जल तू जलाल तू - 7 // प्रकृति और जीव के अन्तःसम्बन्धों का सशक्त उपन्यास // प्रबोधकुमार गोविल

SHARE:

जल तू जलाल तू प्रकृति और जीव के अन्तःसम्बन्धों का सशक्त उपन्यास प्रबोधकुमार गोविल अध्याय 1 | अध्याय 2 | अध्याय 3 | अध्याय 4 | अध्याय 5 ...

image

जल तू जलाल तू

प्रकृति और जीव के अन्तःसम्बन्धों का सशक्त उपन्यास

प्रबोधकुमार गोविल


अध्याय 1 | अध्याय 2 | अध्याय 3 | अध्याय 4 | अध्याय 5 | अध्याय 6 |


सात

सना और सिल्वा दोनों ही बहुत खुशमिजाज थीं। उनका दिमाग अपनी उम्र से कुछ आगे ही था। लेकिन फिर भी उनकी इच्छा बहुत पढ़ने से ज्यादा दुनिया देखने की थी। उन्हें जब भी कोई घूमने का अवसर मिलता, वे उसे छोड़ती नहीं थीं। पानी दोनों की पहली पसन्द था, नदी, समन्दर, सरोवर और झीलें उनके प्रिय स्थान होते थे। पिछले शनिवार को एशिया से आए एक पॉप-स्टार का जीवन्त कार्यक्रम देखने के बाद से उन्हें कई बार गुनगुनाते सुना गया था... ”कभी पत्थर पे पानी, कभी मिट्टी में पानी... कभी आकाश पे पानी, कभी धरती पे पानी... दूर धरती के तल में, बूँदभर प्यास छिपी है, सभी की नजर बचाकर वहीं जाता है पानी...“ सच में पानी की बेचैनी भी बड़ी अजब है, सफीने इसी में तैरते हैं, इसी में डूबते हैं...सना मेन्डोलिन बजाती, सिल्वा गुनगुनाती। दुनिया ने अपने को जवान बनाए रखने के कितने नुस्खे ईजाद कर रखे हैं। जो लोग दुनिया से चले जाते हैं, वे भी फिर-फिर लौटकर आते हैं। और क्या, सिल्वा रस्बी की तरह दीन-दुनिया खोकर ही तो गाती थी।

पेरिना डेला के आने की तैयारियों में जुट गई। बहुत सालों के बाद ऐसा मौका आ रहा था, जब डेला अपने पति के साथ स्वदेश आ रही थी। किन्जान की उम्र से भी कम-से-कम दस वर्ष घट गए थे। सना और सिल्वा तो अपने पिता से पिछली बार तब मिली थीं, जब वे टीन एज में भी नहीं आई थीं। और अब...अब तो उनके कमरे के बाहर उनकी नेम-प्लेट्स लगी थी - ‘सना रोज और सिल्वा रोज’।

किसी पिता के लिए यह बेहद गौरव का क्षण होता है, जब वह दीवार पर अपने बच्चों की नेम-प्लेट लगी देखे। पेरिना ने डेला के खत को कई बार पढ़ा था।

और किन्जान ने तो झटपट मकान के पिछवाड़े पड़े मैदान में दो कमरे और बनवाने ही शुरू कर दिए थे।

माता-पिता के लिए तो उनके बच्चों के आने की खबर-गन्ध ही तमाम दुनिया छोटी पड़ने की निशानी होती है। उन्हें लगता है कि उनका बस चले तो आकाश को थोड़ा और ऊँचा बाँध दें, क्षितिज को जरा दूर खिसका दें... सना और सिल्वा ने नए कमरों की साज-सज्जा में पूरा दखल दिया।

जब किसी बसेरे में तीन पीढ़ियाँ एक साथ रहने का ख्वाब सजाती हैं, तो स्थिति बड़ी दिलचस्प होती है। एकदम नई पीढ़ी अपने लिए ज्यादा जगह नहीं चाहती, उसे लगता है, अभी दुनिया देखनी है, किसी सोन-पिंजरे में कैद होकर थोड़े ही रहना है।

वर्तमान पीढ़ी को लगता है, हर काम के लिए अलग जगह हो, जितनी जगह अपने नाम हो, उतना ही अच्छा। जीवन के आखिरी पड़ाव पर बसर कर रही पीढ़ी अपना दायरा सिमटने नहीं देना चाहती। युवा लोग इसे उनकी लालसा कहते हैं, पर वह वास्तव में उनका अकेलेपन से लगता हुआ डर होता है। वे कह नहीं पाते, पर मन में सोचते हैं कि एकान्त को हमारे करीब मत लाओ, हमारे बाद तो सब तुम्हारा ही है।

लेकिन जिस तरह कोई माता-पिता अपनी सन्तान को अपनी उतरन नहीं पहनने देते, वैसे ही नई पीढ़ी अपने पूर्वजों के कमरे रहने के लिए तब तक नहीं लेना चाहती, जब तक कि कोई विवशता न हो। युवा पीढ़ी का रहने का अपना तरीका होता है। उसमें पूर्वजों की आँखों के अक्स भला कौन पसन्द करेगा। यह बड़ों के प्रति उनकी अवज्ञा नहीं, बल्कि सम्मान ही तो है।

डेला के आने के दिन नजदीक आ रहे थे। दोनों ओर गर्मजोशी का माहौल बना हुआ था। उधर अति उत्साह में खिली डेला अपने मिशन की तैयारियों के बारे में नई-नई जानकारी देती। इधर उसके माता-पिता और लाड़ली बेटियाँ दिन गिन-गिनकर उसके आने की तैयारी करते। किन्जान और पेरिना का काम था डेला, उसके पति और मित्रों के लिए रहने का बेहद आराम-भरा इन्तजाम करना, और सना व सिल्वा पर जिम्मेदारी थी, उनके रहने की जगह की सजावट और गरिमामय वातावरण बनाए रखने की। आखिर दूर देश से अपने मित्रों को लेकर डेला दम्पति पहली बार जो आ रहे थे।

डेला इस समय जिन लोगों के साथ काम कर रही थी, वे जुझारू और कर्मठ तबीयत के चाइनीज मित्र थे, और वे इन दिनों कई नए-नए प्रोडक्ट्स बनाकर उनका बाजार ढूँढने के लिए अन्य देशों में उनका प्रदर्शन करते थे। उनकी कम्पनी दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की पर थी, और सोचने के लिए उनकी सीमा थी - सिर्फ आकाश।

इस तरह की कम्पनी की एक अनिवार्य शर्त थी, गोपनीयता। उनके प्लान्स गुप्त होते थे, बिना किसी प्रचार-प्रसार के। वे सफल होने तक इस बात की हवा भी किसी को नहीं लगने देते थे कि वे क्या कर रहे हैं। उनका सिद्धान्त था कि ‘ग्रीन-रूम’ में नहीं, बल्कि मंच पर ही कलाकारों को देखा जाए।

यही कारण था कि सना और सिल्वा भी यह नहीं जानती थीं कि उनके माता-पिता के आने का प्रयोजन क्या है? उनके लिए इस बात का कोई खास महत्त्व था भी नहीं। क्या यह पर्याप्त नहीं था कि वे आ रहे हैं? उधर यही बात किन्जान और पेरिना के साथ थी। उनके बेटी-दामाद आ रहे हैं, यह उनके लिए किसी त्योहार के आने जैसी बात थी। बस, यह एक पूरी और मुकम्मल बात थी। इसके आगे-पीछे, ऊपर-नीचे कहीं कोई विराम-चिह्न नहीं था।

भारतीय घरों में जब रसोई में खीर बन रही होती है तो गृहिणी का पूरा ध्यान इस बात पर होता है कि खीर में सभी मेवे पड़ गए या नहीं? ये किसे याद रहता है कि क्या त्योहार है - कृष्ण का जन्मदिन, राम का जन्मदिन, शंकर का जन्मदिन...और भारतीय घरों में ही क्यों, दुनियाभर में मौके-बेमौके व्यंजनों में शक्कर घुलती ही है। फीका केक तो क्रिसमस पर किसी घर में नहीं खाया जाता।

हलवा चाहे आटे का हो, दाल का, आलू का, या गाजर का, मिठास तो अकेली शर्त है ही न। चाहे मेहमानों को डायबिटीज ही क्यों न हो। ‘व्यंजन’ मेहमानों की तीमारदारी थोड़े ही है, वे मेजबानों के उल्लास का प्रदर्शन हैं।

इस तरह यह दोनों बातें अलग थीं कि जो मेला लगनेवाला है, उसमें बाजीगर कौन और तमाशबीन कौन? बफलो शहर तो मेहमानों का गन्तव्य था ही, उन्हें दूर-दराज की जगहों पर घुमाने-फिराने की योजनाएँ भी बनने लगीं। डेला का आगमन पहले जब-जब भी हुआ था, उसका अभीष्ट होता था, सब घरवालों के साथ कुछ दिन रह लेना। फिर वह आती भी थोड़े-से दिनों के लिए ही थी। ऐसा मौका भी आसानी से पहले कभी नहीं आया कि वह अपने पति के साथ यहाँ आई हो।

इस बार ऐसा हो रहा था। उनके पास यहाँ रुकने के लिए पर्याप्त समय भी था। मित्रों के साथ आने के कारण घूमने-फिरने का अवसर भी था, दोनों बच्चियों को उनके मनचाहे दिन देने का अवसर तो था ही...बस, कमी थी, तो केवल उस क्षण के आने की, जब मेहमान-दल का विमान अमेरिका की धरती पर पग धरे।

न्यूयॉर्क के विमानतल पर जब वुडन, डेला और उनके तीन चाइनीज मित्र उतरे तो सना और सिल्वा फुलझड़ियों की तरह चटकने लगीं। शायद वो मौसम के सबसे खुशगवार फूल थे, जिनके गुलदस्ते दोनों ने मेहमानों को भेंट किए। दोनों लड़कियों की आँखों ने टकटकी लगाकर उस सुदर्शन पुरुष को देखा, जो उनका पिता था।

माँ की उपस्थिति को तो जैसे वे अन्जुरी में भरकर पी ही गईं।

कुछ देर बाद सिल्वा उस शानदार कार के स्टीयरिंग पर थी, जो सबको लेकर बफलो की ओर दौड़ रही थी। साठ बरस के हो, सत्तावन के चुम और इक्कीस साल के युवान, सभी दौड़ती गाड़ी की खिड़की से सरकते अमेरिकी नजारे निहारने में बिलकुल बच्चे बने हुए थे। डेला और सना एक-दूसरे के कान में लगातार अण्डे फेंट रही थीं। उनके पास समय और लफ्ज कम थे, बातें बहुत ज्यादा।

वुडन को तो यह खयाल ही मादक लग रहा था, कि जिस बेटी को वह नर्म बिल्ली के बच्चे-सा छोड़कर गया था, वह फर्राटे से गाड़ी चलाती उसे बफलो की ओर ले जा रही थी।

अगले कुछ पल तीनों मेहमानों ने ताबड़तोड़ फोटोग्राफी में बिताए।

पेरिना और किन्जान ने मेहमानों का जिस गर्मजोशी से स्वागत किया, वैसा स्वागत चीन को अमेरिका से, या अमेरिका को चीन से स्वप्न में भी नसीब नहीं हुआ होगा। शर्मीले युवान को सना और सिल्वा जैसे दोस्तों के साथ ने प्रवास को यादगार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

बफलो शहर दो भागों में बँटा हुआ था, एक तरफ तो स्थानीय लोगों की बहुतायत थी, दूसरी ओर दुनिया के तमाम देशों के सैलानी फैले हुए थे, जहाँ नायग्रा फाल्स देखने आनेवालों का जमघट रहता था। उसी के अनुपात में विभिन्न लोगों ने अपने-अपने देश के लोगों को खान-पान की सुविधाएँ देने के लिए अपने रोजगार जमा रखे थे।

मिस्टर हो ने किन्जान को बताया कि वे शंघाई के समीप एक छोटे कसबे में बने एक स्टेडियम के मालिक थे, जहाँ वे बच्चों को खेलों की नामी-गिरामी स्पर्धाओं के लिए तैयार करते थे। दूध पीते छोटे बच्चों को कद्दावर युवा खिलाड़ियों में बदलना उनका शौक ही नहीं, बल्कि व्यवसाय था। माँ-बाप अपने बच्चों को उन्हें सांपकर उनके सुनहरे भविष्य के लिए निश्चिन्त हो जाते थे। वे भी बच्चों के शरीर को फौलाद का बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते थे। वे खेल को शौक से उठाकर मुहिम में बदलते थे, और अपने हुनर और धैर्य का मोटा मोल वसूलते थे।

मिस्टर चुम खेलों के अन्तरराष्ट्रीय फायनेन्सर थे।

सना और सिल्वा को यह जानकर बहुत मजा आया कि युवान इण्टरनेशनल स्तर का तैराक है।

इन मेहमानों की कम्पनी बच्चों को भर्ती करके बिलकुल प्रचार के बिना गुप्त स्थान पर प्रशिक्षण देती थी, और जब बच्चों को कोई बड़ी उपलब्धि हो जाए, तभी उन्हें सामने लाया जाता था।

पूरा परिवार सभी मेहमानों से अच्छा-खासा घुल-मिल गया। दिन दौड़ने नहीं, उड़ने लगे।

कुछ ही दिनों में डेला और उसकी मित्र-मण्डली ने बफलो का कोना-कोना छान मारा। शहर के कई स्थानों की आकर्षक फोटोग्राफी करके मेहमानों ने अपनी यात्रा की स्मृतियों को सजाने का भी अच्छा बन्दोबस्त कर लिया। किन्जान और पेरिना ने उन्हें एक दिन अपने हनीमून ट्रिप पर की गई आश्रम की यात्रा के बारे में भी बताया। वर्षों पहले जलजले में नेस्तनाबूद हुए आश्रम की दिलचस्प कहानी और बाद में संयोगवश मिली डायरी के बारे में डेला उन्हें पहले भी तो बता चुकी थी।

एक शाम जब वे लोग डिनर के बाद रंगीन झिलमिलाते झरने के किनारे बगीचे में बैठे ताजगी-भरे आलम का आनन्द ले रहे थे, इस बात पर अच्छी-खासी बहस ही छिड़ गई कि क्या मृत्यु के बाद किसी भी व्यक्ति का वापस दुनिया में आकर आत्मा के रूप में भटकना कोई हकीकत हो सकती है या फिर यह दिमागी फितूर, भ्रम, मनोरंजन मात्रा ही है। किन्जान ने इस प्रश्न पर लगभग मौन ही रखा।

लेकिन उसे यह जानकर बेहद आश्चर्य हुआ कि उनके मेहमानों के तरकश में भी ऐसे अनुभवों के कई तीर हैं, जब किसी ने मृत व्यक्ति की उपस्थिति को किसी-न-किसी रूप में अनुभव किया।

चुम ने बताया कि उसकी तो कई बार विपत्ति के क्षणों में ऐसी आत्माओं ने मदद की है। उनका कहना था कि ये आत्माएँ केवल अच्छी वृत्तियाँ ही होती हैं, और ये लोगों की मदद ही करती हैं। ये प्रायः बड़े और महान लोग ही होते हैं जो दुनिया से जाने के बाद भी दुनिया में दखल देने की शक्ति रखते हैं। उसे ऐसा कोई अनुभव नहीं था, जब किसी असहाय या पीड़ित व्यक्ति को मरने के बाद दुनिया में घूमते देखा गया हो।

युवान की इस बात ने सबको चांका दिया कि उसे तैराकी के कठिन दिनों में कई बार पारलौकिक शक्तियों द्वारा सहायता किए जाने का अहसास हुआ है।

सना और सिल्वा की दिलचस्पी इन बातों को सुनने तक सीमित थी, उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं था। और सबसे बड़ा अचम्भा तो सभी को यह जानकर हुआ कि इस पूरी बातचीत के दौरान वुडन पास के लॉन पर गहरी नींद में सोते पाए गए, और उन्होंने किसी की बात का एक लफ्ज भी नहीं सुना।

युवान ने दिलचस्प वाकया सुनाया। वह तब केवल चौदह साल का था, जब एक गहरी जंगली नहर में तैरते हुए वह पानी में काई-भरी झाड़ियों में फँस गया, और बहुत देर चिल्लाने के बाद भी उसे किसी तरह की कोई मदद नहीं मिली। तभी मटमैले पानी में उसने एक बड़ी-सी मछली को अपनी ओर आते देखा। नुकीली दन्त-पंक्ति और काँटों से भरी देहवाली इस खूँखार मछली को अपनी ओर आते देख युवान की चीख ही निकल गई, लेकिन युवान ने साफ देखा कि यह मछली अपने काँटों से झाड़ियों को सुलझाती हुई युवान का रास्ता बनाकर इस तरह निकल गई कि उसके शरीर को एक खरोंच तक नहीं आई। बाद में उसके मित्रों ने कहा कि वह झाड़ियों को खानेवाली कोई शाकाहारी मछली हो सकती है, किन्तु युवान का दिल जानता था कि भय से मरणासन्न अवस्था में आ जानेवाले क्षणों में मछली उसे देवदूत की भाँति नजर आती रही...धीरे-से युवान ने यह भी बताया कि उस मछली की आँख का अक्स आज तक उसके दिमाग में दर्ज है।

रात के खाने, कॉफी और गप्प-गोष्ठी के बाद जब मेहमान लोग सोने के लिए चले गए, किन्जान और पेरिना अपने कमरे में आए, तो दोनों ही कुछ बेचैन-से थे।

लेकिन यह कोई नहीं जानता था कि दोनों की बेचैनी अलग-अलग बातों को लेकर थी।

किन्जान पिछले कुछ दिनों से अपने मेहमानों से आश्वस्त-सा नहीं था। शुरू के दिन तो इसी उन्माद में कट गए कि वे लोग वुडन और डेला के साथ आए, उनकी कम्पनी के लोग हैं, और इसी नाते उनके मेहमान भी हैं, लेकिन धीरे-धीरे उनसे खुलते जाने के साथ किन्जान को उन पर कुछ सन्देह-सा होने लगा था। उसे उनकी बातों में दम्भ की बू भी आती थी। कुछ ईर्ष्या भी होती थी, तथा शक भी होता था। किन्जान को लगता था कि वे लोग उसको नुकसान पहुँचाएँगे। वे धीरे-धीरे किन्जान को अपनी बातों से छोटा और उपेक्षित करते जाते थे। सबसे ज्यादा असहनीय तो ये था कि खुद किन्जान की बेटी उन लोगों का साथ देती थी।

डेला को उनसे आत्मीयता से जुड़ा देखना किन्जान को सुकून नहीं देता था। वुडन एक तटस्थ तबियत का आत्मकेन्द्रित इन्सान था, जिसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि डेला उत्साह के साथ चीनी मित्रों की योजनाओं में शामिल थी, और बातचीत में उनका पक्ष लेती थी।

आरम्भ में युवान में सना या सिल्वा में से एक का जीवन-साथी देखने की बात भी किन्जान के मन से दरकने लगी थी। यद्यपि भविष्य के गर्भ में क्या लिखा था, यह कोई नहीं जानता था। फिर किन्जान को यह भी पता था कि युवान को डेला भी पसन्द करती थी।

उधर पेरिना अपनी अलग ही उधेड़-बुन में थी। उसे यह सालता था कि आत्माएँ हमेशा स्त्रियों की ही क्यों भटकती हैं? उसने कभी नहीं सुना था कि कोई लड़का या आदमी मरकर भटक रहा हो, ज्यादातर लड़कियों की आत्माएँ ही अतृप्त देखी जाती थीं। तृप्ति कौन बाँटता है, उसके क्या मानदण्ड हैं, वह किसे पूरा जीवन देता है, किसे अधूरा, यह अगर किसी किताब में लिखा होता तो पेरिना सारी रात जागकर उसे पढ़ती। लेकिन फिलहाल ऐसी कोई किताब नहीं थी, और इसलिए पेरिना का ध्यान इस बात पर चला गया कि वह सुबह नाश्ते में मेहमानों को क्या परोसेगी? उसने किन्जान को यह भी बताया कि डेला ही नहीं, बल्कि मेहमानों को भी उनके नए कमरे काफी आकर्षक और आरामदेह लगते हैं, जिनके लिए वे किन्जान की तारीफ करते नहीं थकते। सना और सिल्वा भी मेहमानों से बहुत प्रभावित हैं, और उनके देश में घूमने जाने के लिए लालायित हैं। और तब किन्जान को लगता कि कहीं उसने अतिथियों के बारे में अपनी धारणा जल्दबाजी में तो नहीं बना डाली है।

अगली सुबह बगीचे में चाय पीते हुए जब मिस्टर हो ने किन्जान को अपने साथ चाइना चलने का निमन्त्रण दिया तो किन्जान अभिभूत हो गया।

यह औपचारिकता समय से काफी पहले अभिव्यक्त हो गई है, यह किन्जान को भी पता था, और हो को भी।

किन्जान ने जब सुना कि मिस्टर हो और चुम कुछ समय के लिए ग्रोव सिटी के पास उस आश्रम के अवशेष देखने के लिए भी जा रहे हैं, जो कुछ साल पहले तहस-नहस हो गया था, तो उसे अचम्भा हुआ। इससे भी बड़ी बात तो ये थी कि वे दोनों चीनी मेहमान उस आश्रम के बारे में कुछ दस्तावेजी जानकारी भी रखते थे।

युवान को तो सना और सिल्वा की कम्पनी में दीन-दुनिया की खबर ही न रही। सैर का असली मजा तो वे लोग ले रहे थे।

कुछ दिन मेहमान लोग बाहर रहे।

लेकिन जब लौटे तो सरगर्मियाँ बढ़ गई थीं। पेरिना और डेला ने भी शायद भाँप लिया था कि किन्जान को मेहमानों का साथ ज्यादा नहीं भा रहा है, और वे लोग आपस में बात करने से बचते हैं। वे भी इस तरह कार्यक्रम बनातीं, कि किन्जान को अपनी सुविधानुसार उनसे अलग रह पाने का अवसर मिले। कई बार मिस्टर हो और किन्जान के बीच आपसी बातचीत में तनाव बढ़ता घर में सभी लोगों ने महसूस किया था।

और तभी एक दिन डेला ने धमाका किया।

उसने बताया कि मिस्टर हो के देश से एक दल वहाँ आ चुका है, जो जल्दी ही विशेष नाव से अमेरिका के विश्व-प्रसिद्ध जल-प्रपात नायग्रा फाल्स को पार करेगा।

इस खबर ने जहाँ घर में सभी को एक उत्साह से भर दिया, वहीं किन्जान पर मानो एकाएक कोई गाज गिरी। किन्जान न केवल अनमना-सा हो गया, बल्कि उसके भीतर कहीं कोई भूचाल-सा आ गया।

इस खबर को सुनने के बाद से ही वह पागलों जैसा अजीबो-गरीब व्यवहार करने लगा।

घर में केवल एक पेरिना ही थी, जो किन्जान की मनोदशा का थोड़ा-बहुत अन्दाज लगा पा रही थी। लेकिन उसे भी यह आभास नहीं था कि किन्जान के मन में अपने असफल अभियान की इतनी बड़ी हताशा पल रही है। वह वर्षां गुजर जाने के बाद भी अपने सपने को बिसरा नहीं पाया है।

उधर डेला तो किन्जान की मानसिक स्थिति से बिलकुल अनजान थी। उसे ये सपने में भी गुमान नहीं था, कि उसके पिता इस हद तक अपनी अभिलाषा पर अपना एकाधिकार समझ बैठे हैं, कि दो पीढ़ियाँ गुजर जाने के बाद भी उन्हें अपने सपने का किसी और के द्वारा पूरा किया जाना बुरा लग रहा है।

डेला इस विचित्र स्थिति को बिलकुल नहीं समझ पा रही थी। वह तरह-तरह से अपने पिता किन्जान को अपने मेहमानों की मुहिम के बारे में बताकर उनके चित्त को स्थिर करने की कोशिश कर रही थी। उसे लगता था, कि उसके पिता अपनी युवावस्था में खिलाड़ी और सैनिक रहे हैं, अतः वे इस साहस-भरे कारनामे को सही परिप्रेक्ष्य में लेकर खुश होंगे, और उन्हें उत्साहित करके उनकी मदद ही करेंगे। लेकिन उसके लिए यह समझना कठिन था कि उसके पिता को उनका अभियान रुच क्यों नहीं रहा।

डेला सोच में पड़ जाती, और मन-ही-मन अपने पिता को किसी तरह खुश रखने का जतन करती।

”डैडी, ये क्या बचपना है?“ अपने पिता किन्जान को बच्चों की तरह डाँटते हुए डेला ने उस कमरे में कदम रखा, जहाँ हाथ में पट्टी बाँधे बच्चों की-सी निरीहता से किन्जान एक नर्सिंगहोम के बिस्तर पर बैठा था। नजदीक ही पेरिना खड़ी थी, जिससे डेला को यह खबर मिली थी, कि सुबह बहस करते हुए किन्जान ने किसी बात पर नाराज होकर अपनी कलाई ब्लेड से काट डाली। बहुत खून बह गया, सभी लोग कहीं बाहर गए हुए थे, इसलिए झटपट पेरिना ही किन्जान को यहाँ लाई।

थोड़ी देर में खबर मिलते ही सना, सिल्वा और युवान भी वहाँ दौड़े चले आए। सबको हैरानी हो रही थी कि यह सब क्या किसी दुर्घटनावश हुआ या फिर...आखिर ऐसी क्या बात हुई कि किन्जान और पेरिना के बीच ऐसा झगड़ा हो गया? क्या ऐसा पहले भी कभी हुआ है, डेला ने बेटियों से जानना चाहा, जो खुद भी इस अप्रत्याशित घटनाक्रम से अचम्भित थीं।

थोड़ी देर में तीनों बच्चे चले गए, तब पेरिना ने डेला को बताया, कि किन्जान नायग्रा फाल्स को पार करने के उन लोगों के अभियान से बिलकुल भी खुश नहीं हैं। खुश होना तो दूर, वे इसे बर्दाश्त तक नहीं कर पा रहे हैं। वे दबी जुबान से यहाँ तक कह चुके हैं, कि यदि इन लोगों ने यह खयाल नहीं छोड़ा तो वे घर छोड़कर चले जाएँगे। वे चीनी मेहमानों को भी तुरन्त उनके देश वापस भेज देना चाहते हैं।

डेला के लिए यह बात अचानक किसी बम के फटने जैसी थी। वह अवाक् रह गई। उसने क्या सोचा था, और क्या हो गया। वह फूट-फूटकर रो पड़ी। उसकी हिचकियाँ बँध गईं।

किन्जान दीवार की ओर मुँह छिपाकर चुपचाप बिस्तर पर लेट गया। डेला पेरिना को इंगित करके कहती चली गई कि उसने जब से होश सम्भाला है, डैडी को अपना सपना पूरा न कर पाने के लिए हताश और मायूस ही देखा है। वह चाहे जहाँ रही, उसके मन से यह बात कभी नहीं निकली कि डैडी अपनी असफलता के कारण अपने जीवन को कभी सुख से नहीं जी सके। वह भी अकेले में रातों को जगी है, और यह सोचती रही है कि किस तरह अपने पिता की मदद करे, और उनके अधूरे ख्वाब को पूरा करे। लोग तो कहते हैं कि यदि औलाद अपने माता-पिता के अधूरे काम पूरे करे तो लोग गर्व से फूले नहीं समाते। लेकिन यहाँ तो सारी बात ही उलट गई...डेला का दर्दनाक क्रन्दन फिर शुरू हो गया।

आवाज सुनकर एक नर्स भीतर चली आई, और उसने डेला को सम्भाला।

पेरिना भी सुबकने लगी थी। लेकिन नर्स के बाहर निकलते ही डेला फिर से फट पड़ी, ”मुझे जब यह पता चला था कि ये लोग, जिनके साथ मैं अब काम कर रही हूँ, डैडी के अभियान को पूरा करने में मेरे लिए मददगार हो सकते हैं, तो मैंने वुडन को इनकी कम्पनी में काम करने के लिए मुश्किल से मनाया था, और वे बेमन से हमारा साथ देने के लिए तैयार हुए थे। मैंने खुद सारी तैयारी चुपचाप की थी, कि मैं सही समय पर डैडी को यह खुशखबरी देकर खुश कर दूँगी...लेकिन मुझे यह नहीं पता था कि बेटी को इतना भी हक नहीं है...“ डेला के न आँसू थमते थे, और न आवाज, मानो कोई जल-प्रपात नैनों की राह पा गया था।

घर का वातावरण जैसे बुझ-सा गया। डेला समझ नहीं पा रही थी, कि मेहमानों को क्या कहकर, और कैसे रोके? जिस बात के लिए वह खुद इतने समय से सबके पीछे पड़ी थी, और जिसे अपनी जिन्दगी का मिशन बताती थी, अब भला कैसे उससे अपने कदम पीछे खींचे? उसके मेहमान क्या सोचेंगे। क्या अमेरिकी जुनून और आयोजना यही है! किन्जान ने अपने मन की बात चाहे जिस तरह कही हो, लेकिन वह भी आखिर अनुभवी बुजुर्ग हो चला था। उसे यह लगातार चिन्ता थी कि उसके कारण डेला अपनी मित्र-मण्डली में किसी भी तरह नीचा न देखे। यह जरूरी था कि उसे समझदारी से इस दुविधा से निकालना था।

एक रात सबके सो जाने के बाद किन्जान ने बेहद आत्मीयता से डेला को अपने पास बुलाकर समझाया कि वह इस मिशन को किसी जलन या ईर्ष्या की भावना से रद्द नहीं करवाना चाहता, बल्कि उसने तो बहुत व्यापक स्तर पर इस बारे में सोचा है, कि यह मिशन उनके देश के लिए भी गौरवपूर्ण नहीं है। किसी और देश के लोग हमारी मदद से यहाँ आकर, हमारे मेहमान बनकर उस कारनामे को अन्जाम दें, जो बरसों से हमारे देश के भी कई लोगों का सपना रहा है, तो यह ठीक नहीं है।

”लेकिन डैडी, यह किसी देश की सफलता का सवाल नहीं है, यह तो प्रकृति पर इन्सान की जीत दर्ज करने का प्रयास है, और इन्सान कहाँ पैदा हुआ, और उसकी परवरिश कहाँ हुई, यह कहाँ महत्त्वपूर्ण है?“ डेला ने बहुत बुनियादी सवाल उठाया। वह बोली, ”आप ही तो कहते थे कि मेरी दादी भारत में पैदा होकर अरब में आई, फिर सोमालिया में शादी करके अमेरिका में रही। ऐसे में उसकी किसी भी उपलब्धि से कौन-सा देश गौरवान्वित होगा? फिर सब देशों के सब लोग एक-सी मानसिकतावाले भी कहाँ हैं? एक ही देश के एक आदमी के काम से उसी देश के दूसरे आदमी का सिर झुक भी जाता है, और गर्व से उठ भी जाता है। राष्ट्रीयता अल्टीमेट नहीं है। अन्तिम केवल इन्सानियत है।“ बच्चे कितने जल्दी बड़े हो जाते हैं, ज्यादा समझदार भी, किन्जान सोच रहा था। लेकिन उसका मन अब भी इस बात के लिए तैयार नहीं था, कि चीन से आया दल इस महामुहिम को पूरा करे। उसे लगता था कि डेला के उन लोगों के साथ होने पर भी सफलता का सारा श्रेय चीनी सदस्यों को ही मिलेगा, क्योंकि डेला वैसे भी वहाँ नौकरी कर रही है, और वहाँ से इन लोगों के साथ, इसी अभियान के लिए आई है।

रात को काफी देर तक किन्जान और डेला के बीच विवाद-विमर्श चलता रहा। डेला भी कमोबेश अपनी बात पर कायम थी, और किन्जान भी अपने अड़ियल रुख से डिगा नहीं था।

लेकिन जैसे कभी-कभी हम किसी पंछी को पुचकारने के लिए उसके बदन पर प्यार से हाथ फेरते हैं, और वह बदले में पलटकर हमें चोंच मार देता है, ठीक वैसे ही अगली सुबह ने किन्जान को जैसे काट लिया।

अगली सुबह पेरिना ने भी सार्वजनिक घोषणा कर डाली कि वह भी उन लोगों के साथ इस साहसिक अभियान पर जाएगी।

घर में इतनी वैचारिक उथल-पुथल होती, और इसका अहसास तक मेहमानों को न होता, ऐसा कैसे हो सकता था। विद्रोह और असहमति की हवा वैसे भी नुकीली तासीरवाली होती है, मिस्टर हो, चुम और युवान को भी अपने मेजबानखाने में दाल में काला नजर आने लगा।

उनकी खुसर-पुसर भाँपकर जब डेला और पेरिना उनके कमरे में पहुँचीं, तो वे गम्भीर होकर वहाँ से किसी होटल में शिफ्ट करने की बात कर रहे थे। पेरिना ने माहौल को हल्का और विश्वसनीय बनाने के लिए उन लोगों को आत्मीयता से निश्चिन्त रहने के लिए कहा, और साथ ही सबका मूड बदलने के लिए अगले दिन पिकनिक का कार्यक्रम भी बना लिया। मेहमानों के माथे से सन्देह की लकीरें वापस धुँधला गईं।

तय किया गया कि वे लोग अगली सुबह हडसन नदी में सैर के लिए जाएँगे।

एक शिप द्वारा नदी में लम्बी यात्रा के काल्पनिक आनन्द ने सबका जी हल्का कर दिया। किसी वेगवती नदी के उल्टे बहाव में लम्बी दूरी तय करने का अनुभव भी चुनौतीपूर्ण होता है, उसी की तैयारियाँ शुरू हो गईं।

सुबह सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह हुई कि किन्जान ने सना और सिल्वा को उन लोगों के साथ जाने की अनुमति नहीं दी। वे दोनों एकाएक समझ नहीं सकीं कि इस पाबन्दी का क्या अर्थ है। किन्जान से तो साथ चलने के लिए वैसे भी कहा ही नहीं गया था, क्योंकि पेरिना और डेला, दोनों ही भली-भाँति समझ चुकी थीं, कि किन्जान को मेहमानों का साथ रास नहीं आनेवाला, और मेहमान भी उसकी उपस्थिति में सहज नहीं रहनेवाले।

डेला ने उनके मिशन के अवश्य जारी रहने का ऐलान करके जो आग लगाई थी, पेरिना ने साथ चलने की दृढ़ घोषणा करके उस आग में घी डालने का काम ही किया था। इससे किन्जान अलग-थलग और उपेक्षित महसूस कर रहा था।

लेकिन यह किसी ने नहीं सोचा था, कि इसका बदला वह सना और सिल्वा को रोककर बचकाने तरीके से लेगा। उसके इस निर्णय से युवान का चेहरा भी उतर गया था, लेकिन वह माहौल की गम्भीरता को देखकर यह भी नहीं कह पा रहा था, कि सना और सिल्वा के न जाने की स्थिति में वह भी उन लोगों के साथ नहीं जाना चाहेगा। ‘युवावस्था’ भी एक जाति होती है, और इस बिना पर युवान सना और सिल्वा को करीबी पाता था।

डेला ने एक बार किन्जान की उपेक्षा करते हुए सना और सिल्वा को चलने का आदेश दे डाला। उसे यकीन था कि इससे किन्जान अपना क्रोध भूलकर डेला का दिल रखते हुए अपनी बचकानी जिद छोड़ देगा, और बच्चियों को जाने की अनुमति दे देगा। बच्चियाँ खुद भी अपने सम्बन्ध में निर्णय औरों द्वारा लिए जाने पर अपमानित महसूस तो कर ही रही थीं, मगर किन्जान के गम्भीर क्रोध को भाँपकर कुछ तय नहीं कर पा रही थीं। उन्हें मेहमानों के सामने कोई कटु प्रदर्शन न हो जाने की चिन्ता भी थी। लेकिन शायद यह चिन्ता उनकी माँ डेला को नहीं थी।

नदी के किनारे बहुत सारे लोग जमा थे, जिससे नगर से काफी दूर का यह इलाका भी लोगों के पैदा किए गए कोलाहल से किसी घनी बस्ती-सा लग रहा था। किनारे को पुलिस की गाड़ियों ने पूरी तरह से घेर लिया था। किसी को नजदीक नहीं जाने दिया जा रहा था। अब तक कोई शव नहीं मिला था, लेकिन गोताखोरों की पूरी टीम जी-जान से इसमें लगी हुई थी।

पानी के बहाव के विपरीत जाते हुए उस छोटे जहाज का कोई चिह्न पानी की सतह के ऊपर दिखाई नहीं दे रहा था। पुलिस अधिकारियों के लिए भी यह मामला पेचीदा बन गया था, क्योंकि बिना किसी मानवीय भूल के ऐसा हादसा होना कतई सम्भव नहीं था। कुछ एक प्रत्यक्षदर्शियों का कहना था, कि शायद शिप में किसी नौका अभियान दल के सदस्य थे, क्योंकि शिप की रफ्तार और इसमें बैठे लोगों के अन्य साहसिक कारनामों के चलते इस जल-यान ने सभी का ध्यान आकर्षित किया था। शिप में लगभग आधा दर्जन लोगों के होने का अनुमान लगाया जा रहा था, जिनमें कुछ महिलाएँ भी थीं।

लगभग ढाई घण्टे की मशक्कत के बाद गोताखोरों ने तेज धार से जो पहला शव खोज निकाला, वह किसी चीनी प्रौढ़ व्यक्ति का दिखाई देता था। इससे बाकी के शव भी जल्दी ही मिल जाने की सम्भावना बलवती हो गई थी। एक शव के सहारे दल के लोगों की पहचान होना भी सुगम हो गया था।

बफलो में जिस जगह से वह शिप लिया गया था, वहाँ से यह आसानी से पता चल गया कि यह वही बदनसीब लोग थे, जो किन्जान के घर उसके मेहमान बनकर ठहरे हुए थे। और उन्हीं तीनों चाइनीज मेहमानों के साथ-साथ दुस्साहसी पेरिना और डेला की जिन्दगी भी स्वाहा हो गई।

इस खबर के घर पहुँचते ही कोहराम मच गया। सना और सिल्वा रोते-बिलखते हुए भी यह नहीं भूल सकीं, कि उनके जिद करने के बावजूद भी किन्जान ने उन्हें जाने की अनुमति नहीं दी थी। वही भेंट में मिली जिन्दगी पूरी ताकत से लेकर वे दोनों किन्जान के साथ बदहवास-सी दुर्घटनास्थल की ओर दौड़ीं।

अगली सुबह सफेद वस्त्रों में शान्ति से एक चर्च में खड़ी सना और सिल्वा एक साथ बार-बार मन-ही-मन उस दृश्य को याद कर रही थीं, जब वे नदी किनारे दुर्घटनास्थल पर पहुँची थीं। उनके जेहन में यह खयाल भी एक साथ, मगर बार-बार आ रहा था, कि सारे माहौल में किन्जान क्यों बार-बार पुलिस से बचने की कोशिश करता रहा। इतना ही नहीं, शिप जहाँ से लिया गया था, वहाँ के कर्मचारियों ने भी बार-बार ऐसा सन्देह जताया था कि यह एक स्वाभाविक दुर्घटना नहीं है। लेकिन कोई नहीं था जो स्याह को सफेद और सफेद को स्याह होने से रोके। एक मशीन विफल करार देकर जल-समाधि में छोड़ दी गई थी, कुछ इन्सान अपने-अपने भाग्य का नाम देकर बहते पानी में मिला दिए गए थे। तेजी से बहता पानी ‘बीती ताहि बिसार दे’ गुनगुनाता न जाने कहाँ तक चला गया था! जो कुछ बच गया, वही संसार था। फिर चल निकला...।

(क्रमशः अगले अंकों में जारी...)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: जल तू जलाल तू - 7 // प्रकृति और जीव के अन्तःसम्बन्धों का सशक्त उपन्यास // प्रबोधकुमार गोविल
जल तू जलाल तू - 7 // प्रकृति और जीव के अन्तःसम्बन्धों का सशक्त उपन्यास // प्रबोधकुमार गोविल
https://lh3.googleusercontent.com/-vZ17Xe_9--g/WvqhDgg6H1I/AAAAAAABBSc/YzE1iHlDu_4uufM9l6XCh1rnGPxuCbu3ACHMYCw/image_thumb%255B1%255D?imgmax=800
https://lh3.googleusercontent.com/-vZ17Xe_9--g/WvqhDgg6H1I/AAAAAAABBSc/YzE1iHlDu_4uufM9l6XCh1rnGPxuCbu3ACHMYCw/s72-c/image_thumb%255B1%255D?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2018/05/7.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2018/05/7.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content