लोक कथा - किस्सए चार दरवेश - सुषमा गुप्ता - खंड दस

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भूली बिसरी लोक कथाएँ सीरीज़–24


किस्सये चार दरवेश

अमीर खुसरो – 1300–1325


अंग्रेजी अनुवाद -

डन्कन फोर्ब्ज़ – 1857


हिन्दी अनुवाद -

सुषमा गुप्ता

अक्टूबर 2019

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खंड 10


5 आजाद बख्त की कहानी–पहला भाग[1]

जब दूसरे दरवेश ने अपनी कहानी कह ली तो रात खत्म हो गयी। सुबह होने ही वाली थी। राजा आजाद बख्त चुपचाप अपने शाही महल की तरफ बढ़ गया। महल पहुँच कर उसने अपनी पार्थना की। फिर वह नहाने के लिये हमाम गया। लौट कर बढ़िया कपड़े पहने और दीवाने आम की तरफ चला।

वहाँ जा कर वह अपने सिंहासन पर बैठ और एक नौकर से बोला — “तुम जाओ और बड़ी इज़्ज़त के साथ उन चारों दरवेशों को हमारे पास ले आओ जो फलाँ फलाँ जगह ठहरे हुए हैं। ”

हुकुम के अनुसार नौकर जब राजा की बतायी जगह पहुँचा तो उसने देखा कि चारों दरवेश अपना रोज का काम निपटा कर हाथ मुँह धो कर कहीं और जाने की तैयारी कर रहे हैं।

नौकर ने उनसे जा कर कहा — “जनाब। राजा साहब ने आप चारों को बुलवाया है। मेहरबानी करके मेरे साथ चलिये। ”

यह सुन कर चारों दरवेश एक दूसरे की तरफ देखने लगे फिर नौकर से कहा — “बेटा। हम अपने दिल के बादशाह खुद हैं। हमें इस दुनिया के राजा से क्या लेना देना। ”

नौकर बोला — “ओ पवित्र लोगों। इसमें कोई नुकसान नहीं है पर अच्छा हो अगर आप चलें। ”

तब चारों दरवेशों को याद आया कि मौला मुरतज़ा[2] ने उनसे क्या कहा था। लगता है अब वही उनके साथ होने जा रहा है। यह याद करके वे बहुत खुश हुए और उस नौकर के साथ चल दिये।

जब वे किले पहुँचे तो राजा के सामने गये। वहाँ पहुँच कर उन्होंने राजा को आशीर्वाद दिया — “बेटा। अल्लाह करे तुम्हारे साथ सब कुछ अच्छा रहे। ”

उसके बाद राजा दीवाने खास चले गये। वहाँ उन्होंने अपने दो तीन कुलीन लोगों को बुलाया फिर चारों दरवेशों को वहाँ लाने का हुकुम दिया। जब वे राजा के पास पहुँचे तो उसने उनको बिठाया और उनसे उनकी यात्रा का हाल पूछा।

उसने पूछा — “आप लोग कहाँ से आ रहे हैं और कहाँ जाने का इरादा है। आप लोग कहाँ के रहने वाले हैं। ”

वे बोले — “अल्लाह करे आपकी उम्र और दौलत हमेशा बढ़ती रहे। हम लोग दरवेश हैं। हम अपना घर अपने कन्धों पर लिये घूमते हैं। एक कहावत है कि किसी यात्री का घर वहीं होता है जहाँ वह रात को रुकता है। और जो कुछ हम लोगों ने इस दुनिया में देखा है वह यहाँ बताने के लिये बहुत ज्यादा है।

आजाद बख्त ने उन्हें पूरा भरोसा दिलाया और उनको प्रोत्साहन दिया। उसने उनके लिये नाश्ता मँगवाया और अपने सामने ही खिलवाया।

जब उनका खाना खत्म हो गया तो राजा ने उनसे कहा — “मेहरबानी करके आप मुझे अपनी यात्रा का पूरा हाल सुनाइये। कुछ भी छिपाइये नहीं। जो भी सेवा मैं आपकी कर सकूँगा जरूर करूँगा कोई कसर नहीं छोड़ूँगा। ”

दरवेश बोले — “जो कुछ हमारे साथ हुआ है हम वह आपको बताने के काबिल नहीं हैं। और न उनको सुनने से राजा को कोई आनन्द आयेगा इसलिये आप हमें माफ करें तो अच्छा है। ”

तब राजा मुस्कुराया — “जब आप लोग कल अपने अपने गद्दों पर बैठ कर एक दूसरे को अपना हाल सुना रहे थे तब मैं वहीं मौजूद था। मैंने आपमें से दो दरवेशों की यात्राओं के हाल तो सुन लिये हैं। अब मेरी इच्छा यह है कि दूसरे दो दरवेश भी अपनी अपनी यात्रा का हाल बतायें।

आप मेरे ऊपर पूरा भरोसा करके कुछ दिन मेरे साथ रुकें क्योंकि दरवेशों के पैरों की आवाज सुन कर ही बुराई भाग जाती है। ”

राजा के मुँह से यह सुन कर दरवेश लोग तो डर के मारे काँप गये। अपना सिर लटका कर वे चुप रहे। वे कुछ बोल ही नहीं पा रहे थे।

जब आजाद बख्त ने देखा कि डर के मारे उनकी इन्द्रियाँ ही काम नहीं कर रहीं तो उनकी इन्द्रियों में जान डालने के लिये उसने उनसे कहा — “इस दुनिया में कोई आदमी ऐसा नहीं है जिसके साथ कोई अजीब घटना न घटी हो।

हालाँकि मैं राजा हूँ तो भी मैंने ऐसी कुछ अजीब चीजें देखी हैं जो मैं सबसे पहले आप लोगों को आपका डर दूर करने लिये और भरोसे को बढा,ने के लिये बताऊँगा। मेहरबानी करके आप अपने दिमाग में शान्ति रख कर उसे सुनिये।

दरवेश बोले — “अल्लाह करे आपको शान्ति मिले। यह तो हम दरवेशों के लिये आपकी बड़ी मेहरबानी है। आप बतायें। ”

आजाद बख्त ने अपनी कहानी शुरू की —

सुनो ओ यात्रियों एक राजा की कहानी

जो भी मैंने देखा या सुना वह आप सुनें

मैं आपको सब बताऊँगा शुरू से ले कर आखीर तक

आप मेरी कहानी ध्यान लगा कर सुनें

जब मेरे पिता चल बसे तो उनकी जगह मैं राजा बन गया। वो मेरी नौजवानी के दिन थे और रम का यह पूरा राज्य मेरे अधिकार में था।

एक साल ऐसा हुआ कि बदाख्शन देश[3] से एक सौदागर बहुत सारा सामान ले कर मेरे राज्य में आया। मेरे खबरियों ने मुझे खबर दी कि यहाँ कोई सौदागर आया हुआ है और वैसा सौदागर वहाँ पहले कभी नहीं आया था। तो मैंने उसे बुला भेजा।

वह आया तो वह बहुत सारे देशों से वहाँ की बहुत सारी कीमती और मुश्किल से मिलने वाली चीजें ले कर आया था। वे सब सचमुच में मुझे भेंट में देने के लायक थीं। जो भी चीज़ खोल कर वह मुझे दिखाता उसकी कीमत मुझे आँकनी मुश्किल होती।

clip_image002उसकी दिखाने वाली सब चीज़ों में सबसे अच्छा एक लाल था जे उसने मुझे एक डिब्बा खोल कर दिखाया। उस लाल का रंग बहुत अच्छा था बहुत चमकदार था और शक्ल सूरत और साइज़ में बिल्कुल ठीक था। तौल में वह पाँच मिस्कल[4] था।

हाालाँकि मैं राजा था पर मैंने ऐसा लाल कभी नहीं देखा था और न कभी किसी और आदमी से ऐसे लाल के बारे में सुना ही था। मैंने उस लाल को स्वीकार कर लिया और सौदागर को बहुत सारी भेंटें और इज़्ज़त दीं सड़कों पर घूमने की इजाज़त दी कि कोई भी उससे सड़क पर पर टैक्स न माँगे।

सब उसके साथ प्रेम से बरताव करें और जहाँ भी वह जाये वहीं उसको सहायता दी जाये। उसकी सुरक्षा के लिये कुछ पहरेदार रहें। उसका अगर कुछ नुकसान हो तो वे उसको अपना नुकसान ही समझें कह कर विदा किया।

उसने आम सभा में भी हिस्सा लिया तो उससे लगता था कि वह शाही सभाओं में बैठने लायक सब तौर तरीके जानता है। उसके बात करने का ढंग भी सुनने लायक था। मैं अपने जवाहरातों के घर से वह लाल रोज मँगवाया करता था और जब मैं आम जनता के सामने बैठता था तो उसके सामने उसको देखता था।

एक दिन मैं दीवाने आम में बैठा हुआ था। कुलीन और औफीसर लोग सब अपनी अपनी जगह बैठे हुए थे। दूसरे राज्यों के ऐम्बैसैडर जो मुझे मेरे राजा बनने पर बधाई देने के लिये आये हुए थे वे भी सब अपनी अपनी जगह बैठे हुए थे।

मैंने उस समय अपने लाल को बुलवा भेजा। रिवाज के अनुसार मेरा जवाहरातों की देखभाल करने वाला उसे ले कर मेरे पास आ पहुँचा। मैंने उसको हाथ में लिया और उसकी बड़ाई करने लगा। फिर मैंने उसको फ्रैंक्स के ऐम्बैसैडर को देखने के लिये दे दिया।

उसको देख कर वह मुस्कुराया और कुछ मजाक सा उड़ाते हुए उसकी बड़ाई की और उसे दूसरे को दे दिया। इसी तरह से मजाक बनते बनते वह एक के बाद एक के हाथ में जाता रहा और हर आदमी उसको देख कर यही कहता रहा कि “योर मैजेस्टी की खुशनसीबी से ही यह उनको मिला है नहीं तो आज तक किसी राजा के पास भी ऐसा रत्न नहीं था। ”

उसी समय मेरे पिता के समय का वजीर जो बहुत अक्लमन्द था और मेरे नीचे था और उस समय मेरे पास ही खड़ा हुआ था उसने सिर झुका कर मुझसे कुछ कहने की इजाज़त माँगी अगर उसकी जान बख्शी जाये तो। मैंने उसको बोलने की इजाज़त दे दी।

वह बोला — “ओ ताकतवर राजा। आप राजा हैं और आपको इन राजाओं के सामने एक पत्थर की इतनी ज़्यादा तारीफ करना कुछ अच्छा नहीं लग रहा है। हालाँकि इसका अपना एक अलग रंग है अपनी एक अलग क्वालिटी और वजन है फिर भी है तो यह एक पत्थर ही न।

इस समय यहाँ बहुत सारे देशों के ऐम्बैसैडर और लोग बैठे हुए हैं। जब ये लोग अपने अपने घर चले जायेंगे तब ये लोग वहाँ जा कर इस घटना को जरूर बतायेंगे।

वे कहेंगे — “यह किस तरह का राजा है जिसने कहीं से एक लाल पा लिया है और उसको इतनी शान से दिखा रहा है। वह उसको रोज मँगवाता है। फिर पहले खुद उसकी तारीफ करता है और फिर जो यहाँ मौजूद होता है उन सबको दिखाता है। ” इसके बाद जो भी राजा यह घटना सुनेगा वह भी अपने दरबार में हँसेगा।

जनाब। नायशापुर[5] में एक बहुत ही मामूली सा जौहरी रहता है उसके पास 12 लाल हैं। उसका हर लाल सात मिस्कल[6] भारी है। जिनको उसने एक कौलर पर सिल रखे हैं और उस कौलर को अपने कुत्ते की गरदन में बाँध रखा है। ”

यह सुन कर मैं बहुत गुस्सा हो गया। गुस्से में भर कर मैंने कहा इस वजीर को मार दो।

फाँसी लगाने वालों ने तुरन्त ही वजीर को उसके हाथों से पकड़ा और उसको फाँसी लगाने के लिये ले कर जा ही रहे थे कि फ्रैंक्स के राजा के ऐम्बैसैडर बड़ी नम्रता से दोनों हाथ जोड़ते हुए मेरे सामने खड़ा हो गया।

मैंने उससे पूछा — “तुम्हें क्या चाहिये। ”

तो वह बोला — “मुझे ऐसा लगता है कि मुझे पता होना चाहिये कि वजीर का अपराध क्या है। ”

मैंने जवाब दिया — किसी वजीर का इससे बड़ा अपराध और क्या हो सकता है कि वह झूठ बोले, खास करके राजाओं के सामने। ”

वह बोला — “पर जनाब उसका झूठ अभी तक साबित नहीं हुआ है। यह भी हो सकता है कि जो वह कह रहा हो वह सच ही हो। किसी भी आदमी को जो अपराधी न हो उसको सजा देना ठीक नहीं है। ”

मैंने इसके जवाब में उससे कहा — “इस बात में कोई तर्क ही नहीं है कि एक सौदागर जो केवल अपने फायदे के लिये शहरों शहरों देशों देशों घूमता है और जो बचता है उसे इकठ्ठा कर लेता है 12 लाल जिनका हर एक का वजन एक औंस से भी ज़्यादा हो अपने कुत्ते के गले में लटका ले। ”

ऐम्बैसैडर ने इस बात का जवाब दिया — “अल्लाह की ताकत के आगे सब कुछ मुमकिन है। उसके साथ शायद कुछ ऐसा ही मामला हो। ऐसी मुश्किल से मिलने वाली चीज़ें अक्सर यात्रियों और सौदागरों के हाथों पड़ जाती हों क्योंकि ये दो तरह के लोग अक्सर जगह जगह जाते रहते हैं।

योर मैजैस्टी से यह प्रार्थना है कि इस समय वजीर को जेल में बन्द करवा दिया जाये। और जैसा कि आप समझते हैं अगर वह अपराधी है तो वजीर तो राजा लोगों के खबरी होते हैं इसलिये इस मामले में राजा का इस तरह से व्यवहार करना ठीक नहीं है।

जब यह साबित हो जाये कि वह ठीक बोल रहा है या झूठ तब उसको कोई भी सजा दी जा सकती है। अगर वह झूठ बोल रहा हो तो उस समय ज़िन्दगी भर की वफादारी भूली जा सकती है।

ओ ताकतवर राजा। पुराने लोगों ने जेल इसी लिये बनवा रखे थे कि जब कभी राजा या सरदार लोग बहुत गुस्से में हों तो उनका गुस्सा ठंडा हो जाने तक अपराधी को जेल में बन्द रखा जा सके। और जब उनका गुस्सा ठंडा हो जाये और अपराधी का अपराध साबित हो जाये तभी उसको सजा मिले।

इस तरह से जजमैन्ट के दिन राजा अल्लाह को किसी भले आदमी का खून बहाने का जवाब देने से बच जायेगा। ”

हालाँकि मैं वजीर को सजा देना चाहता था पर फ्रैंक्स[7] के ऐमबैसैडर ने मुझे ऐसे ऐसे तर्क पेश किये कि फिर मैं चुप हो गया।

मैं बोला — “ठीक है जो कुछ तुम कह रहे हो मैं उन्हें मानता हूँ और उसकी ज़िन्दगी बख्शता हूँ। पर वह जेल में बन्द रहेगा। अगर एक साल के अन्दर अन्दर उसके कहे गये शब्द सच निकले यानी कि वे लाल उसके कुत्ते के गले के कौलर में जड़े लगे निकले तो उसको छोड़ दिया जायेगा नहीं तो उसको बहुत तकलीफ के साथ मार दिया जायेगा। ”

मैंने वजीर को जेल में बन्द करने के हुकुम दे दिया। यह हुकुम सुन कर ऐम्बैसैडर ने मेरी इज़्ज़त में सिर झुकाया अैर वहाँ से जाने के लिये सलाम किया।

जब यह खबर वजीर के परिवार तक पहुँची तो वहाँ तो रोना पीटना मच गया। वह तो एक दुखी का घर बन गया। वजीर के एक बेटी थी जो 14–15 साल की थी। वह बहुत सुन्दर थी और सब कामों में बहुत होशियार थी। लिखने पढ़ने भी वह बहुत तेज़ थी।

वजीर उसे बहुत प्यार करता था। इतना कि उसने अपने दीवानखाने के पीछे उसके लिये एक बहुत ही शानदार महल बनवा रखा था। उसके साथ के लिये कुलीनों की बेटियाँ थीं। उसकी सेवा के लिये सुन्दर सुन्दर दासियाँ रखी हुई थीं। इस तरह से वह अपना समय हँसी खुशी उस महल में गुजारा करती थी।

अब हुआ यह कि जिस दिन वजीर को जेल भेजा गया उस दिन वह लड़की अपनी साथिनों के साथ बैठी हुई थी और बच्चों वाले खेल खेल कर खुश हो रही थी। वह अपनी गुड़िया का ब्याह रचा रही थी।

clip_image004एक छोटे से ढोल और एक तम्बूरीन के सहारे रात के पहरे की तैयारी कर रही थी। एक कढ़ाई आग पर रख कर वह मिठाई बना रही थी। कि उसकी माँ अचानक ही रोती चिल्लाती छाती पीटती घर में घुसी। उसके बाल बिखरे हुए थे वह नंगे पैर थी।

उसने अपनी बेटी के सिर पर एक थप्पड़ मारा और बोली — “काश अल्लाह ने मुझे तुझे देने के बजाय एक अन्धा बेटा दिया होता तब मेरे दिल को तसल्ली मिलती क्योंकि तब वह अपने पिता का दोस्त तो होता। उसके साथ खड़ा होता। ”

वजीर की बेटी ने भोलेपन से पूछा — “तूने यह क्या बात कही माँ। पर अन्धे बेटे का तू क्या करती। वह तेरे किस काम आता। जो वह करता वह मैं भी कर सकती हूँ। ”

तब उसकी माँ ने जवाब दिया — “बेटी तेरे पिता ने कहा था कि नायशापुर शहर में एक जौहरी है जिसने अपने कुत्ते के कौलर में बहुत ही मुश्किल से मिलने वाले बहुत ही कीमती 12 लाल लगा रखे हैं। राजा ने उनका विश्वास ही नहीं किया और उनको जेल में डाल दिया।

अगर आज हमारे एक बेटा होता तो किसी भी तरह से कितनी भी कोशिश करके इस मामले की सच्चाई को साबित कर देता। राजा से माफी का हकदार हो जाता और मेरे पति को जेल से छुड़ा लाता। ”

वजीर की बेटी जवाब में बोली — “माँ हम लोग किस्मत से तो नहीं लड़ सकते। किसी भी आदमी को अगर अचानक किसी मुश्किल का सामना कर पड़ जाये तो उसको धीरज रखना चाहिये और अपनी आशा अल्लाह के ऊपर छोड़ देनी चाहिये।

वह बहुत दयालु है और किसी को बहुत समय तक मुश्किल में नहीं रखता। इसके लिये रोना धोना ठीक नहीं है। अल्लाह न करे कि हमारे दुश्मन हमारे आँसुओं का कोई दूसरा मतलब निकाल कर राजा को बता दें। और ऐसी कहानियाँ बना कर बताने वाला हमको बदनाम करे और फिर कोई और मुसीबत खड़ी कर दे।

सो इस सबके बजाय हमको राजा की कुशलता के लिये प्रार्थना करनी चाहिये। हम लोग उसके पैदायशी गुलाम हैं और वह हमारे मालिक हैं। जैसे वह हम पर गुस्सा हुए हैं वैसे ही वह हमारे ऊपर दया भी जरूर करेंगे। ”

इस तरह उस समझदार लड़की ने अक्लमन्दी से अपनी माँ को समझाया। इससे वह कुछ शान्त सी हो गयी और चुपचाप अपने महल को लौट गयी।

जब रात हो गयी तो वजीर की बेटी[8] अपने माने हुए पिता[9] यानी अपनी आया के पति को बुलवाया और उसके पैरों पर गिर कर उससे प्रार्थना की और रोते हुए बोली — “आज मैंने एक बीड़ा उठाया है कि मेरी माँ ने जो मेरा अपमान किया है उसको मुझे अपने ऊपर से हटाना है ताकि मेरे पिता राजा की जेल से आजाद हो सकें।

अगर आप मेरे साथ चलें तो मैं नायशापुर जाना चाहती हूँ और उस सौदागर से मिल कर यह देखना चाहती हूँ कि उसने क्या सचमुच में 12 लाल अपने कुत्ते के गले के कौलर में सिले हुए हैं। मुझसे जितना होगा मैं अपने पिता को जेल से आजाद करवाने के लिये वह सब करूँगी। ”

पहले तो उस आदमी ने कुछ बहाने बनाये पर आखिरकार काफी कुछ कहने सुनने के बाद वह उसकी बात मान गया।

तब वजीर की बेटी बोली — “आप चुपचाप छिपा कर यात्रा की तैयारी करें। कुछ ऐसी चीज़ें खरीद लें जो राजा को भेंट में देने लायक हों। इसके अलावा जितने दासों या नौकरों की जरूरत हो वे भी इकठ्ठे कर लें। पर किसी भी हालत में इस बात का किसी को पता नहीं चलना चाहिये। ”

माने हुए पिता ने उसकी सब बातें मान लीं और यात्रा की जरूरी तैयारियाँ करने के लिये चला गया। जब सब सामान तैयार हो गया तो उसने उसे ऊँटों और खच्चरों पर लादा और वे दोनों यात्रा के लिये चल दिये। वजीर की बेटी ने एक आदमी की पोशाक पहन रखी थी वह भी उसके साथ चल दी।

घर में यह बात किसी को पता नहीं चली। जब सुबह हुई तब वजीर के परिवार में यह बात फैली कि वजीर की बेटी तो गायब हो गयी है और किसी को यह पता नहीं है कि वह कहाँ गयी है।

इधर तो आखिर माँ ने अफवाहों से बचने के लिये अपनी बच्ची के गायब होने की बात को छिपा लिया उधर वजीर की बेटी ने अपने आपको नौजवान सौदागर घोषित कर दिया।

आगे चलते चलते धीरे धीरे वे नायशापुर आ पहुँचे और खुशी खुशी एक सराय में जा कर ठहर गये। उन्होंने अपना सब सामान ऊँटों और खच्चरों पर से उतारा। वजीर के बेटी रात को वहीं रही। सुबह को वह नहाने गयी और रम में रहने वालों जैसी एक कीमती पोशाक पहनी और शहर घूमने चली गयी।

चलते चलते वह चौक पहुँची और वहाँ जा कर खड़ी हो गयी जहाँ चारों सड़कें आपस में मिलती थीं। उसने एक तरफ देखा तो उसको वहाँ एक जौहरी की दूकान नजर आयी जिसमे बहुत सारे कीमती जवाहरात बेचने के लिये रखे हुए थे। उस दूकान के नौकर बहुत कीमती पोशाकें पहने वहाँ घूम रहे थे।

एक आदमी जो उनका सरदार लग रहा था और करीब करीब 50 साल का रहा होगा। उसने भी अमीर आदमियों जैसे कपड़े पहन रखे थे – जैसे छोटी बाँह वाली जैकेट और वहाँ बैठा हुआ था। उसके पास और बड़े बड़े लोग भी बैठे हुए थे। कुछ लोग स्टूलों पर बैठे थे और आपस में बात कर रहे थे।

वजीर की बेटी जिसने अपने आपको सौदागर का बेटा घोषित किया हुआ था जौहरी को देख कर बहुत आश्चर्यचकित हुआ और यह सोचते हुए बहुत खुश हुआ कि “अल्लाह मेरी बात सच करना हो सकता है कि यही वह जौहरी हो जिसके बारे में मेरे पिता ने राजा से कहा हो। ओ अल्लाह मुझे इस मामले में रोशनी दिखा। ”

ऐसा सोच कर उसने अपने इधर उधर देखा तो उसको एक दूकान दिखायी दी जिसमें दो लोहे के पिंजरे लटक रहे थे और उनमें दो आदमी बन्द थे।

वे देखने में मजनूँ लगते थे। केवल उनकी खाल और हड्डी ही दिखायी देती थी। उनके सिर के बाल और नाखून बहुत बढ़े हुए थे। वे अपनी छाती पर हाथ बाँधे बैठे थे। दो बदसूरत हथियारबन्द नीग्रो दोनों पिंजरों के दोनों तरफ खड़े हुए था।

नौजवान सौदागर उनके इस हालत में देख कर आश्चर्य में पड़ गया। उसके मुँह से निकला — “अल्लाह हम पर दया करो। ”

और जब उसने दूसरी तरफ देखा तो उसे उधर भी एक दूकान दिखायी दी। उस दूकान में कालीन बिछे हुए थे जिस पर एक हाथीदाँत का स्टूल रखा हुआ था जिस पर मखमल की गद्दी लगी हुई थी और उस पर बैठा था एक कुत्ता।

कुत्ते के गले में एक कौलर था जिसमें कीमती पत्थर लगे हुए थे और उसको सोने की जंजीर से बाँधा हुआ था।

clip_image006दो सुन्दर नौजवान उसकी सेवा में खड़े हुए थे। एक उसके ऊपर मोरछल[10] हिला रहा था। मोरछल में सोने का डंडा लगा हुआ था जिसमें रत्न जड़े हुए थे और दूसरे के हाथ में एक कढ़ा हुआ रूमाल था जिससे वह कभी कभी कुत्ते का मुँह और पैर साफ कर देता था।

नौजवान सौदागर ने उसे बड़े ध्यान से देखा तो उसने देखा कि जैसा कि उसने सुना था वहाँ तो सचमुच में ही 12 बड़े बड़े लाल उसके कौलर में जड़े हुए थे। यह देख कर उसने अल्लाह की बड़ाई की और सोचने लगी “मैं किस तरह से इन लालों को राजा के पास ले कर जाऊँ और इनको उन्हें दिखा कर अपने पिता को जेल से छुड़वाऊँ। ”

वह अपने ख्यालों में इतनी डूब गयी कि वह यह भूल गयी कि वह कहाँ खड़ी है। इतने में चौक के लोग और सड़कों पर चलने वाले लोग सब उसकी सुन्दरता और आकर्षण देख कर चकित रह गये और वहीं खड़े खड़े देखते रह गये।

वे सब एक दूसरे से कहते रह गये — “हमने इतना सुन्दर और इतनी अच्छी शक्ल का आज तक कोई नहीं देखा। ”

ख्वाजा यानी उस दूकान के मालिक ने भी उसको देखा तो एक दास को उसके पास भेजा कि वह उसको उसके पास ले कर आये। दास उसके पास गया और उसको अपने मालिक का सन्देश दिया कि — “अगर आप मेहरबान हों तो मेरे मालिक की इच्छा है कि आप उनसे मिल कर उनकी इज़्ज़त बढ़ायें। ”

नौजवान सौदागर तो यही चाहता था सो वह बोला — “ठीक है इसमें क्या मुश्किल है। ” और उसके साथ चल दिया। जैसे ही वह ख्वाजा के पास पहुँचा और ख्वाजा ने उसे आँख भर कर देखा उसके प्यार का तीर उसकी छाती में जा कर लगा।

वह उसके स्वागत के लिये अपनी जगह से उठा पर उसकी इन्द्रियाँ बिल्कुल काम नहीं कर रही थीं। नौजवान सौदागर ने भी महसूस किया कि यह सौदागर अब मेरी सुन्दरता के जाल में फँस गया है।

उन्होंने एक दूसरे को गले लगाया। ख्वाजा ने नौजवान सौदागर का माथा चूमा और उसको अपने पास बैठने के लिये कहा।

उसने उससे बड़ी नरमी से पूछा — “आप अपना और अपने पिता का नाम बतायें। आप कहाँ से आ रहे हैं और किधर जाने का इरादा रखते हैं। ”

नौजवान सौदागर बोला — “यह नाचीज़ रम देश का रहने वाला है और मेरे पुरखे बहुत समय से कौन्सटैन्टीनोपिल में रहते आये हैं। मेरे पिता एक व्यापारी हैं। क्योंकि वह अब बड़ी उम्र के हो गये हैं और देश देश यात्रा नहीं कर सकते हैं इसलिये अब उन्होंने मुझे यह काम सिखाने के लिये बाहर भेजा है।

अब तक मैंने कभी अपना कदम अपने दरवाजे से बाहर भी नहीं रखा है। यह मैं पहली बार यात्रा कर रहा हूँ। मुझमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं समुद्री यात्रा कर सकूँ[11] इसलिये मैंने धरती पर यात्रा करना ठीक समझा।

पर आपकी तारीफ और आपका नाम तो अजामों[12] की इस जगह में इतने मशहूर हैं कि मैं तो केवल आपसे मिलने की खुशी हासिल करने के लिये ही यहाँ इतनी दूर चला आया।

अल्लाह की मेहरबानी से आज मैं आपके सामने बैठा हुआ हूँ और मैंने देखा कि आपका नाम और गुण तो जितने फैले हुए है वे तो कुछ नहीं आप तो उनसे कहीं ज़्यादा गुणी और नाम वाले हैं।

आज मेरे दिल की इच्छा पूरी हुई। अल्लाह आपको सुरक्षित रखे अब मैं यहाँ से वापस जाऊँगा। ”

नौजवान सौदागर के आखिरी शब्द सुन कर जौहरी के दिमाग और इन्द्रियों ने तो काम करना बिल्कुल ही बन्द कर दिया। वह बोला — “बेटे तुम ऐसी बातें मेरे साथ मत करो। मेरे छोटे से घर में कुछ दिन मेरे साथ रहो। मैं तुमसे विनती करता हूँ कि मुझे बताओ तुम्हारा सामान कहाँ है और तुम्हारे नौकर चाकर कहाँ हैं। ”

नौजवान सौदागर बोला — “यात्रियों की जगह तो सराय[13] में होती है सो उन सबको सराय में छोड़ कर मैं आपसे मिलने आया हूँ। ”

ख्वाजा बोला — “नहीं नहीं यह ठीक नहीं लगता कि तुम्हारे जैसा कोई आदमी सराय में ठहरे। आखिर इस शहर में मेरी अपनी भी तो कोई इज़्ज़त है। लोग मुझे बहुत मानते हैं। तुम अपना सब सामान तुरन्त मँगवा लो। मैं तुम्हारे सामान रखने के लिये एक घर ठीक करा देता हूँ।

मैं भी देखना चाहता हूँ कि तुम क्या क्या सामान ले कर आये हो। मैं उनके बेचने का कुछ इस तरह से इन्तजाम कर दूँगा कि तुम्हें उनको बेच कर ज़्यादा से ज़्यादा फायदा हो सके।

इसके अलावा तुमको भी आराम और शान्ति मिलेगी और तुम थकान से भी बच जाओगे। अगर तुम मेरे घर रहोगे तो मैं तुम्हारा बड़ा एहसानमन्द होऊँगा। ”

नौजवान सौदागर ने पहले तो कुछ बहाने बनाये पर ख्वाजा ने उसका कोई बहाना नहीं सुना। उसने अपने नौकरों को फिर से हुकुम दिया कि वे उसका सारा सामान सराय से जा कर तुरन्त ले आयें और उस सबको फलाँ फलाँ जगह रख दें।

नौजवान सौदागर ने भी अपना एक आदमी भेजा जो उसका सामान वहाँ से लेता आता। शाम होने तक वह खुद ख्वाजा के पास ही रहा। जब बाजार का काम खत्म होने वाला हो गया तब दूकान बन्द कर दी गयी। ख्वाजा अपने घर की तरफ जाने लगा।

उसी समय कुत्ते के पास जो दो नौकर खड़े थे उनमें से एक ने कुत्ते को अपनी बगल में दबाया और दूसरे ने स्टूल और कालीन उठाया।

दूसरे दो नीग्रों ने दोनों पिंजरों को अपने नौकरों के ऊपर लदवाया और खुद ने अपने अपने पाँचों हथियार उठाये और उनके साथ साथ चले। ख्वाजा ने नौजवान सौदागर का हाथ अपने हाथ में पकड़ा और उससे बात करते हुए अपने घर तक पहुँच गया।

नौजवान सौदागर ने देखा कि ख्वाजा का घर तो बड़ा शानदार है, इतना शानदार कि वह तो राजाओं के रहने लायक है। एक छोटी सी नदी के किनारे कालीन बिछे हुए थे। ख्वाजा और नौजवान दोनों वहाँ जा कर बैठ गये।

ख्वाजा ने बिना किसी रस्मोरिवाज के नौजवान सौदागर को कुछ वाइन पेश की। दोनों ने पीना शुरू किया। जब वे दोनों खूब मस्त हो गये तब ख्वाजा ने खाना मँगवाया। दोनों के सामने दस्तरख्वान बिछाया गया और उस पर खाने की बहुत अच्छी अच्छी चीजे,ं परसी गयीं।

सबसे पहले उन्होंने एक तश्तरी में माँस रखा फिर उसको सोने के वर्क से ढकने के बाद वे उसको उस कुत्ते के पास ले गये। वहाँ पहुँच कर उन्होंने उसको एक कढ़ाई की गये दस्तरख्वान पर रखा।

कुत्ता अपने स्टूल से उतरा और जितना उसे खाना था उतना उसने खाया। फिर सोने के कटोरे से उसने पानी पिया और वापस जा कर अपने स्टूल पर बैठ गया।

नौकरों ने रूमाल से उसका मुँह पोंछा और उसके पैर पोंछे फिर उन दोनों को यानी प्लेट और कटोरे को दोनों कैदियों के पास ले गये। ख्वाजा से उन्होंने उन दोनों पिंजरों के खोलने के लिये चाभियाँ माँग कर पिंजरे खोले। पिंजरे में बन्द दोनों आदमियों को निकाला। पहले तो उनको डंडियों से खूब मारा फिर उनको वही खाना पानी खाने पीने के लिये दिया जो कुत्ते की जूठन बची थी।

खाना खिलाने के बाद उन्होंने फिर से उन दोनों आदमियों को उन्हीं पिंजरों में बन्द कर दिया और चाभियाँ ला कर मालिक को दे दीं।

जब यह सब खत्म हो गया तो ख्वाजा दस्तरख्वान पर आ कर खुद खाना खाने बैठ गया। नौजवान सौदागर को यह सब देखने में अच्छा नहीं लग रहा था। उससे तो खाना छुआ भी नहीं गया। ख्वाजा ने उससे कितना कहा पर वह उस खाने को हाथ भी नहीं लगा सका।

जब ख्वाजा ने उससे इस बात की वजह पूछी — “तुम क्यों नहीं खा रहे। ”

तो वह बोला — “मुझे आपका यह व्यवहार बहुत ही बेइज़्ज़ती वाला लगा क्योंकि इन्सान अल्लाह के बनाये हुए प्राणियों से सबसे अच्छा प्राणी है और कुत्ता तो सबसे खराब माना ही जाता है। तो आप ज़रा मुझे यह बताइये कि सबसे खराब प्राणी की जूठन सबसे अच्छे प्राणी को खिलाना किस धर्म में लिखा है।

क्या आप केवल यह सोच कर ही सन्तुष्ट नहीं हैं कि दोनों ही आपके बन्दी हैं नहीं तो वे और आप बराबर हैं। यह देख कर मुझे शक होता है कि आप मुसलमान हैं। कौन जानता है कि आप क्या हैं। शायद आप कुत्ते की पूजा करते हैं।

जब तक मेरा शक दूर नहीं हो जाता मुझे आपके घर का खाना खाने में नफरत होती है। ”

ख्वाजा बोला — “मेरे बेटे। तुम जो कह रहे हो उससे मैं इसलिये राजी नहीं हूँ क्योंकि इस शहर के रहने वालों ने मेरा नाम कुत्ते की पूजा करने वाला रख दिया है। और वे मुझे पुकारते भी इसी नाम से हैं। उन्होंने बाहर भी मेरा यही नाम फैला रखा है। पर अल्लाह उन अपवित्रें और बेवफाओं का बुरा करे। ”

यह कह कर ख्वाजा ने दोबारा कलमा पढ़ा और नौजवान सौदागर के दिमाग को तसल्ली दी। तब नौजवान सौदागर बोला — “अगर आप दिल से मुसलमान हैं तो मेहरबानी करके मुझे बताइये कि इसका क्या मतलब है। इस तरह का काम करके आप क्यों बदनाम होते हैं। ”

ख्वाजा जवाब में बोला — “मेरा नाम समाज से निकाला हुआ है। मैं इस शहर में दोगुना टैक्स केवल इसलिये देता हूँ ताकि मेरे इस नीच व्यवहार की वजह का लोगों को पता न चले।

यह एक बड़ा अजीब सा मामला है जिसे जो कोई भी कहता है या सुनता है तो बड़े दुख से कहता सुनता है। तुमको भी इसी तरह से मुझे इस बात को बताने के लिये माफ कर देना चाहिये नहीं तो मैं तुम्हें उसे नहीं बता पाऊँगा। न तुम शान्त दिमाग से सुन पाओगे। ”

नौजवान सौदागर ने अपने मन में सोचा “मुझे क्या मुझे तो अपने काम से काम रखना है तो मैं क्यों उसको आगे इस बात के लिये जिद करूँ कि वह मुझे इस बात को सुनाये ही सुनाये। ”

इसलिये उसने ख्वाजा से कहा — “अगर आप बताना ठीक नहीं समझते तो आप मुझे उसे न बतायें। ”

फिर उसने खाना खाना शुरू कर दिया। उसने पहला कौर उठाया और खाना श्ुरू कर दिया।

इस तरह नौजवान सौदागर को वहाँ रहते दो महीने बीत गये। वह वहाँ कुछ इस तरीके से रहा कि किसी को यह पता नहीं चला कि वह लड़की है। सबने यही सोचा कि वह एक लड़का है।

इस बीच ख्वाजा का प्यार नौजवान सौदागर के लिये दिनों दिन बढ़ता ही गया। इस प्यार की वजह से वह उसको अपनी नजर के सामने से एक पल को भी दूर नहीं होने देता था।

एक बार दोनों पी रहे थे तो नौजवान सौदागर रो पड़ा। यह देख कर ख्वाजा ने उसको तसल्ली दी और अपने रूमाल से उसके आँसू पोंछने की कोशिश करने लगा। उसने उससे उसके रोने की वजह भी पूछी।

वह बोला — “ओ अब्बा। मैं आपको क्या बताऊँ। काश मैं आपसे न मिला होता और आपने मेरे साथ इतनी मेहरबानी न दिखायी होती जो आप मेरे साथ दिखा रहे हैं।

मैं इस समय में दो मुश्किलों में फँसा हुआ हूँ। पहली बात तो यह है कि मेरा दिल यहाँ से जाने के लिये नहीं करता और दूसरी बात यह कि मैं यहाँ रह भी नहीं सकता। अब मुझे यहाँ से जाना होगा पर आप से बिछड़ने के बाद मुझे अपनी ज़िन्दगी की आशा नहीं है। ”

नौजवान सौदागर के ये शब्द सुन कर ख्वाजा इतनी ज़ोर से रो पड़ा कि उसका गला रुँध गया। पल दो पल बाद वह जब सँभला तब बोला — “ओ मेरी आँखों की रोशनी। क्या तुम अपने पुराने दोस्त से इतना थक गये हो कि उसे दुखी छोड़ कर जाना चाहते हो। यहाँ से जाने का तो विचार ही छोड़ दो। जब तक मैं ज़िन्दा हूँ तब तक तुम मेरे पास ही रहो।

मैं तो तुम्हारे बिना किसी भी तरह एक दिन भी नहीं रह पाऊँगा। अपना समय आने से पहले ही मर जाऊँगा। फारस के इस राज्य की जलवायु बहुत अच्छी है उसमें तुम खूब तन्दुरुस्त रह पाओगे।

इससे अच्छा तो यह है कि तुम अपने एक निजी नौकर को भेज कर अपना माता पिता और सामान सबको बुलवा लो। इस काम के लिये मैं तुम्हें जो कुछ भी सामान गाड़ियाँ आदि चाहिये वह मैं सब तुम्हें दे दूँगा। जब तुम्हारे माता पिता और सामान यहाँ आ जाये तब तुम यहाँ से अपना काम सँभाल लेना।

मैं भी अपनी ज़िन्दगी में बहुत मुश्किलों से गुजरा हूँ बहुत देशों में घूमा हूँ। मैं अब बूढ़ा हो गया हूँ और मेरे कोई बच्चा नहीं है। मैं तुम्हें अपने बेटे से भी ज़्यादा प्यार करता हूँ। मैं आज ही से तुमको अपना वारिस और मैनेजर घोषित करता हूँ।

पर तुम मेरे मामलों की तरफ ठीक से ध्यान देना और उनके प्रति सावधान रहना। जब तक मैं ज़िन्दा हूँ तब तक तुम मुझे रोटी खिलाते रहना और जब मैं मर जाऊँ तब मुझे दफ़ना देना। उसके बाद सब कुछ तुम्हारा है। ”

यह सुन कर नौजवान सौदागर बोला — “यह तो सच है कि आपने मेरे साथ मेरे पिता से भी इतना ज़्यादा प्यार भरा व्यवहार किया है कि मैं तो अपने माता पिता को भी भूल गया हूँ। पर मुझ बेचारे अपराधी के पिता ने मुझे केवल एक साल का ही समय दिया था।

अगर मैं उससे ज़्यादा समय खर्च करता हूँ तो मेरा बूढ़ा पिता तो मेरे लिये रोता रोता ही मर जायेगा। पिता का दर्जा तो अल्लाह से भी ऊँचा होता है। और अगर मेरे पिता मुझसे नाखुश हो गये तो मुझे डर है कि वे मुझे शाप दे देंगे। फिर मैं इस दुनिया में भी और दूसरी दुनिया में भी अल्लाह की मेहरबानियों से वंचित रह जाऊँगा।

अबकी बार यह आपकी मेहरबानी है कि आप मेरा मेरे पिता के प्रति कर्तव्य निभाने और पिता के हुकुम का पालन करने की इजाज़त दें। जब तक मैं ज़िन्दा हूँ आपकी मेहरबानियों का बोझ मेरे सिर पर हमेशा रहेगा। मैं हमेशा आपका ऋणी रहूँगा।

अगर मैं इतना खुशकिस्मत हुआ कि मैं अपने माता पिता तक पहुँच सका तो वहाँ भी मैं आपकी अच्छाइयों और मेहरबानियों को दिल और आत्मा से याद करता रहूँगा। अल्लाह ही सब वजहों की वजह है। हो सकता है कि भविष्य में फिर से ऐसी कोई वजह बन जाये जिससे मुझे आपको इज़्ज़त देने का मौका मिल जाये। ”

थोड़े में कहो तो नौजवान सौदागर ने अपने मीठे शब्दों से ख्वाजा को विनती करके मना ही लिया कि बेचारे ख्वाजा को कोई और रास्ता न देख कर उसको घर जाने की इजाज़त देनी ही पड़ी।

इसके अलावा वह उस लड़के से इतना प्रभावित था सो उसने जवाब दिया — “अगर तुम यहाँ नहीं रहते तो मैं तुम्हारे साथ चलता हूँ। मैं तुम्हें अपनी ज़िन्दगी की तरह समझता हूँ तो अगर मेरी ज़िन्दगी तुम्हारे साथ चली गयी तो फिर इस बेजान शरीर का क्या फायदा। अगर तुमने जाने का पक्का ही कर लिया है तो जाओ और मुझे भी अपने साथ ले चलो। ”

कह कर ख्वाजा ने उस लड़के के साथ अपने जाने की भी तैयारी कर ली। उसने अपने नौकरों को यात्रा की तैयारी के लिये हुकुम दे दिया।

जब ख्वाजा के जाने की खबर चारों तरफ फैली तो शहर के दूसरे सौदागरों ने उसको सुन कर अपनी भी उसके साथ ही जाने की तैयारियाँ कर लीं। कुत्ते को पूजने वाले ख्वाजा ने अपने साथ बहुत सारे जवाहरात ले लिये।

दास और नौकर भी नहीं गिने। कीमती मुश्किल से मिलने वाली बहुत सारी चीज़ें ले लीं जो केवल एक राजा के पास ही हो सकती थीं। वह सब इकठ्ठा करके ख्वाजा ने अपने तम्बू शहर के बाहर लगवा दिये। दूसरे सौदागर भी अपनी अपनी हैसियत के अनुसार अपने अपनी चीज़ें ले कर ख्वाजा के साथ आ गये। वे सब मिल कर तो खुद ही अपनी एक सेना लगने लगे।

एक दिन एक शुभ मुहूर्त देख कर वे सब अपनी यात्रा पर चल पड़े। सैकड़ों ऊँटों पर सामान से भरे हुए कैनवास के थैले लदे हुए थे। खच्चरों पर उनके जवाहरात लदे हुए थे।

कारवाँ के साथ 500 दास कपचक के स्टैप्स के ज़ाँग के और रम[14] के थे और ये सब पूरी तरीके से हथियारबन्द थे। तलवार से लड़ने वाले अरबी टारटरी और ईराकी घोड़ों पर सवार थे।

सबसे पीछे ख्वाजा और नौजवान सौदागर थे। वे बहुत कीमती कपड़े पहने हुए थे। पालकी में सवार थे। एक ऊँट पर एक बक्सा लदा था जिसमें ख्वाजा का शानदार कुत्ता एक गद्दी पर बैठा हुआ था। दोनों बन्दियों के पिंजरे एक ऊँट के दोनों तरफ लटके हुए थे। इस तरह से वे सब आगे बढ़े चले जा रहे थे।

हर पड़ाव पर जब वे पहुँचते तो सारे सौदागर ख्वाजा का इन्तजार करते और उस्के दस्तरख्वान से उसका खाना खाते और वाइन पीते। ख्वाजा अल्लाह को उस खुशी के लिये बहुत बहुत धन्यवाद देता जो उसको नौजवान सौदाग्र के साथ यात्रा करने में मिल रही थी। इसत रह वे पड़ाव पर पड़ाव डालते हुए अपनी यात्रा पर बढ़े चले जा रहे थे।

आखिर वे सुरक्षित रूप से कौन्सटैनटिनोपिल के आस पास तक पहुँच गये। वहाँ पहुँच कर उन्होंने शहर के बाहर ही अपना डेरा डाल दिया।

नौजवान सौदागर ने ख्वाजा से कहा — “अगर आप मुझे इजाज़त दें तो मैं अपने माता पिता को देख आऊँ और आपके लिये एक घर की तैयारी कर आऊँ। फिर जब आपको अच्छा लगे तब आप शहर में चले जाइयेगा। ”

ख्वाजा बोला — “अब तक मैं यहाँ केवल तुम्हारी वजह से आया था। जाओ जल्दी चले जाओ और अपने माता पिता से मिल कर मेरे पास वापस आओ। ”

सो नौजवान सौदागर अपने घर गया। वजीर के सारे घरवाले उसके देख कर आश्चर्यचकित रह गये और चिल्लाये — “अरे देखो तो यह कौन आदमी हमारे घर में घुस आया है। ”

इस पर नौजवान सौदागर जो वजीर की बेटी थी अपनी माँ के पैरों पर गिर पड़ी और बोली — “माँ मैं तुम्हारी बेटी हूँ। ”

यह सुन कर वजीर की पत्नी ने उस डाँटना शुरू किया — “ओ ऊधमी लड़की। तूने अपने आपको बहुत बदनाम किया है। तूने अपना भी मुँह काला किया है और अपने परिवार को भी शरमिन्दा किया है। हमने तो समझा था कि तू मर गयी है और तेरे लिये रोने धोने के बाद हमने सोचा कि अब तू हमारे लिये नहीं रही। सो अब तू जा यहाँ से। ”

तब वजीर की बेटी ने अपनी पगड़ी अपने सिर से उतार कर फेंक दी और बोली — “माँ मैं किसी भी गलत जगह पर नहीं गयी और मैंने कोई गलत काम भी नहीं किया है। मैंने यह प्लान केवल अपने पिता को राजा साहब की कैद से छुड़ाने को लिये बनाया था।

अल्लाह की मेहरबानी है कि तुम्हारी प्रार्थनाओं की वजह से तुम्हारी बेटी ने अपना सारा उद्देश्य पूरा कर लिया है। अब मैं वापस आ गयी हूँ।

मैं नायशापुर से उस सौदागर और उसके उस कुत्ते को भी अपने साथ ले आयी हूँ जिसके गले में नौ लाल वाला कौलर पड़ा हुआ है और मैं उतनी ही पवित्र हूँ जितनी पवित्र्ता तुमने मुझे दी थी।

माँ मैंने एक सौदागर का वेश केवल यात्रा के लिये बनाया था। अब बस केवल एक दिन का काम रह गया है। उसे करने के बाद मैं अपने पिता को जेल से छुड़वा लूँगी और घर वापस आ जाऊँगी।

अगर तुम मुझे इजाज़त दो तो मैं एक दिन के लिये वापस जा कर बाहर और रहना चाहती हूँ। उसके बाद मैं तुम्हारे पास आ जाऊँगी। ”

जब उसकी माँ ने यह समझ लिया कि उसकी बेटी ने एक आदमी की तरह से काम किया है और हर तरह से अपनी इज़्ज़त बचा कर रखी है तो उसने अल्लाह को बहुत बहुत धन्यवाद दिया और अपनी बेटी को गले लगा कर चूम लिया।

उसने उसके लिये भी अल्लाह से प्रार्थना की और उसको जाने की इजाज़त दे दी। जो तू अच्छा समझे बेटी वह कर। मुझे तेरे ऊपर पूरा भरोसा है।

वजीर की बेटी ने फिर से नौजवान सौदागर का रूप बनाया और कुत्ते की पूजा करने वाले ख्वाजा के पास लौट आयी। ख्वाजा भी उसकी गैरहााजिरी में उसके बिना कुछ उदास बैठा था। जब उसका धीरज जवाब दे गया तो वह अपने डेरे से उठा और बाहर निकल गया।

अब ऐसा हुआ कि जब नौजवान सौदागर शहर से बाहर जा रहा था तो ख्वाजा दूसरी तरफ से उधर आ रहा था। वे लोग बीच सड़क पर मिले। उसको देख कर ख्वाजा चिल्लाया — “ओह मेरे बच्चे। तुम इस बूढ़े को अकेला छोड़ कर कहाँ चले गये थे। ”

नौजवान सौदागर बोला — “मैं आपकी इजाज़त ले कर अपने घर गया था पर आपको देखने की इच्छा ने मुझे घर में ही नहीं टिकने दिया और मैं वापस लौट आया। ”

उन्होंने शहर के फाटक के पास समुद्र के किनारे एक छायादार बागीचा देखा तो उन्होंने वहीं अपने तम्बू लगा लिये और अन्दर आ गये। ख्वाजा और नौजवान सौदागर दोनों एक साथ बैठ गये और कबाब खाने लगे और वाइन पीने लगे।

जब शाम हो गयी तो वे अपने तम्बुओं से बाहर निकले और एक ऊँची जगह बैठ कर शहर देखने निकले।

अब ऐसा हुआ कि जब ये लोग शहर देख रहे थे तो एक शाही सिपाही उधर से गुजर रहा था। वह उनके ढंग चाल और बागीचे में कैम्प लगा देख कर आश्चर्य में पड़ गया। उसने अपने मन में सोचा कि शायद किसी देश का ऐम्बैसैडर यहाँ आया हुआ है। वह एक जगह खड़ा रह कर उस दृश्य का आनन्द लेता रहा।

उधर ख्वाजा के एक आदमी ने उसको बुलाया और उससे पूछा “तुम कौन हो। ”

उसने जवाब दिया — “मैं राजा के सिपाहियों का सरदार हूँ। ”

ख्वाजा के नौकर ने जा कर ख्वाजा को बताया तो ख्वाजा ने अपने एक नीग्रो नौकर को बुलाया और उससे कह दो कि “हम लोग यात्री हैं। और अगर वह यहाँ आना चाहे तो शौक से आये कौफी और हुक्का[15] दोनों यहाँ मौजूद हैं।

जब सिपाहियों के सरदार ने सौदागर का नाम सुना तो वह तो और ज़्यादा आश्चर्य में पड़ गया सो वह उस नीग्रो दास के साथ ख्वाजा के पास आ गया। उसने वहाँ चारों तरफ देखा तो देखा कि वहाँ तो चारों तरफ अमीरी झलक रही थी। वहाँ सिपाही थे दास थे।

उसने उनके पास आ कर ख्वाजा और नौजवान सौदागर को सलाम किया। कुत्ते की हालत और शान देख कर उसकी तो सारी इन्द्रियों ने काम करना बन्द कर दिया और वह एक पत्थर की मूर्ति बना खड़ा रह गया।

ख्वाजा ने उसको बैठने के लिये कहा और पीने के लिये उसे कौफी दी। सिपाहियों के सरदार ने ख्वाजा से उसका नाम और ओहदा पूछा। जब वह वहाँ से चलने लगा तो ख्वाजा ने उसको कुछ कपड़ों के टुकड़े दिये और उसे कुछ और भेंटें भी दीं और विदा किया।

अगले दिन जब सिपाहियों का सरदार राजा के दरबार में पहुँचा तो उसने उसे ख्वाजा के बारे में बताया। धीरे धीरे यह बात मेरे कानों तक भी पहुँची तो मैंने भी उसे बुलाया और सौदागर के बारे में पूछा।

उसने वह सब कुछ बताया जो कुछ उसने देखा था। कुत्ते को इतनी ऊँची जगह पहुँचते देख कर तो मुझे बहुत गुस्सा आया और बोला कि इस नीच बदमाश सौदागर को तो मौत मिलनी चाहिये।

मैंने अपने कुछ फाँसी लगाने वालों को बुलवाया और उनसे कहा कि वे तुरन्त ही उस नीच आदमी को मार कर उसका सिर ला कर उसे दें।

इत्तफाक की बात फ्रैंक्स का वही ऐम्बैसैडर उस दिन भी वहीं मौजूद था। यह सुन कर वह मुस्कुराया और मैं और ज़्यादा गुस्सा हो गया। मैं बोला — “ओ अपमान करने वाले। राजाओं के सामने बेकार में ही दाँत दिखाना अच्छे ढंगों में नहीं आता। अगर किसी को अच्छे ढंग नहीं आते तो हँसने से ज़्यादा अच्छा तो यही है कि वह रोये। ”

ऐम्बैसैडर बोला — “ओ ताकतवर राजा। असल में मेरे दिमाग में कुछ ऐसे विचार आये कि मुझे हँसी आ गयी। पहला विचार तो यह था कि वजीर ने सच बोला था और अब उसको जेल से छोड़ देना चाहिये।

दूसरा विचार यह कि योर मैजैस्टी अब अल्लाह के सामने उस सौदागर के खून के धब्बे के बिना ही रहेंगे। और तीसरी बात दुनिया को सुरक्षा देने वाले जहाँपनाह ने फिर एक बार बिना किसी वजह या गलती के सौदागर को मौत की सजा सुना दी।

इन्हीं सब बातों पर मुझे आश्चर्य हो रहा था कि बिना किसी जाँच पड़ताल के आपने एक भले आदमी को मौत की सजा सुना दी। केवल अल्लाह ही जानता है कि उस सौदागर का असली मामला क्या है।

आप उसको अपने शाही दरबार में बुलायें और उसकी इन हरकतों के बारे में जानने की कोशिश करें। अगर वह दोषी पाया जाये तो योर मैजेस्टी मालिक हैं उसके साथ जैसा भी बरताव करना चाहें करें। ”

जब उस ऐम्बैसैडर ने मुझे यह बात समझायी तब मुझे याद आया कि मेरे वजीर ने क्या कहा था। सो फिर मैंने सौदागर को उसके बेटे कुत्ते और दोनों पिंजरों के साथ तुरन्त ही अपने दरबार में आने के लिय कहा।

मेरे नौकर तुरन्त ही गये और कुछ ही देर में उन सबको ले आये। मैंने उनको अपने सामने बुलाया। पहले ख्वाजा और उसका बेटा यानी नौजवान सौदागर आये। दोनों ने बहुत अच्छे कपड़े पहन रखे थे।

नौजवान सौदागर की इतनी सुन्दरता देख कर वहाँ बैठे सब लोग बहुत आश्चर्यचकित रह गये। उसके हाथ में एक सोने की थाली थी जिसमें बहुत सारे कीमती पत्थर भरे हुए थे जिसका हर एक पत्थर कमरे में रोशनी फैला रहा था। उसने वह थाली मेरे पैरों के पास रख दी सिर झुकाया और फिर एक तरफ को खड़ा हो गया।

ख्वाजा ने भी जमीन चूम कर मेरी खुशहाली के लिये प्रार्थना की। वह इतने मीठे शब्दों में बोल रहा था जैसे बुलबुल अपनी मीठी आवाज में गा रही हो।

मुझे उसके बोलने का ढंग बहुत अच्छा लग रहा था पर अपने चेहरे पर गुस्सा लाते हुए मैंने कहा — “ओ आदमी के रूप में शैतान। यह तूने क्या जाल फैला रखा है और तूने अपने ही रास्ते में यह कैसा गड्ढा खोद रखा है।

तेरा धर्म क्या है और यह कौन सा संस्कार है जो मैं देख रहा हूँ। तू किस धर्मदूत को मानने वाला है। अगर तू बेवफा है तो भी तेरे इस व्यवहार का क्या मतलब है। तेरा नाम क्या है जो तू इस तरीके से व्यवहार करता है। ”

ख्वाजा ने बड़ी शान्ति से जवाब दिया — “अल्लाह करे कि योर मैजेस्टी की उम्र और खुशहाली दोनों हमेशा बढ़ती रहें। इस गुलाम का धर्म यह है कि अल्लाह एक है और उसके बराबर का कोई नहीं है। मैं असली मुसलमान धर्म को मानता हूँ।

अल्लाह के बाद मैं 12 इमाम को अपना गुरू मानता हूँ और मेरी रस्म यह है कि मैं दिन में पाँच बार नमाज पढ़ता हूँ। मैं उपवास रखता हूँ। मैंने तीर्थयात्रा भी की है। मैं अपनी आमदनी का पाँचवा हिस्सा दान में देता हूँ। मैं मुसलमान हूँ।

पर एक वजह है जिसे मैं किसी को बता नहीं सकता जिसकी वजह से मेरे अन्दर वे बुरी बातें है जिनकी वजह से योर मैजेस्टी गुस्सा हैं और जिसकी वजह से अल्लाह का बनाया हुआ हर प्राणी मेरी बुराई करता है।

हालाँकि मैं कुत्ते की पूजा करने वाले के नाम से जाना जाता हूँ मैं दोगुना टैक्स देता हूँ। मैं यह सब करता हूँ पर मैंने अपने दिल के भेद किसी के साथ नहीं बाँटे। ”

यह बहाना सुन कर तो मेरा गुस्सा और भी बढ़ गया। मैं बोला — “यह कह कर तू मुझे बहका रहा है। मैं इस बात पर विश्वास नहीं करूँगा जब तक तू मुझे यह नहीं बता देगा कि तू धर्म के रास्ते से क्यों हटा। ताकि मेरे दिमाग उस बात की सच्चाई का पता चले।

तभी तेरी ज़िन्दगी बच सकती है। नहीं तो जो कुछ तूने किया है उसकी सजा में तेरा पेट फड़वा दूँगा। ताकि इस तरह की सजा दूसरों को मुहम्मद का धर्म तोड़ने के लिये डरा सके। ”

ख्वाजा बोला — “ओ राजा चाहे आप इस नीच की सारी सम्पत्ति ले लीजिये जो मेरे पास है और जो मैं और मेरा बेटा आपको देने के लिये तैयार हैं पर मेरा खून मत बिखेरें। मेरी जान बख्श दीजियेे। ”

मैं मुस्कुराया और बोला — “बेवकूफ क्या तू मुझे अपनी सम्पत्ति का लालच दे रहा है। तुझे किसी तरह भी नहीं छोड़ा जा सकता जब तक तू सच नहीं बोलता। ”

यह सुन कर ख्वाजा की आँखों में आँसू आ गये। उसने अपने बेटे की तरफ देखा और एक लम्बी उसाँस भरी और उससे बोला — “बेटा मैं राजा की आँखों में एक अपराधी हूँ। मुझे मार दिया जायेगा। अब मैं क्या करूँ। मैं तुझे किसको दे कर जाऊँ। ”

अबकी बार मैंने उसे धमकी दी — “ओ छल करने वाले। रुक जा। तूने मुझसे कई बहाने बनाये हैं। जो कुछ तुझे कहना है जल्दी से कह। ”

तब वह आदमी आगे बढ़ा और मेरे सिंहासन के पास आया। उसने मेरे सिंहासन का पाया चूमा मेरी बहुत बड़ाई की फिर बोला — “ओ राजाओं के राजा पर ज़िन्दगी तो सबसे ऊपर होती है। अगर मुझे मरने की सजा न दी जाती तो मैं इस बात को छिपाने के लिये हर तकलीफ सह लेता। यह बात मैं कभी नहीं बताता। पर ज़िन्दगी तो सबके ऊपर होती है। अपनी इच्छा से कुँए में कोई नहीं कोई कूदता। ज़िन्दगी की रक्षा करना हमारा सही काम है और जो सही है उसे छोड़ना अल्लाह की मरजी के खिलाफ है।

अगर यही आपकी खुशी है तो आप इस बूढ़े की पुरानी कहानी सुनें। पहले आप वे दोनों पिंजरे जिनमें दो आदमी बन्द हैं बुलवाइये और उन्हें अपने सामने रखवाइये।

अब मैं आपको अपनी कहानी सुनाता हूँ। अगर मैं कोई बात झूठ बोलूँ तो मुझे सजा दी जाये। मेरे साथ न्याय किया जाये। ”

मैंने उसकी बात मान ली। उसके दोनों पिंजरों को बुलवा लिया दोनों आदमियों को बाहर निकाल कर ख्वाजा के पास ही बिठा दिया।

अब ख्वाजा बोला — “ओ राजा यह आदमी जो मेरे दाँये खड़ा है यह मेरा सबसे बड़ा भाई है और यह जो मेरे बाँये खड़ा है यह मेरा दूसरे नम्बर का भाई है। मैं इन सबमें छोटा हूँ।

मेरे पिता फारस के राज्य में एक सौदागर थे। जब मैं 14 साल का हुआ तब वह अल्लाह को प्यारे हो गये। उनके दफन की रस्म होने के बाद तीसरे दिन उनके शरीर पर से फूल हटा दिये गये।

एक दिन मेरे दोनों भाइयों ने मुझसे कहा कि आओ पिता की सम्पत्ति बाँट लेते हैं जो कुछ भी उनके पास था और फिर जिसके मन में जो आये उस सम्पत्ति का वह वही कर सकता है।

उनकी यह बात सुन कर मैंने कहा — “यह आप क्या कह रहे हैं। मैं तो आपका नौकर हूँ और एक भाई के अधिकार नहीं माँग रहा। इसके अलावा अब हमारे पिता तो नहीं हैं पर उनकी जगह आप तो ज़िन्दा हैं।

मुझे तो ज़िन्दगी काटने के लिये और आपकी सेवा करने के लिये बस सूखी रोटी मिल जाये वही मेरे लिये काफी है। मुझे इस बँटवारे से क्या लेना देना। मैं तो आपकी जूठन पर ही ज़िन्दा रह लूँगा पर मैं आपके पास ही रहना चाहता हूँ।

मैं तो एक लड़का हूँ। मुझे तो लिखना पढ़ना भी नहीं आता। मैं क्या कर सकता हूँ। मौजूदा हालतों में तो बस आप मुझे रास्ता दिखाते रहिये। ”

यह सुन कर वे बोले — “तू यह चाहता है कि तेरे साथ साथ हम भी बरबाद हो जायें और भीख माँगते फिरें। ”

मैं चुप हो गया और एक कोने में बैठ गया। फिर मैंने सोचा और अपने आपको समझाया कि “आखिर ये लोग मेरे बड़े ही तो हैं जो कुछ भी वह मुझसे कह रहे है मेरी भलाई के लिये कह रहे हैं मेरी शिक्षा के लिये कह रहे हैं कि मैं कोई खाने कमाने के लिये कोई काम सीख जाऊँ। ”

यही सोचते सोचते मैं सो गया। सुबह को काज़ी से एक आदमी आया और मुझे अदालत ले गया। मैंने देखा कि मेरे दोनों भाई वहाँ मेरा इन्तजार कर रहे थे।

काज़ी ने मुझसे पूछा — “तुम अपने पिता की जायदाद में से अपना हिस्सा क्यों नहीं ले रहे। ”

मैंने उनको भी वही कह दिया जो घर में मैंने अपने भाइयों से कहा था। काज़ी बोला — “जब यह इतनी सब बातें दिल से कर रहा है तो हमें इसे इस बँटवारे से आजादी का कागज दे देना चाहिये कि आज से अपने पिता की सम्पत्ति पर इसका कोई अधिकार नहीं है। ”

तब भी मैंने यही सोचा कि क्योंकि ये लोग मेरे बड़े भाई हैं और इन्होंने मेरी भलाई के लिये ही सोचा है। सो उनकी इच्छानुसार मैंने उस कागज पर अपने दस्तखत कर दिये। काज़ी ने उस पर अपनी सील लगा दी। वे लोग सन्तुष्ट थे और मैं घर वापस आ गया।

इसके अगले दिन मेरे भाई मेरे पास आये और मुझसे बोले — “भाई हमें तुम्हारा घर चाहिये जिसमें तुम रहते हो। तुम अपने रहने के लिये कोई दूसरी जगह किराये पर ले लो और वहाँ जा कर रहो। ”

मुझे तब महसूस हुआ कि वे इस बात से भी खुश नहीं थे कि मैं अपने पिता के मकान में रहूँ भी। मेरे पास इसकी कोई दवा नहीं थी सो मैंने उस घर को छोड़ दिया।

ओ दुनिया की रक्षा करने वाले। जब मेरे पिता ज़िन्दा थे तो जब भी वह अपनी यात्राओं से वापस लौटते थे तो दूसरे देशों से वहाँ की अनमोल चीज़ें लाया करते थे और मुझे दे देते थे क्योंकि सबसे छोटा बच्चा घर में सबको सबसे ज़्यादा प्यारा होता है। कभी कभी मैं इन चीज़ों को बेच कर अपने लिये अपनी सम्पत्ति बना लेता था। इसको ले कर मैं वहाँ से चला।

एक बार मेरे पिता मेरे लिये एक टारटरी दासी ले कर आये। एक बार वह कुछ घोड़े ले कर आये तो उनमें से एक बहुत अच्छा घोड़े का बच्चा उन्होंने मुझे दे दिया। मैं उसे अपने जमा किये हुए पैसों से खिलाया करता था।

आखिर अपने भाइयों की यह अमानवीयता देख कर मैंने एक घर खरीद लिया और उसी घर में जा कर रहने लगा। यह कुत्ता भी मेरे साथ ही गया और यह भी मेरे साथ ही रहा।

मैंने घर गृहस्थी का जरूरी सामान खरीदा घर की देखभाल के लिये दो दास खरीदे और फिर जो पैसा मेरे पास बचा उससे मैंने अल्लाह का नाम ले कर एक कपड़े की दूकान खोल ली। अल्लाह पर भरोसा करके मैं उस दूकान में बैठ गया और अपनी किस्मत से सन्तुष्ट रहा।

हालाँकि मेरे भाइयों ने मेरे साथ बड़ी बेरहमी से व्यवहार किया था फिर भी अल्लाह की मेहरबानी से मेरी दूकान तीन साल में ही खूब चल निकली और बाजार में मेरी अच्छी साख हो गयी। जो भी मुश्किल से मिलने वाले कपड़े और पोशाक किसी अच्छे परिवार को अगर जरूरत पड़ते तो वे सब मेरी ही दूकान से जाते।

मैंने बहुत पैसा कमा लिया था और मैं अब बहुत अमीरी में रह रहा था। अब तो में चौबीसों घंटे बस अल्लाह को ही धन्यवाद देता रहता और आराम से रहता।

अक्सर में ये दोहे गुनगुनाया करता —

राजकुमार को नाखुश क्यों होना चाहिये मुझे तो उससे कोई लेना देना नहीं है

सिवाय तेरे ओ ताकतवर राजकुमार मैं और किस राजा की तारीफ करूँ

मेरा भाई मुझसे नाखुश क्यों न हो वह मुझे कोई नुकसान तो पहुँचा नहीं सकता

अब तो तू ही मेरा सहायक है नहीं तो मैं और किसके पास जाऊँ

दोस्त और दुश्मन क्यों नाखुश न हों सारा दिन बस मैं तेरे चरणों के बारे में ही सोचता रहूँ

दुनिया मुझसे भले ही गुस्सा क्यों न हो है पर तू तो उन सबसे ऊँचा है

दूसरे सब मेरा अँगूठा चूम सकते हैं पर मेरी यह इच्छा है कि बस तू मुझसे नाराज न हो

एक बार एक शुक्रवार के दिन कुछ ऐसा हुआ कि मैं घर में बैठा हुआ था और मेरा एक दास बाजार से कुछ जरूरी सामान लेने गया हुआ था। कुछ देर बाद वह रोता हुआ मेरे पास आया। मैंने उससे पूछा क्या हो गया। क्या हुआ है उसे।

उसने गुस्से में भर कर कहा — “आपको इससे क्या मतलब। आप तो आनन्द कीजिये। पर आप जजमैंट के दिन अल्लाह को क्या जवाब देंगे। ”

मैंने चिल्ला कर कहा — “ओ अबीसीनियन[16]। तुझ पर कौन सा शैतान चढ़ गया है। ”

वह बोला — “परेशानी यह है कि एक ज्यू ने चौक में आपके दोनों भाइयों के हाथों को उनकी पीठ पीछे बाँध दिया है और वह उन्हें कोड़े से मार रहा है।

वह हँसता जाता है और कहता जाता है “अगर तुम मेरा पैसा नहीं दोगे तो मैं तुम्हें इतना मारूँगा जब तक कि तुम मर न जाओ। और अगर तुम मेरे इस काम से मर भी जाओगे तो यह मेरे लिये बहुत पुन्य का काम होगा।

आपके भाइयों के साथ ऐसा व्यवहार हो रहा है और आप यहाँ ऐसे ही बैठे हैं जैसे कुछ हुआ ही नहीं। क्या यह ठीक है। दुनिया क्या कहेगी। ”

अपने दास से यह सब सुन कर भाइयों के प्रेम से मेरा खून खौलने लगा। मैंने दासों से पैसा लाने के लिये कहा और मैं खुद नंगे पाँव चौक की तरफ भागा। जब मैं वहाँ पहुँचा तो मैंने देखा कि मेरा दास बिल्कुल ठीक कह रहा था।

मेरे भाइयों पर कोड़े की मार बराबर पड़ रही थी। मैं मजिस्ट्रेट के पहरेदारों पर चिल्लाया “अल्लाह के लिये ज़रा रुको तो। मुझे ज्यू से पूछने तो दो कि मेरे भाइयों ने ऐसा क्या गुनाह किया है जिसकी वजह से वह उन्हें इतना मार रहा है। ”

यह कह कर मैं ज्यू के पास गया और बोला — “आज तो पवित्र दिन है। तुम इनको बराबर क्यों मारे जा रहे हो। ”

ज्यू बोला — “आओ अगर तुम भी इनका एक हिस्सा बनना चाहते तो आओ। हिस्सा ही क्यों इनकी पूरी जिम्मेदारी लो। इनका पूरा पैसा दो नहीं तो अपने घर का रस्ता नापो। ”

मैंने पूछा कितना पैसा है। मुझे उसका कागज दिखाओ मैं वह सारा पैसा तुम्हें दे दूँगा। उसने कहा कि वह कागज उसने अभी मजिस्ट्रेट को दे दिया था।

इसी समय मेरे दास दो थैले भर कर पैसा ले आये। मैंने उनमें से 1000 चाँदी के सिक्के ज्यू को दे दिये और अपने भाइयों को उससे छुड़ा लिया।

उनकी यह हालत थी कि वे भूखे प्यासे और नंगे थे। मैं उनको अपने साथ अपने घर ले आया। तुरन्त ही उनको नहलाया धुलाया कपड़े पहनाये और पेट भर कर खाना खिलाया। मैंने उनसे यह कभी नहीं पूछा कि उन्होंने हमारे पिता की सम्पत्ति का ऐसा क्या किया जो उनको उस ज्यू से पैसा उधार लेने की जरूरत पड़ी कहीं ऐसा न हो कि उन्हें शरमिन्दगी महसूस हो।

ओ राजा। ये दोनों यहा खड़े हैं आप इनसे पूछ सकते हैं कि मैंने यह सब सच कहा है या फिर इसमें से कुछ झूठ है।

कुछ समय बाद जब ये लोग अपने पिटे जाने से हो जाने वाले घावों से ठीक हो गये तो मैंने एक दिन इनसे कहा — “भाइयो अब आपकी तो साख इस शहर से बिल्कुल ही खत्म हो चुकी है सो अच्छा हो कि कुछ दिनों के लिये आप लोग शहर से बाहर घूम आयें। ”

यह सुन कर वे दोनों बोले तो कुछ नहीं पर मुझे ऐसा लगा जैसे वे मरी बातों से सहमत हों। सो मैंने उनकी यात्रा की तैयारी शुरू कर दी। उनके लिये तम्बू सवरियाँ आदि यात्रा का सब सामान इकठ्ठा करने के बाद मैंने उनको लिये करीब 20 हजार रुपये तक का कुछ सामान खरीदा। एक काफिला बुखारा[17] की तरफ जा रहा था सो मैंने उनको उस काफिले के साथ भेज दिया।

एक साल के बाद वह कारवाँ लौटा पर मुझे अपने भाइयों की कोई खबर नहीं मिली। फिर मैंने एक दोस्त को कसम दे कर उनके बारे में बताने के लिये कहा तो उसने बताया कि जब वे बुखारा पहुँचे तो उनमें से एक ने तो अपने हिस्से का सारा पैसा एक जुआघर में गँवा दिया और अब वहीं झाड़ू लगाने का काम करता है।

वह उन जुआ खेलने वालों की सेवा करता है जो वहा जुआ खेलने आते हैं और वे जुआ खेलने वाले भी उसको दान के तौर पर कुछ दे देते हैं जिससे वह अपना गुजारा करता है।

दूसरा भाई एक शराब बेचने वाले की बेटी के प्रेम में पड़ गया और अपनी सारी सम्पत्ति उस पर लुटा दी। अब वह भी एक शराब की दूकान पर काम करता है। काफिले के लोगों ने यह सब बातें तुमको इसलिये नहीं बतायीं ताकि इन सबको सुन कर तुमको शरमिन्दगी महसूस न हो।

उस आदमी के मुँह से उनका यह हाल सुन कर मेरा तो बस अजीब ही हाल हो गया। चिन्ता के मारे मेरी भूख और नींद दोनों गायब हो गयीं। मैं तुरन्त ही बुखारा चल दिया।

वहाँ पहुँच कर मैंने उन्हें सब जगह ढूँढा और उन दोनों को ढूँढ कर अपनी उस जगह ले कर आया जहाँ मैं ठहरा हुआ था। पिछली बार की तरह से मैंने इन्हें नहलाया धुलाया नये कपड़े पहनाये पेट भर खाना खिलाया। डर के मारे ये लोग बहुत शरमिन्दा थे। पिछली बार की तरह से मैंने इनको इस बार भी कुछ नहीं कहा।

मैंने फिर इनके लिये कुछ सामान खरीदा और इनके साथ घर लौटा। जब हम नायशापुर पहुँचने वाले थे तो मैंने इनको सामान के साथ गाँव में ही छोड़ दिया और छिप कर घर आ गया क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि मेरे आने का पता किसी को चले।

दो दिन के बाद ही मैंने सबको बताया कि मेरे भाई घर लौट आये हैं और मैं सुबह को उनसे मिलने जाऊँगा। अगली सुबह जब मैं उनको लाने के लिये जाने को तैयार हुआ कि एक किसान मेरे पास आया और बहुत ज़ोर ज़ोर से शिकायतें करने लगा और रोने लगा।

उसकी इतनी ऊँची आवाज सुन कर मैं बाहर आया और उसे रोते हुए देख कर मैंने उससे इतनी ज़ोर से चिल्लाने की वजह पूछी — “यह तुम इतनी ज़ोर ज़ोर से रो क्यों रहे हो। ”

“हमारे घर लूट लिये गये हैं और वे तुम्हारे भाइयों ने लूटे हैं। तुम्हें अल्लाह का वास्ता कि तुमने उन्हें वहाँ नहीं छोड़ा था। ”

मैंने फिर पूछा — “मगर हो क्या गया है। ”

वह बोला — “रात को डाकुओं का एक गिरोह आया और उनकी सम्पत्ति और सामान लूट कर ले गया। साथ में वह गिरोह मेरा घर भी लूट कर ले गया। ”

मुझे उसके ऊपर दया आ गयी। मैंने उससे पूछा “तो अब वे दोनों कहाँ हैं। ”

वह बोला — “वे लोग शहर के बाहर बैठे हैं बिल्कुल नंगे और बहुत दुखी। ”

मैंने तुरन्त ही दो जोड़ी कपड़े लिये अअैर उनके पास चल दिया। वहाँ पहुँच कर मैंने उनको कपड़े पहनाये और उनको अपने साथ घर ले कर आया।

गाँव वालों ने जब डाके की बात सुनी तो वे उनको देखने के लिये आने लगे पर वे शरम के मारे बाहर ही नहीं निकल रहे थे। इस तरह से फिर तीन महीने निकल गये।

मैंने अपने मन में सोचा कि इस तरह से ये लोग कब तक कोने में छिपे बैठे रहेंगे। अगर ये मान जायें तो मैं इनको किसी समुद्री यात्रा पर ले चलता हूँ।

सो मैंने यह बात जा कर उन्हें सुझायी और कहा कि अगर आप लोग चलेंगे तो मैं भी आपके साथ चलूँगा। वे फिर चुप थे। मैंने एक बार यात्रा की फिर से तैयारी की। व्यापार के लिये कुछ सामान खरीदा अपनी शुभ यात्रा के लिये गरीबों को कुछ भीख दी सामान जहाज़ में लादा लंगर उठाया और समुद्र में चल दिये।

यह कुत्ता नदी के किनारे सो रहा था। जब वह उठा तो जहाज़ को बीच समुद्र में देख कर आश्चर्यचकित रह गया। वह बहुत ज़ोर ज़ोर से भौंकने लगा और फिर नदी में कूद गया। वह हमारे पीछे पीछे नदी में तैरने लगा। मैंने उसको पकड़ने के लिये एक नाव भेजी। अल्लाह की मेहरबानी से उन्होंने उसको पकड़ लिया और हमारे जहाज़ पर ले आये।

नदी में सुरक्षित रूप से यात्रा करते हुए हमें एक महीना बीत गया। इस बीच मेरे दूसरे भाई को मेरी दासी से प्यार हो गया। एक दिन उसने हमारे सबसे बड़े भाई से कहा — “हमारे छोटे भाई के उपकारों का हमारे ऊपर बहुत बोझ है जो हमारे लिये बड़ी शर्मनाक बात है। हम इस बुराई से कैसे बचें। ”

सबसे बड़ा भाई बोला — “मेरे पास एक प्लान है अगर यह कामयाब हो जाये तो बस फिर मजा आ जाये। ”

उसके बाद काफी देर तक दोनों आपस में सलाह करते रहे और तय किया कि वे मुझे मार देंगे और मेरी सम्पत्ति और जायदाद सब हड़प लेंगे।

एक दिन मैं अपने केबिन में सो रहा था और मेरी दासी हमारा शराब पीने वाला कमरा साफ कर रही थी कि तभी मेरा दूसरा भाई जल्दी जल्दी आया और मुझे जगाया। मैं हड़बड़ा कर उठा और डैक पर आया। यह कुत्ता भी मेरे पीछे पीछे आ गया।

मैंने देखा कि मेरा सबसे बड़ा भाई जहाज़ के एक तरफ अपनी बाँहें लटका कर खड़ा है और बड़ी तल्लीनता से नदी के आश्चर्य देख रहा है साथ में उनको देखने के लिये मुझे भी बुला रहा है।

मैं उसके पास तक गया और उससे पूछा “सब ठीक तो है न। ”

वह बोला — “यह सुन्दर दृश्य देखो। मरमैन नदी में नाच रहे हैं। उनके हाथों में मोती हैं सीपी हैं मूँगे की डालियाँ हैं। ”

अगर यह बात मुझसे किसी और ने कही होती तो मैं उससे बहस करता। मुझे उसके ऊपर विश्वास ही नहीं होता पर यह बात तो मेरा भाई कह रहा था सो मैंने उसे सच समझ लिया और उन सबको देखने के लिये मैंने अपना सिर नीचे किया।

मैंने अपना सिर कितना भी नीचे करके यह देखने की कोशिश की कि वे मरमैन कहाँ हैं पर मुझे तो वहाँ कुछ भी दिखायी नहीं दिया। और वह बराबर कहता ही रहा “अब दिखायी दिया। अब दिखायी दिया। ”

अब अगर वहाँ कुछ होता तो मुझे दिखायी दे गया होता। मुझे लापरवाह देख कर मेरा छोटा भाई मेरे पीछे से आया और मुझे एक ऐसा धक्का मारा कि मैं नदी में गिर पड़ा। इस पर मेरे भाइयों ने चिल्लाना शुरू कर दिया — “भागो भागो। हमारा भाई पानी में गिर पड़ा है। ”

इस बीच जहाज़ भी चलता ही रहा और मैं लहरों के साथ बहता रहा। मैं पानी डुबकियाँ खा रहा था और जहाज़ से दूर होता जा रहा था। अब तक मैं बहुत थक भी गया था।

मैंने अल्लाह को अपनी सहायता के लिये पुकारा पर कोई फायदा नहीं हुआ। लो अचानक ही मेरे हाथ ने कुछ छुआ। मैंने देखा तो वह यह कुत्ता था। शायद जब उन लोगों ने मुझे नदी में धक्का दिया होगा तो वह भी मेरे पीछे पीछे पानी में कूद गया होगा और मेरे साथ साथ बहता रहा होगा। ।

मैंने उसकी पूँछ पकड़ ली और अल्लाह ने उसके द्वारा मेरी मुक्ति करा दी। इस तरह से सात रातें गुजर गयीं। आठवें दिन हम किनारे पहुँचे। मेरे अन्दर ज़रा सी भी ताकत नहीं थी जो कुछ भी थी उसी के सहारे मैं किनारे की तरफ लुढ़क गया और जमीन पर जा कर पड़ गया।

मैं पूरे एक दिन बेहोश पड़ा रहा। दुसरे दिन मुझे कुत्ते के भौंकने की आवाज सुनायी पड़ी। मैंने अल्लाह को बहुत बहुत धन्यवाद दिया। मैंने अपने चारों तरफ देखा तो मुझे वहाँ से कुछ दूरी पर एक शहर सा दिखायी दिया। पर मेरे अन्दर इतनी ताकत कहाँ थी जो मैं वहाँ तक जा सकता।

पर मेरे पास और कोई चारा भी नहीं था सो मैं धीरे धीरे शहर की तरफ खिसकने लगा। मैं दो कदम खिसकता और फिर आराम कर लेता। दो कदम खिसकता और फिर आराम कर लेता। इस तरह से एक कोस[18] पहुँचने के लिये मैंने सारा दिन ले लिया। मैं जब वहाँ पहुँचा तो शाम हो गयी थी।

यहाँ एक पहाड़ था। वहाँ मैं सारी रात पड़ा रहा। अगली सुबह मैं शहर पहुँचा। जब मैं बाजार में आया तो मैंने वहाँ बेकरी की दूकानें देखीं उनको देख कर मेरा दिल धड़कने लगा क्योंकि मेरे पास खरीदने के लिये कोई पैसा नहीं था और माँगना मैं चाहता नहीं था। इस तरह से मैं यह कहते कहते आगे बढ़ता रहा कि “मैं अगली दूकान से माँगूँगा। मैं अगली दूकान से माँगूँगा। ”

आखिरकार मेरी ताकत जवाब दे गयी और भूख के मारे मेरा पेट एँठने लगा। मुझे ऐसा लगा कि जैसे मेरी जान निकलने वाली है। इत्तफाक से मैंने दो आदमी ऐसे दिखायी दिये जो अपनी पोशाकों से फारस के लगते थे। वे दोनों आपस में एक दूसरे के हाथों में हाथ डाले जा रहे थे। उनको देख कर मेरी कुछ जान में जान आयी

वे मेरे अपने देश के से ही लग रहे थे। हो सकता है कि वे मेरे जानने वालों में से ही कोई हों जिनसे मैं अपने बारे में कुछ बात कर सकूँ। जब वे मेरे पास आये तब मैंने देखा कि वे तो वास्तव में मेरे भाई ही थे।

यह देख कर तो मैं बहुत खुश हो गया। अल्लाह ने मेरी इज़्ज़त बचा ली थी। अब मुझे खाने के लिये किसी दूसरे के सामने हाथ फैलाना नहीं पड़ रहा था। मैं उनके पास गया और उनको सलाम किया और अपने सबसे बड़े भाई का हाथ चूमा।

मुझे देखते ही उन्होंने शोर मचाना शुरू कर दिया। मेरे दूसरे वाले भाई ने मेरे सिर पर इतनी ज़ोर से मारा कि मैं लड़खड़ा गया और नीचे गिर पड़ा। मैंने इस आशा में अपने सबसे बड़े भाई के कपड़े पकड़ लिये कि शायद वह मेरी तरफदारी करेगा। पर उसने भी मुझे एक ज़ोर की ठोकर मारी।

थोड़े में कहो तो दोनों ने मुझे बहुत मारा और मेरे साथ ऐसा व्यवहार किया जैसे जोसेफ के भाइयों ने जोसेफ के साथ किया था। हालाँकि मैंने उन्हें अल्लाह का वास्ता भी दिया और अपने ऊपर दया करने के लिये भी कहा फिर भी उन्होंने मेरे ऊपर कोई दया नहीं दिखायी।

हमारे चारों तरफ भीड़ इकठ्ठी हो गयी। हर आदमी यही पूछ रहा था “इस आदमी का अपराध क्या है। ”

तो मेरे भाइयों ने कहा — “यह गधा हमारे भाई का नौकर था। इसने हमारे भाई को जहाज़ में से पानी में से फेंक दिया और उसकी सारी सम्पत्ति और जायदाद ले ली। हम लोग इसे बहुत दिनों से ढूँढ रहे हैं। आज हमको यह इस वेश में मिला है। ”

तब उन्होंने मुझसे पूछा — “तेरे मन में क्या है कि तूने हमारे भाई का कत्ल किया। उसने तेरा क्या नुकसान किया था। क्या उसने तेरे साथ कोई बुरा व्यवहार किया था या तुझे सारे मामलों का इन्चार्ज बना दिया था। ”

इसके बाद उन दोनों ने अपने कपड़े फाड़ने शुरू कर दिये और अपने भाई की याद में बहुत ज़ोर से रोना शुरू कर दिया। मुझे उन्होंने मारना जारी रखा।

इस बीच गवर्नर के सिपाही आ गये। उन्होंने धमकी भरे शब्दों में कहा — “यह तुम लोग किसको मार रहे हो। ” और मेरा हाथ पकड़ कर मुझे उठाते हुए मुझे मजिस्ट्रेट के सामने ले गये। ये दोनों भी मेरे साथ ही गये।

वहाँ पहुँच कर इन्होंने अपनी वही कहानी फिर से कह दी जिसे उन्होंने भीड़ को सुनाया था। वहाँ इन्होंने उनको कुछ रिश्वत दे कर न्याय की माँग की – खून का बदला खून।

मजिस्ट्रेट ने मुझसे भी पूछा कि मैं अपनी सफाई में क्या कहना चाहता था। भूख और पिटाई की वजह से मैं इतना कमजोर था कि मैं अपनी सफाई में एक शब्द भी नहीं बोल सका। सिर नीचा किये हुए बस खड़ा ही रह गया। मेरे मुँह से कोई जवाब नहीं निकला।

मजिस्ट्रेट को विश्वास हो गया था कि खून मैंने ही किया है। उसने मुझे मैदान में ले जाने का हुकुम दिया और वहाँ ले जा कर मुझे एक खम्भे से बाँध दिया जाये।

ओ जहाँपनाह। मैंने पैसे दे कर इन दोनों को ज्यू से छुड़वाया था और बदले में इन्होंने पैसे दे कर मेरी जान लेने की कोशिश की। ये दोनों यहाँ मौजूद हैं। आप इनसे पूछें कि क्या मैंने बाल भर भी गलत कहा है।

सो मजिस्ट्रेट के लोग मुझे मैदान ले गये और जब मैंने वहाँ खम्भा खड़ा देखा तो मुझे लगा कि बस मेरी ज़िन्दगी अब इतनी ही है तो मैंने अपनी जिन्दगी से हाथ धो लिये।

इस कुत्ते के अलावा मेरे पास मेरे लिये और कोई नहीं था। उसकी हालत यह थी कि वह हर किसी के पैरों पर लोटता था और भौंकता था। कुछ उसको डंडी से मारते थे दूसरे उसे पत्थरों से मारते थे पर वह वहाँ से हिलता भी नहीं था।

मैं अपना मुँह क़िबला की तरफ करके खड़ा हो गया और अल्लाह से कहा — “इस पल में मेरा तेरे सिवा और कोई नहीं है। मेहरबानी करके आ और इस निर्दोष को बचा। अब अगर तू मुझे बचा लेता है तब तो मैं बच जाऊँगा। ”

इसके बाद मैंने शहादत[19] की प्रार्थना कही। फिर मैं लड़खड़ा गया और गिर गया।

अब अल्लाह की मेहरबानी से कुछ ऐसा हुआ कि उस देश के राजा के पेट में बहुत दर्द हुआ। कुलीन लोग और डाक्टर इकठ्ठा हुए। सबने अपनी अपनी दवाएँ बतायीं पर किसी से कुछ फायदा नहीं हुआ।

एक पवित्र आदमी ने कहा कि इसकी सबसे अच्छी दवा यही है कि किसी अकेले और दुखी आदमी को दान दिया जाये और सारे बन्दी छोड़ दिये जायें। क्योंकि दुआ में दवा से ज़्यादा ताकत होती है। तुरन्त ही नौकर लोग जेल की तरफ भागे।

इत्तफाक से एक आदमी मैदान की तरफ आ निकला जहाँ मैं खड़ा हुआ था। वहाँ बहुत सारी भीड़ को देख कर उसने सोचा कि लगता है कि यहाँ किसी को खम्भे से बाँध कर मौत की सजा दी जा रही थी। भीड़ में खड़े एक आदमी ने भी यही कहा।

तुरन्त ही वह अपना घोड़ा कुदाता हुआ वहाँ आया और उसने मेरी रस्सी अपनी तलवार से काट दी। उसने मजिस्ट्रेट के सिपाहियों को धमकी दी और कहा — “ऐसे समय में जब राजा की यह हालत हो रही है और तुम लोग अल्लाह के एक बन्दे को मारने जा रहे हो। ” और इस तरह से उसने मुझे छुड़ा लिया।

यह देख कर मेरे भाई फिर से मजिस्ट्रेट के पास गये और उनसे प्रार्थना की कि मुझे मार दिया जाये। क्योंकि इस अफसर ने पहले से ही उन लोगों से रिश्वत खा रखी थी इसलिये इसको वही करना पड़ा जो उन्होंने चाहा।

मजिस्ट्रेट ने उनसे कहा — “अब तुम लोग शान्त हो जाओ। अब मैं इसको ऐसे बन्द करूँगा कि यह अपने आप ही भूख प्यास और थकान से मर जायेगा और किसी को इस बात का पता भी नहीं चलेगा। ”

उन्होंने मुझे फिर से पकड़ लिया और एक कोने में बिठा दिया। शहर से करीब एक कोस बाहर एक पहाड़ था जिस पर सोलोमन के समय में देवों ने एक बहुत ही गहरा और तंग कुँआ खोद लिया था। इसे सोलोमन की जेल बोलते थे।

जिस किसी को भी राजा के गुस्से का सामना करना होता था उसको इस कुँए में फिंकवा दिया जाता था वहाँ वह भूख प्यास से अपने आप ही मर जाता था।

थोड़े में कहो तो ये मेरे दोनों भाई और मजिस्ट्रेट के सिपाही मुझे रात के शान्त वातावरण में उसी पहाड़ पर ले कर चले। वहाँ पहुँच कर मुझे उस कुँए में फेंक कर ही इन लोगों के दिमाग को शान्ति मिली। मुझे वहाँ कुँए में फेंक कर ये लोग वापस आ गये।

ओ राजा। यह कुत्ता मेरे साथ गया। जब वे मुझे कुँए में फेंक रहे थे तो यह उस कुँए के किनारे लेटा रहा। मैं भी कुँए में कुछ देर तक बेहोश सा पड़ा रहा। कुछ देर बाद मुझे कुछ होश सा आया तो मुझे लगा कि मैं तो मरा हुआ हूँ और वह जगह मेरी कब्र है।

इसी समय मैंने दो आदमियों की आवाज सुनी जो वे आपस में बात कर रहे थे। मैंने सोचा कि ये जरूर ही नाकिर और मुनकिर[20] होंगे जो मुझसे सवाल करने आये हैं। उसी समय मैंने एक रस्सी सरकने की आवाज सुनी जैसे किसी ने उसे ऊपर से नीचे डाला हो।

मुझे आश्चर्य हुआ और मैंने अपने आपको जमीन पर महसूस किया। मेरे हाथ में कुछ हड्डियाँ थीं।

एक पल के बाद ही मेरे कानों को कुछ ऐसी आवाज आयी जैसे मेरा मुँह कुछ चबा रहा हो। मैं डर गया और बोला — ओ अल्लाह के बन्दो। अल्लाह के लिये मुझे यह तो बताओ कि तुम लोग हो कौन। ”

वे हँसे और बोले — “हा हा हा हा। यह सोलोमन की जेल है और हम उसके बन्दी हैं। ”

मैंने उनसे पूछा — “क्या मैं अभी ज़िन्दा हूँ। ”

वे फिर बहुत ज़ोर से हँस पड़े और बोले — “अभी तक तो तुम ज़िन्दा हो पर जल्दी ही मर जाओगे। ”

मैंने कहा — “तुम कुछ खा रहे हो। क्या हो अगर तुम मुझे भी कुछ खाने को दो। ”

इस बात पर वे गुस्सा हो गये और उन्होंने मुझे सूखा सा जवाब पकड़ा दिया और कुछ नहीं। खा पी कर वे सो गये और मैं बेहोशी और थकान की वजह से बेहोश सा हो गया। मैं रोता रहा और अल्लाह को याद करता रहा।

ओ ताकतवर राजा। मैं सात दिन समुद्र में रहा और इतने दिनों से भूखा था अपने इन भाइयों के केवल झूठे इलजामों की वजह से। बजाय इनसे खाना मिलने के मुझे इनसे केवल पिटाई ही मिली और अब इस जेल में पड़ा था। मेरे दिमाग में वहाँ से निकलने का कोई भी तरीका नहीं आ रहा था।

आखिर मैं मरने पर आ गया। कभी ज़िन्दगी मेरे पास से चली जाती तो कभी आ जाती। समय समय पर आधी रात को कोई आदमी वहाँ आता था और कुँए में रस्सी के सहारे कुछ रोटी और एक लोटा पानी उतारता था और पुकारता था। वे दो आदमी जो मेरे साथ ही वहाँ बन्द थे उसे पकड़ लेते थे और खा लेते थे।

कुत्ता यह सब बराबर देख रहा था। उसने अपनी अक्ल कुछ इस तरह से लड़ाई कि जिस तरीके से यह आदमी अपने मालिक के लिये रोटी और पानी नीचे लटकाता था उसी तरीके से कोई एक और अकेले दुखी आदमी को लिये भी लटकाये जो मेरा मालिक है ताकि उसकी ज़िन्दगी भी बच जाये।

यह सोच कर वह शहर गया। वहाँ उसने एक बेकर की दूकान की मेज पर बहुत सारी गोल गोल रोटियाँ रखी देखीं। उछल कर उसने उसने उसमें से एक रोटी उठा ली और उसे ले कर दौड़ लिया। कुछ लोगों ने उसका पीछा किया और पत्थर भी मारे पर उसने रोटी नहीं छोड़ी।

वे उसका पीछा करते करते थक गये थे सो लौट गये। शहर के कुत्ते भी उसके पीछे दौड़ रहे थे। उसने उनसे रोटी बचा कर कुँए तक ले आया और उसे कुँए में डाल दी। कुँए में इतनी रोशनी थी जिसमें मैं अपने पास पड़ी वह रोटी देख सकता। मैंने कुत्ते के भौंकने की आवाज भी सुनी। रोटी फेंकने के बाद कुत्ता मेरे लिये पानी ढूँढने चला गया।

एक गाँव के बाहर की तरफ एक बुढ़िया अपनी झोंपड़ी में रहती थी। कुछ छोटे बड़े पानी से भरे बरतन उसकी झोंपड़ी के दरवाजे पर रखे थे और बुढ़िया सूत कात रही थी।

कुत्ता उसके पानी से भरे बरतनों के पास तक गया और उनमें से एक बरतन पकड़ने की कोशिश की। बुढ़िया ने उसे धमकी की हुँकार से डराया तो पानी का बरतन कुत्ते के मुँह से फिसल गया और एक मिट्टी के बरतन पर जा गिरा जिससे वह मिट्टी का बरतन टूट गया। बचे हुऐ बरतन भी इधर उधर हो गये और उनका पानी बिखर गया।

बुढ़िया ने एक डंडी उठायी और कुत्ते को मारने के लिये उठी। कुत्ते ने उसका स्कर्ट पकड़ लिया और अपना मुँह उसके पैरों पर मलने लगा और पूँछ हिलाने लगा।

फिर वह पहाड़ की तरफ भागा। लौट कर वह फिर वह बुढ़िया की तरफ भागा। कभी वह अपने मुँह में रस्सी पकड़ लेता और कभी बरतन पकड़ लेता फिर कभी उसका स्कर्ट पकड़ लेता पर वह उसको बराबर खींचता ही रहा।

अल्लाह ने बुढ़िया के दिल में कुछ पैदा किया। उसने रस्सी और पानी का एक बरतन उठाया और उसके साथ साथ चल दी। वह उसके कपड़े पकड़े पकड़े झोंपड़ी के बाहर तक आया फिर उसके आगे आगे चलने लगा।

आखिर वह उसको रास्ता दिखाते दिखाते पहाड़ पर ले आया। कुत्ते के व्यवहार से बुढ़िया ने सोचा कि इसका मालिक कुँए में बन्द है और शायद यह अपने मालिक को पानी पिलाना चाहता है। बुढ़िया को रास्ता दिखाता हुआ वह उसको कुँए तक ले आया।

बुढ़िया ने अपनी बालटी पानी से भरी और उसको रस्सी के सहारे कुँए में नीचे लटका दिया। मैंने बरतन पकड़ लिया। मैंने पहले रोटी का एक टुकड़ा खाया और फिर उसके ऊपर दो तीन घूँट पानी पिया। इस तरह से मैंने अपनी भूख और प्यास शान्त की।

मैंने अल्लाह को इस सहायता के लिये बहुत बहुत धन्यवाद दिया और एक कोने में बैठ गया। धीरज के साथ मैंने अल्लाह के फिर से बीच में आने का इन्तजार करते हुए कहा — “अब देखते हैं कि अब और आगे क्या होता है। ”

इस तरह से इस बेजुबान जानवर मेरे लिये रोटी लाता रहा और बुढ़िया के द्वारा पानी लाता रहा।

जब बेकर ने देखा कि यह कुत्ता इस तरह से रोज ही रोटी ले जाता है तो उसको उस पर दया आ गयी। अब वह जब भी उसे देखता तो वह अपने आप ही उसकी तरफ एक रोटी फेंक देता।

और अगर वह बुढ़िया कभी पानी लाना नहीं चाहती तो यह कुत्ता उसके बरतन तोड़ देता। इससे वह मजबूर हो कर उसको एक बालटी पानी लाने देती।

इस तरह से इस जानवर ने मेरी रोटी और पानी की कमी को पूरा किया। इसके अलावा यह हमेशा उस जेल के पास ही लेटा रहता।

इस तरह से छह महीने गुजर गये। [21] पर ज़रा यह सोचिये कि इतने दिनों तक इस तरह से रहने पर ऐसे बन्दी की क्या हालत होगी जिसके पास स्वर्ग की हवा कभी नहीं पहुँच सकती थी।

मेरी केवल खाल और हड्डियाँ ही बची हुई थीं। ज़िन्दगी मेरे लिये एक बोझ बन गयी थी। मैं अपने दिल में अल्लाह से बराबर यही प्रार्थना करता कि बस अब तुम मुझे उठा लो।

एक रात दोनों बन्दी सो रहे थे। मेरे दिल को बहुत दुख हुआ मैं बहुत ज़ोर ज़ोर से रो पड़ा और अपने दुश्मनों को खत्म करने के लिये जमीन पर नाक रगड़ने लगा।

सुबह होने से कुछ देर पहले रात के पिछले प्रहर में मैं क्या देखता हूँ कि अल्लाह की मेहरबानी से एक रस्सी कुँए में लटक रही थी। मैंने सुना कि कोई बहुत ही धीमी आवाज में कह रहा था — “ओ अभागे नीच। इस रस्सी से तू अपने हाथ थोड़े ढीले बाँध और इस जगह से बाहर भाग जाना। ”

पहले तो मुझे लगा कि शायद मेरे भाइयों के दिल में मेरे लिये कुछ दया आ गयी हो और क्योंकि हमारा खून का रिश्ता है इसलिये अपनी जिम्मेदारी पर मुझे यहाँ से निकालने के लिये आ गये हों। खुशी से मैंने वह रस्सी अपनी कमर में बाँध ली और किसी ने मुझे ऊपर खींचना शुरू किया।

रात बहुत अँधेरी थी कि मैं उस आदमी को पहचान नहीं सका जिसने मुझे ऊपर खींचा था। जब मैं बाहर आ गया तो वह बोला — “आओ जल्दी आओ देर करने का समय नहीं है। ”

मेरे अन्दर ताकत तो थी नहीं पर डर के मारे मैं पहाड़ पर से जितनी अच्छी तरह से मुझसे हो सकता था लुढ़कता हुआ सा चला जा रहा था।

नीचे पहुँच कर मैंने देखा कि वहाँ दो घोड़े तैयार खड़े थे। उस आदमी ने एक घोड़े पर मुझे बिठाया और दूसरे पर खुद बैठ गया और हम चल दिये। आगे बढ़ कर हम एक नदी के किनारे पहुँच गये।

सुबह हो गयी थी और हम लोग 10–12 कोस शहर से दूर चले गये थे। तब मेंने उस आदमी को ठीक से देखा। वह आदमी पूरे तरीके से हथियारबन्द था। उसके शरीर पर वर्दी थी। उसके चारों तरफ यानी आगे पीछे और दोनों बगलों की तरफ चमकता हुआ लोहा लगा हुआ था। उसके घोड़े ने भी लोहे का जिरहबख्तर पहना हुआ था। वह मुझे गुस्से की नजर से देख रहा था।

गुस्से से अपने होठ काटते हुए उसने अपनी म्यान में से तलवार निकाली और मेरी तरफ कूदते हुए मेरे शरीर पर घाव का एक निशान बनाया। मैं घोड़े से नीचे गिर गया और मैंने उससे दया की भीख माँगी।

मैंने कहा — “मैं निर्दोष हूँ। तुम मुझे क्यों मारना चाहते हो। ओ मेहरबान जनाब। आपने मुझे एक ऐसे जेल से निकाला है और तलवार से घाव भी कर दिया है अब आप मेरे साथ यह ऐसे निर्दयी काम क्यों कर रहे हैं। ”

उसने मुझसे पूछा — “तुम मुझे सच सच बताओ कि तुम कौन हो। ”

मैंने जवाब दिया कि मैं एक यात्री हूँ और बहुत सारी मुसीबतों में फँस गया हूँ। केवल आपकी सहायता से मैं कम से कम ज़िन्दा निकल आया हूँ। मैंने उससे कई चापलूसी वाले शब्द भी कहे।

अल्लाह की दुआ से उसका मन भी मेरे लिये दया से भर गया। उसने अपनी तलवार अपनी म्यान में रख ली और बोला — “जैसा अल्लाह चाहता है वैसा होता है। जाओ मैं तुम्हारी ज़िन्दगी बख्शता हूँ। तुरन्त ही अपने घोड़े पर सवार हो जाओ। यह जगह कोई देर करने की नहीं है। ”

हमने अपने अपने घोड़े दौड़ा दिये और सड़क पर आगे बढ़ते चले गये। वह बार बार असन्तुष्टि की साँसें लिये जा रहा था जैसे उसे किसी बात का दुख हो।

दोपहर तक हम एक टापू के पास तक पहुँच गये थे। यहाँ आ कर वह नौजवान अपने घोड़े से उतरा और उसने मुझे भी उतारा। उसने घोड़ों की पीठ से उनकी जीन उतारी और उन्हें चरने के लिये छोड़ दिया। उसने अपने शरीर से हथियार भी निकाले और बैठ गया।

बैठ कर वह मुझसे बोला — “ओ बदकिस्मत। अब तुम अपनी कहानी बताओ ताकि मैं यह जान सकूँ कि तुम कौन हो। ”

मैंने उसे अपना नाम बताया अपने रहने की जगह बतायी और जो कुछ अपने बारे में बता सकता था बताया।

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[1] The Tale of Azad Bakht-Part One (Tale No 3) – taken from :

http://www.columbia.edu/itc/mealac/pritchett/00urdu/baghobahar/04_azadbakht_a.html

[2] The veiled horseman who rescued the first and second Darweshes from self-destruction.

[3] Badakhshan is a part of the grand province of Khurasan, and the city of Balkh is its metropolis, to the eastward of which is a chain of mountains celebrated for producing fine rubies.

[4] A Miskal is four and a half Maashaas; our ounce contains 24 Maashaas. As the ruby weighed five Miskals, so it weighed almost an ounce, 5 x 4.5 = 22.5 Maashaa

[5] Naishapur

[6] Seven Miskal means 7 x 4.5 Maashaa = 31.5 Maashaa – a little more thans an Ounce

[7] The term Farang, vulgarly Frank, was formerly applied to Christian Europe in general, with the exclusion of Russia.

[My Note : In India also these people were called “Firangee”.]

[8] Later we will call her “Young Merchant” – Naujawaan Saudaagar

[9] Translated for the words “Foster Father”

[10] Morchhals are fly-flaps, to drive away flies mosquitoes away. They are of several types with different names. The best kind is made of the fine white long tail of the mountain cow and is called “Chanwar”, the other one is made from long feathers from the peacock's tail – this is called Morchhal as it is made of peacock’s feathers. The other type is the odoriferous roots of a species of grass called Khas. It gives a sweet smell too when with sprinkle with water.

[11] The city of Naishapur being some 270 miles inland, it would not be easy for the young merchant to reach it by sea. Asiatic story-tellers are not at all particular in regard to matters of geography.

[12] Ajam means, in general, Persia; the Arabs use it in the same sense as the Greeks did the word "barbarian;" and all who are not Arabs they call 'Ajami; more especially the Persians.

[13] Sarae, serai, or caravanserai, or Saraay are buildings for the accommodation of travellers, merchants, etc in cities, and on the great roads in Asia. Those in Upper Hindustan, built by the emperors of Dilli, are grand and costly; they are either of stone or burnt bricks. In Persia, they are mostly of bricks dried in the sun. In Upper Hindustan they are commonly sixteen to twenty miles distant from each other, which is a manzil or stage. They are generally built of a square or quadrangular form with a large open court in the centre, and contain numerous rooms for goods, men, and beasts.

[14] 500 slaves from the Steppes of Kapchak, Zang and Rum, means Tartar, African and Turkish slaves.

[15] The coffee and pipe are always presented to visitors in Turkey, Arabia, and Persia, and they are considered as indispensable in good manners. [In India this is not the case. Sometimes hot rose-water with sugar are given in the three former countries.]

[16] A person from Abyssinia, Abyssinia means Ethiopia.

[17] An important city in Uzbekistan (Asia), Tartary, situated on Silk Route.

[18] One Kos = 2 English Milea (15 Furlong); 1 Furlong = 220 yards; 8 Furlong = 1 Mile

[19] Qibla means Kaba. When Muslims pray they do it facing Kaba. Shahadat means the prayer which they read befor going against Muslims, such as Christians or Pagans.

[20] According to the Muhammadan belief, Nakir and Munkir are two angels who attend at the moment of death, and call to an account the spirit of the deceased.

[21] [My Note : It is very unnatural that inspite of knowing that somebody was in the well, both the baker and the old woman did not inform any body to take out the merchant out of the well, and he had to live in it there for six months.]

(क्रमशः अगले खंडों में जारी...)

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रचनाकार: लोक कथा - किस्सए चार दरवेश - सुषमा गुप्ता - खंड दस
लोक कथा - किस्सए चार दरवेश - सुषमा गुप्ता - खंड दस
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