संस्थानोपनिषद (व्यंग्य –उपन्यास ) - 4 : यशवंत कोठारी

SHARE:

भाग 1 /  भाग - 2 / भाग 3 / संस्थानोपनिषद (व्यंग्य –उपन्यास ) यशवंत कोठारी भाग 4 -   संस्थान छोटा था, मगर राजनीति बड़ी होती थी. स्टाफ रूम ऐ...

भाग 1भाग - 2 / भाग 3 /

संस्थानोपनिषद

(व्यंग्य –उपन्यास )

यशवंत कोठारी


भाग 4 -  


संस्थान छोटा था, मगर राजनीति बड़ी होती थी. स्टाफ रूम ऐसी बड़ी जगहों पर नहीं पाया जाता, किसी भी विभाग के कक्ष में बतकही, आलोचना, का सम्मेलन हो जाता था. आज लोग-बाग़ डीन अकेडमिक के कक्ष में जम गए थे. डीन कभी एक दिन के लिए डायरेक्टर रह चुके थे. चमड़े के सिक्के चला ने के चक्कर में निलंबन को प्राप्त होते होते बचे. बचे इसलिए की सरकार ने एक सचिव को बचाना जरूरी समझा, ये सचिव के साथ बच गए.

संसदीय समिति का आना ही एक तूफ़ान था, फिर लोक लेखा समिति के तो जलवे ही अलग होते हैं. कुछ उनको अपनी समस्याओं का ज्ञापन देना चाहते थे. कुछ लोग डीपी सी, प्रोमोशन के गीत गाना चाहते थे., मगर परमिशन कैसे ले? . निदेशक स्पष्ट मना कर चुके थे. सभी प्रोफेसर बन्दूक किसी दूसरे के कन्धों पर रखना चाहते थे, इधर जरूरी कामकाज निपटाना था. एक शानदार वार्षिक रिपोर्ट की जरूरत थी, ऑडिट रिपोर्ट भी छपनी थी. छपे तो तब जब पाण्डुलिपि बने, पाण्डुलिपि तब बने जब कोई लिखे, यही सब से बड़ी मुश्किल थी. आखिर अतिरिक्त निदेशक ने हल खोजा, राज भाषा विभाग के अधिकारी को लिखने का आदेश मिला. राजभाषा अधिकारी ने अंग्रेजी नहीं जानने का बहाना बनाया जिसे तुरंत यह कह कर मनाया गया की सहायक निदेशक का पद आ सकता है. लेखा विभाग ने ऑडिट रपट की कॉपी बनाई, और छपने को मेटर दे दिया गया. कवर शानदार जानदार बनाया गया. इस दिव्य व भव्य काम के लिए बजट काफी ज्यादा रखा गया. बहुत ही महंगा कागज लगाया गया. रंगीन छपाई से समिति को गुमराह करने की कोशिश थी. संस्थान की साफ सफाई पर विशेष ध्यान दिया वैसे भी पु रे देश में सफाई अभियान चल रहा था. जाले साफ किया गए. वाश रूम्स को चमकाया गया. जिस कांफ्रेंस हॉल में मीटिंग होनी थी, उसकी रंगाई पुताई कराई गयी ए. सी ठीक कराये गए. वाटर कूलर चालू हुए. नए गमले लाये गए. टूटी हुई कुर्सियां हटाई गयी. खर्चा ज्यादा हुआ, मगर चिंता न को.

जिस सरकारी होटल में ठहरने के इतजाम थे, उनको अलग ऊपर से कह्ल्वा दिया गया. लंच डिनर व् रात्रि चर्या के लिए कुछ विशेष लोगों की ड्यूटी लगाई गई. सब इंतजाम चाक-चौबंद किये गए. मगर होनी को कौन टाल सकता है, अर्थात कोई नहीं.

समिति के आने से एक दिन पहले विभाग के आला अधिकारी दिल्ली से मुआइना करने पधारे. संयुक्त सचिव के एस्कॉर्ट में विशेष सचिव ने विभागों का दौरा किया, एक विभाग में सब अनुपस्थित थे, सचिव ने निदेशक की और प्रश्नवाचक निगाहों से देखा, निदेशक ने संयुक्त सचिव के कान में बताया की इस विभाग के मुखिया मंत्री के रिश्तेदार हैं, शेष लोगों को होटल में ड्यूटी के लिए भेजा हैं, संयुक्त सचिव ने यह जानकारी विशिष्ट सचिव के कान में डाल दी. ऐसे मामलों में प्रोटोकोल का पूरा ध्यान रखा जाता है, यह जानकर सचिव खुश हुए.

मीटिंगों के कई दौर के बाद आखिर वो दिन आ ही गया जब संसदीय कमिटी का दौरा था. मीटिंगों में चाय पानी और बजट के अलावा कोई मुद्दा नहीं होता था. हर समिति को और ज्यादा बजट की आवश्यकता थी. वार्षिक प्रतिवेदन व् ऑडिट रिपोर्ट की शानदार छपाई के किये जानदार बजट लिया गया. समिति अध्यक्ष ने इसी बजट में से अपने लिए एक सूट निकल लिया. यातायात समिति का मामला थोडा गडबड था क्योंकि महंगी कारे मोटर गेराज से आनी थी, मगर लेखा अधिकारी ने इस समस्या का बहुत ही अच्छा समाधान निकाला, उन्होंने मोटर गेराज में अनुबंधित फर्म से गाड़ियाँ ली, अनुबंधित कम्पनी ने न्योछावर चढ़ाई, पत्रावली पर प्रसाद का प्रभाव बना रहा. आवास -भोजन समिति ने भी अपनी इच्छाएं पूरी की. जिस सरकारी होटल में इंतजाम थे उसके कुछ खाने व् ठहरने के कूपन सभी को मिले और इस तरह ईमानदारी की रक्षा हुई.

समिति आई, आधे सदस्य शहर देखने चले गए, अध्यक्ष , सचिव व् समिति के बाकी लोगों ने का म देखा निदेशक, व अधिकारियों को डाट पिलाई, खा ली पद क्यों नहीं भरे जा रहे हैं? कुछ लोगों को सरप्लस करने की सिफारिश मान ली गयी, निदेशक को कुछ कांटे निकालने का अवसर मिला. ये कांटे काफी समय से चुभ रहे थे. वार्षिक रिपोर्ट व् ऑडिट रिपोर्ट को संसद में रखने के आदेश देकर समिति के अध्यक्ष व सचिव राज्यपाल, मुख्य मंत्री से मिलने चले गए. निदेशक ने राहत की साँस ली.

मगर दूसरे दिन बिलों को लेकर मामला उलझ गया. निदेशक की चहेती महिला मित्र ने खाने का एक लम्बा बिल नॉन वेज व् हार्ड ड्रिंक का प्रस्तुत किया, इसे पास करना खतरे से खा ली नहीं था, अब क्या किया जाये. समिति के सदस्य ने रात्रि चर्या के क्रम में यह सब किया था. बिल काफी भा री थे. निदेशक व लेखा शाखा के दिमाग चकरा गए. यह खाना समिति के ही किसी सदस्य ने खाया है या रात्रि चर्या में का म आया होगा. समिति खुश होकर गई है यह तो ठीक मगर यह भारी बिल.

निदेशक के कक्ष में एक गोपनीय उपवेशन का आयोजन क्या गया, जिसमें निदेशक, महिला मित्र टीचर, व लेखा अधिकारी थे.

सर! ये बीयर, व्हिस्की के बिल कैसे पास करूँ?

हूँ.

और ये भारी नॉनवेज के बिल -अधिकारी ने अपनी मज़बूरी बताई.

तो क्या सब मैं खा गयी -महिला ने क्रोध में कहा

आपने खाया ये कोई नहीं कह रहा -निदेशक ने बात संभाली, मगर इन बिलों को पास करना खतरे से खाली नहीं.

ये सब देखना मेरा काम नहीं है, मैंने तो तन व मन से संस्थान और आपकी सेवा कि है, धन देना आपका काम है, पिछली बार भी मुझे ही वहां रात गुजारनी पड़ी थी केवल आपकी खातिर.

ठीक है, कोइ रास्ता निकालेंगे. -निदेशक ने फिर ठन्डे छीटें दिए.

महिला प्रोफेसर सदन से वाक आउट कर गयीं. अब बचे निदेशक व लेखा अधिकारी . दोनों ने मिलकर तय किया की जो ठेकेदार संस्थान की मरम्मत का काम करता है, उसको इन बिलों के भुगतान की जिम्मेदारी दी जाय, वो चूं भी न कर सकेगा और संस्थान प्रशासन पर आंच भी नहीं आयगी. बात हम दोनों के बीच ही रहेगी. निदेशक ने ठेकेदार को सीधा फोन कर कहा कि –

लोक लेखा समिति के होटल के बिलों का भुगतान कर मुझे सूचित करो.

ठेकेदार ने भारी बिल का रोना रोया, मगर का म हो गया. कुछ दिनों के अन्तराल के बाद ठेकेदार को पु रे भवन में मार्बल उखाड कर ग्रेनाइट लगाने का ठेका दे दिया गया, जिसकी अनुशंसा मंत्रालय ने दे दी क्योंकि लोकलेखा समिति खुश थी, मंत्री खुश थे, संसद खुश थी. संस्थान के अधिकारी, कर्मचारी, छात्र भी खुश थे. ठेकेदार को तो खुश होना ही था, ठेकेदार पत्नी भी चाहती थी की ऐसी समितियां रोज़ रोज़ क्यों नहीं आती. लेकिन लेखा समिति को तो पूरा देश देखना पड़ता हैं भाई साहब.

समिति के जाने की ख़ुशी में संस्थान में दो दिन का अघोषित अवकाश हुआ, फिर शनिवार व रविवार आ गया.

आज सोमवार था, संस्थान कई दिनों के बाद खुला था. रात को आई तेज आधी से हर तरफ धुल -धक्कड़ हो गया था. कोढ़ में खाज सफाई करने वाले कमिटी के जाने के बाद ही आराम से बैठ गए. छोटे -मोटे अफसरों की छोड़ो डिरेक्टर तक के कमरे, वाश रूम तक साफ नहीं. सुबह का समय है, अफसर, प्रोफेसर हैं लेकिन कहाँ बैठे, का म काज कैसे शुरू हो, वैसे कई लोगों के अभी तक समिति की सेवा की खुमारी उतरी नहीं हैं. धीरे धीरे सफाई का का म चलाऊ इंतजाम किया गया. प्रधानमंत्री की सफाई -योजना का यहां पर कोई प्रभाव नहीं. निदेशक को एक जरूरी फोन के द्वारा बताया गया की दिल्ली से सरकार के चहेते बाबा का एक शानदार प्रवचन कराया जाये. निदेशक ने मन में कहा-एक और हेडेक आ रहा है. लेकिन काम तो करना ही था.

आना बाबा का –

इस संस्थान के निदेशक की हर विषय में गति है सिवाय उस विषय के, जिस को पढाने के लिए इनको शुरू में रखा गया था. वे राजनीति, अध्यात्म योग, प्रशासन आदि में निपुण हो गये बस कक्षा नहीं ले सकते. पांच प्रोफेसरों को एक साथ देख कर उनको बुरा लगता है. पीठ पीछे लोग इनके शैक्षणिक ज्ञान के ऐसे ऐसे किस्से सुनाते हैं की श्रोता मन्त्र मुग्ध हो जाते हैं. बहुत सा रे अध्यापक तो अपनी कक्षा में इन किस्सों से ही काम चला लेते है.

ज्योंही दिल्ली की काल आई, निदेशक समझ गए बाबाजी ने मंत्रीजी की जन्मकुंडली बांच कर उनके प्रमोशन की घोषणा कर दी है. मंत्री जी का तो भगवान जाने मगर निदेशक अपनी जनम कुंडली बचाना चाहते थे सो डीन अकादमिक को बुला भेजा. डीन साहिब ने तुरंत कहला भेजा –

सर, क्लास लेकर आता हूँ, वैसे वे कैसी क्लास लेते हैं ये निदेशक अच्छे से जानते थे, खेर कुछ देर बाद डीन साहब नमूदार हुए,

आजकल बहुत पढ़ा रहे हैं, क्या बात है राष्ट्रपत्ति पदक लेना है क्या?

नहीं सर, छोटी कक्षा नहीं छोड़ता. और एक डेढ़ घंटे की क्लास के बिना मज़ा नहीं आता.

हूँ, मैं सब समझता हूँ. -निदेशक बोल पड़े.

मंत्रालय से एक फैक्स आया है, वे एक बाबा जी को भेज रहे हैं, उनके योग व् अध्यात्म पर व्याख्यान होने हैं. आप व्यवस्था कराइए. निदेशक ने सपाट स्वर में कहा. लेकिन वो डीन ही क्या जो आसानी से मान जाये. तुरंत बोले –

सर, हमारे संस्थान के उद्देश्यों में ये योग -वोग -भोग नहीं आते ये का म तो किसी धरम-कर्म कि संस्था में ठीक रहेगा. हमारा का म तो पीड़ित मानवता की सेवा, विकास और प्रबंधन का है.

ये भी विकास ही है, मंत्रालय कहे वहीँ विकास.

सबका साथ सबका विकास. चलो शुरू हो जाओ.

तो फिर क्या करे, बाबाजी व् उनके स्टाफ को टी. ए, डी ए भी देना है.

सर एक का म करते हैं, छात्रों व् ट्रेनर्स को शारीरिक ट्रेनिंग के नाम पर इस बवाल को करवा देते हैं. टी ए डी ए छात्र कोष या ट्रेनर्स कोष से कर देंगे.

. तुम मरवाओगे, पहले ही बहुत सारे ऑडिट आक्षेप हैं, फिर इस छात्र निधि का उपयोग करना या ने छात्रों को उकसाना.

पासा उल्टा पड़ता देख डीन ने रुख बदला, और कहा

ठीक है सर हम पहले प्रोग्राम कर लेते हैं फिर पत्रावली चलती रहेगी. मैं एक जूनीयर टीचर को लगा देता हूँ. बाबाजी कि सेवा के लिए भी तो कोई चाहिए होगा. डीन सर ने अपने कक्ष में जाकर

अपने शोधार्थी को बुल वाया और व्यवस्था के लिए बताया, शोधार्थी की स्थिति उनके बंधुआ मजदूर जैसी थी. संस्थान में ऐसे स्कॉलर हर बूढ़े प्रोफेसर के पास थे, जिनको बेटा बेटा कह कर किसी भी काम में जोता जा सकता था. वे बेचारे चूं भी नहीं कर सकते.

बाबाजी का मंत्रालय में पूरा रुतबा था, एक सलाहकार को घर का रास्ता दिखा चुके थे, एक अन्य सलाहकार इधर –उधर पानी मांग रहा था. बाबाजी यो. धरम अध्यात्म ध्यान के तो विशेषज्ञ थे ही राजनीति व् महिला मित्रों में भी बदनाम थे.. बाबाजी के साथ चेले चांटी, चेलियाँ लम्बा चो ड़ा लवाजमा आता था, गाड़ियों का एक हुजूम साथ चलता था, उनका अपना एक सिक्यूरिटी नेट वर्क था.

बाबाजी का आश्रम राजधानी के निकट ही था, जानकार बताते हैं की इस आश्रम में घुसना आसान नहीं था. आश्रम में ही जीवन की सब सुख सुविधाएँ मौजूद थी. आश्रम में ही स्कूल. कॉलेज, अस्पताल, प्रवचन स्थल सब कुछ था. आश्रम में घुसना आसान नहीं था घुसने के बाद जिन्दा निकलना मुश्किल ही नहीं ना मुम्किन था. आश्रम में दवा कम्पनी थी. बाबाजी सभी प्रकार के उत्पाद बनाते व् बेचते थे ये उत्पाद बनाने के लिए बाबाजी के पास फेक्टरियाँ नहीं थी. ज्यादातर मॉल आयातित होता था ठप्पा लगाकर बेचा जाता था. बाबाजी के खेतों के फल आर्गेनिक के नाम पर महंगे बिकते थे. बाबाजी कम्पनी के अवैतनिक मुखिया थे, कहने को केवल एक लंगोट धारी बाकी सारा जहाँ हमारा. तो ऐसे बाबाजी जो फिल्मों व् टी वि के भी शौक़ीन, हर चैनल पर बाबा के उत्पादों के विज्ञापन और हर चैनल के किसी न किसी कार्यक्रम में बाबाजी की सजीव उपस्थिति. बाबा खुद भी रास लीला विशेषज्ञ, बाबा और बालाओं के डांस देख कर देवता भी शर्मा जाये. हर चेनल पर छाये रहते थे. अपनी कम्पनी के विज्ञापन अपना कार्यक्रम अपने माडल्स.

०००००००

तो ऐसे बाबा के स्वागत अभिनंदन व् अभिवादन के लिए संस्थान अपने पोर्च में गुलदस्ते, माला, लेकर खड़ा है, स्थानीय परम्परा के अनुरूप बाबाजी की आरती उतारने के लिए सुंदर सुंदर बालाओं का एक समूह आरती कि थाली में दीपक, रोली मोली, कुमकुम लेकर खड़ा है. बाबाजी का लवाज्मा पहुचने की सूचना लिए एक बड़ा पुलिस अधिकारी वाकी –टाकी लेकर दौड़ कर निदेशक के पास आया-

सर, मुख्यमंत्री भी साथ है. बेचारे निदेशक की हवा निकल गयी. लेकिन वे जानते थे बाबा के सम्मान से सी. एम्. भी खुश हो जायंगे. हो सकता है मामला पी एम् ओ तक चला जाये किसी राष्ट्रीय सम्मान का जुगाड़ बैठ जाये.

संस्थान के एक बड़े खेल मैदान में बहुत बड़ा शामियाना लगाया गया है, शानदार ऊँचा मंच. मंच से नीचे बीस फिट तक बेरिकेड, बेरीकेड के बाद जमीन पर दरिया, शुरू की पंक्तियों में बाबा के समर्पित शिष्य, शिष्याएं, फिर संस्थान के छात्र –छात्राएं, अध्यापक सब को बाबा के निर्देशानुसार योग की ड्रेस. बाबा व् मुख्यमंत्री मंच पर बाकि सब नीचे. बाबा ने चढ़ते ही मंच संभाल लिया. माइक पर ॐ की गुरु गम्भीर वाणी के साथ बाबा ने धरम, ध्यान, योग, अध्यात्म पर प्रवचन शुरू किया. उन्होंने नदियों की सफाई की बात की, पीछे से कोई चिल्लाया –यमुना को क्यों प्रदूषित किया, बाबा ने कोई ध्यान नहीं दिया. बाबा ने गंगा नदी की पवित्रता का जिक्र किया पीछे से फिर कोई चिल्लाया आप की फेक्ट्री से ही सबसे ज्यादा प्रदूषित गन्दा पानी आ रहा है, बाबा ने ऊँची आवाज में वन्दे मातरम बोला आगे की पंक्ति में खड़े बाबा के चाटुकारों ने साथ दिया.

बाबा फिर बोलने लगे

संत साधू सन्यासी में कोई फर्क नहीं है हम लोग समाज को देते ही देते है, लेते कुछ नहीं हम तो नंगे फ़क़ीर है. बहता पानी है, हमारे नाम पर कहीं एक इंच जमीं भी नहीं है जो कम्पनियां बनी है मैं तो उसका ट्रस्टी भी नहीं तुम्हारी वस्तु तुम्हीं को समर्पित.

बच्चों!

तुम देश का भविष्य हो जो यहाँ से सीख कर जाओगे वहीँ आगे सिखाओगे. भारतीय संस्कृति ही विश्व को बचा सकती है. भारतीय सामान काम में लो. इस बार एक वीर बालक खड़ा हो गया, जोर से बोला, बाबा आपकी कम्पनी में तो विदेशी और चीनी मॉल को रीपैक करते है. बाबा को गुस्सा आना था, आ गया. उन्होंने मंच से ही ललकारा कौन हो तुम, मुझे तो तुम आतंकवादी लगते हो. तभी अन्य लोगों ने मामला शांत किया. बाबा गुस्से में थे, श्राप देना चाहते थे मगर निदेशक व् मुख्यमंत्री ने माफ़ी मांग कर मामला शांत किया. बाबा ने प्रवचन के बाद योग कराया, ध्यान सिखाया, देशी जड़ी बूटियों का ज्ञान दिया, बाबा यह कहना नहीं भूले कि हमारी दवा लो. इससे उच्च रक्तचाप, मधुमेह, वजन कम –ज्यादा आदि रोगों में बहुत फायदा होता है. हमारी पत्रिका के वार्षिक ग्राहक बने. बाबा कुछ और बोलते तभी बाबा का निजी सचिव स्टेज पर आया और बाबा के कान में कुछ बोला. बाबा ने तुरंत अपना व्याख्यान बंद कर दिया. बाद में पता चला की बाबा के आश्रम पर छापा पड़ा और छापे में ए. के सैंतालिस रायफल मिली बाबा के कर्मठ नंबर दो बाबा को पुलिस ले गयी, लेकिन् बाबा ने तुरंत अपना वेश बदला सलवार कुर्ती धारण किये और मंच से अंतर ध्यान हो गये. कुछ महीनों के बाद बाबा अग्रिम जमानत लेकर एक डांस के कार्यक्रम में दिखे.

लेकिन संस्थान में यह अफवाह लम्बे समय तक रहीं की बाबा की कुछ चेलियाँ गर्भवती होकर आश्रम से भाग गयीं, कुछ अन्य चेलियों का कुछ अता –पता नहीं मिल रहा है. शायद उनको मार दिया गया या उनके अंग निकाल कर बेच दिए गए. बाबा का यह प्रोग्राम संस्थान के अलावा मीडिया में भी छाया रहा. कुछ चैनलों ने तो महीनों चर्वित चर्वण किया. समाचारों के इस अकाल समय में ऐसा अवसर कौन छोड़ता है?

इस असफल कार्यक्रम के कारण संस्थान व् निदेशक की बड़ी बेइज्जती हुई.

इसको ठीक करने के लिए निदेशक ने एक नयी चाल चली.

00000000000000

होना आयोजन अन्तर- राष्ट्रीय सेमिनार का –

सेमिनार के नाम से ही मास्टरों, छात्रों, प्रशासनिक व् लेखा शाखा के लोगों के बांछें खिल जाती हैं, संस्थान में एक कहावत भी प्रसिद्ध थी कुछ का म मत करो, साल दो साल में एक राष्ट्रीय सेमिनार की नौटंकी कर लो. मेला जोड लो, अपने अमचो - चमचों, विशेषज्ञों को बुला लो, मंत्री या राज्यपाल से उदघाटन करवा लो. पी एम् ओ तक कार्ड बंटवा दो. एक शानदार किताब छाप लो जिसमें सभी शोध पेपर्स आ जाये. इस किताब में सचिव, मंत्री या राष्ट्रपति के शुभ कामना सन्देश सचित्र छाप लो, बस एक सफल और स्वादिष्ट सेमिनार का नुस्खा तैयार. मगर इस महान का म से पहले जो राजनैतिक दाव पेच होते हैं, उनकी जानकारी भी जरूरी है.

सेमिनार कौन सा विभाग कराएगा, आयोजन सचिव कौन होगा, सेमिनार का विषय क्या होगा, किस-किस विद्वान को बुलाया जायगा. ये विद्वान वास्तव में विद्वान होंगे या सत्ता के गलियारों में चक्कर काटने वाले तथाकथित बुद्धिजीवी होंगे. सेमिनार का वेन्यू कहाँ होगा, इस तरह के सैकड़ों प्रश्न हवा में तैरने लग जाते हैं, कई बार सेमिनार एक अफवाह सिद्ध होती है क्योंकि अचानक बजट कटौती की घोषणा हो जाती हैं. कभी-कभी यूनियन अपना काम कर जाती है और काम ठप्प हो जाता है, लेकिन वर्तमान निदेशक को अपनी छवि सुधारनी थी सो वे गंभीरता से विचार, मनन, मंथन करने लगे.

निदेशक यह अच्छी तरह से जानते थे की करना क्या है, मगर मामला प्रजातान्त्रिक भी बना रहना चाहिए, सभी की सहमती व सहयोग जरूरी होता है. सब खुश रहे यहीं सेमिनार की सफलता का मूल मन्त्र था. बाकी शोध का क्या है हम नहीं करेंगे तो कोई दूसरा कर लेगा, कौन सा नोबल पुरस्कार मिल जायगा.

निदेशक ने मन ही मन तय किया की इस पहली और उनके कार्यकाल की अंतिम सेमिनार का वेन्यू स्थानीय के बजाय दिल्ली का विज्ञान भवन रखना ठीक रहेगा. देश की राजधानी में मीडिया और सरकार का ध्यान तुरंत जाता है. यदि सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो सेवा विस्तार भी मिल सकता है, या अन्य किसी जगह पर फिट हुआ जा सकता है. यही सब सोच कर निदेशक ने अपने चमचे डीन व् प्रोफेसरों की एक गुप्त मीटिंग बुलाने का निश्चय किया. गुप्त या गोपनीय बात उसे कहते है जो बिना बताये सब को मालूम चल जाये. गोपनीय पत्र व पत्रावलियों के साथ भी यहीं होता था.

अत: यह उपवेशन निदेशक के घर पर सांय कालीन आचमन के साथ रखा गया. आचमन की व्यवस्था एक नयी छात्रा को सौंपी गयी जो इसी संस्थान में नौकरी का सपना पाले हुई थी. इस आचमन के साथ ही चर्चा शुरू हुई.

दो पेग के बाद मुर्गे की टांग तोड़ते हुए प्रोफेसर सक्स्सेना बोले-

सर कांफ्रेंस का विषय जोरदार होना चाहिए, आखिर अंतर राष्ट्रीय सेमिनार है.

यार सक्सेना तुम्हारी यहीं सबसे बड़ी मुसीबत है, दो पेग के बाद ही बहक जाते हो. विषय और बजट राजधानी में तय होंगे.

मिस शर्मा बोल पड़ी –

सर हिसाब किताब को बड़ी होशियारी से बनाना पड़ेगा. कई लोग बाद में संस्थान में कपड़े फाड़ते फिरते है.

तुम क्यों चिंता करती हो डार्लिंग ये कहकर निदेशक ने मिस शर्मा के कमर में हाथ डाल कर किस कर लिया, बेचारी शरमा गयी. निदेशक ने आंख मारी और आगे बोले-

सबके ताबीज बना दूंगा, एक कौए को मार कर लटका दिया है. जो ज्यादा बूढ़े हैं उनके मूंडे काले कर के रख दिए है जब जरूरत पड़ेगी आइना दिखा दूंगा. कौन बोलेगा? ये गरीब गुरबे मास्टर जो फर्जी मेडिकल व् फर्जी कनवेंस बिल देते हैं या ये अफसर जो मेरे नौकर व किरायेदार हैं. सबका ध्यान रखता हूँ सबको बचाता हूँ, साले हरामी सब के सब हरामीऔर कमीने . निदेशक को चढ़ने लग गयी थी, यह देख कर सब मुफ्त का खाना अरोगने लगे. इस पार्टी से ही तय हो गया की सेमिनार जानदार-शानदार जोरदार व् धारदार होगी. दो करोड़ से कम में कुछ नहीं होगा. आजकल तो कवि सम्मेलन भी करोडों के होने लगे हैं. एक एम् एल ए का चुनाव ही करोड़ों खा जाता है.

निदेशक के मन में था की सेमिनार दिल्ली के विज्ञान भवन में करनी है. उदघाटन के लिए राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री को बुलाना है, बस यहीं थोडा मुश्किल काम था, मगर निदेशक राजनीति में भी माहिर थे. इतने मंत्रियों को शक्ति वर्धक दवाइयां दी , प्रयोगशालाएं भी दी कब कम आयेंगे साले.

निदेशक यहीं सोचते हुए अपने शयन कक्ष की और बढ़ गए. चमचे अपने अपने घर को जाते भये. निदेशक पलंग पर गिरे और गहरी नींद के आगोश में सुनहरे सेक्सी सपने देखने लगे.

००००००००००

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: संस्थानोपनिषद (व्यंग्य –उपन्यास ) - 4 : यशवंत कोठारी
संस्थानोपनिषद (व्यंग्य –उपन्यास ) - 4 : यशवंत कोठारी
https://lh3.googleusercontent.com/-3lmKcMVBR1Q/WL6TGVzUZXI/AAAAAAAA3O0/SmiW4Qh-xyY/image_thumb%25255B4%25255D.png?imgmax=200
https://lh3.googleusercontent.com/-3lmKcMVBR1Q/WL6TGVzUZXI/AAAAAAAA3O0/SmiW4Qh-xyY/s72-c/image_thumb%25255B4%25255D.png?imgmax=200
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2020/02/4.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2020/02/4.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content