आध्यात्मिकता से एकता एवं समन्वय : अध्याय : ८ - प्रख्यात महापुरुष (कथा) - लेखक : डॉ. निरंजन मोहनलाल व्यास - भाषांतर : हर्षद दवे

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आध्यात्मिकता से एकता एवं समन्वय लेखक डॉ. निरंजन मोहनलाल व्यास भाषांतर हर्षद दवे -- प्रस्तावना | अध्याय 1 | अध्याय 2 | अध्याय 3 | अध्याय ...

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आध्यात्मिकता से एकता एवं समन्वय

लेखक

डॉ. निरंजन मोहनलाल व्यास

भाषांतर

हर्षद दवे

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प्रस्तावना | अध्याय 1 | अध्याय 2 | अध्याय 3 | अध्याय 4 | अध्याय 5 | अध्याय 6 | अध्याय 7 |

अध्याय : ८

प्रख्यात महापुरुष

(कथा)

बहुत वर्ष पहले एक बड़ा देश पूरे विश्व में इतना समृद्ध था कि वह 'दूध और शहद का देश' के नाम से जाना जाता था. यह देश अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए भी बहुत विख्यात था. हिमाच्छादित पर्वतमाला की गणना मनोहर अजूबे में होती थी. ये पर्वत बारहमासी बहती नदियों के जलस्रोत थे. ये नदियाँ वहां की धरती को उपजाऊ और खेती के अनुरूप बनातीं थीं. इस देश में हरेभरे पर्वत, घुमावदार टेकडीयां, सरोवर, निर्मल स्फटिक से नीर बहाते झरने, फूलों से लचकदार सी घाटियाँ और वन्यजीवन से भरपूर जंगल थे कि जिन में कुछ असाधारण से पक्षी भी थे. वहां के लोग प्रकृति की पूजा करते थे और वे बहुत ही शांतिपूर्ण और सुखी जीवन यापन करते थे. वहां धन-द्रव्य का चलन नहीं था. वे वस्तुओं का विनिमय करते थे. वहां संपत्ति का संग्रह करने की स्पर्द्धा नहीं थी और वे आवश्यकतानुसार एक दूसरे को साथ देते थे. उन में सृष्टि के रहस्य जानने की तीव्र जिज्ञासा थी. वे कई प्रश्नों के उत्तर पाने के लिए अत्यंत सोच-विचार करते थे, जैसे कि:

· जीवन का अर्थ और हेतु क्या है?

· मृत्यु क्या है? मृत्यु के बाद क्या शेष रहता है?

· क्या मृत्यु के पश्चात कोई नया जीवन है?

· मनुष्य के दुःख का कारण क्या है?

· इस सृष्टि का सर्जन किसने किया है?

· क्या ईश्वर है? यदि है तो हम ईश्वर को कैसे पा सकते हैं?

· हमें ईश्वर की भक्ति किस प्रकार से करनी चाहिए?

· हम परम आंतरिक शांति कैसे प्राप्त कर सकते हैं?

ये और ऐसे अन्य कई प्रकार के प्रश्नों का समाधान खोजने के लिए वे चिंतन-मनन करते रहते थे. इस देश ने कुछ उत्तमोत्तम विचारक दिए थे. उनकी ज्ञानप्राप्ति को ग्रंथस्थ भी किया गया था.

उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर खोजते हुए, उनको जानकारी मिली कि इस अखिल सृष्टि का अवलोकन हमारी भौतिक इन्द्रियों के माध्यम से किया जा सकता है, किंतु वास्तविकता इन्द्रियों के उस पार है. यह वास्तविकता शब्दों से परे है, उसका केवल अनुभव ही किया जा सकता है. जीवन का हेतु इस वास्तविकता की अनुभूति पाने का है. यह कैसे पाई जा सकती है इस विषय पर उन्होंने बहुत सी नई पद्धतियों की खोज की.

बहुत वर्ष बीत गए. विश्व में परिवर्तन हो गया. इस देश में भी बदलाव आया. लोग अपनी आंतरिक शांति और प्रसन्नता गँवा बैठे. मनुष्यों और संस्थाओं में आपस में गलाकाटू स्पर्द्धाएं होने लगीं. अधिकतर लोग भौतिक संपत्ति से ही सच्चा सुख मिलेगा ऐसा सोचकर उसके पीछे पड़ गए. राजनीतिक नेता, अगुए व्यापारी और आबादी का बड़ा हिस्सा अपने पूर्वजों के द्वारा जो सिखाए गए थे वे जीवन मूल्य और अर्थ भूल गए. पूर्वजों के द्वारा दर्शाए आदर्श मूल्य और आध्यात्मिकता के सहारे अब वे मिथ्या अहंकार और गौरव में खुश थे और उस से विपरीत वर्तन करने लगे थे. सर्वत्र भ्रष्टाचार अनियंत्रित रूप से फ़ैल गया था. समाज में निरंकुश सत्ताधारी जूथ उभर आए थे. वे सब, जो कोई उनसे अलग विश्वास, श्रद्धा या वैश्विक दृष्टिकोण रखते थे, उनको खतम करने में लगे हुए थे.

वे लोग जंगल के प्राणियों की ह्त्या करने लगे. कुछ समय के बाद उन प्राणियों की जाति विनाश के कगार पर आ गई. बहुत से प्राणी और पंखी लुप्त होने लगे. नदी, झरने और जलाशय अत्यंत दूषित हो गए और सूखने लगे. घनी आबादीवाले शहरों में हवा दूषित हो गई और जंगलों की कटाई होने लगी. गरीब और धनवानों के बीच की असमानता बेहद बढ़ गई. देश का हवामान बदल गया. कभी अकाल तो कभी अतिवृष्टि और बाढ़. इस से लोग भूख से मरने लगे.

ऐसी शुष्क और सुनसान स्थिति में एक आध्यात्मिक हिम्मतवाले मनुष्य का जन्म हुआ. उस में धैर्य और प्रेम भरपूर था. उसने इस स्थिति को सुधारने का निर्णय किया. वह ऐसा कुछ करना चाहता था कि जिस से लोगों में पूर्वजों के द्वारा दर्शाए प्राचीन आध्यात्मिक मूल्यों के प्रति फिर से आदर और आकर्षण जगे.

उसने समग्र देश में बहुत भ्रमण किया और अपना सन्देश फैलाया. उसने अन्याय, भेदभाव और धर्मान्धता का प्रबल विरोध किया. उसने सब को एक होने और मानव बंधुओँ की सेवा करने तथा विशेष रूप से गरीबों को सहाय करने का आह्वान किया. धर्मग्रंथों में लिखा है उसके अनुसार आध्यात्मिक मूल्यों का अनुसरण कर के जीवन किस प्रकार सरलता से जिया जा सकता है और हम कैसे आंतरिक सुख शांति प्राप्त कर सकते हैं यह दर्शाया. वह हमेशा सच बोलते थे और दूसरों को भी सच बोलने के लिए कहते थे. उन के प्रभावशाली और कार्यसाधक प्रयासों से लोगों में जागृति आई. इस से वे देश के सब से लोकप्रिय, आदरणीय, प्रख्यात नेता व महापुरुष बन गए.

उन की मृत्यु के पश्चात उनके अथक प्रयासों की कदर करते हुए उनके देशवासियों ने उनका सम्मान करने का निर्णय लिया. जहाँ से पूरा शहर दिखाई पड़ता था ऐसी एक ऊंची टेकरी पर इस देशवासियों ने हूबहू उनके जैसी ही एक सुन्दर प्रतिमा की स्थापना की. एक शुभ दिन शहर के मुखिया के वरद हस्तों से उस प्रतिमा का अनावरण किया गया. उस उत्सव में अनेक उच्च पदाधिकारी तथा लाखों मनुष्यों की उपस्थिति थी. उन में महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे.

राजनीतिज्ञों ने इस महापुरुष के कार्यों की प्रशस्ति से श्रोताओं को मन्त्रमुग्ध कर देने वाले प्रवचन किये और शब्दांजलि प्रस्तुत की. श्रोतागण ने उन के प्रवचनों को हर्षनाद और तालियों की गडगडाहट के साथ बहुत सराहा. यह एक अनन्य घटना थी. प्रतिमा शहर से इतनी ऊंचाई पर स्थापित की गई थी कि जहाँ से पूरे शहर का सुन्दर दृश्य नजर आता था.

इस प्रख्यात महापुरुष की प्रतिमा को शुद्ध सोने के पत्तों से आच्छादित किया गया था. आँखों में दो बड़े तेजस्वी असली मोती लगाए गए थे और गले की रंगीन माला में बड़ा सा माणिक्य शोभायमान होता था. हकीकत में प्रतिमा को सभी ने सराहा. उस के बाद कई दशक बीत गए और उस प्रख्यात महापुरुष का उपदेश और उन के जीवन को लोग भूलने लगे.

ऐसे में एक व्याकुल सी माता ने अपने छोटे लड़के से पूछा, 'तुझे स्कूल में मिले हुए ग्रेड के बारे में तू मुझसे झूठ क्यों बोला? तुझे महापुरुषों के जीवन जैसा जीवन जीना चाहिए; वे कभी झूठ नहीं बोलते. देख उस महापुरुष की प्रतिमा जो टेकरी पर रखी हुई है.'

टेकरी पर ऊंचाई पर स्थित प्रतिमा की ओर देखते हुए वर्तमान समय में हो रही निरंकुश हत्याओं के सिलसिले से त्रस्त एक हताश आदमी ने मन ही मन सोचा: 'मुझे इस बात की खुशी है कि संसार में कोई तो ऐसा था जो सहनशीलता और शांति में विश्वास रखता था और जिसने औरों को भी ये सबक सिखाए थे.'

गर्मी के दिनों में एक रात को एक सुन्दर तोता शहर के आकाश के ऊपर से उड़ता हुआ जा रहा था. उस के सारे मित्र कब के दक्षिण में स्थित बागान की ओर जा चुके थे. वहां हिलमिल के आनंद मनाने के लिए मधुर फल तैयार हो गए थे. मित्रों के साथ हो जाने के लिए वह दिनभर उड़ता रहा था. और यह तोता बहुत घंटों तक लगातार उड़ता रहा था. और आखिरकार इस शहर में आया था.

थक कर, चकनाचूर हो कर उसने स्वयं से ही प्रश्न पूछा: 'मुझे आराम मिले ऐसी कौन सी जगह पर रात काटी जाए?' इसी दौरान उसने टेकरी पर एक सुन्दर प्रतिमा देखी.

प्रतिमा को देखकर उसने सोचा, 'वाह! यह तो बड़ी अच्छी जगह है.' और तुरंत ही वह उस प्रख्यात महापुरुष की प्रतिमा के चरणों के बीच आ कर उतरा. 'मेरा शयनखंड तो आलिशान है!' उसे मानसिक राहत मिली और वह खुश भी हुआ. जैसे ही वह अपना सिर पंखों के बीच ढालते हुए सोने जा रहा था कि उस के सिर पर पानी की बड़ी सी बूँद गिरी. 'यह पानी की बूँद कहाँ से गिरी?' उसने आसमान की ओर देखा, 'आकाश में एक भी बादल नजर नहीं आया. आकाश में स्पष्ट रूप से झिलमिलाते सितारे नजार आ रहे थे, फिर भी यह छींटा कहाँ से आ गिरा?'

इतने में दूसरी बूँद गिरी. 'अब यह बारिश से कैसे बचा जाए, रात भी तो काटनी है.' उसने ज़रा सा नाराज होते हुए सोचा, 'अब मुझे अन्य सलामत स्थान पर चले जाना चाहिए.' और उसने वहाँ से उड़ जाने की तैयारी की. परंतु अपने पर फैलाने से पहले ही उस के ऊपर तीसरी बूँद गिरी. ...इस बार उसने गरदन ऊंची कर के ऊपर की ओर देखा...

उस प्रख्यात महापुरुष की प्रतिमा की आँखें आंसुओं से छलक रहीं थीं और इसीलिए ये अश्रु की बूँदें नीचे गिर रहीं थीं. प्रतिमा के गाल से अश्रु सरकते हुए देखकर तोते का हृदय भर आया. प्रतिमा का सुन्दर चेहरा इतना दुखी लग रहा था कि इस छोटे से तोते का मन करुणा से भर गया.

'आप कौन हैं?' तोते ने प्रतिमा से पूछा.

'मैं यहां का प्रख्यात नेता हूँ. मुझे यहां के लोग महापुरुष कहते हैं.'

'आप क्यों रो रहे हैं? आपने तो मुझे बिलकुल भिगो दिया है.'

'जब मैं जीवित था और मेरे भीतर मनुष्य-हृदय था तब मैं सुखी था क्यों कि मेरे लोग मेरा कहा ध्यान से सुनते थे और मेरे द्वारा दर्शाए गए सत्य की राह पर चलते थे. वे सरल जीवन यापन करते थे और अन्याय का, हिंसा का तथा असहिष्णुता का विरोध करते थे. मैंने उनसे जरुरत मंद लोगों को सहाय करने के लिए और उनके प्रति करूणा दर्शाने के लिए कहा था. किंतु मेरी मृत्यु के कुछ ही दशकों के बाद मेरे देशवासी मेरे दर्शाए गए मार्ग से भ्रष्ट हो गए. अधिकतर लोग, विशेष रूप से, बहुत से राजनीतिज्ञ और अमलदार भ्रष्टाचारी और दम्भी-पाखंडी हो गए.' प्रतिमा ने सिसकियाँ भरते हुए आगे कहा, 'और अब जब मेरी मृत्यु हो चुकी है तब उन्होंने मुझे यहां ऊंचाई पर रख दिया है. इस ऊंची टेकरी से, मैं जिसे अनहद प्यार करता था ऐसे मेरे देश की यह दुर्दशा और लोगों का अधःपतन देख रहा हूँ.'

और अंत में प्रतिमा ने एक अत्यंत हृदय विदारक बात कही, 'वैसे तो मेरा हृदय सीसे का बना है, फिर भी, मैं अपने अश्रुओं को रोक नहीं पा रहा इसलिए मुझे माफ करना.'

'हे ईश्वर, दया करो! मैंने सोचा था कि उस का हृदय सोने का होगा!' तोते ने सोचा. पर वह ऐसा कुछ कह नहीं सका. वह अत्यंत सतर्क व सावधान बन गया था.

फिर भी तोते ने प्रतिमा से न रोने के लिए अनुरोध किया और पूछा कि, 'क्या मैं आप को भला आदमी कह सकता हूँ?' प्रतिमा ने सिर हिलाते हुए 'हाँ' कहा.

हृदयद्रावक आवाज में भले आदमी ने कहा, 'दूर शहर की झोपडपट्टी में एक छोटी सी झुग्गी-झोंपड़ी है, वहां कूड़ा-कचरा चुनती एक स्त्री के पाँव में शहर के कूड़े-करकट के ढेर में पड़ी हुई टूटी हुई बोतल का कांच का टुकड़ा चुभ गया है. वह अपने छोटे बेटे का और शराबी पति का पेट भरने के लिए इस घूर (कूटे-करकट का ढेर) से प्लास्टिक की थैलियाँ ढूंढ कर बेचती है.'

'अभी उसे असह्य शारीरिक और मानसिक वेदना हो रही है. पाँव के दर्द के कारण आज वह कचरे से थैलियां ढूँढने नहीं जा पाई और इसलिए उसे पैसे भी नहीं मिले. उस का पति रात को घर आएगा और शराब पीने के लिए उस से पैसे मांगेगा. उस के पास पैसे नहीं होने से गुस्से से वह उसे बहुत पिटेगा. प्रिय तोते! तू मेरी माला से एक माणिक उस तक पहुंचा देगा? तुझे तो पता है कि मेरे हाथ-पाँव किसी काम के नहीं हैं.'

तोते ने कहा, 'मैं दक्षिण की ओर जाने वाला हूँ, मेरे सारे मित्र वहां के हरे भरे पर्वतों पर कब के पहुँच गए हैं और इस समय वे अपनी अपनी पसंद के फलों के मजे ले रहे होंगे.'

'तोते! मेरे प्रिय तोते!' उस भले आदमी ने कहा, 'क्या तू एक रात के लिए मेरे पास नहीं ठहरेगा और मेरा यह काम नहीं करेगा? उस स्त्री को कितना दर्द होता होगा इस के बारे में तो कुछ सोच! तू उस के घर जाएगा और जब उसके कराहने की और दर्दनाक दबी सी सिसकारियों की आवाज सुनेगा तब तुझे इस का एहसास होगा.'

तोते ने कहा, 'मुझे मनुष्य बिलकुल पसंद ही नहीं. वे अपने आमोद-प्रमोद हेतु हमें निशाना बनाते हैं और हमें मार डालते हैं. कुछ लोग जाल बिछाकर हमें फंसाते हैं. फिर हमें पकड़कर वे हमारे परों को काट डालते हैं और फिर पिंजड़े में बंद कर के हमें बेचते हैं.'

परंतु भला आदमी इतना दुखी लग रहा था कि तोते को उसका चेहरा देख कर उस पर तरस आ गया. वह भले आदमी के साथ एक रात ठहरने के लिए और उसका काम करने के लिए तैयार हो गया. भले आदमी ने कहा, 'धन्यवाद, मेरे मित्र!'

तोते ने भले आदमी के गले में रही माला में से एक माणिक खिंच कर निकाला और शहर की ओर उड़ चला. धनिकों के मनमोहक बंगले, जो काल के गाल में समा गए थे ऐसे बहादुर लोगों के आकर्षक स्मारक, मंदिर, मस्जिद पार कर के आखिर वह उस स्त्री की झोंपड़ी के पास आया. उसने उस स्त्री के कराहने की आवाज सुनी. उस की व्यथा से तोते का हृदय भी भर आया. वह धीरे से झोंपड़ी में गया और उसने वह माणिक उस औरत के हाथ के पास जमीन पर रखा, फिर बिना कोई शोर किए वह बाहर उड़ गया.

तोता उड़कर फिर उस टेकरी की टोच तक आया और उसने जो काम किया था उसके बारे में भले आदमी से कहा और फिर बोला, 'अरे! कितने आश्चर्य की बात है, मैं तो इस लंबी रात से उब गया था, फिर भी मेरा मन परम शांति का अनुभव कर रहा है और मुझे बेहद खुशी भी हो रही है.'

'यह खुशी तुझे इसलिए हो रही है कि तूने बहुत ही अच्छा काम किया है.' प्रतिमा ने कहा. तोता प्रतिमा के इस वाक्य का अर्थ समझने की कोशिश करता हुआ निद्रामग्न हो गया.

दूसरे दिन तोता शहर के मध्य में स्थित एक सुन्दर फव्वारे के पास आया. रविवार का दिन था और कुछ बच्चे फव्वारे के चारों ओर खेल रहे थे. तोते ने वहां पर स्नान कर के तरोताजा होने का विचार किया.

कुछ बच्चों ने उस तोते को देखा और उसे देखकर वे खुश हो कर कहने लगे, 'देखो तो सही! कितना सुन्दर तोता है, उस के पर भी कितने सुन्दर हैं. ऐसे उड़ता हुआ तोता हमने कभी नहीं देखा! निश्चित ही वह किसी पिंजड़े से भाग निकला होगा.'

एक निर्दोष बच्चा बोला, 'वह कितना खुशकिस्मत है!'

तोते ने सोचा: आज रात मैं दक्षिण दिशा में जा कर मेरे मित्रों से मिलूँगा. इस विचार से वह बहुत उत्साहित हो गया. उसने फिर से सार्वजनिक स्मारक के आसपास चक्कर लगाया और फिर एक वृक्ष की सब से ऊंची डाली पर बैठकर सुबह की धुप सेंकने लगा. उसने अन्य बहुत सारे पक्षियों को एक डाल से दूसरी डाल पर आनंद के साथ उछल-कूद करते हुए देखा. इस से उसे बहुत अच्छा लगा. रात होते ही आकाश सुंदरता से झगमगाते तारकों से छा गया, वह फिर टेकरीवाली प्रतिमा के पास गया और उसने भले आदमी से पूछा, 'क्या तुम्हें दक्षिण दिशा में कोई सन्देश भेजना है? अब मैं वहां जा रहा हूँ.'

'तोते, तोते, मेरे नन्हे से मित्र!' प्रतिमा ने कहा, 'तू मेरे साथ एक और रात ठहर जा न!'

तोते ने जवाब दिया, 'मेरे सारे मित्र वहां दक्षिण में मेरी प्रतीक्षा कर रहे होंगे, भला आदमी! मुझे यह बताते हुए दुःख हो रहा है कि अब मैं यहां और अधिक नहीं रुक सकता.'

भले आदमी ने कहा: 'तोते! मेरे प्रिय तोते! तू अब मेरा सब से प्रिय मित्र बन गया है. दूर शहर में मुझे तंबू में एक अंध मनुष्य दिखता है. वह सोने की कोशिश कर रहा है, परंतु वह ज्वर से तड़पता है इसलिए सो नहीं पा रहा है. वह बिस्तर में इधर से उधर करवटें बदल रहा है. पिछले सप्ताह उसने अपनी किडनी एक धनवान डॉक्टर को बेच दी थी. डॉक्टर को वह किडनी अपने एक पैसेवाले मरीज के लिए चाहिए थी. उस मरीज की दोनों किडनियां निष्क्रिय हो गईं थीं. अंध मनुष्य को किडनी बेचने से जो धन मिला उससे वह अपने भैया को मेडिकल कोलेज में प्रवेश दिलाना चाहता है, परंतु उस के लिए उसे बहुत सारे रुपियों की आवश्यकता थी. इसलिए उस ने वह राशि अपने भाई के नाम बैंक में जमा करवा दी है. परंतु यह रोग अब उस अंध आदमी में संक्रमित हुआ है. वह अब अपना इलाज करवाना चाहता है किंतु डॉक्टर इस के लिए अधिक पैसे मांग रहा है. वह अपने भाई के खाते से पैसे निकालना नहीं चाहता. मेरे प्यारे तोते! यदि हमने उसकी मदद नहीं की तो वह मर जाएगा.'

सहृदयी तोते ने कहा, 'मैं आप के साथ एक और रात यहां रहूँगा, क्या मैं उसे दूसरा माणिक दे दूं?'

'मुझे यह बताते हुए दुःख होता है कि अब मेरे पास माणिक नहीं है. प्रतिमा ने कहा, 'लेकिन मेरी आँखों में असली मोती हैं. उन में से तू एक ले ले और उस अंधे आदमी को दे दे. फिर वह यह मोती किसी जौहरी को बेच देगा और उसे जो पैसे मिलेंगे उससे वह अपने संक्रमित रोग का इलाज करा पाएगा.'

'प्रिय भला आदमी! मुझे माफ करना, मुझ से यह नहीं हो पाएगा,' ऐसा कहते हुए तोता समभाव से रोने लगा.

'अरे, अरे...तोते, मेरे सब से प्यारे दोस्त!' प्रतिमा ने कहा, 'तू रो मत, मैंने तुझे जैसा कहा है ऐसा कर मेरे भाई!'

इसलिए तोते ने भले आदमी की एक आँख से मोती निकाल लिया और वह अंध मनुष्य के तंबू की ओर गया. उसके तंबू में जाना बिलकुल आसान था, क्यों कि उस का कुछ हिस्सा खुला हुआ था. वह उड़कर अंदर गया और अंध मनुष्य के बिस्तर के पास आया. उसने उस मनुष्य के सिर पर अपने पर से कुछ देर तक पंखा किया. अंध मनुष्य को इस से अच्छा लगा, कुछ राहत मिली. अचानक उस आदमी को लगा कि उस के हाथ को मोती जैसी किसी चीज का स्पर्श हुआ है. उसने सोचा कि यह मोती ही होना चाहिए. उसकी धारणा सही थी. जब उसका भाई उसके लिए भोजन ले कर अंदर आया तब उसने मोती देख कर कहा कि यह तो असली मोती है. दोनों भाई बहुत खुश हो गए. दोनों के मन में नई आशा जगी. उन को यकीन हो गया कि किसी देवदूत ने ही उसे इतने मूल्यवान मोती का उपहार दिया है.

दूसरे दिन तोता समुद्र की और उड़ा. उसने देखा कि सागर की मौजें किनारे से टकरातीं थीं. वह ऊंचे नारियल के वृक्ष पर बैठ कर उस दृश्य का आनंद लेने लगा. महासागर के नीले जल को और रेतीले समुद्रतट को देखने से उसे खुशी मिलती थीं. उसने शहर के लोगों को दरिया किनारे ताजगीभरी हवा में टहलते हुए देखा. बच्चे रेती से शंख-सीपी खोजते थे. समृद्ध पैसेवाले मनुष्य अपनी नैया या यांत्रिक नौका में बैठकर सागर पर आमोद-यात्रा का आनंद उठाते थे. जैसे चन्द्र निकला कि तोता उड़ता हुआ टेकरी की प्रतिमा के पास लौट आया.

'मैं आप को अलविदा कहने आया हूँ.' तोते ने भले आदमी से कहा.

'तोते, प्रिय तोते, मेरे जिगरी दोस्त!' भले आदमी ने प्रार्थना की, 'तू अब और एक रात मेरे पास नहीं रुकेगा? रुक जा मेरे दोस्त!'

तोते ने जवाब दिया, 'यहां पर ग्रीष्म का ताप अत्यंत बढ़ने लगा है. दिन भी लंबे होने से प्रदूषण भी बढ़ रहा है. मुझे दक्षिण दिशा में जाना ही पड़ेगा. क्यों कि वहां वर्षा ऋतु का प्रारंभ हो चुका है और वहां यहां से अच्छा खासा ठंडा वातावरण है. प्रिय भले आदमी! मुझे आप को छोड़कर जाना पड़ेगा, परंतु मैं आप को कभी भी भूल नहीं पाउँगा. अगली ग्रीष्म ऋतु में मैं फिर से आप के पास आउंगा तब आप की आँख का मूल्यवान मोती, जो किसी की सहायता करने के लिए आपने दे दिया है, मैं ऐसा मोती ले कर आऊंगा.'

भले आदमी ने कहा, 'वहां नीचे शहर के चौराहे पर एक नन्ही सी बच्ची खड़ी है जो आते-जाते लोगों से भीख मांगती है. ग्रीष्मकालीन दिन होने से उस चौराहे पर अब अधिक लोग नहीं आते. विदेश से आते बहुत से विदेशी इस छोटी सी बच्ची को उदारतापूर्वक कुछ न कुछ देते थे, परंतु ये ग्रीष्म ऋतु में कोई विदेशी पर्यटक इस शहर में नहीं आता. बालिका के माता-पिता रोज उसे भीख मांगे के लिए इस चौराहे पर भेजते हैं और शाम तक उसे जितने भी रूपये मिले हुए होते हैं, उस से ले लेते हैं. आज उस बालिका के पास उसके माता-पिता को देने के लिए कुछ भी नहीं है. कुछ न लाने पर उस के माता-पिता उसे बुरी तरह से पिटते हैं. डर के कारण आज वह घर नहीं गई है और वहीँ एक कोने में पड़ी रो रही है. मेरे प्यारे तोते! यदि हम उस दुखी बच्ची की सहायता नहीं करेंगे तो कोई उसे मारेगा या कोई उसे रात में उठा ले जाएगा.'

'मैं आपके साथ एक और रात रहूँगा,' तोते ने कहा, 'परंतु मैं आपकी दूसरी आँख का मोती नहीं ले पाऊंगा. यदि मैं ऐसा करूँगा तो फिर आप देखेंगे कैसे? आप अंधे हो जाओगे न?'

भले आदमी ने तोते से विनती की, 'हे मेरे अति प्रिय तोते! मेरे प्यारे प्यारे तोते! मुझ पर तरस खा कर भी जैसा मैं कहता हूँ वैसा कर. मुझ पर इतनी मेहरबानी कर.'

न चाहते हुए भी तोते ने भले आदमी की दूसरी आँख से मोती निकाला और वह उड़ कर चौराहे पर, जहाँ वह बालिका रो रहीं थी, वहां आया और मोती उसके हाथ में रख दिया.

'कितना अच्छा मोती!' बालिका खुशी से फूल उठी और नाचती कूदती अपने घर की ओर चली गई.

फिर तोता भले आदमी के पास लौट आया और उसने जो सोच रखा था वही कहा: 'अब आप अंध हो गए हो इसलिए मैं हमेशा आप के साथ, आप ही के पास रहूँगा.'

भले आदमी ने कहा, 'नहीं, नहीं, मेरे दोस्त! तुझे दक्षिण में चले जाना चाहिए.'

'मैं हमेशा आप के साथ ही रहूँगा,' तोते ने दृढ़तापूर्वक कहा और वह भले आदमी के चरणों में सो गया.

दूसरे दिन भले आदमी ने तोते के पास अपने हृदय की भावना व्यक्त की: 'मेरे प्रिय तोते! मैं वर्षों से इस टेकरी से पुरुषों एवं स्त्रियों को व्याकुल होते हुए देखता रहा हूँ. अधिक अच्छा जीवन जीने के लिए हमें हमारे आसपास से ही बहुत अच्छा, दूसरों को सहायक बनाने का, मार्गदर्शन मिलता रहता है. फिर भी यह बड़े आश्चर्य की बात है कि ये लोग व्यर्थ में ही कितने अशांत रहते हैं. और इस में ऐसा कुछ भी नहीं है जो हमारी समझ में न आ सकें. अब तू थोड़ी देर के लिए उड़कर एकबार इस शहर को देख ले और उस में जो कुछ भी तुझे दिखे उस के बारे में मुझे बता.'

इसलिए तोता उस शहर पर उडता हुआ सबकुछ देखने लगा. उसने देखा कि धनवान लोग अपने सुन्दर बंगले में आनंद्प्रमोद करते हैं, जब कि भिक्षुक हाथ में कटोरे लिए मंदिर और चर्च के पास बैठे हुए हैं. फिर वह अँधेरी गलियों की ओर आगे बढ़ा, वहां उसे मैले-कुचैले, एकदम कमजोर दो बच्चे अपनी निस्तेज-निर्जीव सी आँखों से इधर उधर झांकते नजर आए. भयभीत से, घबराए से, ये छोटे बच्चे एकदूसरे से लिपटकर, खुद को सिकुडते-समेटते सहारा पाने की कोशिश करते हुए पुलिये की मेहराब नुमा कमान के नीचे पड़े थे. वे लंबी सांसे खींच रहे थे.

'यदि अब खाना नहीं मिला तो हम तो मर जाएंगे, कितने दिन से कुछ खाने को नहीं मिला!'

'अबे...! तुम यहां क्यों पड़े हो, यह सोने की जगह नहीं है.' चौकीदार ने डंडा उठाते-और उसे पटकते हुए जोर से कहा तो बच्चे लगातार बरस रही बारिश में वहां से भागे.'

इस के बाद तोता वापस आ गया और उसने जो कुछ भी देखा था, भले आदमी से कहा.

भले आदमी ने कहा, 'तुझे पता ही है कि मेरा शरीर सोने के पत्तों से आवृत्त है. उन में से एक एक पत्ता उतारकर मेरे शहर के गरीबों में सोना बांटता रहे. लोगों का सोचना हैं कि सोना उन्हें सुखी कर सकता है!'

तोता एक एक कर के सोने के पत्ते निकालता रहा और गरीबों को देता रहा. जिन को सोना मिलता था उन बच्चों के चेहरे गुलाब के फूल की तरह खिल जाते थे और वे खुशी से गलियों में हँसते-खेलते थे. उनके दिलों से आनंद के उदगार निकलते थे कि, 'अब तो हमें पेटभर के दो जून खाना मिलता है.'

काफी दिनों बाद भला आदमी बिलकुल निस्तेज सा, धूसर और विवर्ण, कांतिहीन दिखने लगा.

बाद में ग्रीष्मकालीन दिन और रात अधिकाधिक गरम होते गए. तोता बिलकुल अस्वस्थ रहने लगा था. वह बड़ा परेशान हो रहा था इस जला देनेवाली गर्मी से. किंतु वह भले आदमी को छोड़कर जाना नहीं चाहता था. वह उसे बहुत चाहने लगा था. अब वह बहुत दूर नहीं जा पाता था इसलिए वह दुकानदार की नज़रों से बच कर बेकरी के बाहर पड़े ब्रेड के टुकडे खा कर जैसे तैसे अपना पेट भर लेता था. परंतु मन ही मन तोता समझ चुका था कि वह दिन-ब-दिन कमजोर होता जा रहा है और उसे यह खयाल भी आ गया था कि अब वह अनंत की यात्रा पर जानेवाला है, मतलब की उसकी मृत्यु करीब है. वह इतना अशक्त हो गया था कि वह बड़ी मुश्किल से भले आदमी के कंधे तक उड़ पाता था.

'अलविदा, मेरे अति प्रिय दोस्त', तोते ने क्षीण आवाज में प्रतिमा से कहा, 'क्या आप मुझे आप के चरण चूमने देंगे? मुझे पता है कि आप के देश में चरण चूमना यह किसी को सर्वाधिक सम्मान देने की रीत है.'

भले आदमी ने कहा, 'आख़िरकार तूने दक्षिण में जाने का निर्णय कर लिया यह जानकर मैं बहुत खुश हुआ हूँ मेरे आत्मीय बंधु! तूने बहुत अच्छे से मेरा साथ निभाया, परंतु तुझे मेरे पैरों के बदले मेरे दोनों गालों को चूमना चाहिए क्यों कि मैं तुझे दिलोजान से चाहता हूँ.'

तोते ने कहा, 'मैं दक्षिण की ओर नहीँ जा रहा, मैं मृत्यु की शरण में जा रहा हूँ. मौत परम शान्ति और गहन निद्रा का भाई है, सही बात है न?' ऐसा कहते हुए ही उसने भले आदमी के दोनों गालों पर चुम्बन किया और फिर वह निष्प्राण हो कर उस के चरणों में गिर पडा.

उसी पल भले आदमी की प्रतिमा के अंदर जैसे कुछ टूट सा गया हो ऐसी विचित्र कड़ाकेदार आवाज हुई. हकीकत में यह प्रतिमा के सीसे के हृदय में पड़ी दरार की आवाज थी. उस दिन गरमी भी प्रचंड थी.

संयोगवश उस देश के राष्ट्रपति का उसी दिन उस शहर के दौरे का आयोजन किया गया था. वे अपने संगी साथियों के साथ टेकरी के पास आए और वहां यह प्रतिमा देखकर वे विस्मित हुए.

'हे भगवान! यह प्रख्यात नेता कितने बदसूरत लग रहे हैं!'

उसे खुश करने के लिए शहर के राजनीतिज्ञों ने उस की बात का समर्थन करते हुए कहा, 'बिलकुल सही बात है, ये प्रतिमा तो एकदम खराब दिखती है!'

'उस के गले की माला से माणिक गायब हो गया है और उस की आँखें भी निकल गईं हैं. और अब उन पर सोने के पत्ते भी नहीं रहे.' राष्ट्रपति ने कहा, 'सही में यह मूर्ति किसी भिखारी की मूर्ति ऐसी दिखती है!'

'और यह देखो, उस के पाँव के पास मरा हुआ पक्षी पडा है.' राष्ट्रपति के मुख से आश्चर्योद्गार निकल पड़े. उसने संक्षेप में कहा, 'यह बहुत खराब दृश्य है.'

इसलिए उन्होंने नेता की प्रतिमा को वहां से हटा लिया. उस के बाद उन्होंने इस प्रतिमा को भठ्ठी में पिघलाने के लिए भेज दिया. राष्ट्रपति के चाहक मित्रों ने शहर में सभा आयोजित की और उन्होंने उस टेकरी पर राष्ट्रपति की प्रतिमा स्थापित करने का निर्णय किया.

जहाँ उस प्रख्यात महापुरुष की प्रतिमा पिघलवाने के लिए भेजी गई थी उसी कारखाने के कारीगर ने कहा, 'कितनी अजीब बात है! इस का दरारवाला, सीसे का हृदय भठ्ठी में पिघलता ही नहीं! हमें उसे फेंक देना चाहिए.' ऐसा कहते हुए उसने उसे भठ्ठी से निकालकर रेत के ढेर पर फेंक दिया और वह हृदय मृत अवस्था में पड़े तोते के पास जा कर गिरा.

एक दिन भगवान ने उस विशाल शहर में नीचे देखा. नीचे देखकर भगवान ने अपने कई देवदूतों को अपने पास बुलाया और कहा, 'धरती पर जाओ और वहां से मुझे संसार की दो सब से अधिक मूल्यवान वस्तुएँ ला कर दो.' और जब एक देवदूत लौटा तब उसके एक हाथ में वह दरारवाला हृदय और दूसरे हाथ में मृत तोते का शरीर था!

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[ओस्कर वाइल्ड की १९८८ में पहलीबार प्रकाशित 'द हैपी प्रिंस', सफल और ह्रदयस्पर्शी उत्तम कहानी, को कुछ परिवर्तन के साथ यहां प्रस्तुत की गई है. पाठकों को मूल कहानी पढ़ने के लिए आग्रहपूर्वक अनुरोध किया जाता है.]

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(क्रमशः अगले अंकों में जारी...)

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रचनाकार: आध्यात्मिकता से एकता एवं समन्वय : अध्याय : ८ - प्रख्यात महापुरुष (कथा) - लेखक : डॉ. निरंजन मोहनलाल व्यास - भाषांतर : हर्षद दवे
आध्यात्मिकता से एकता एवं समन्वय : अध्याय : ८ - प्रख्यात महापुरुष (कथा) - लेखक : डॉ. निरंजन मोहनलाल व्यास - भाषांतर : हर्षद दवे
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