स्मृतियों में हार्वर्ड - भाग 10 // सीताकान्त महापात्र // अनुवाद - दिनेश कुमार माली

SHARE:

भाग 1 भाग 2 भाग 3 भाग 4 भाग 5 भाग 6 भाग 7 भाग 8   भाग 9 20. न्यूयार्क में फिर एक बार, नववर्ष 1988 का स्वागत हार्वर्ड के सिफ़ा सेंटर म...

भाग 1 भाग 2 भाग 3 भाग 4 भाग 5 भाग 6 भाग 7 भाग 8  भाग 9

20. न्यूयार्क में फिर एक बार, नववर्ष 1988 का स्वागत

हार्वर्ड के सिफ़ा सेंटर में एकवर्षीय प्रवास के दौरान अमेरिका सरकार के निमंत्रण पर हमारे लिए दो सप्ताह की वहाँ के विभिन्न स्थानों के परिदर्शन की व्यवस्था की गई थी। 9 जनवरी,1988 को हमने हार्वर्ड छोड़ा था और 25 जनवरी को हम वापस यहाँ पहुँच गए। हमारे प्रस्थान से दो दिन पहले अर्थात् 7 जनवरी को मैं न्यूयार्क से हार्वर्ड लौट आया था। नया वर्ष मनाने के लिए कृष्ण फूफाजी ने मुझे न्यूयार्क में अपने घर आमंत्रित किया था। कृष्ण फूफाजी अमेरिका में ओड़िशा की पहली पीढ़ी के थे। वह प्रसिद्ध पशु-चिकित्सक थे। अमेरिका के विश्वविद्यालय से उन्होंने डॉक्टरेट किया था। उनका घर ओड़िया लोगों के लिए परिचित स्थान था। हार्वर्ड आने से पहले ओड़िशा के मुख्य सचिव के.राममूर्ति ने अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान उनसे मुलाक़ात की थी और उनके घर एक दिन ठहरे भी थे। यह बात मुझे राममूर्ति ने खुद बताई थी। इसके अलावा, कई डाक्टर,प्रोफेसर,राजनेता न्यूयार्क जाते समय या तो उनके घर पर रुकते थे,या फिर उनसे कम से कम मुलाक़ात करते थे। कृष्ण फूफा जी बहुत ही लोकप्रिय व्यक्ति थे, इसलिए नए साल का जश्न मनाने के लिए उनके घर में बहुत भीड़ होती थी। रात के 9 बजे से लॉन्ग आइलेंड,क्वीन्स,मैनहट्टान सभी जगहों से कम से कम 12 परिवार उनके घर पहुँचते थे। मुझे खास तौर पर याद है डाक्टर रायचौधरी और उनकी पत्नी। बाद में डाक्टर रायचौधरी ने भुवनेश्वर के कलिंग हॉस्पिटल के निर्माण में मुख्य भूमिका अदा की। बीच में फोन आया भुवनेश्वर से,मेरी पत्नी और बच्चों का, 12 बजने से बहुत पहले। नए वर्ष के स्वागत में टेलिफोन लाइन व्यस्त हो जाती थी। मेरे बेटे मुनु ने पहले फोन किया,मगर कट गया। फिर फोन आया,फिर कट गया। जो भी हो मुझे सभी के कुशल-क्षेम की खबर मिली। वहाँ तो नया वर्ष बहुत पहले ही आ गया था। उन्होंने भुवनेश्वर में श्री गोपीनाथ मोहंती के घर नया साल मनाया था। मुझे आज भी याद है हर साल भुवनेश्वर में रहते समय हम सभी मिलकर धौलीगिरि जाते थे,वर्ष के अंतिम सूर्य को अलविदा कहने के लिए। ठीक 12 बजे हम सभी मिलकर गोपी मामा और मामी को चरण-स्पर्श करते थे और वे दोनों हमारे सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद देते थे,मुंह में रसगुल्ला खिलाते थे।

कृष्ण फूफाजी के मैनहट्टन वाले घर में यह सारी स्मृतियाँ अचानक मन में हिलोरें खाने लगी। धौलीगिरि का शांति-स्तूप,सीढ़ी पर बैठना, चारों तरफ धान के खेत, दयानदी के उस पार वरुणेई पहाड़ के पीछे डूबते सूरज को देखना,शाम के अंधेरे में धौलीगीरी के इतिहास के बारे में गोपी मामा से सुनना सब-कुछ याद आने लगा। घर के बच्चों ने,मामा-मामी के परिवार के सभी लोगों ने नए वर्ष की शुभेच्छा भेज दी थी। हार्वर्ड से न्यूयार्क आने से पहले ही ये सारी शुभकामनाएँ मेरे पास पहुँच गई थी।

जो भी हो, इस बार न्यूयॉर्क में मेरा नया साल 1988 मनाने का संयोग था। हम टेलीविजन पर ‘टाइम्स स्क्वायर’ का दृश्य देख रहे थे। दो लाख से ज्यादा लोग (न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक) वहां इकट्ठे हुए थे। ठीक बारह बजे लाल रंग का सेब ‘टाइम्स स्क्वायर’ के ऊंचे टॉवर से नीचे आया था। टीवी पर वहाँ इकट्ठे हुए लोगों का उत्साह और उत्तेजना साफ देखी जा सकती थी। एक-दूसरे को गले लगाना, एक-दूसरे पर पानी डालना,एक–दूसरे के चेहरे पर बर्फ मलने के दृश्य टीवी में दिखाई दे रहे थे। होटल वाल्डोर्फ एस्टोरिया के लाउंज में तीन संगीत कार्यक्रम चल रहे थे। पहला था- एक प्रसिद्ध अमेरिकी गायिका का (जहां तक मुझे याद है, वह मिस बेटल थी) जो नया साल का स्वागत गीत गा रही थीं। उस गीत के बोल,धुन और संगीत उत्कृष्ट थे। उसके बाद ज़ुबिन मेहता का ऑर्केस्ट्रा संगीत और अंत में मैनहट्टन के हारवेन के काले बच्चों का सुंदर समवेत गीत। उन गीतों के स्वर, टाइम्स स्क्वायर पर लोगों का उत्साह, भुवनेश्वर से फोन और मेरी मेज पर इकट्ठे हुए चिट्ठी-पत्रों के बीच नया साल आकर पहुँच गया था। ठीक बारह बजे हमने शुभकामनाएं जताई। फूफाजी का छोटा पुत्र टुकुना (डॉ॰आनंद मोहन दास) ने पारंपरिक तरीके से नए साल का स्वागत करने के लिए शैंपेन की बोतल खोली। महिलाओं को छोड़कर हम सभी ने थोड़ा-थोड़ा पिया। खाना-पीना पहले से ही हो चुका था। शैंपेन के बाद हमने कुछ मिठाइयाँ खाई। एक-दूसरे से गपचप चलती रही। डेढ़ बजे सभी ने एक-दूसरे से विदा ली।नया साल डेढ़ घंटा पुराना हो गया था।

इस तरह वर्ष 1987 ने विदा ली। बिस्तर पर सोते-सोते मैंने याद किया कि विगत वर्ष मैंने क्या खोया,क्या पाया। मेरी छोटी बेटी ने दिल्ली से एम.ए. पास किया, मेरे बेटे मुनू को एनटीएस छात्रवृत्ति मिली, बीमार पत्नी को एम्स में इलाज के लिए दस दिन भर्ती कराया- सारी बातें याद आ गईं।

नए साल के पहले दिन फूफा के साथ में बसी देई और मैं उनके बड़े बेटे के घर गए। उनका बड़ा बेटा बुबु भी डॉक्टर था, जो न्यूयॉर्क से लगभग 60 किलोमीटर दूर एक छोटे से शहर में रहता था। हडसन नदी को पार करते हुए हम ब्रुन्क्स (न्यूयॉर्क के पांच उपनगरों में से एक) में बुबु के घर पहुंचे, वहाँ हमने पूरा दिन बिताया और उनकी गाड़ी में शाम को मैनहट्टन लौट आए। बुबु के घर में दिन शानदार ढंग से बीता। फूफा, बुबु, छोटा बेटा क्रिस और बेटी क्रिस्टिना के लिए अनेक उपहार खरीदे। नए वर्ष में बुबु के घर के पीछे विशाल हरे-भरे मैदान में घूमते हुए मैं अपने अतीत को याद कर रहा था। हडसन नदी के किनारे जाकर हम सभी ने थोड़ी देर के लिए वहां विश्राम लिया।

मैनहट्टन लौटने के बाद फूफा और फूफी अपना सामान पैक करने लगे। क्योंकि अगले दिन उन्हें ओड़िशा जाना था। फूफा के घर के नजदीक रेलवे ट्रैक के पीछे एक छोटा-सा सुंदर पार्क था। उस पार्क में तीन ‘वीपिंग विलो’ पेड़ थे, पार्क के बीचोंबीच बने छोटे तालाब में चार-पाँच बतख़ें तैर रही थी। वह पार्क मुझे बहुत अच्छा लगने लगा था। हार्वर्ड प्रवास के दौरान जब भी मैं मैनहट्टन गया, उस पार्क में अवश्य जाता था, तालाब के पास बैठकर तैरती हुई सुंदर बतखों को देखता था। उस समय पार्क सुनसान रहता था, कोई भी दूर-दूर तक नजर नहीं आता था। पार्क की घास पर यहाँ-वहाँ बर्फ दिखाई देता था। विलो पेड़ों को छोड़कर, दूसरे पत्रहीन पेड़ श्रीहीन होकर ध्यान-मुद्रा में चुपचाप खड़े थे। मैं पार्क के बेंच पर बैठकर थोड़ी दूर बने घरों की तरफ देखने लगा। एक घर का दरवाजा खोलकर एक भद्र-महिला और उसका चार-पाँच साल का बेटा बाहर निकला। तभी आस-पास के रेलवे ट्रैक पर एक ट्रेन आ पहुंची। सूर्य की कोमल किरणें सुखद लग रही थी। इतना अच्छा लग रहा था कि मैं उस बेंच पर सोना चाहता था। तीन जनवरी की सुबह हम सभी न्यूयार्क के जैक्सन हाइट पर गए। ओड़िशा ले जाने के लिए मौसा-मौसी कुछ खरीदना चाहते थे। उनके हाथ भेजने के लिए बच्चों के लिए कुछ सामान मैंने भी खरीदा। हम 5 बजे मौसा और मौसी को छोडने के लिए हम सभी भी कैनेडी हवाई अड्डे पर गए। हमने लाउंज में थोड़ी देर तक बातें कीं, उसके बाद वे हवाई अड्डे के भीतर चले गए। मैनहट्टन से घर लौटते समय थोड़ी-थोड़ी बर्फ गिरनी शुरू हो गई थी, फिर धीरे-धीरे अधिक बर्फ गिरने लगी। खाना खाने के बाद ऊपरी माले के कमरे में सहजता से नहीं सो पाया था। खिड़की खोलकर हिमपात के दृश्य को देखने लगा। बर्फ सफ़ेद होने के बावजूद भी उसमें कुछ नीला अंश था, खिड़की से चारों ओर हिमपात का दृश्य बहुत सुंदर लग रहा था। ऐसा लग रहा था मानो परियों का कोई देश हो। सुबह उठते समय चारों ओर बर्फ ही बर्फ थीं। बर्फ होने के बावजूद भी टुकुना अपनी कार निकालकर केनेडी हवाई अड्डे के पास अपने अस्पताल के लिए रवाना हो गया। कुछ समय बाद बाहर निकलकर हमने पत्रहीन पेड़ों और बर्फ पर कुछ तस्वीरें खींचीं। टुकुना की पत्नी रूबी ने अपने कैमरे से और मैंने अपने कैमरे से। पड़ोस के बच्चे बर्फ से खेल रहे थे, बर्फ की मूर्तियाँ बना रहे थे। पास घर के अठारह-उन्नीस साल के एक युवक ने बीस डॉलर लेकर मौसा के घर के सामने गिरे हुए बर्फ को साफ किया। एक बार और चाय पीकर मैं उस छोटे सुंदर पार्क में फिर से गया। घास पूरी तरह से बर्फ से ढकी हुई थी, तालाब के किनारे से कुछ दूर बर्फ जमा हुआ था। मुझे पांच तारीख को हार्वर्ड जाना था। टुकुना और रूबी ने मुझे और दो दिन जबर्दस्ती रोककर सात तारीख को जाने के लिए बाध्य किया। उनका तर्क अकाट्य था, "हार्वर्ड तो न्यूयॉर्क की तुलना में बहुत ज्यादा ठंडा है, अकेले अपार्टमेंट जाने से क्या आपको अच्छा लगेगा? " उनका अनुरोध मैं काट नहीं सका,सात तारीख तक मैं वहाँ रुका। मेरे दिन आराम से कट गए, टुकुना का पुत्र अमृत बहुत छोटा था, बहुत बार मैं उसके साथ खेलता रहा। सभी बच्चों को बर्फ अच्छा लगता है, उसे भी बर्फ अच्छा लगता था। शायद उस समय उसकी उम्र पांच साल रही होगी। हम दोनों सामने वाले लॉन के पत्ते रहित पेड़ के नीचे बर्फ से खेला करते थे। मैं उसकी फोटो खींचता था। जब वह मेरी गोद में था, रुबी ने हमारी फोटो ले लीं। टुकुना हर सुबह 7.30 बजे अपने अस्पताल के लिए बाहर निकल जाता था और शाम को लगभग 7.30 या 8.00 बजे घर लौटता था। उसने हमारे देखने के लिए अच्छी फिल्में लाईं। बीच-बीच में हिमपात होता रहता था। उनके घर में मैंने जितनी फिल्में देखी थी, उनमें मुझे याद है कि मैंने 'चिल्ड्रेन ऑफ ए लेसर गॉड', 'फ्रेंच लेफ्टिनेंट’स वाइफ' (मेरिल स्ट्रीप द्वारा अभिनीत) और क्लासिक फिल्म 'कैसाब्लांका' (हम्फ्री बोगार्ट और इंग्रिड बर्गमैन द्वारा अभिनीत) फिल्में देखी थी। रूबी हमेशा घर के कामों में लगी रहती थी, हमेशा मुस्कुराहता हुआ चेहरा। सभी कपड़े साफकर इस्त्री कर मेरे रूम में लाकर रख देती थी वह। अलबामा के बर्मिंघम से दिसंबर 30 उसके घर आने पर उसी तरह मेरे सारे कपड़े साफ कर इस्त्री कर रख दिए थे। उसने मेरी छोटी बहन की तरह देखभाल की। अमृत के साथ खेलना, उसकी बड़ी बहन आईरिस (सात साल) को कुछ पढ़ाना, फिल्में देखना, संगीत सुनना और बाहर बर्फीले रास्ते पर घूमने जाना- आदि में समय कैसे पार हो जाता था, पता ही नहीं चलता था। आज जनवरी 6 थी, हार्वर्ड में दूसरी बार मेरे कान की जांच होनी थी। मैंने डॉक्टर से नियुक्ति ली थी। नहीं जाने के कारण मैंने उन्हें फोन पर बता दिया था। आज थोड़ी धूप निकली थी, धीरे-धीरे बर्फ कुछ पिघलने लगी थी। मैं किताब पढ़ते, गाने सुनते और चाय-कॉफी पीते अपना समय काट रहा था। शाम को 7 बजे दिलीप का फोन आया। दिलीप हरिचंदन ने नव मौसा के सबसे छोटे दामाद थे, मॉन्ट्रियल में रहते थे और आईबीएम में काम करते थे।उनकी पत्नी अशोका मैकगिल विश्वविद्यालय में काम करती थी। वह अकेले-अकेले ओड़िशा चले गए थे; अशोका उनके साथ नहीं जा पाई थी। दिलीप ने कैनेडी हवाई अड्डे से कहा, मॉन्ट्रियल के लिए वह अपनी फ्लाइट नहीं पकड़ पाया,देर होने के कारण। वह टुकुना के घर पहुंचे, हमने देर रात तक बातें कीं। दिलीप से मुझे पता चला, मौसी और नहीं रही। 4 तारीख 11 बजे उनका स्वर्गवास हो गया था। दिलीप ने कहा- मौसी ने उनका अंतिम संस्कार कैसे होगा, के बारे में स्पष्ट निर्देश दिए थे। उसी के अनुसार शुद्धिक्रिया होगी। उसने मेरी बड़ी बेटी ‘जितू’ की शादी के बारे में पूछा, मेरे बेटे मुनू जिसे वह बहुत प्यार करते थे, की पढ़ाई के बारे में पूछह ताछह की। मैं 7 तारीख को बोस्टन लौटा और दिलीप मॉन्ट्रियल। हम दोनों को छोड़ने के लिए टुकुना लागार्डिया हवाई अड्डे तक आए थे।

बहुत दिनों के बाद मैं हार्वर्ड लौटा। दिगंबर के निमंत्रण पर 12 दिसंबर को मैं बर्मिंघम गया। लुसियाना से सुर रथ आए थे, दिगंबर की पत्नी ज्योत्स्ना और दिगंबर, सुर और उनकी पत्नी मंजू और मैं कार से फ्लोरिडा घूमने गए। हमने फ्लोरिडा में क्रिसमस मनाया। उसके एक दिन बाद मैं न्यू ऑरलियन्स गया और 30 दिसंबर को बर्मिंघम से न्यूयॉर्क में फूफा के घर आया, इस प्रकार हार्वर्ड से लंबी अनुपस्थिति के कारण सेंटर और मेरे अपार्टमेंट में पत्रों का ढेर लग गया था।दोस्तों से पता चला कि 4-5 दिसंबर को भारी बर्फबारी हुई थी। उसके बावजूद मैं यूनिवर्सिटी के अस्पताल में मेरे निर्दिष्ट डॉक्टर कस्तूरी नागरजन से मिलने गया। उनके सचिव से विगत रात उनकी मृत्यु की खबर मिली। सेंटर से पत्र लेकर मैं अपार्टमेंट में वापस आ गया। मैंने हार्वर्ड स्क्वायर में मैक्सिकन रेस्तरां में कुछ खा लिया, क्योंकि अपार्टमेंट में खाना बनाने का मन नहीं कर रहा था। एक और दर्दनाक खबर पत्र बॉक्स में मेरा इंतजार कर रही थी। बीजिंग से चीनी साहित्य के मेरे परिचित प्रोफेसर के नाम लिखा हुआ मेरा पत्र लौट आया था।उनका भी निधन हो गया था।

दिन के एक बजे धीरे-धीरे हिमपात बढ़ने लगा, और फिर बर्फीली आँधी आना शुरू हो गई। मेरे मन में संदेह होने लगा कि आगामी 25 जनवरी तक हमारी लंबी यात्रा शुरू होने वाली थी, बर्फबारी के कारण वह हो भी पाएगी या नहीं! उन सारे पत्रों में एक पत्र था, मेक्सिको में हमारे राजदूत के.टी. सतारावाला का। वह चाहते थे कि मैं शीघ्र मैक्सिको जाऊँ, क्योंकि एक महीने के अंदर-अंदर उन्हें भारत लौटना था। मैंने उनसे बात की और अपनी समस्याओं के बारे में बताया। उस दिन सेंटर से मेरे अपार्टमेंट लौटते समय बर्फीली हवाएँ चल रही थीं, अपार्टमेंट लौटकर गर्म सूप पीकर थोड़े समय के लिए टीवी देखने लगा। किशोरी आमोनकर के गीत सुनें। मेरे छठे मंजिले अपार्टमेंट की खिड़की से लगातार बर्फबारी दिखाई दे रही थी। टेलीविजन में समग्र मैसाचुसेट्स प्रदेश में बर्फबारी की खबर दिखाई जा रही थी। मुझे लगा कि दूसरी जगहों से जब भी मैं बोस्टन लौटता हूँ, बर्फबारी मेरा इंतजार करते हुए नजर आती है। 13 नवंबर को भी ऐसा हुआ था, अब जनवरी में भी ऐसा ही है, अठारह दिनों की यात्रा के बाद 25 जनवरी को लौटने पर भी ऐसा ही था।

21. हार्वर्ड प्रवास के अंतिम दिन

साल भर का प्रवास पूरा होने जा रहा था। मैं विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित चीन,जापान,कोरिया के दौरे पर नहीं जा रहा था। मेरे मन में घर आने की प्रबल इच्छा थी, इसलिए एक और महीना बाहर रहना नहीं चाहता था। विश्वविद्यालय द्वारा हमारे लिए दीक्षांत उत्सव का आयोजन किया जा रहा था।

सैंडर्स थिएटर में हार्वर्ड के अनेक संगीत कार्यक्रम,ऑर्केस्ट्रा और व्याख्यान का आयोजन किया गया था। राजीव गांधी ने भी यहाँ अपना व्याख्यान दिया था। मगर इन कार्यक्रमों में मेरे लिए सबसे ज्यादा स्मरणीय था अफ्रीका की रंगभेद नीति के विरोध में हार्वर्ड के छात्रों के द्वारा आयोजित संगीत कार्यक्रम,जो ठीक हमारे दीक्षांत उत्सव के पहले सम्पन्न हुआ था। दक्षिण अफ्रीका की श्वेत सरकार के साथ हार्वर्ड के सारे संबंध खत्म करने का घोषणा-पत्र बहुत पहले ही विश्वविद्यालय प्रबंधन को दिया जा चुका था। दक्षिण अफ्रीका हार्वर्ड के कई कार्यक्रमों में प्रभूत वित्तीय सहायता करता है। Harvard-Radchitte Alumni Association की तरफ से सैंडर्स थिएटर में संगीत कार्यक्रम आयोजित किया गया था, जिनके सहयोगी थे Folk Tree Concert आयोजन की बागडोर संभाल रहे थे सुप्रसिद्ध गायक पीट सिगर। थिएटर के भीतर और बाहर युवक-युवतियों की भीड़ के बारे में नहीं कहा जा सकता। सभी कार्यक्रम भीतर में स्थानाभाव के कारण बाहर बड़ी स्क्रीन पर दिखाए जा रहे थे। मेरी भी इस कार्यक्रम को देखने की प्रबल इच्छा हो रही थी। इसलिए बाहर दो घंटे खड़े होकर मैंने कार्यक्रम देखा। पीट सिगर के संगीत से मैं परिचित हूँ। उनके एल्बमों में प्रस्फुटित होती समसामयिक चेतना का आवेग मुझे बहुत अच्छा लगता था। मैंने सुना था,वे अभी-अभी निकारागुआ से लौटे हैं अपना कार्यक्रम पूरा करने के बाद। रंगभेद नीति के विरुद्ध में गंभीर आवेग,दक्षिण अफ्रीका के स्वाधीनता हेतु दृढ़संकल्प और नेल्सन मंडेला को समर्पित विशेष संगीत सब उपस्थित छात्र-छात्राओं को मंत्र-मुग्ध कर रहा था। सिगर के संगीत की धुन पर लोग हाथ ऊपर उठाकर नाच रहे थे। सबसे पहले सिगर ने अपना प्रसिद्ध लोकगीत ‘ओवियोयो’ गाया,जिसमें प्रबल प्रतापी भयानक राक्षस को छोटे बच्चे के संगीत ने परास्त कर दिया था। यह संगीत प्रतीक है स्नेह,निविड़ संबंध और सौहार्द्ता का, जो दुष्ट आसुरी शक्तियों को पराभूत कर देता है। यह गीत पीट सिगर ने बहुत सुंदर तरीके से गाया था। उनके दो सहयोगियों सी कान अपने दादा के दिनों से अफ्रीका में रहने वाले प्रवासियों के लिए इस गीत को गाते आ रहे थे। जेन साप के प्रसिद्ध उपन्यास की पंक्ति Go,Tell it on the mountain पर आधारित संगीत भी प्रस्तुत किया गया था। उस गीत में अपने स्वर मिलाकर सैंडर्स थिएटर के सारे श्रोतागणों को गाते देखकर मुझे एक अद्भूत अनुभव हो रहा था। हार्वर्ड के प्रथम कृष्णकाय पीएचडी WEB Du Bois के कुछ वाक्य सिगर ने उद्धृत किए थे। उन लोगों के लिए विद्रुपता थी : “लोग तुलनात्मक आराम और विलासिता में जीना चाहते हैं। यद्यपि वे जानते हैं कि यह उनके लाखों साथियों की अज्ञानता और गरीबी की कीमत पर है।” अंत में एक गाना गाया गया,जिसकी रचना हार्वर्ड में पढ़नेवाले काले कुंबा गायकों और उनके कुछ दोस्तों ने की थी। संगीतकारों ने इस समवेत गीत को नेल्सन मंडेला और दक्षिण अफ्रीका को समर्पित किया था।

प्रिटोरिया, हम तुम्हारी स्वाधीनता चाहते हैं

नेल्सन, हम तुम्हारी स्वाधीनता चाहते हैं।

हम तुम्हारी स्वाधीनता चाहते हैं।

हम तुम्हारी स्वाधीनता चाहते हैं- का समवेत स्वर समग्र श्रोतामंडल को निनादित कर रहा था। कुछ जानने से पहले मैं भी उस गाने की पंक्तियों को बार-बार दोहरा रहा था। कार्यक्रम बहुत देर तक चला। शुरू हुआ था रात को 9 बजे। मैं 11 बजे तक अपने अपार्टमेंट में लौट आया।

देखते-देखते जून का महीना आ गया। अमेरिका में गर्मियों के दिन शुरु हो जाते हैं। चारों तरफ तरह-तरह के रंग-बिरंगे फूलों से भरपूर दृश्य नजर आने लगते हैं। हार्वर्ड में सर्दी के दिन बहुत दुखदायी होते हैं। उत्तर से ठंडी हवा आती है, बहुत ही ठंडी। स्थानीय तापमान उससे प्रभावित होता है- जिसे कहते हैं- wind chill फेक्टर अर्थात् हवा की वजह से ठंड का बढ़ना। जब स्थानीय तापमान 10 डिग्री होता है तो हवा के प्रभाव से वह 15 डिग्री हो जाता है। जब यह ठंडी हवा शरीर पर लगती है तो नाक-कान बहुत ठंडे हो जाते हैं, आँखों से पानी गिरने लगता है। अलग-अलग पोशाकें पहनकर एस्कीमों की तरह मैं हमारे सिफ़ा सेंटर में आता-जाता था,फिर भी ठंड लगती थी।

ऐसी अवस्था में कुछ महीने बिताने के बाद जब हार्वर्ड के रंग और वर्ण महोत्सव आता है,उस समय उसे छोडकर जाने का मन नहीं होता है। दूसरी तरफ मेरा घरमुखी स्वभाव घर की तरफ खींचने लगता था। बच्चे चिट्ठी में लिखते थे, सभी का एक ही प्रश्न- आप कब आ रहे हैं ? आपको वहाँ रहते हुए बहुत दिन हो गए हैं। आपके आने की प्रतीक्षा में... ।

ऐसे परिवेश में हमारे कोर्स का अंतिम भ्रमण था जापान और दक्षिण कोरिया। उन देशों की सरकारों ने हमें आमंत्रित किया था। मैं जापान और दक्षिण कोरिया पहले भी गया था। मगर चीन नहीं देख पाने के कारण मन में थोड़ा दुख हो रहा था। समग्र भ्रमण तीन सप्ताह का था। फिर लौटकर आने के बाद एक और सप्ताह निर्धारित था चर्चा और सेमिनार के लिए। यह कार्यक्रम वैकल्पिक था,जाना जरूरी नहीं था। भ्रमण से पहले सिफ़ा का दीक्षांत समारोह हो गया था, तब तक मैं वहीं पर था। समारोह के बाद हंगिगटन ने बहुत अच्छा भोज दिया था। उनके अलावा दो-तीन सलाहकारों ने अपने विचार रखे थे। सामाजिक नृतत्व में पीएचडी करने वाले कई छात्रों की मैंने बहुत मदद की थी। उनकी थीसिस पर विशद चर्चा कर उन्हें सलाह भी दी थी। इस बारे में हंगिगटन ने अपनी रिपोर्ट में अलग से उल्लेख किया था। हमारे अंदर से चार लोगों ने(मुझे लेकर) हमारे प्रवास,हमारे कोर्स और सिफ़ा के भविष्य के बारे में अपने विचार प्रकट किए थे।हमने इस कोर्स में किए जाने वाले परिवर्तन के बारे में लिखित राय भी दी थी।

सिफ़ा के फ़ेलो होने के कारण मिलने वाली सुविधाओं के बारे में हंगिंगटन ने उल्लेख किया था कि भविष्य में विशेष गवेषणा या अध्ययन हेतु आने पर सिफ़ा उनका स्वागत करेगी। फ़ेलो को सिफ़ा में उच्च अध्यापन कार्य दिया जाता है और उनके रहने तथा अध्ययन की पर्याप्त सुविधा प्रदान की जाती है। हंगिंगटन और सिफ़ा को हमारी तरफ से मिस लुईस हुक संयुक्त राष्ट्रसंघ और 159 देशों के ध्वज(हमारे कोर्स में सभी देशों के राष्ट्रीय ध्वज प्रथम पंक्ति में लगाए गए थे) को एक स्क्रीन में लगाकर उपहार के रूप में प्रदान किया गया था। उन्होंने कहा था सिफ़ा के तीसवीं फ़ेलो के हार्वर्ड और सिफ़ा सहित दीर्घस्थायी सम्बन्धों का प्रतीक है। ड्रूक इस पाठ्यक्रम की प्रवक्ता थी। वह बहुत भद्र,मिलनसार और बहुत सुंदर महिला थी। केनेडी स्कूल से उन्होंने एम.ए. किया था और इस वर्ष के अंत में(1988)पीएचडी थीसिस जमा करनी थी। उससे ज्यादा उन्हें संयुक्त राष्ट्रसंघ के शरणार्थियों के काम का दायित्व शीघ्र लेना था। (वह UNHCR की सीनियर ऑफिसर के रूप में पाठ्यक्रम में शामिल हुई थी) उन्होंने कहा -“शरणार्थी’ काम का मतलब आपातकालीन कार्य,चौबीसों घंटे। अब मुझे अपनी पीएचडी जल्दी पूरी कर लेनी चाहिए। सीताकान्त की तरह काम के दबाव मैं सुदूर पूर्व दौरे पर नहीं जा पाई” हम दोनों के अलावा दो अन्य प्रतिभागियों ने भी इस दौरे पर नहीं गए थे। सैम हंगिंगटन(हार्वर्ड विश्वविद्यालय सिफ़ा के निर्देशक),लेस ब्राउन(फ़ेलो कार्यक्रम के निर्देशक), हमारे पाठ्यक्रम के निर्देशक,हमारे पाठ्यक्रम के छह ह प्रमुख प्रोफेसर,ऑफिस के छह ह स्टाफ ने प्रमाणपत्र वितरण वाले इस विदाई समारोह में भाग लिया। हर्मन हेस की कविता की कई पंक्तियाँ मुझे याद आने लगी :-

As each flower blooms and each youth yields to age

each step of life blooms,

each wisdom as well and each virtue blooms

in its time, and cannot last for ever.

The heart has to be nearly at each call of life

and say goodbye and to start afresh.

And within each new start there is enchantment

that protects us and helps us live.

The spirit of the cowed does not want

to constrain or narrow us;

it wants to lift us, broaden us, step by step.

मैंने बहुत सोच समझकर निर्णय लिया कि हमें विश्वविद्यालय और हमारे दीक्षांत समारोह के बाद लौट जाना चाहिए। विश्वविद्यालय का दीक्षांत समारोह केवल तीन दिनों के बाद था। इसके अलावा, मुझे इस प्रसिद्ध विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह को देखने की बहुत इच्छा थी। मेरे बाकी दोस्तों को विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह के दो दिन बाद चीन,जापान और कोरिया के दौरे पर जाना था।

जून महीने के हार्वर्ड का यह दृश्य मेरे लिए अविस्मरणीय रहेगा। कोहरा,बूँदाबाँदी, हाड़कंपाती सर्दी अतीत की बातें हो गई थीं। इस देश की गर्मियों में हल्के कपड़े पहन कर छात्र -छात्राओं के समूह चार्ल्स नदी के किनारे ग्रेजुएट सेंटर पर घूमने जाते हैं, हार्वर्ड स्क्वेयर रेस्टोरेन्ट और कॉफी क्लब पर एकत्रित होते हैं। कॉफी क्लब के बारे में एक और वाक्य यहाँ कहना उचित रहेगा। वहाँ पर बत्तीस क़िस्म की कॉफी मिलती है,जहां तक मुझे याद है। मैंने अवश्य कोलम्बिया की दो-तीन क़िस्मों की कॉफी को बहुत ऊंचा स्थान दिया था। भारतीय कॉफी की तीन किस्में वहाँ उपलब्ध थीं। कॉफी क्लब में हमेशा भीड़ लगी रहती थी। छात्र-छात्राओं,अध्यापकों और बाहरी लोगों की भीड़ के बारे में कहने के लिए शब्द नहीं है।

चार्ल्स नदी में पुंटिंग मैंने कभी नहीं किया था। इस अवसर पर हमारे कोर्स के दो दोस्तों के साथ नाव में बैठकर नौकाविहार करने का आनंद लिया।

सर्दियों में चार्ल्स नदी का पानी नहीं जमता था,भले ही, दोनों किनारों पर कुछ मात्रा में बर्फ जमती थी। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी वाले किनारे की तरफ रास्ते से 200 फुट लंबाई वाला सुंदर लान में हरी-भरी सुंदर घास, तरह-तरह के फूल,नदी की छोटी-छोटी लहरें–सब मिलकर बहुत सुंदर परिवेश की सृष्टि कर रही थी। मैं कई बार चार्ल्स नदी के किनारे पर ऐसे ही बैठे रहता था। नदी,फूलों की क्यारी,छोटी-छोटी नावों में पुंटिंग कर रहे छात्र-छात्राओं को देखना अच्छा लगता था।

यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में छात्र-छात्राओं को डिग्री प्रदान की जाती है। वह दिन भी आ गया। अतिथिगण,छात्रों के माता-पिता को गिनने से लगभग 25 हजार हो रहे थे,जबकि स्नातकों की संख्या 5000। विश्वविद्यालय में अलग-अलग टोपी वाले लगभग 200 मार्शल अतिथियों के आवाभगत और अन्यान्य कार्यों में हाथ बंटा रहे थे। मेमोरियल चर्च और वाइडनर लाइब्रेरी के बीच वाली जगह पर तीन सौवीं वर्षगांठ मनाने के उपलक्ष में बनाए गए थिएटर में खचाखच भीड़ थी। सन 1936 में तीन सौ साल पूरे होने के उपलक्ष में इस थिएटर में पहली बार दीक्षांत समारोह का आयोजन किया गया था। हार्वर्ड कालेज और रेड्क्लिफ कालेज के लाल,नीले,सफ़ेद,सुनहरे रंग के झंडे बहुत आकर्षक लग रहे थे। 3 नारंगी रंग के झंडे भी फहराए गए थे। तीन किताबें उनके साथ थीं,जिस पर सन 1643 का विश्वविद्यालय का मोटों वेरिटस(veritas)अर्थात् ‘सत्य’लिपिवद्ध था। उसके साथ झंडे पर 1643 की प्राचीन शील्ड भी अंकित थी।

सितंबर 1943 में सुप्रसिद्ध लेखक डेविड मार्ककर्ड ने हार्वर्ड एलूमनी बुलेटिन में लिखा था : “डिग्री प्राप्त करने वाले छात्रों द्वारा पहनी गई पोशाकें और उनके माथों को ढकती रेशमी टोपियाँ असंख्य इंद्रधनुष की आभा चारों तरफ फैला रही थी।” हमारे दीक्षांत समारोह की तरह यहाँ के डिग्री धारक काली पोशाकें नहीं पहनते हैं। इमर्शन ने हार्वर्ड की 250वीं वर्षगांठ पर कहा था, “शायद इस शोभायात्रा में अदृश्य,निराकार लोग चल रहे है, जो भविष्य के निराकार लोगों के साथ मिलकर अनंत काल तक लंबी कतार बनाएँगे।”

दीक्षांत समारोह के उपलक्ष में विशिष्ट संगीत गायक दल समवेत गान गाते हैं-उत्सव के प्रारम्भ तथा भिन्न-भिन्न डिग्री प्रदान करने वाले कार्यक्रम के पूर्व में। ग्रेजुएट डिग्री पाने वाले छात्रों को डिग्री प्रदान करने से पहले सभापति (हमारे विश्वविद्यालय के कुलपति) घोषणा करते हैं। आज से आप लोग शिक्षित लोगों की गोष्ठी में शामिल होने जा रहे हो।

उसके बाद हार्वर्ड परंपरा की सबसे महत्वपूर्ण डिग्री प्रदान की जाती है। इन्हें Honorary Degree(मानद डिग्री) कहा जाता है। हमारे Honoris cause की डिग्री की तरह हार्वर्ड के इतिहास में अनेक विशिष्ट लोगों को यह डिग्री दी गई है। उनमें से कई नाम है। बेंजामिन फ़्रेंकलिन को पहली मास्टर ऑफ आर्ट्स डिग्री वाली मानद डिग्री दी गई। जार्ज वाशिंगटन इस डिग्री को पाने वाले द्वितीय व्यक्ति थे। उन्हें विश्वविद्यालय ने डॉ ऑफ लॉं की उपाधि प्रदान की थी। पहली बार किसी महिला को यह सम्मान 1955 में दिया गया था,जिसका नाम था हेलेन किलर।

डिग्री प्रदान करने के बाद सभी डिग्रीधारी अपने-अपने स्थान पर खड़े होकर समवेत स्वर में हार्वर्ड- प्रार्थना गाते हैं। यह प्रार्थना लैटिन में लिखी गई है और विगत 300 वर्षों से यही परंपरा चली रही है। जिसमें विश्वनियंता से तीन आशीर्वाद मांगे जाते हैं :-

(1)विश्वविद्यालय के ट्रस्टी नैतिक हो,

(2)अध्यापकवृंद बड़े विद्वान हों एवं

(3)विश्वविद्यालय की विविध योजना के लिए भामाशाह और अधिक उदार हों।

दीक्षांत समारोह के तीन सौ साल का इतिहास की लिखने वाली सिंथिया रोसाना कहती है: “ उपनिवेश शासन काल में डिग्री वितरण समारोह समापन के बाद इस समारोह में भाग लेने वाले अतिथिगण,अध्यापक और डिग्री पाने वाले विद्यार्थी ‘केंब्रिज कॉमन’(एक छोटा सा सर्वसाधारण पार्क)में खोले गए खाने-पीने के बूथों में जाकर विभिन्न प्रकार के व्यंजनों और प्रचुर मात्रा में परोसी गई दारू का लुत्फ उठाते थे। बहुत छोटे-छोटे नाटक भी छोटे-छोटे मंचों पर बच्चों द्वारा अभिनीत होते रहते थे।”

अब और विश्वविद्यालय के बाहर ‘केंब्रिज कॉमन’ में जाने की आवश्यकता नहीं है। रो सन्नो कहती है,”बहुत शृंखलित इस समारोह में मुर्गों का प्रचुर मांस,आलुओं के ढेर,सलाद,पहाड़ जैसे आइसक्रीम और समुद्र तुल्य शराब और मृदुपानीय द्वारा अध्यापक,छात्र,समवेत अतिथि वृंद को प्रसन्न किया जाता है। सन 1811 में रेवरेंड गिलमेन की उक्ति चरितार्थ होती है- इस प्रकार अनवरत प्रवाह बहता जाता है अतीत के इतिहास से नए युग की ओर, बहता जाता है अतीत के इतिहास से नए युग की ओर,जिस युग की सभी को प्रतीक्षा है।”

सन 1642 के प्रथम दीक्षांत समारोह में तत्कालीन विश्वविद्यालय के सभापति रेवरेंड हेनरी डंस्टर ने घोषणा की थी, “ हमने जो लक्ष्य रखे थे,आज उसका कुछ अंश पूरा करने जा रहे हैं।” उस वर्ष से रो सन्नो के इतिहास के अनुसार 9 स्नातक डिग्री प्राप्त कर रहे थे, 14 नए छात्र और उनके माता-पिता तथा अतिथि समेत कुल मिलाकर समारोह में 50 लोग उपस्थित थे। डंस्टर ने कहा: “आज हम सभी मिलकर सीखने के आनंद का उत्सव मना रहे हैं।” जिन लोगों को डिग्री मिली उन्हें कुछ शब्द बोलने के लिए आमंत्रित किया गया- केवल अंग्रेजी में नहीं, लैटिन,ग्रीक या हिब्रू भाषा में भी।

सैमुएल इलियट मारिसन की भाषा में, “सब खाना,आमोद-प्रमोद और उत्सवमुखर दिन सभी को याद दिलाता है कि हार्वर्ड से डिग्री प्राप्ति की है “ a rite of passage”-अर्थात् जीवन का एक विशेष अध्याय।”

वास्तव में विश्व के सबसे पुराने विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह देखने और उनमें भाग लेने वाले,माता-पिता,डिग्रीधारी अध्यापक सभी से बातचीत करने का अवसर पाना मेरे लिए अविस्मरणीय स्मृति बनकर रहेगी।

हार्वर्ड पर मेरा लेख खत्म होने से पहले आपका ध्यान दो घटनाओं की तरफ आकर्षित करना चाहूँगा। पहला,हार्वर्ड के पहले निर्वाचित अध्यक्ष(हमारे विश्वविद्यालय के कुलपति)। लरेंस समर्स निश्चित रूप से सुदक्ष कुलपति थे,मगर महिलाओं के बारे में उनके किसी मंतव्य के कारण उन्हें आलोचना का शिकार होना पड़ा था और उनके खिलाफ बढ़ते विरोध के कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। मगर अध्यापन दक्षता,हार्वर्ड के लिए कोष-संग्रह की दक्षता और शैक्षिक प्रशासन क्षेत्र में ऐसे बहुत ही कम प्रेसिडेंट हार्वर्ड में हुए होंगे। सन 1987-88 अर्थात् मेरे प्रवास के दौरान वहाँ के प्रेसिडेंट बोक भी हार्वर्ड के दीर्घ इतिहास में अन्यतम सुदक्ष प्रेसिडेंट थे। लरेंस समर्स के इस्तीफे के बाद कोई महिला अध्यक्षा बनी थी। अखबार,टेलीविज़न आदि के संवादों में बहुत चर्चा में आई थी क्योंकि वह चार सौ से अधिक वर्षों के इतिहास में पहली महिला अध्यक्षा थीं।

दूसरी घटना थी हार्वर्ड में नए खोले गए पाठ्यक्रम “पॉज़िटिव साइकॉलजी” की अभूतपूर्व छात्रप्रियता। आठ सौ विद्यार्थियों ने इस कोर्स में नामांकन किया है और अनेक विद्यार्थियों को सीट भी नहीं मिल पाई है। सैंडर्स थिएटर(विश्व के सबसे बड़ा प्रेक्षागृह जहां चर्चिल,रुसवेल्ट,मार्टिन लूथर किंग ने व्याख्यान दिए थे,जहां मेरे समय में राजीव गांधी ने व्याख्यान दिया था)। टी-शर्ट पहने इस कोर्स के डायरेक्टर को सर्वसाधारण बैठने की जगह नहीं मिलने के कारण बाहर में बड़ी स्क्रीन और माइक पर सुन रहे थे। वे टाल-बेन-साहा के पूर्वतन इस्राइल के पूर्व सैनिक और हार्वर्ड के पूर्व छात्र हैं। उनका कोर्स शुरू किए केवल तीन वर्ष हुए थे।

सकारात्मक मनोविज्ञान पाठ्यक्रम का मुख्य उद्देश्य आनंद या सुख की तलाश करना है। पहले तो मेरे मन में आया कि हमारे समय के बहुत बुद्धिमान जिम्मेदार और आध्यात्मिक गुरुओं के उपदेशों का मूलसार भी यही है, तो फिर यह कोर्स किस तरह से उनके उपदेश, प्रवचन या रचनाओं से भिन्न या महत्त्वपूर्ण है?

समकालीन व्यक्ति और समाज की निराशाजनक स्थिति के बारे में बहुत कुछ चर्चा हो चुकी है। दोनों व्यक्ति और समाज जीवन में आशा और आनंद की पुनः प्रतिष्ठा करना ही आध्यात्मिक चिंता और चेतना का मुख्य लक्ष्य है। श्री श्री रविशंकर की जीवन जीने की कला (आर्ट ऑफ लिविंग) में उसी सत्य पर ज़ोर देने की चेष्टा की गई है।

बेन साहार के कोर्स का मुख्य उद्देश्य है-हम जीवन के प्रति निराशावादी,वितृष्णासंपन्न,अत्यधिक भौतिकवादी दृष्टिकोण के शिकार हो गए हैं। जीवन ने हमें जो कुछ दिया है,उसके लिए पहले उसके प्रति कृतज्ञ होना चाहिए। विषाद ‘आत्म-सर्वस्व’ या हमारे अहंकार से ही पैदा होता है। व्यक्ति के हिसाब से हमें अपने जीवन में आशावाद को यथोचित स्थान देना चाहिए,दूसरे लोगों की तरफ भी देखना चाहिए और अपने भीतर सकारात्मक दृष्टिकोण पैदा करना चाहिए।

बेन साहार का कहना है कि विगत 50 सालों में सारे विश्व में ‘अवसाद’ सबसे खतरनाक मानसिक रोग बन गया है। इसलिए इतने अधिक डाक्टर,चिकित्सा पद्धति और खर्च हो रहा है जो हृदयरोग,कैंसर या एड्स के इलाज के समतुल्य है। पिछह ले 50 सालों में यह बीमारी लगभग 30 गुना बढ़ गई है। पाठ्यक्रम में विभिन्न विषय-वस्तु इस प्रकार है :-

• पहला, दूसरों को देना सीखो,दूसरों की सहायता करना सीखो। वास्तव में,यही मानवता है।

• दूसरा,जीवन में आपको जो भी काम करना पड़े,उसे आनंद से करते हुए जीवन का अर्थ खोजना चाहिए।

• तीसरा,जीवन ने हमें जो खुशी दी है और जो दूसरों से मिली है,उनकी सहायता करने में हमें कभी पीछे नहीं हटना चाहिए। बल्कि यह नहीं सोचना चाहिए कि आपको जो मिलना चाहिए था, उससे कम मिला है। आपको अपने जीवन तथा दूसरों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना चाहिए।

• चौथा,हमारा जीवन,कर्मप्रणाली और रिश्तों को अधिक से अधिक सरल बनाने चाहिए।

• पाँचवाँ,शरीर और मन के पारस्परिक संबन्धों के बारे में गहन अध्ययन करना और समझना जरूरी है। हमें यह याद रखना चाहिए कि आनंद अपने भीतर से पैदा होता है। हमारा बैंक अकाउंट,संपत्ति या शक्ति पर यह बिलकुल निर्भर नहीं करता है। बेन साहार जब हार्वर्ड में पढ़ रहे थे,तब वह अपने जीवन के कुशल खिलाड़ी थे। उनके जीवन में दुखी होने का कोई भी कारण नहीं था। ऐसा वे खुद कहते हैं। पढ़ाई पूरी करने के बाद वह इज़राइली वायु सेना में भर्ती हो गए। सामाजिक जीवन में उनकी खूब इज्जत थी, उनके बहुत दोस्त भी थे। वे कहते हैं कि इतना सब-कुछ होने के बावजूद उन्हें अपना जीवन कुछ अपूर्ण लग रहा था। कुछ दुख की छाया,अवसाद की छाया मन के आकाश पर हमेशा छाई रहती थी। मानसिक मेघमुक्ति और जीवन में आनंद पाने के लिए उस दिन से उन्होंने आत्मानुशीलन और अध्ययन द्वारा ज्ञान अर्जित करने में अपने आपको निमग्न कर दिया।

(क्रमशः अगले भागों में जारी...)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: स्मृतियों में हार्वर्ड - भाग 10 // सीताकान्त महापात्र // अनुवाद - दिनेश कुमार माली
स्मृतियों में हार्वर्ड - भाग 10 // सीताकान्त महापात्र // अनुवाद - दिनेश कुमार माली
https://lh3.googleusercontent.com/-N21McQw72So/WsSfIKmkaHI/AAAAAAABApk/8HAFqXfXnSAYc6w0W4YFOHQm-p4wpT3VQCHMYCw/image_thumb3?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-N21McQw72So/WsSfIKmkaHI/AAAAAAABApk/8HAFqXfXnSAYc6w0W4YFOHQm-p4wpT3VQCHMYCw/s72-c/image_thumb3?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/04/10.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/04/10.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content