — “ओ खिरदमन्द सुनो। मेरी सारी उम्र निकल गयी राज्यों को जीतने में और अब मैं इस उम्र तक पहुँच गया हूँ कि अब मुझे अपने सामने केवल मौत ही दिखायी देती है।

मुझे अल्लाह का सन्देश भी मिल गया है। मेरे बाल भी सफेद हो चले हैं। एक कहावत है “हम सारी रात सोये तो क्या हम सुबह को नहीं उठेंगे?” अभी तक मेरे कोई बेटा नहीं है कि मेरे दिमाग में शान्ति हो। और इसी लिये मैं बहुत दुखी हूँ।

मैंने सब कुछ छोड़ दिया है। जो कोई चाहे वह मेरा राज्य और खजाना ले सकता है। मेरे लिये उनका कोई इस्तेमाल नहीं है। वैसे भी एक न एक दिन तो मुझे इसे छोड़ना ही है और इसे छोड़ कर जंगल में और पहाड़ों पर चले जाना है। फिर मुझे अपना चेहरा भी किसी को नहीं दिखाना है।

इस तरीके से मैं अपनी ज़िन्दगी के ये थोड़े से दिन सबसे अच्छे तरीके से गुजार सकूँगा।

अगर कोई जगह मुझे अच्छी लग गयी तो मैं वहीं बैठ जाऊँगा और अपना सारा समय मैं अल्लाह की सेवा में गुजार दूँगा। शायद मेरा भविष्य और ज़्यादा खुशी देने वाला हो। यह दुनियाँ तो मैं बहुत देख चुका। मुझे इसमें कोई खुशी नहीं मिली। ”

यह कह कर राजा एक गहरी साँस ले कर चुप हो गया।

खिरादमन्द इस राजा के पिता के समय से ही इस राज्य का वजीर था। और जब यह राजा उनका वारिस था तभी से वह इस राजा को बहुत चाहता था। इसके अलावा वह अक्लमन्द भी था और उसके अन्दर उत्साह भी था।

उसने राजा आजाद बख्त से कहा — “नाउम्मीदी तो अल्लाह की शान में हमेशा से ही एक गलती रही है। जिसने एक चुटकी में 18 हजार प्रकार के जीव पैदा किये हैं[11] वह आपको बच्चे तो बिना किसी मुश्किल के दे सकता है।

ओ ताकतवर राजा आप ऐस ख्याल अपने दिल से निकाल दीजिये वरना आपकी सब जनता भी परेशान हो जायेगी। और आपका राज्य भी जिसको आपने और आपके पुरखों ने कितनी मेहनत और मुश्किलों से बनाया है। यह सब एक पल में नष्ट हो जायेगा। अल्लाह करे कि आपकी किसी तरह की कोई बदनामी न हो।

और इसके अलावा फिर आपको “आखिरी दिन”[12] अल्लाह को जवाब भी तो देना है। जब वह आपसे पूछेगा कि “मैंने तुझे बादशाह बना कर भेजा था अपने बहुत सारे जीव तेरी देखभाल में रखे थे पर तूने तो मेरे अन्दर का विश्वास ही खो दिया। तूने तो उनको अपना काम छोड़ कर दुखी किया। ”

आप इस सवाल का क्या जवाब देंगे। उस समय आपकी ये प्रार्थनाएँ और भक्ति आपके काम नहीं आयेंगी। गुलाम की इस बदतमीजी को माफ करें पर घर छोड़ कर जंगल जंगल घूमना तो जोगियों[13] का काम है राजाओं का नहीं। आपको जो काम सौंपा गया है आपके लिये वही काम करना उचित है।

अल्लाह को याद करना और उसकी भक्ति केवल जंगल और पहाड़ों तक ही सीमित नहीं है। मैं समझता हूँ कि योर मैजेस्टी ने यह कविता तो सुनी ही होगी “अल्लाह तो उसके पास है पर वह उसको बाहर ढूँढता है बच्चा उसकी बाँहों में है पर उसने शहर में ढिंढोरा पीटा हुआ है।

यह कहावत हिन्दी में ऐसे कही जाती है “बगल में छोरा यानी बच्चा और शहर में

ढिंढोरा” यानी चीज़ तो अपने पास ही है और बाहर सब जगह उसे शोर मचा मचा कर

ढूँढ रहे हो।

अगर आप न्यायपूर्वक काम करें तो इस गुलाम की सलाह मानें। ऐसी हालत में योर मैजेस्टी अल्लाह को हमेशा ही अपने दिमाग में रखें और उसकी पूजा प्रार्थना करते रहें। उसकी देहरी से कोई खाली नहीं लौटा। आप दिन में अपना राज काज देखें गरीबों और दुखियों के साथ न्याय करें इससे अल्लाह के बनाये सब जीव आपकी खुशहाली की छाया में आराम से रहेंगे।

रात को प्रार्थना करें और मुहम्मद साहब से दुआ माँगें। साधु फ़कीर दरवेशों आदि से सहायता माँगें। अगर अल्लाह चाहेंगे तो आपकी दिल की इच्छा जरूर पूरी होगी। जिस दुख से आपका शाही दिल दुखी है उसे जरूर ही शान्ति पहुँचेगी। लावारिसों को बेसहाराओं को बन्दियों को जिन माँ बाप के बहुत सारे बच्चे हों उनको और असहाय विधवाओं को खाना खिलायें।

इन अच्छे कामों की दुआओं से आपके दिल को खुशी मिलेगी। हमेशा अल्लाह से अपने लिये दुआ माँगें क्योंकि जो वह चाहता है एक पल में कर सकता है। ”

इस तरह वजीर खिरदमन्द के वश में जो कुछ था वह उसने राजा को समझाया। राजा आजाद बख्त ने उसकी बात को समझा और कुछ सोच कर बोला — “यह तो तुम ठीक कहते हो। चलो इसको भी करके देखते हैं। और फिर अल्लाह की मरजी तो सबसे ऊपर है ही। ”

जब राजा का दिमाग कुछ शान्त हुआ तो उसने अपने वजीर से पूछा कि उसके दूसरे मन्त्री और कुलीन लोग कैसे थे और क्या कर रहे थे। वजीर ने जवाब दिया कि सभी लोग अपनी अपनी तरह से योर मैजेस्टी की ज़िन्दगी खुशहाली सलामती तन्दुरुस्ती और आपको इन दुख भरे हालात से बाहर निकलने के लिये प्रार्थना कर रहे थे।

उनको कुछ पता नहीं कि वे क्या कर रहे हैं और उन्हें क्या करना चाहिये। आप उनको अपने दर्शन दें ताकि उनका दिमाग थोड़ा शान्त हो सके। सो इस फैसले के अनुसार वे सब अब आपका दीवाने आम में इन्तजार कर रहे हैं। ”

राजा बोला — “अगर अल्लाह की कृपा हुई तो मैं कल अपना दरबार लगाऊँगा। उनसे कह देना कि वे सब कल उस दरबार में आयें। ”

राजा का यह वायदा सुन कर वजीर खिरदमन्द बहुत खुश हुआ। खुशी के मारे उसके दोनों हाथ ऊपर उठ गये। उसने राजा के लिये दुआ की कि जब तक यह धरती और आसमान हैं अल्लाह करे योर मैजेस्टी का ताज और राजगद्दी रहे। ”

तब वह राजा से बाहर आ कर उसने यह खुशखबरी बाहर आ कर सब कुलीन आदमियों को सुनायी। सारे कुलीन लोग खुशदिल और सन्तुष्ट हो कर अपने अपने घरों को चले गये। यह खबर सुन कर कि राजा कल अपना दरबार लगयेंगे सारे शहर ने खुशियाँ मनायीं।

अगले दिन सुबह राज्य के सारे नौकर चाकर कुलीन और छोटे सभी दरबार में आये और अपनी अपनी हैसियत के अनुसार राजा को देखने के लिये बैठ गये।

जब दिन का एक प्रहर[14] बीत गया तो एकदम से परदा उठा। राजा अपने दरबार में आये और अपनी राजगद्दी पर आ कर बैठ गये। खुशी से नौबतखाने में संगीत के वाद्य बज उठे। नजराने दिये गये। सबका आदर सत्कार किया गया। सबको उनकी हैसियत के अनुसार भेंटें दी गयीं। सब बहुत खुश थे।

दोपहर को हिज़ मैजेस्टी उठे और अपने महल में चले गये। महल में जाने के बाद थोड़ी देर तक वे वहाँ आनन्द करते रहे फिर आराम करने चले गये।

उस दिन से राजा ने अपना यह नियम बना लिया कि वह हर सुबह अपना दरबार लगाते थे और दोपहर के बाद का समय अध्ययन और अल्लाह की भक्ति में लगाते थे। उस समय वह अल्लाह से माफी माँगते और अपनी इच्छा पूरी करने के लिये प्रार्थना करते।

एक दिन कुछ पढ़ते हुए राजा ने एक जगह पढ़ा कि अगर कोई अपने दुख में इतना ज़्यादा डूबा हुआ है कि उसे कोई आदमी तसल्ली नहीं दे सकता तो उसको अपना दुख भगवान से कहना चाहिये। उसको मरे हुए लोगों के मकबरों कब्रों आदि पर जाना चाहिये और उनके ऊपर मुहम्मद के द्वारा अल्लाह की दुआ के लिये प्रार्थना करनी चाहिये।

अपने आपको उसके आगे कुछ नहीं समझना चहिये। किसी भी आदमी की कोई चिन्ता नहीं करनी चाहिये। उसको एक चेतावनी समझ कर रोना चाहिये।

अल्लाह की ताकत को समझ कर यह कहना चाहिये कि इस धरती और आसमान के बीच में कोई भी अमर नहीं है। कितने ताकतवर राजा आये और चले गये। कितने राज्य और सम्पदा जो धरती पर जन्मे आसमान के उसके ऊपर चारों तरफ घूमने से सब मिट्टी में मिल गये।

लेखिका का नोट —

इसी सन्दर्भ में कबीर दास जी का एक दोहा याद आता है –

चलती चाकी देख कर दिया कबीरा रोय दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय

अब अगर तुम उन हीरो को देखो तो सिवाय धूल के एक ढेर के उनका तो एक टुकड़ा भी नहीं बचा। सारे के सारे अपनी सम्पत्ति अपनी जायदाद अपने घर अपने बच्चे अपने दोस्त अपने हाथी अपने घोड़े यहीं छोड़ कर चले गये।

दुनियाँ की ये सब चीज़ें उनके किसी काम की नहीं। यहाँ तक कि आज तक कोई उनको किसी नाम से भी नहीं जानता। लोग यह भी नहीं जानते कि वे कौन थे। कब्र में उनकी क्या हालत है कोई यह भी नहीं जानता क्योंकि उनके शरीरों को चींटियाँ कीड़े मकोड़े साँप आदि नष्ट कर गये हैं। और किसी को यह भी क्या पता कि उनका क्या हुआ। या फिर उन्होंने अल्लाह से अपना हिसाब किताब कैसे सिलटाया।

इन शब्दों पर काफी सोचने के बाद उसको इस दुनियाँ के बारे में तो यह सोचना चाहिये कि यह सारी दुनियाँ तो झूठी है तभी उसके दिल का कमल हमेशा खिलता चला जायेगा। किसी भी हालत में कभी मुरझायेगा नहीं। ”

जब राजा ने यह सब पढ़ा तो उसको अपने वजीर खिरदमन्द की सलाह याद आयी तो उसको लगा कि उसने भी यही कहा था। बस उसके दिमाग में आया कि उसको भी ऐसा ही करना चाहिये।

पर उसने यह भी सोचा कि अगर वह घोड़े पर सवार हो कर एक राजा की तरह से अपने साथ बहुत सारे आदमी ले कर जाये तो यह तो ठीक नहीं होगा। सो इससे पहले तो मुझे अपनी पोशाक बदलनी चाहिये और फिर उसके बाद में रात को अकेले ही कब्रिस्तान में और अल्लाह के घरों में जाना चाहिये।

वहाँ पहुँच कर मुझे सारी रात जागना चाहिये। हो सकता है कि उन पवित्र लोगों की संगत में बैठ कर मेरी इस दुनियाँ की इच्छाएँ पूरी हो जायें और मुक्ति का कोई रास्ता मिल जाये।

ऐसा सोच कर राजा ने एक रात मोटे और मैले कपड़े पहने, कुछ पैसे अपने साथ लिये और चोरी से अपने किले के बाहर निकल गया। वह मैदानों की तरफ चल दिया।

चलते चलते वह एक कब्रिस्तान में आ पहुँचा। वह अपनी प्रार्थनाएँ बराबर दिल से दोहराता हुआ चला आ रहा था। उसी समय एक बहुत तेज़ हवा का झोंका आया। उसे तूफान भी कहा जा सकता है।

अचानक राजा ने अपने सामने रोशनी देखी जो सुबह के तारे की तरह चमक रही थी। उसने सोचा इस तूफानी मौसम में और इतने अँधेरे में यह रोशनी बिना किसी चमत्कार के ऐसे ही तो नहीं चमक सकती।

या फिर यह कोई तलिस्मान भी हो सकता है क्योंकि अगर नाइट्रो और सल्फर को दिये की बत्ती के चारों तरफ छिड़क दिया जाये तो हवा फिर कितनी भी तूफानी क्यों न हो यह रोशनी कभी बुझ नहीं सकती। और नहीं तो क्या यह दिया किसी पवित्र आदमी ने जला कर रखा है।

चलो जो कुछ भी है यह। मुझे वहाँ जा कर देखना चाहिये कि यह क्या है। क्या पता इस दिये की रोशनी से मेरे घर के दिये की रोशनी भी जल जाये।

ऐसा सोच कर राजा उसी दिशा में चल दिया जिस दिशा में उसको वह रोशनी दिखायी दे रही थी।

जब वह उस रोशनी के काफी पास पहुँच गया तो उसने देखा कि वहाँ पर अजीब से दिखायी देने चार फकीर[15] बैठे हुए हैं। उनके शरीर पर गेरुआ या नारंगी रंग के कपड़े हैं। उनके सिर उनके घुटनों पर झुके हुए हैं। सब बिल्कुल चुपचाप बैठे हुए हैं। उनकी सब इन्द्रियाँ उनके वश में हैं।

उनकी हालत ऐसी है जैसी कि किसी ऐसे यात्री की होती है जो अपने देश से दूर हो अपने समाज से दूर हो अपने दोस्तों से दूर अकेले हो। जैसे वे बहुत दुखी हों या जैसे उनका कुछ खो गया हो।

इस तरह से वे चारों फकीर वहाँ पत्थर की मूर्तियों की तरह बैठे हुए थे। उनके सामने ही रखे एक पत्थर पर उनका दिया जल रहा था। हवा उसको छू भी नहीं पा रही थी जैसे आसमान उसके लिये छतरी का काम कर रहा हो ताकि बिना किसी खतरे के वह आराम से जल सके।

यह दृश्य देख कर राजा अजाद बख्त को विश्वास हो गया कि इसकी इच्छा यहाँ जरूर पूरी होगी। उसने अपने मन में अपने आप से कहा “यहाँ अल्लाह के भेजे हुए लोगों के पैरों के निशानों की दुआ से तेरे मन की इच्छा जरूर ही पूरी होगी। तेरी आशाओं का पेड़ तो केवल उनकी एक नजर से हरा भरा हो जायेगा और उसमें फल आ जायेंगे।

जा तू उनके पास जा और उनको अपनी कहानी सुना। उनके पास बैठ। हो सकता है कि उनको तेरे ऊपर दया आ जाये और वे तुझे कोई ऐसी प्रार्थना बता दें जिसको अल्लाह स्वीकार कर ले।

अपने दिल में इस तरह का पक्का इरादा करके वह आगे बढ़ने ही वाला था कि उसके अपने इस फैसले को रोक लिया — “अरे पगले इतनी जल्दी मत कर। पहले ज़रा भाँप तो ले। तू उनके बारे में अभी जानता ही क्या है वे कहाँ से आये हैं वे कहाँ जा रहे हैं।

तुझे यह क्या पता हो सकता है कि वे कौन हैं। क्या हो अगर वे देव[16] हों या फिर गुल[17] हों जो आदमी का रूप ले कर यहाँ बैठे हों।

फिर भी हर हाल में जल्दी में उनके पास जाना और उनको इस तरह से तंग करना ठीक नहीं है। इस समय तू ऐसा कर कि कहीं छिप जा और इन दरवेशों के बारे में जानने की कोशिश कर। ”

सो राजा ने ऐसा ही किया। वह इतनी शान्ति से एक कोने में छिप गया कि उनमें किसी एक ने भी उसके पैरों की आवाज भी नहीं सुनी। फिर उसने ध्यान लगा कर सुनना शुरू किया कि वे आपस में क्या बातें कर रहे थे।

इत्तफाक से उनमें से एक फकीर को छींक आ गयी तो वह बोला — “अल्लाह की जय हो। ”

उसकी छींक की आवाज से दूसरे तीन कलन्दरों[18] का ध्यान बँट गया। उन्होंने दिये की लौ कुछ बढ़ायी तो रोशनी कुछ और बढ़ गयी। सब अपने अपने कालीन पर बैठे हुए थे सबने अपने अपने हुक्के जलाये और हुक्के पीने शुरू कर दिये।

इन आज़ादों[19] में से एक आज़ाद ने कहा — “दोस्तों। एक दूसरे के दर्द में साथ देने वाले, वफादारी से खानाबदोशों की तरह से सारी दुनियाँ में घूमने वाले। हम चार लोग आसमान के चारों तरफ घूमने की वजह से दिन और रात होने से अपने सिर पर हमेशा धूल लिये हुए दरवाजे दरवाजे काफी समय से घूम रहे हैं।

अल्लाह का लाख लाख शुक्र है कि अपनी अच्छी किस्मत होने की वजह से हम आज इस जगह पर मिले हैं। कल क्या होना है किसी को कुछ पता नहीं। और न यह पता है कि कल क्या होगा। हम लोग इकठ्ठे रहेंगे या फिर अकेले ही रह जायेंगे।

रात हमारे ऊपर बहुत भारी है। और इतनी जल्दी सोने जाना भी ठीक नहीं है। तो हमें अपने अपने बारे में वह सब सच सच सुनाना चाहिये जो कुछ इस दुनियाँ में हमारे साथ घटा हो।

इस तरह से हमारा यह समय बीत जायेगा। और अगर थोड़ा बहुत समय बचा तो फिर हम लोग लेट जायेंगे। ”

तो दूसरे तीनों बोले — “हाँ सरदार। यह तो आप ठीक कहते हैं। जैसा आप कहें। पहले आप अपने साथ हुई घटना बताइये। उसके बाद फिर हम बतायेंगे।


[1] Rum was the kingdom whose Constantinople is the capital, in moder times it is Romania, or Turkey in Asia and Europe.

[2] Like Nausherwan in justice and like Hatim in generousity

[3] Azad Bakht – name of the King

[4] Constantinople is modern Istanbul in Turkey

[5] Translated for the words “Mirror Room”. In Muslim king’s palaces a room was assigned as Aaine …; such as Aaine Akbari. In Hindi it is called Shish Mahal, it is a grand apartment in all oriental palaces, the walls of which are generally inlaid with small mirrors, and their borders richly gilded. Those of Dilli and Agra are the finest in Hindustan.

[6] Pain Bagh – Most Royal Asiatic gardens have a Pain Bagh, means a Lower Terrace adorned with flowers to which Princes descended when they wished to relax with their courtiers.

[7] Translated for the words “Public Hall of Audience”

[8] Khiradmand – name of the Vazir of the King Azad Bakht

[9] Translated for the words “Private Hall of Audience”. In this hall only private problems are discussed.

[10] I have used this word for the English word “Eunuch” so as to keep some descency in language.

[11] The Asiatics reckon the animal species at 18,000; a number which even the fertile genius of Buffon has not attained. Yet the probability is, that the orientals arc nearer the true mark; and the wonder is, how they acquired such correct ideas on the subject.

[12] The Day of Judgment

[13] Translated for the word “Hermits. Literally, "Fakirs and Jogis" either term denotes "hermit," the former being applied to a Musalman, the latter to a Hindu.

[14] In India, even today, the day is divided into four equal portions, called Prahars or Pahar or watches, of which the second Prahar is terminated at noon; hence, do-pahar-din, mid-day. In like manner was the night divided; hence, do-pahar-raat, midnight. The first pahar of the day began at sunrise, and of the night at sunset; and since the time from sunrise to noon made exactly two pahars, it follows that in the North of India the Pahar or Prahar must have varied from three and a-half hours about the summer solstice, to two and a-half in winter, the Pahars of the night varying inversely.

[15] Fakirs are holy mendicants, who devote themselves to the expected joys of the next world, and abstract themselves from those of this silly transitory scene; they are generally fanatics and enthusiasts-- sometimes mad, and often hypocrites. They are much venerated by the superstitious Asiatics, and are allowed uncommon privileges, which they naturally often abuse.

[16] The Dev is a malignant spirit, one of the class called jinn by the Arabs, vide Lane's "Arabian Nights," vol. i. p. 30. The jinn or genii, however, occasionally behave very handsomely towards the human race, more especially towards those of the Muhammadan faith. Dev is different from Hindu’d Devta.

[17] The Ghul is a foul and intensely wicked spirit, of an order inferior to the jinn. It is said to appear in the form of any living animal it chooses, as well as in any other monstrous and terrific shape. It haunts desert places, especially burying grounds, and is said to feed on dead human bodies.

[18] Kalandars are a more fanatic set of Fakirs. Their vow is to desert wife, children, and all worldly connexions and human sympathies, and to wander about with shaven heads.

[19] The term Azad, "free, or independent," is applied to a class of Darweshes who shave the beard, eyelashes and eyebrows. They vow chastity and a holy life, but consider themselves exempt from all ceremonial observances of the Muhammadan religion.


(क्रमशः अगले खंडों में जारी...)

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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
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रचनाकार: लोक कथा - किस्सए चार दरवेश - सुषमा गुप्ता - खंड पांच
लोक कथा - किस्सए चार दरवेश - सुषमा गुप्ता - खंड पांच
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