लोक कथा - किस्सए चार दरवेश - सुषमा गुप्ता - खंड 12

SHARE:

पूर्व खंड - खंड 1 | खंड 2 | खंड 3 | खंड 4 | खंड 5 | खंड 6 | खंड 7 | खंड 8 | खंड 9 | खंड 10 | खंड 11 | भूली बिसरी लोक कथाएँ सीरीज़ ...


पूर्व खंड -

खंड 1 | खंड 2 | खंड 3 | खंड 4 | खंड 5 | खंड 6 | खंड 7 | खंड 8 | खंड 9 | खंड 10 | खंड 11 |

भूली बिसरी लोक कथाएँ सीरीज़–24


किस्सये चार दरवेश

अमीर खुसरो – 1300–1325


अंग्रेजी अनुवाद -

डन्कन फोर्ब्ज़ – 1857


हिन्दी अनुवाद -

सुषमा गुप्ता

अक्टूबर 2019

---

खंड 12


7 तीसरे दरवेश के कारनामे[1]

उसके बाद तीसरे दरवेश ने आराम से बैठते हुए अपनी यात्राओं के बारे में बताना शुरू किया —

ओ दोस्तों अब इस तीर्थयात्री की कहानी सुनो

मतलब जो कुछ मेरे साथ हुआ उसकी कहानी सुनो

प्रेम के राजा ने मेरे साथ कैसा व्यवहार किया

वह मैं तुम्हें विस्तार में बताता हूँ सुनो

यह बेचारा फारस का राजकुमार है। मेरे पिता उस देश के राजा थे और मैं उनका अकेला बच्चा हूँ। जब मैं नौजवान हो गया तो मैं अपने साथियों के साथ चौपड़[2] ताश शतरंज और बैकगैमन[3] आदि खेल खेला करता था। मैं घुड़सवारी भी करता था। मुझे शिकार का पीछा करने में बहुत अच्छा लगता था।

एक दिन मैंने अपने शिकारी साथियों को बुलाया और उनको और अपने दोस्तों को साथ ले कर हम सब मैदान की तरफ निकल पड़े। हमने बाज़ों को बतखों और तीतरों के ऊपर छोड़ दिया। हमने उनका बहुत दूर तक पीछा किया।

दौड़ते दौड़ते हम एक बहुत सुन्दर जमीन पर आ गये। जहाँ तक हमारी नजर जाती थी, मीलों दूर तक चारों तरफ हरियाली दिखायी देती थी और उसमें लाल रंग के फूल। वह मैदान बस एक लाल की तरह दिखायी देता है।

इतना सुन्दर दृश्य देख कर हम लोगों ने अपने अपने घोड़ों की रास ढीली कर दी और धीरे धीरे वहाँ की सुन्दरता को देखते हुए इधर उधर घूमते रहे।

अचानक हमको एक काला हिरन दिखायी दे गया। उसके ऊपर एक ब्रोकेड का कपड़ा पड़ा हुआ था और उसकी गरदन में जवाहरात जड़ा पट्टा पड़ा हुआ था। उस पट्टे से सोने का काम की गयी एक घंटी बँधी हुई थी।

वह वहाँ मैदान में निडरता से घास चरता हुआ घूम रहा था जहाँ शायद कभी कोई आदमी नहीं गया होगा। जहाँ कभी किसी चिड़िया ने भी पर नहीं मारे होंगे।

हमारे घोड़ों की टापों की आवाज सुन कर वह चौंक गया और सिर उठा कर ऊपर देखने लगा। उसने हमें देखा और फिर धीरे धीरे आगे बढ़ गया।

यह देख कर मेरी उत्सुकता बढ़ गयी मैंने अपने साथियों से कहा — “मैं इसको ज़िन्दा पकड़ूँगा। ध्यान रखना एक कदम भी आगे नहीं बढ़ना और न ही मेरा पीछा करने की कोशिश करना। मैं एक ऐसे तेज़ घोड़े पर चढ़ गया जो मैं अक्सर हिरन का पीछा करते समय इस्तेमाल करता था। वह उनसे भी तेज़ भागता था और मैं एक के बाद एक उन्हें अपने हाथों से जल्दी ही पकड़ लेता था। मैं उसके पीछे भागा चला जा रहा था।

मुझे अपने पीछे आता देख कर वह तेज़ी से भाग लिया। मेरा घोड़ा भी हवा से बातें कर रहा था पर वह उसके पीछे उड़ती हुई धूल तक भी नहीं पहुँच पा रहा था। घोड़े के शरीर से पसीना बहने लगा और मेरी जबान भी प्यास से एँठने लगी।

पर अभी कोई और रास्ता नहीं था। शाम होने आ रही थी और मुझे यह भी नहीं पता था कि मैं कितनी दूर आ गया हूँ या मैं कहाँ था। यह देख कर कि मैं इस जानवर को नहीं पकड़ पाऊँगा मैंने उसे ज़िन्दा पकड़ने का अपना उद्देश्य बदला और अपने तरकस से एक तीर निकाला।

मैंने अपनी कमान ठीक की और अल्लाह का नाम ले कर एक तीर उसकी जाँघ की तरफ साध कर फेंक दिया। पहला तीर उसकी टाँग में लग गया और वह लँगड़ाता हुआ वह पहाड़ की तलहटी की तरफ भाग गया।

clip_image002मैं अपने घोड़े से उतरा और पैदल ही उसका पीछा करने लगा। कई बार चढ़ने उतरने के बाद मुझे एक गुम्बद[4] दिखायी दिया।

जब मैं उसके पास पहुँचा तो मुझे वहाँ एक बागीचा और एक फव्वारा दिखायी दिया पर हिरन मुझे कहीं दिखायी नहीं दे रहा था। मैं बहुत थका हुआ था सो मैं अपना चेहरा और अपने पाँव फव्वारे के पानी में धोने लगा।

तुरन्त ही मुझे रोने की आवाज सुनायी पड़ी जैसे वह गुम्बद में से आ रही हो। जैसे कोई कह रहा हो “ओ मेरे बच्चे अल्लाह करे मेरे दुख का तीर उसके शरीर में लग जाये जिसने तुझे यह तीर मारा है। अल्लाह करे कि उसको उसको जवानी का फल न मिले। अल्लाह करे कि वह मेरी तरह से दुखी रहे। ”

ये शब्द सुन कर मैं उस महल के अन्दर गया तो मैंने देखा कि एक इज़्ज़तदार बूढ़ा वहाँ बैठा हुआ है। उसकी दाढ़ी सफेद है उसने अच्छे कपड़े पहने हुए हैं और वह एक मसनद के सहारे बैठा है। वह हिरन उसके सामने लेटा हुआ है। वह उसकी जाँघ से तीर निकाल रहा है और उसको तीर मारने वाले को कोस रहा है।

अन्दर पहुँच कर मैंने उसे सलाम किया और हाथ जोड़ कर बोला — “जनाब मुझसे यह अपराध अनजाने में हो गया है। मुझे नहीं मालूम था कि यह आपका हिरन है। अल्लाह के लिये आप मुझे माफ कर दें। ”

वह बूढ़ा बोला — “तुमने एक बेजुबान जानवर को तकलीफ पहुँचायी है। अगर तुमने इसे अनजाने में मारा है तो अल्लाह तुम्हें माफ करेगा। ”

मैं उसके पास ही बैठ गया और उसको हिरन के शरीर से तीर निकालने में सहायता करने लगा। हम लोगों ने उसे बड़ी मुश्किल से निकाला। मैंने उसके घाव पर बालसम का मरहम लगाया और उसको छोड़ दिया।

बाद में हमने हाथ धोये और बूढ़े ने मुझे कुछ खाने के लिये दिया जो तैयार ही था। अपनी भूख प्यास बुझाने के बाद मैं एक चारपाई पर आराम करने के लिये लेट गया।

पेट भर कर खाना खाने के बाद थका हुआ होने की वजह से मुझे बहुत गहरी नींद आयी। सोते में भी मुझे वे रोने की आवाजें आती रहीं। तो मैंने अपनी आँखें खोल कर उनहें मलते हुए इधर उधर देखा ते उस कमरे में न तो वह बूढ़ा था और न कोई और।

मैं बिस्तर पर अकेला लेटा हुआ था और कमरा बिल्कुल खाली था। मुझे कुछ डर लगा तो मैं चारों तरफ घूम घूम कर देखने लगा। एक कोने में मुझे एक परदा पड़ा हुआ दिखायी दिया।

मैंने उसको ऊपर उठाया तो देखा कि वहाँ एक सिंहासन रखा हुआ था। उस पर करीब करीब 14 साल की एक देवदूत जैसी सुन्दर लड़की बैठी हुई थी।

उसका चेहरा चाँद जैसा था। उसके घुँघराले बाल उसके सिर के दोनों तरफ लटके हुए थे। उसका चेहरा मुस्कुराता हुआ था। वह एक यूरोपियन लड़की की तरह के कपड़े पहने हुए थी। और वह सामने देख रही थी।

वह इज़्ज़तदार बूढ़ा उसके सामने जमीन पर उलटा लेटा हुआ था। बूढ़े की हालत और उस लड़की की सुन्दरता देख कर मैं तो खो ही गया या हो सकता है कि फिर मर ही गया होऊँ। मैं एक लाश की तरह नीचे गिर पड़ा।

बूढ़े ने मुझे इस तरह बेहोश हो जाते देखा तो वह गुलाब जल ले कर आया और उसे मेरे ऊपर छिड़का। जब मैं कुछ होश में आया तो मैं उठा और देवकन्या के पास तक गया और उसे सलाम किया।

उसने मेरे सलाम का न तो कोई जवाब दिया और न अपने होठ ही खोले। मैं बोला — “ओ सुन्दर देवदूत। ऐसा कौन से धर्म में लिखा है कि किसी आदमी को इतना घमंडी होना चाहिये कि वह किसी के सलाम का भी जवाब न दे। ”

हालाँकि थोड़ा बोलना अच्छा है तो भी इतना थोड़ा नहीं

कि अगर प्यार करने वाला मर रहा है तो भी होठ न खोले जायें

कम से कम उसके लिये जिसने तुझे बनाया है मैं विनती करता हूँ कि मुझे जवाब तो दो। मैं तो यहाँ इत्तफाक से आ गया हूँ और मेहमान को खुश करना तो किसी का भी फर्ज होता है। ”

मैंने उससे बहुत कुछ कहा पर उससे कुछ भी कहना बेकार था। वह मुझे सुन रही थी पर एक पत्थर की मूर्ति की तरह ही बैठी रही।

मैं फिर आगे बढ़ा और उसके पैरों पर अपने हाथ रखे। जैसे ही मेरे हाथों ने उसके पैरों को छुआ तो वे मुझे बहुत सख्त लगे। तब मुझे लगा कि वह सुन्दर चीज़ तो पत्थर की बनी थी। इस मूर्ति को अज़ुर[5] ने बनाया था।

तब मैंने उस मूर्ति की पूजा करने वाले बूढ़े से कहा — “जब मैंने आपके हिरन की टाँग में तीर मारा तो आपने मुझे प्यार का तीर कह कर कोसा।

आपका शाप काम कर रहा है। मेहरबानी करके मुझे बताइये कि इन हालातों का क्या मतलब है आपने यह तलिस्मान क्यों बनाया हुआ है और लोगों के रहने की जगह छोड़ कर आप इन जंगलों और पहाड़ों में क्यों रहते हैं। आप मुझे सब कुछ बताइये कि आपके साथ क्या हुआ है। ”

जब मैंने उनके ऊपर काफी दबाव डाला तब वह बोले — “इस मामले ने तो मुझे बरबाद ही कर दिया। क्या तुम भी उसको सुन कर बरबाद हो जाना चाहते हो। ”

मैं बोला — “ज़रा रुकिये। आपने तो पहले से ही उसे बताने से बचने के कई रास्ते निकाल लिये हैं। ऐसा आपने क्यों किया। जवाब दीजिये वरना में आपको मार दूँगा। ”

मुझे बहुत जल्दी गुस्सा देख कर वह बोले — “ओ नौजवान अल्लाह हर आदमी को प्रेम की जलती हुई आग की गरमी से बचा कर रखे। देखो तो ज़रा कि इस प्यार ने किस तरह की आफत डाली है। प्यार के लिये एक स्त्री किस तरह अपने पति के साथ जल कर अपनी ज़िन्दगी की बलि दे रही है।

सब लोग मजनूँ और फरहाद की कहानी जानते हैं। फिर तुम यह कहानी सुन कर क्या करोगे। क्या तुम घर छोड़ दोगे या क्या अपनी किस्मत छोड़ दोगे या फिर अपना देश छोड़ कर इधर उधर घूमते रहोगे। ”

मैं बोला — “रुकिये। आप अपनी दोस्ती केवल अपने तक ही रखें। जान लीजिये कि मैं आपका दुश्मन हूँ। और अगर आपको अपनी ज़िन्दगी प्यारी है तो आप मुझे अपनी कहानी साफ साफ बता दें। ”

यह देख कर कि अब कोई दूसरा रास्ता नहीं है उनकी आँखों में आँसू आ गये और उन्होंने कहना शुरू किया — “इस अभागे की कहानी यह है। इस नौकर का नाम निमान सैया[6] है।

मैं एक बहुत बड़ा सौदागर था जो इस उम्र तक पहुँचा है। मैंने अपने व्यापार के सिल्सिले में दुनिया के बहुत सारे हिस्से देखे हैं और इस तरह से बहुत सारे राजाओं से मिल चुका हूँ।

एक बार मेरे मन में कुछ ऐसा विचार आया कि मैंने पहले ही दुनिया चारों तरफ से देख ली है पर मैं कभी फ़्रैंक टापू[7] नहीं गया। वहाँ के राजा से नहीं मिला। उनके लोग और सेना नहीं देखी। वहाँ के रीति रिवाजों का भी मुझे कुछ पता नहीं है। इसलिये कम से कम एक बार तो मुझे वहाँ भी जाना चाहिये।

मैंने अपने साथियों और दोस्तों से सलाह की तो तय यह हुआ कि हाँ हमको वहाँ जाना ही चाहिये। सो मैंने कुछ मुश्किल से मिलने वाला सामान इकठ्ठा किया दूसरे देशों से कुछ बढ़िया भेंटें इकठ्ठी कीं जो उस टापू के लायक होतीं।

फिर और सौदागरों का एक काफिला बना कर हम एक जहाज़ पर चढ़े और उस टापू की तरफ चल दिये। हमारी हवाएँ हमारी यात्रा के अनुकूल थीं सो हम जल्दी ही कुछ ही महीने में उस टापू पर पहुँच गये।

वहाँ पहुँच कर मैंने एक ऐसा शानदार शहर देखा जिसकी सुन्दरता के मुकाबले में वैसा कोई शहर नहीं था। उसके सारे बाजार गलियाँ सड़क सभी पक्की बनी हुई थीं और उन पर पानी छिड़का हुआ था। वे सब इतनी साफ थीं कि कहीं भी एक तिनका भी दिखायी नहीं देता था धूल मिट्टी का तो कहना ही क्या।

वहाँ कई तरह की इमारतें थीं। रात को वहाँ सड़कों पर रोशनी होती थी। थोड़ी थोड़ी दूर पर रोशनी की दो दो कतारें भी थीं। शहर के बाहर खुश करने वाले बागीचे बने हुए थे जिनमें मुश्किल से मिलने वाले फूल झाड़ियाँ फल लगे हुए थे। वैसे बागीचे कहीं और मिलने मुश्किल थे सिवाय स्वर्ग के।

थोड़े में कहो तो इस शहर की मैं जितनी भी तारीफ करूँ सच से कहीं कम है।

सब लोग वहाँ हम सौदागरों की ही बातचीत कर रहे थे। एक खास आदमी[8] अपने बहुत सारे साथियों के साथ हमारे काफिले के पास आया और सौदागरों से पूछा — “तुम्हारा सरदार कौन है?”

तो सब लोगों ने मेरी तरफ इशारा कर दिया तो वह मेरे पास आया। मैं उठा और उसका इज़्ज़त के साथ स्वागत किया। हम दोनों ने आपस में सलाम किया और मैंने उसे मसनद पर बिठाया और एक तकिया उसको दिया।

यह सब करके मैंने उससे पूछा कि ऐसा क्या मौका था जिसके लिये मुझे इतनी इज़्ज़त मिली। वह बोला — “राजकुमारी जी ने सुना है कि कुछ सौदागर आये हुए हैं जो काफी सारा सामान ले कर आये हैं। इसलिये उन्होंने मुझसे कहा है कि मैं उनको ले कर उनके पास ले जाऊँ।

इसलिये आप मेरे साथ अपना वह सब सामान ले कर चलिये जो किसी शाही दरबार के लायक होता है और उनकी देहरी चूमने का आनन्द लीजिये। ”

मैं बोला — “मैं आज ही चलता पर आज मैं बहुत थका हुआ हूँ। कल मैं उनकी सेवा में अपनी जान और सामान के साथ हाजिर होऊँगा। जो कुछ भी मेरे पास होगा मैं वह उनको भेंट करूँगा फिर जो कुछ भी हर मैजेस्टी को पसन्द आयेगा वह उनका होगा। ”

यह वायदा करके मैंने उसको गुलाबजल और पान दिया और विदा किया। फिर मैंने अपने सौदागरों को बुलाया और फिर जिस किसी सौदागर के पास जो भी कोई मुश्किल से मिलने वाल सामान था वह सब इकठ्ठा किया और जो कुछ मेरे पास था वह सब भी इकठ्ठा किया अअैर उन सबको ले कर अगले दन सुबह शाही महल के दरवाजे पर पहुँच गया।

चौकीदार ने राजकुमारी जी को मेरे आने की खबर दी तो राजकुमारी ने मुझे अपने सामने बुलवाया। वहँ खास आदमी अन्दर से निकल कर आया और मेरे हाथ पकड़ कर मुझे राजकुमारी जी के पास ले गया।

जब हम लोग दोस्ताना तरीके से बात करते जा रहे थे तो दासियों के कमरे पार करने के बाद वह मुझे एक बहुत ही बढ़िया कमरे में ले गया। ओ मेरे दोस्त तुम विश्वास नहीं करोगे वहाँ का दृश्य इतना सुन्दर था जैसे वहाँ परियों को आजाद छोड़ दिया गया हो। मैं उस कमरे में जिस तरफ भी देखता मैं बस उसी तरफ देखता रह जाता। मेरा सारा शरीर काँप जाता। मैं अपने आपको बड़ी मुश्किल से सँभाल पा रहा था।

मैं राजकुमारी जी के सामने जा पहुँचा। जैसे ही मैंने राजकुमारी जी की तरफ देखा मेरे हाथ पैर सब काँपने लगे। बड़ी मुश्किल से मैं ठीक से खड़े हो कर उनको सलाम कर पाया। उनके दोनों तरफ बहुत सुन्दर लड़कियाँ लाइन लगा कर खड़ी हुई थीं। उनके हाथ उनके सीने पर एक दूसरे के ऊपर रखे हुए थे।

मैंने राजकुमारी जी के सामने किस्म किस्म के जवाहरात बढ़िया कपड़े और कुछ मुश्किल से मिलने वाला सामान रखा। उन्होंने उनमें से कुछ चीज़ें तो तुरन्त ही चुन कर रख लीं क्योंकि वे थीं ही इस काबिल।

वह उन चीज़ों को देख कर बहुत खुश हुईं। उन्होंने उनको चुन कर अपने नौकर को दे दिया। नौकर ने मुझसे कहा कि जितनी कीमत मैंने उनकी बतायी थी उनकी वह कीमत अगले दिन मुझे दे दी जायेगी।

मैंने उसको झुक कर सलाम किया और दिल ही दिल में खुश हो कर वहाँ से चला आया कि अब कम से कम अगले दिन मैं फिर से वहाँ आ सकता हूँ।

जब मैं राजकुमारी जी से विदा ले कर बाहर आया तो मैं पागलों की तरह से बात कर रहा था। इसी हालत में मैं सराय लौटा। पर मेरी इन्द्रियाँ अभी भी ठीक से काम नहीं कर रही थीं। मेरे सब दोस्त मुझसे पूछने लगे कि क्या बात है तो मैंने कहा कि आने जाने में जो गरमी मेरे दिमाग में चढ़ी उसकी वजह से मेरा दिमाग कुछ काम नहीं कर रहा है।

थोड़े में कहो तो उस रात मैं सारी रात सो नहीं सका। सारी रात मैं बिस्तर में इधर उधर करवटें बदलता रहा। अगले दिन सुबह को मैं राजकुमारी जी के पास में फिर से गया। मुझे उनका खास नौकर फिर से मुझे उनके पास ले गया।

उस समय भी कमरे का वही दृश्य था जो मैंने कल देखा था। राजकुमारी जी ने मेरा बड़ी नरमी से स्वागत किया। वहाँ जो कोई और था उन्होंने उसको वापस अपने अपने काम पर भेज दिया। तब वह अपने प्राइवेट कमरे में चली गयीं और मुझे भी उन्होंने वहीं बुला लिया।

जब मैं अन्दर गया तो उन्होंने मुझसे बैठने के लिये कहा। मैंने उनको सिर झुका कर सलाम किया और बैठ गया। वह बोलीं — अब क्योंकि तुम आ गये हो और तुम मेरे लिये यह सामान ले कर आये हो तो तुम क्या सोचते हो कि तुमको इसके ऊपर कितना फायदा होना चाहिये। ”

मैं बोला — “मेरी तो केवल आपको देखने की ही इच्छा थी योर हाइनैस जो मुझे अल्लाह ने पूरी कर दी। मुझे तो दोनों दुनिया की दौलत मिल गयी।

जो कुछ कीमतें मेरे परचे में लिखी हैं उसमें आधा पैसा उनकी कीमत है और बाकी आधा उसका फायदा है। ”

वह बोली — “नहीं तुमने जितनी भी कीमत उस परचे में लिखी है तुम्हें उतना ही पैसा दिया जायेगा। इसके अलावा तुमको भेंटें भी मिलेंगी पर एक शर्त पर कि तुम मेरा एक काम करोगे जो मैं तुमसे अभी कहने जा रही हूँ। ”

मैंने कहा — “आपके लिये इस गुलाम की जान और माल सभी हाजिर है मैं इसको अपनी खुशकिस्मती समझूँगा कि अगर इनमें से कुछ भी आपके काम आ जाये तो। ”

यह सुन कर उसने कलम दान मँगवाया और एक कागज पर एक नोट लिखा कागज को एक मोती के छोटे से बटुए में बन्द किया उसे मलमल के रूमाल में रखा और मुझे दिया।

इसी तरह से उसने मुझे एक अँगूठी भी दी जिसे उसने अपनी हाथ की उँगली में से उतारा था। वह तो उसने मुझे अपनी एक निशानी के रूप में दी थी ताकि मैं पहचाना जा सकूँ।

ये दे कर उसने मुझसे कहा — “शहर के सामने ही एक बहुत बड़ा बाग है उसका नाम है दिलकुशा यानी दिल को खुश कर देने वाला। तुम वहाँ जाओ। वहाँ एक आदमी है कैखुसरो[9] जो उस बागीचे की देखभाल करता है। यह अँगूठी उसके हाथ में देना उसको मेरा आशीर्वाद देना और इस नोट का जवाब ले कर आना।

वहाँ से तुम इतनी ही जल्दी लौट कर आना जैसे खाना तुमने वहाँ खाया और पानी यहाँ आ कर पिया। तुम देखना कि इस सेवा के लिये मैं तुम्हें क्या इनाम देती हूँ। ”

मैंने उनसे विदा ली और अपना रास्ता पूछते हुए चल दिया। जब मैं करीब दो कोस चल चुका तब मुझे बागीचा दिखायी पड़ा। जब मैं उसमें घुसा तो एक हथियारबन्द आदमी ने मुझे पकड़ लिया और मुझे बागीचे के दरवाजे से अन्दर ले गया।

clip_image004वहाँ मैंने एक नौजवान सोने के स्टूल पर बैठा देखा जो बिल्कुल शेर की तरह से लग रहा था। वह उस स्टूल पर बड़ी शान से बैठा था। उसने दाऊद का बनाया हुआ जिरहबख्तर पहन रखा था। उसके सीने पर प्लेटें लगी हुई थीं और उसने लोहे का एक हैल्मैट पहना हुआ था।

उसके पास ही 500 सिपाही तलवार और ढाल ले कर और तीर कमान ले कर खड़े हुए थे। लगता था कि वे उसके हुकुम का इन्तजार कर रहे थे।

मैंने उसके सामने जा कर उसको सलाम किया तो उसने मुझे बुलाया। मैंने उसको अँगूठी दी और उसकी बहुत तारीफ की। फिर मैंने उसको रूमाल दिखाया और अपने वहाँ आने के हालात बताये।

जैसे ही उसने मेरी बात सुनी तो उसने तो अपने दाँतों तले उँगली काट ली और अपने सिर पर हाथ मारते हुए बोला — “लगता है तुम्हारी बदकिस्मती तुम्हें यहाँ ले आयी है। खैर तुम बागीचे में जाओ। वहाँ साइप्रस के पेड़ पर लोहे का एक पिंजरा लटक रहा है। उसमें एक नौजवान बन्द है। यह नोट तुम उसको देना वह तुमको इसका जवाब दे देगा। जवाब ले कर तुरन्त लौट कर आओ। ”

मैं तुरन्त ही बागीचे में गया। अल्लाह कसम क्या बागीचा था वह। तुम यह कह सकते हो कि मैं जैसे मैं ज़िन्दा ही स्वर्ग में पहुँच गया था। हर पेड़ पर अलग अलग रंगों के फूल खिले हुए थे। इधर उधर फव्वारे चल रहे थे। पेड़ों पर चिड़ियें चहचहा रही थीं।

मैं सीधा उसी पेड़ की तरफ चला गया। वहाँ मुझे पिंजरा टँगा हुआ दिखायी दे गया। मैंने देखा कि उस पिंजरे में एक बहुत ही सुन्दर नौजवान बन्द था।

मैंने उसको बड़ी इज़्ज़त के साथ सिर झुकाया सलाम किया और वह बन्द किया हुआ नोट उसको पिंजरे की जाली में से थमा दिया। उस नौजवान ने वह नोट खोला और मुझसे राजकुमारी के बारे में पूछा।

अभी हमारी बात खत्म भी नहीं हुई थी कि नीग्रो लोगों की एक सेना वहाँ आ पहुँची और आ कर मुझे चारों तरफ से घेर लिया। तुरन्त ही उन्होंने मुझे पीटना शुरू कर दिया। अब उन इतने सारे लोगों के सामने मैं अकेला निहत्था क्या करता। पल भर में ही मेरा शरीर घावों से भर गया।

अब न मुझे कुछ महसूस हो रहा था और न मुझे अपने बारे में ही कुछ याद था। जब मुझे कुछ होश आया तो मैंने अपने आपको बिस्तर पर लेटा पाया। उसे दो सिपाही अपने कन्धों पर रख कर ले जा रहे थे।

वे आपस में बात करते जा रहे थे — “चलो हम इस नौजवान की लाश को मैदान में फेंक देते हैं। जल्दी ही इसे कौए और कुत्ते खा जायेंगे। ”

दूसरा बोला — “अगर कहीं राजा ने इस बात का पता करवाया और उनको पता चल गया तो वह हमको तो ज़िन्दा गड़वा देंगे और हमारे बच्चों की चटनी पिसवा देंगे। क्या हमारी ज़िन्दगी हमारे ऊपर इतना ज़्यादा बोझ है जो हम ऐसा करें। ”

उन दोनों की यह बात सुन कर मैंने उन दोनों, गौग और मगौग, से कहा — “खुदा के लिये मेरे ऊपर दया करो। मेरे शरीर में अभी जान बाकी है। जब मैं मर जाऊँ तब तुम लोग जो चाहे मेरे साथ कर लेना। मरे हुए लोग तो ज़िन्दा लोगों के हाथ में होते हैं।

पर क्या तुम लोग मुझे बताओगे कि मुझे हुआ क्या है। मुझे क्यों घायल किया गया और तुम लोग कौन हो। तुम लोग मुझे कम से कम इतना तो बता दो। ”

यह सुन कर शायद उनके मुझ पर दया आ गयी वे बोले — “ओ नौजवान। जो नौजवान उस पिंजरे में बन्द है वह इस देश के राजा का भतीजा है। पहले इसका पिता ही इस देश का राजा था। मरते समय उसने अपने छोटे भाई से यह कहा था — “मेरा बेटा जो मेरे बाद मेरी गद्दी पर बैठेगा वह अभी छोटा है और उसको अभी कुछ अनुभव भी नहीं है इसलिये तुम उसको राज्य के मामलों में सलाह देना और रास्ता दिखाना।

जब वह शादी के लायक हो जाये तो अपनी बेटी की शादी उससे कर देना और उसको सारे राज्य और खजाने का मालिक बना देना।

यह कह कर मैजेस्टी मर गये और उनका छोटा भाई राजा बन गया। उन्होंने राजा के दफन में भी हिस्सा नहीं लिया। बल्कि उन्होंने लोगों में यह बात फैला दी कि उनका भतीजा तो पागल हो गया है।

उन्होंने उसको एक पिंजरे में बन्द कर दिया और बागीचे में चारों तरफ से इतने कड़े पहरे में रख दिया जहाँ कोई चिड़िया भी पर नहीं मार सकती।

कई बार उन्होंने अपने भतीजे को बहुत तेज़ जहर भी दिया। पर उसकी ज़िन्दगी जहर से ज़्यादा मजबूत है। वह उसके ऊपर कोई असर ही नहीं करता।

यह राजकुमारी और यह राजकुमार एक दूसरे को बहुत प्यार करते हैं। वह घर में बहुत परेशान रहती हैं और यह यहाँ पिंजरे में। उन्होंने राजकुमार को तुम्हारे हाथ अपना प्रेम पत्र भेजा था। राजा के जासूसों ने तुरन्त जा कर उनको खबर कर दी।

राजा ने अबीसीनिया के रहने वाले एक झुंड को बाहर जाने का हुकुम दिया और उन्होंने तुम्हारे साथ इस तरह का व्यवहार किया। राजा ने इस कैदी राजकुमार को मारने के बारे में अपने वजीर से सलाह ले ली है साथ में उसने राजकुमारी को भी इसे अपने सामने अपने हाथ से मारने के लिये राजी कर लिया है। ”

मैंने कहा — “चलो यह दृश्य तो मैं अपनी आँखों से अपने मरते मरते भी देखना चाहता हूँ। ”

आखिर वे मेरी इस विनती को मान गये और वे दोनों सिपाही और मैं हालाँकि घायल था फिर भी, तीनों एक जगह एक कोने में जा कर खड़े हो गये।

हमने राजा को अपने सिंहासन पर बैठे देखा। राजकुमारी के हाथ में एक नंगी तलवार थी। राजकुमार को पिंजरे से बाहर निकाला गया और ले जा कर राजा के सामने खड़ा करवाया गया।

अब राजकुमारी को तो उसे मारना ही था सो वह नंगी तलवार अपने हाथ में ले कर अपने प्यारे को मारने के लिये आगे बढ़ी। जब वह राजकुमार के पास तक आयी तो अचानक उसने तलवार फेंक दी और उसके गले लग गयी।

राजकुमार बोला — “मैं इस तरह मरने को तैयार हूँ। वाकई मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ। वहाँ पहुँच कर भी मैं तुम्हारे भले की ही मनाता रहूँगा। ”

राजकुमारी बोली — “मैं इस बहाने तुम्हें देखने आयी हूँ। ”

राजा यह दृश्य देख कर बहुत गुस्सा हो गया और अपने वजीर से बोला — “क्या तुम मुझे यहाँ यह दृश्य दिखाने के लिये ले कर आये हो?”

राजकुमारी की अपनी दासी ने राजकुमारी को राजुमार से अलग किया और उसको उसके महल में ले गयी। तब वजीर ने तलवार उठायी और गुस्से में भर कर राजकुमार की तरफ दौड़ा ताकि वह एक ही वार में राजकुमार की ज़िन्दगी का अन्त कर सके।

जैसे ही उसने उसे मारने के लिये अपना तलवार वाला हाथ उठाया एक अनजाना तीर कहीं से आया और उसके माथे पर आ कर लग गया। उसके सिर के दो टुकड़े हो गये और वह नीचे गिर पड़ा।

राजा ने जब यह अजीब सी घटना देखी तो वह अपने महल को चला गया और लोगों ने नौजवान राजकुमार को बागीचे ले जा कर फिर से पिंजरे में बन्द कर दिया।

मैं जहाँ खड़ा था वहाँ से बाहर आ गया और अपने रास्ते चला गया। रास्ते में किसी ने मुझे पुकारा और मुझे राजकुमारी जी के पास ले गया।

राजकुमारी जी ने जब देखा कि मैं तो बहुत बुरी तरह से घायल था तो उन्होंने एक डाक्टर को बुलवाया और उससे कहा कि तुम्हारी भलाई इसी में है कि वह मुझे तुरन्त ही ठीक कर दे और ठीक करने के लिये कहा और कहा इसको ठीक करने के लिये जो कुछ भी जरूरत हो वह तुरन्त कर दो। अगर तुम इसकी ठीक से देखभाल करोगे तो मैं तुमको बहुत सारी भेंटें और इनाम दूँगी।

थोड़े में कहो तो उस डाक्टर ने मुझे ठीक करने में अपनी सारी होशियारी लगा दी। चालीस दिन के बाद मैं नहा सका। उसके बाद वह मुझे राजकुमारी जी के पास ले गया। उन्होंने डाक्टर से पूछा — “क्या अभी और भी कुछ करना है। ”

मैंने जवाब दिया — “आपकी इन्सानियत की वजह से मैं अब बिल्कुल ठीक हूँ। ”

राजकुमारी जी ने मुझे अपने वायदे के अनुसार एक बहुत ही कीमती खिलात दिया और बहुत सारे पैसे दिये। उन्होंने मुझे और भी बहुत कुछ दिया और मुझे विदा किया।

मैंने अपने सब साथियों और नौकरों को साथ लिया वहाँ से अपने घर वापस चल दिया। जब मैं इस जगह आ गया तो मैंने सबको विदा किया और इस पहाड़ पर यह एक मकान बनवा लिया। मैंने राजकुमारी की भी एक मूर्ति बनवायी।

अब मैं यहीं रहता हूँ। मेरे जो दास और मेरे नौकर मेरी सेवा किया करते उनको मैंने यह कह कर विदा कर दिया कि अब जब मैं यहाँ रहता हूँ तो यह तुम्हारा काम है कि तुम मुझे खाना दो। बस अबसे तुम्हारा यही मेरा काम है बाकी के लिये तुम अपनी मरजी के मालिक हो जो चाहे करो। वे लोग मुझे बड़ी कृतज्ञता से मुझे खाना दे जाते हैं।

मैं यहाँ रह कर इसी मूर्ति की पूजा करता हूँ। जब मैं यहाँ रहता हूँ तो बस इसी की देखभाल करता हूँ। ”

यही मेरी यात्रा का हाल था जो तुम सबने अभी सुना।

ओ दरवेश। यह कहानी सुन कर मैंने अपनी कफनी अपने कन्धे पर ओढ़ ली और अपने दरवेश के रूप में आ गया।

मैं फिर से फ़्रैंक देश देखने के लिये चल दिया। पहाड़ों और मैदानों में काफी देर तक घूमने के बाद अब मैं मजनूँ फरहाद जैसा लगने लग गया था।

आखिर मेरी इच्छा फिर उसी देश को देखने की हुई जहाँ वह मूर्ति पूजने वाला हो कर आया था। मैं उसकी सड़कों और गलियों में पागलों की तरह से घूमता फिरा। हालाँकि मैं अक्सर राजकुमारी जी के महल के आस पास ही रहता था पर फिर भी मुझे उनसे मिलने का कोई मौका नहीं मिल पाया।

मैं बहुत दुखी था कि इतनी मुश्किलें और परेशानियों को सहने के बावजूद मैं उससे मिल नहीं पा रहा था। एक दिन मैं बाजार में खड़ा था कि अचानक सारे आदमी वहाँ से भागने लगे। दूकानदारों ने भी अपनी अपनी दूकानें बन्द करनी शुरू कर दीं। जो जगह अभी अभी इतनी भीड़ से भरी हुई थी वह देखते देखते उजाड़ हो गयी।

तभी मैंने एक आदमी एक पास आने वाली गली से आता हुआ दिखायी दिया। वह देखने में रुस्तम जैसा लगता था और शेर जैसा दहाड़ता आ रहा था। उसके दोनों हाथों में दो नंगी तलवारें थीं। उसने जिरहबख्तर पहन रखा था। उसकी कमर से दो पिस्तौलें बँधी हुई थीं। वह पागलों की तरह से अपने आपसे ही कुछ कुछ बड़बड़ाता चला आ रहा था।

उसके पीछे उसके दो दास थे। वे गरम कपड़े पहने हुए थे। उन्होंने सिर पर कशन[10] की मखमल की टोपियाँ पहने हुए थीं। यह देख कर मैंने आगे बढ़ना ठीक समझा। मैं जिनसे मिला उन्होंने मुझे उससे दूर करने की कोशिश की पर मैं उनकी सुनने वाला कहाँ था।

वह सबको धक्का देता हुआ आगे की तरफ एक बहुत बड़े घर की तरफ चला गया। मैं भी उसके साथ साथ ही चला गया। उसने पीछे मुड़ कर देखा तो मुझे अपने पीछे पीछे आते देखा तो उसने मुझे तलवार से मार कर मेरे दो टुकड़े करने चाहे तो मैंने उससे कहा यही तो मैं चाहता था।

मैंने कहा — “मैं तुम्हें अपना खून माफ करता हूँ। तुम मुझे मेरी ज़िन्दगी के इन दुखों से आजाद कर दो क्योंकि मुझे बहुत कष्ट है। मैं जानबूझ कर और अपने आप ही तुम्हारे रास्ते में आया हूँ। बस अब तुम देर मत करो और जल्दी ही मुझे मार दो। ”

यह देख कर कि मैं मरने पर उतारू हूँ अल्लाह ने उसके दिल में मेरे लिये कुछ दया भर दी। उसका गुस्सा कुछ ठंडा हो गया। वह बोला — “तू कौन है और अपनी ज़िन्दगी से इतना क्यों थका हुआ है। ”

मैंने कहा — “तुम थोड़ा बैठो तो मैं तुम्हें अपनी कहानी सुनाता हूँ,। मेरी कहानी थोड़ी लम्बी और मुश्किल है। मैं प्यार के पंजों में जकड़ा हुआ हूँ इसी लिये मैं बहुत निराश हूँ। ”

यह सुन कर उसने अपनी कमर की पेटी खोल दी। उसने अपने हाथ मुँह धोये खाना निकाला उसने खाना खुद भी खाया और मुझे भी दिया। जब हम दोनों ने खाना खा लिया तब वह बोला — “अच्छा अब बताओ तुम्हारे ऊपर क्या गुजरी है। ”

तब मैंने उसको बूढ़े और राजकुमारी की कहानी सुनायी और अपने यूरोप जाने की वजह बतायी।

यह सब सुन कर पहले तो वह रो पड़ा फिर बोला — “उफ़ इस लड़की ने कितने घर बरबाद किये हैं। खैर तुम्हारा इलाज मेरे पास है। हो सकता है कि इस अपराधी की वजह से आज तुम्हारी इच्छा पूरी हो जाये। तुम चिन्ता न करो। भरोसा रखो। ”

तब उसने एक नाई बुलवाया मेरी हजामत बनवायी मुझे नहलवाया। [11] उसके नौकर मेरे पहनने के लिये एक बहुत अच्छा जोड़ा ले कर आये जिसे पहन कर मैं तैयार हुआ।

clip_image006तब वह बोला — “यह लकड़ी का खाँचा जो तुम देख रहे हो यह उस मरे हुए राजकुमार का है जो उस पिंजरे में बन्द था। बाद में एक और वजीर ने उसको धोखे से मार दिया था। हालाँकि वह सब गलत था पर फिर भी वह कम से कम अपनी उस दुखी ज़िन्दगी से आजाद हो गया। मैं उसका पाला हुआ भाई[12] हूँ।

मैंने उस वजीर को एक ही झटके में अपनी तलवार से मार दिया था और राजा पर भी हमला करने की कोशिश की पर उसने मुझसे दया की भीख माँग ली। उसने कसम खायी कि वह इस बारे में कुछ नहीं जानता। मैंने उसे कायर कहते हुए डाँटा और उसको बच कर भाग जाने दिया।

तभी से यह मेरा धन्धा बन गया है कि मैं यह खाँचा अपने साथ रखता हूँ और हर महीने के पहले बृहस्पतिवार को सारे शहर में उस राजकुमार का दुख मनाते हुए घूमता हूँ। ”

उसके मुँह से यह सब सुन कर मुझे थोड़ी तसल्ली हुई। मैंने कहा — “अगर उसकी इच्छा हुई तो मेरी इच्छा जरूर पूरी हो जायेगी। अल्लाह ने मेरे ऊपर बड़ी मेहरबानी की है कि उसने एक ऐसे पागल आदमी को मेरे पास भेज दिया। यह कितना सच है कि अगर अल्लाह की मेहरबानी होती है तो सब कुछ ठीक हो जाता है। ”

जब शाम हुई सूरज छिपने लगा उस नौजवान ने अपना खाँचा उठाया और उसको बजाय अपने एक नौकर के सिर पर रखने के मेरे सिर पर रख दिया और मुझे अपने साथ ले कर चल दिया।

उसने मुझसे कहा — “मैं राजकुमारी के पास जा रहा हूँ। मैं उससे तुम्हारे लिये ज़्यादा से ज़्यादा वकालत करने की कोशिश करूँगा। तुम वहाँ कुछ नहीं बोलना। बस चुप रहना और सुनना। ”

मैंने कहा “ठीक है जैसा तुम कहोगे मैं वैसा ही करूँगा। अल्लाह तुम्हारी रक्षा करे क्योंकि तुमने मेरे मामले में दया दिखायी। ”

नौजवान अब शाही बागीचे की तरफ जा रहा था। जब हम उस बागीचे में जा रहे थे तो मैंने बागीचे की एक खुली जगह में संगमरमर का एक आठ कोने वाला चबूतरा देखा जिस पर चाँदी के धागों से बुना हुआ और मोतियों की झालर वाला कपड़ा बिछा हुआ था।

वह हीरे जड़े हुए खम्भों पर खड़ा हुआ था और ब्रोकेड के मसनद लगे हुए थे कीमती तकिये लगे हुए थे। वह खाँचा वहाँ रख दिया गया। हम दोनों को एक पेड़ के नीचे बैठने के लिये कह दिया गया था।

थोड़ी ही देर में रोशनी हुई और राजकुमारी जी वहाँ आयीं। उनके साथ उनकी कुछ दासियाँ थीं। दुख और गुस्सा उसके चेहरे पर साफ झलक रहा था। वह पाला हुआ भाई उसके सामने बड़ी इज़्ज़त के साथ खड़ा हुआ था।

बाद में वह फर्श के एक कोने में जा कर बैठ गया। मरे हुए की इज़्ज़त में प्रार्थना की गयी। पाले हुए भाई ने कुछ कहा। मैंने अपने कानों से सुना।

उसने कहा — “ओ दुनिया की राजकुमारी तुम्हारे फारस के राज्य में शान्ति रहे। फारस के राज्य के राजकुमार ने तुम्हारी गैरहाजिरी में तुम्हारी सुन्दरता के चरचे सुन कर अपनी राजगद्दी छोड़ दी है और इब्राहीम अधम[13] जैसा तीर्थयात्री बन गया है और बहुत मुश्किलें सहते हुए और बहुत मेहनत से यहाँ आया हुआ है।

उसने तुम्हारे लिये बल्ख[14] भी छोड़ा हुआ है। वह कुछ समय से यहाँ इस शहर में घूम रहा है और उसने मरने का इरादा किया हुआ है। वह मेरे पास आया और जब मैंने उसे मारने के लिये अपनी तलवार उठायी तो उसने मेरे सामने अपनी गरदन कर दी और मुझसे विनती की कि मैं उसे तुरन्त ही मार दूँ। उसने मुझसे कहा कि उसकी यही मरजी थी।

वह तुम्हारे प्यार में बुरी तरह से फँसा हुआ है। मैंने उसे जाँच कर देख लिया है। वह पूरी तरीके से तुम्हारे लायक है। इसी लिये मैंने उसका नाम तुम्हारे सामने लिया। अगर तुम इस मामले पर ध्यान दो और उस पर मेहरबान हो तो, क्योंकि वह एक अजनबी तो है ही, तो तुम्हारे लिये यह कोई बड़ी बात नहीं होगी क्योंकि कि तुम अल्लाह से डरती हो और न्याय को प्यार करती हो। ”

यह सुन कर राजकुमारी बोली — “कहाँ है वह? अगर वह सचमुच राजकुमार है तो ठीक है। उसको मेरे पास बुलाओ। ”

पाला हुआ भाई उठा और मेरे पास आया जहाँ मैं बैठा हुआ था और मुझे अपने साथ ले कर वहाँ चला जहाँ राजकुमारी बैठी हुई थी। मैं राजकुमारी को देख कर खुश तो बहुत हो गया पर मेरी इन्द्रियाँ और तर्क सब खो गये थे।

मेरे मुँह से तो एक शब्द भी नहीं निकला। मेरी तो जबान पर जैसे ताला ही लग गया था। कुछ देर बाद ही राजकुमारी अपने महल की तरफ लौट गयी थी और पाला हुआ भाई अपने महल चला गया था।

जब हम उसके घर आ गये तो वह मुझसे बोला — “मैंने राजकुमारी को तुम्हारे हालचाल शुरू से ले कर आखीर तक सब बता दिये हैं। साथ में तुम्हारी सिफारिश भी की है। अब तुम रोज वहाँ जा सकते हो और जा कर आनन्द ले सकते हो।

मैं उसके पैरों पर गिर गया और उसने मुझे उठा कर अपने सीने से लगा लिया। सारा दिन जब तक शाम होती मैं घंटे गिनता रहा ताकि मैं राजकुमारी के पास जा सकूँ।

जब शाम हुई मैंने उस नौजवान से विदा ली और राजकुमारी के नीचे वाले बागीचे में जा पहुँचा। वहाँ जा कर मैं संगमरमर के चबूतरे पर एक तकिये के सहारे बैठ गया।

करीब एक घंटे के बाद धीरे धीरे राजकुमारी वहाँ आयी। उसके साथ में उसकी एक दासी थी। वह आ कर मसनद पर बैठ गयी। हालाँकि यह दिन मेरे लिये बहुत ही खुशकिस्मती का दिन था कि इस दिन को देखने के लिये मैं ज़िन्दा था।

मैंने उसके पाँव चूमे। उसने मुझे ऊपर उठा कर अपने गले से लगा लिया और बोली — “इस मौके को अपनी खुशकिस्मती समझो और अगर मेरी सलाह मानो तो किसी और देश चले जाओ। ”

मैं बोला — “मेरे साथ चलो। ”

इस तरह से बात करने के बाद हम दोनों बागीचे के बाहर चले गये। पर हम आश्चर्य और खुशी से कुछ ऐसे भूले हुए थे कि हम अपने हाथ पैर कुछ भी इस्तेमाल नहीं कर पा रहे थे।

यहाँ तक कि हम रास्ता भी भूल गये थे। हम लोग साथ साथ किसी दूसरी दिशा में चलते रहे पर हमको रास्ते में कहीं कोई आराम करने के लिये जगह भी नहीं मिली।

राजकुमारी बोली — “ओह अब मैं थक गयी हूँ। तुम्हारा घर कहाँ है। वहाँ जल्दी चलो नहीं तो फिर तुम बताओ मुझे कि तुम क्या करना चाहते हो। देखो न मेरे पैरों में तो छाले भी पड़ गये हैं। लगता है कि मुझे तो यहीं कहीं सड़क पर ही बैठ जाना पड़ेगा। ”

मैंने कहा — “मेरे एक दास का घर यहीं पास में ही है। बस हम वहाँ तक आ गये हैं। थोड़ी दूर और। ”

मैंने सचमुच में उससे झूठ बोला था क्योंकि मुझको तो खुद ही नहीं पता था कि मैं उसे कहाँ ले जाऊँ। तभी मुझे सड़क पर एक बन्द दरवाजा दिखायी दिया सो मैंने उसका ताला तोड़ दिया और हम दोनों उस मकान में घुसे।

वह एक अच्छा घर था जिसमें कालीन बिछे हुए थे। बहुत सारी शराब की बोतलें दीवारों में बने छेदों में सजी रखी थीं। रोटी और माँस भी रसोईघर में तैयार रखा था।

हम लोग बहुत थके हुए थे सो हम दोनों ने एक एक गिलास पुर्तगाल की वाइन पी और माँस खाया और रात वहीं आपस में आनन्द के साथ बितायी।

इस आनन्द के समय में जब सुबह हुई तो सारे शहर में शोर मचा हुआ था कि राजकुमारी कहीं गायब हो गयी है। जगह जगह शाही फरमान जारी किये गये बहुत सारे लोग इधर उधर भेजे गये कि जहाँ भी वह उनको दिखायी दे जाये वे उसको पकड़ कर राजा के पास वापस ले आयें।

अब ये चौकीदार तो एक चींटी को भी अपनी आँख से देखे बिना कहीं जाने नहीं दे रहे थे। और जो कोई भी राजकुमारी की खबर ले कर आयेगा उसे एक खिलात और 1000 सोने के सिक्के मिलेंगे। राजा के दूत सब जगह उसको ढूँढते घूम रहे थे।

मैं ऐसा बदनसीब था कि मैंने दरवाजा ही बन्द नहीं किया था। शैतान की चाची एक बुढ़िया जिसके हाथों में मोतियों की एक माला थी और जिसने अपने आपको शाल से ढक रख रखा था हमारा दरवाजा खुला पाया तो वह निडर हो कर उस घर में घुस आयी।

राजकुमारी के सामने खड़े हो कर उसने राजकुमारी को हाथ उठा कर आशीर्वाद दिया कि “अल्लाह तुम्हें एक शादीशुदा स्त्री की तरह से हमेशा ज़िन्दा रखे और तुम्हारे पति की भी इज़ज़त बनी रहे। मैं तो एक गरीब भिखारिन हूँ। मेरी एक बेटी है जिसका समय पूरा हो चुका है और वह एक बच्चे को जन्म देने वाली है।

मेरे पास इतने साधन भी नहीं हूँ कि मैं उसके लिये लैम्प जलाने के लिये थोड़ा सा तेल भी खरीद सकूँ खाना पीना तो दूर की बात है। अगर वह मर गयी तो उसको दफनाऊँगी भी कैसे। और अगर वह बिस्तर पर लेट गयी तो मैं उसकी दाई और नर्स को क्या दूँगी। उसकी दवा दारू भी कैसे करूँगी।

उसको इस तरह से भूखे प्यासे पड़े हुए दो दिन हो गये। ओ कुलीन स्त्री तुम उसको अपने खाने में से कुछ खाने पीने के लिये दे दो ताकि वह दो चार कौर खा सके और कुछ पानी पी सके। ”

राजकुमारी को उस पर दया आ गयी तो उसने उसे चार रोटियाँ और थोड़ा सा भुना हुआ माँस और अपनी छोटी उँगली से निकाल कर एक अँगूठी उसको दे दी।

उसने उससे कहा “यह लो इसको बेच कर अपनी बेटी के लिये कोई गहना बनवा लेना और आराम से रहना। कभी कभी मुझसे मिलती रहना। यह घर तुम्हारा ही है। ”

बस जिसको वह ढूँढने आयी थी उसको पा लेने के बाद उसने राजकुमारी को बहुत आशीर्वाद दिये सलाम किया और वहाँ से चल दी। माँस और रोटी तो उसने तुरन्त ही बाहर जा कर फेंक दिये पर अँगूठी उसने यह कहते हुए सँभाल कर रख ली कि “राजकुमारी के ढूँढने का सबूत तो अब मुझे मिल ही गया। ”

लगता था कि अल्लाह हमें इस मुसीबत से बचाना चाहता था उस बुढ़िया के जाते ही उस मकान का मालिक अपने घर वापस आया। वह एक बहादुर सिपाही था और एक अरबी घोड़े पर चढ़ा हुआ था और उसके हाथ में एक भाला था। एक हिरन उसके घोड़े की जीन से बँधा हुआ था।

उसने देखा कि उसके घर का दरवाजा खुला हुआ था ताले को तोड़ कर खोला गया था और एक बुढ़िया उसमें से बाहर निकल रही थी उसको बहुत गुस्सा आ गया। उसने उसे बालों से पकड़ लिया और घसीटता हुआ घर ले आया।

उसने उसके हाथ पैर रस्सी से बाँध दिये और उसको उसका सिर नीचे और पैर ऊपर करके एक पेड़ से लटका दिया। सो वह शैतान बुढ़िया कुछ ही देर में मर गयी।

जैसे ही मैंने सिपाही की शक्ल देखी तो मैं तो डर के मारे पीला ही पड़ गया और मेरा दिल किसी भयानक घटना होने की आशा से काँप उठा। उस बहादुर आदमी ने जब हमें इतना डरा हुआ देखा तो हमें सुरक्षा का भरोसा दिया। वह बोला “तुम लोगों ने बड़ी बहादुरी से काम लिया है। तुमने बहुत अच्छा काम किया कि दरवाजे को खुला ही छोड़ दिया। ”

राजकुमारी मुस्कुराते हुए बोली — “राजकुमार ने कहा था कि यह घर उसके किसी नौकर का है और धोखे से से यहाँ ले आया। ”

सिपाही समझ गया। वह बोला — “राजकुमार ने ठीक ही कहा था क्योंकि सारे लोग सिपाही भी सब राजकुमार के नौकर तो होते ही हैं क्योंकि वे सब उन्हीं के तो पाले पोसे होते हैं। यह गुलाम आपका बिना खरीदा हुआ गुलाम है।

पर भेद छिपाना अच्छे मजाक का एक हिस्सा है। ओ राजकुमार। आपका और राजकुमारी जी का मेरे गरीब घर पर आना और अपने आने से मुझे इज़्ज़त देना तो मेरे लिये यह खुशी दोनों दुनिया के खजाने के बराबर है कि आपने इस तरह से अपने नौकर को इज़्ज़त दी।

मैं आपके लिये अपनी जान भी दे सकता हूँ। किसी भी तरह से मैं अपनी किसी चीज़ को आपसे बचा कर नहीं रखूँगा। आप यहाँ भरोसे से रहिये।

अब आपको किसी से कोई खतरा नहीं है। अगर यह स्त्री यहाँ से सुरक्षित चली जाती तो यह आपके ऊपर कोई न कोई मुसीबत जरूर ले कर आती।

अब आप लोग यहाँ आराम से कभी तक रहिये। आप को और जो कुछ चाहिये वह आप अपने इस नौकर को बताइये यह आपको हर चीज़ ला कर देगा। राजा क्या चीज़ है। अल्लाह के दूतों को भी अपके यहाँ होने की खबर नहीं होगी। ”

उसने इतने मीठे शब्दों में राजकुमार और राजकुमारी को तसल्ली दी कि हम लोगों का दिमाग बहुत शान्त हो गया। मैंने कहा — “तुमने बहुत अच्छा कहा है। जब मैं इस लायक हो जाऊँगा कि मैं तुम्हें कुछ दे सकूँ तब मैं तुमको इसका बदला जरूर दूँगा। तुम्हारा नाम क्या है?”

वह बोला — “इस गुलाम का नाम बिहज़ाद खान[15] है। ”

थोड़े में कहो तो छह महीने बाद तक यह सिपाही तन मन धन से इन दोनों की सेवा में लगा रहा और हमारे दिन वहाँ बहुत आराम से बीते।

X X X X X X X

एक दिन मुझे मेरे देश और मेरे माता पिता की याद आयी तो मैं बहुत दुखी हो गया। सिपाही ने जब मुझे दुखी देखा तो बिहज़ाद खान अपने दोनों हाथ जोड़ कर मेरे सामने खड़ा हो गया और बोला — “अगर मेरी तरफ से आपकी सेवा में कोई कमी हुई हो तो मेहरबानी करके मुझे बतायें। ”

मैं बोला — “अल्लाह के लिये ऐसा न कहो। तुम ऐसा क्यों कहते हो। तुमने तो हमारे साथ ऐसा व्यवहार किया है जिससे हम इस शहर में इतने आराम से रह सके जैसे कोई अपनी माँ के गर्भ में रहता है। क्योंकि मैंने एक ऐसा काम किया है जिससे यहाँ का तिनका तिनका मेरा दुश्मन बन जायेगा।

ऐसा हमारा इतना अच्छा दोस्त कौन था जो हमें इतनी अच्छी तरह से रख सकता। अल्लाह तुम्हें खुश रखे। तुम एक बहादुर आदमी हो। ”

बिहज़ाद खान बोला — “अगर आप यहाँ और न रहना चाहें तो आप मुझे कोई दूसरी सुरक्षित जगह बतायें ताकि मैं आपको वहाँ पहुँचा सकूँ। ”

तब मैंने कहा — “अगर मैं अपने देश पहुँच सका तो मैं अपने माता पिता से मिल सकता हूँ। मैं यहाँ इस देश में हूँ। अल्लाह ही जानता है कि वे पता नहीं किस हाल में होंगे।

मुझे वह चीज़ तो मिल गयी है जिसके लिये मैंने अपना देश छोड़ा था और मेरे लिये अब यही ठीक होगा कि मैं वापस अपने देश चला जाऊँ। उनको मेरी कोई खबर नहीं है कि मैं मर गया हूँ या ज़िन्दा हूँ। अल्लाह जाने वे मेरे बारे में क्या क्या सोच रहे होंगे। ”

वह बहादुर सिपाही बोला — “यह तो आप ठीक कहते हैं। चलिये चलते हैं। ” कह कर वह मेरे लिये एक तुर्की घोड़ा ले आया जो एक दिन में 100 कोस जा सकता था।

राजकुमारी के लिये वह एक बहुत तेज़ दौड़ने वाली वाली घोड़ी ले आया। उसने हम दोनों को उन पर बिठाया। उसने अपनी वर्दी पहनी अपने हथियार साथ लिये और बोला — “मैं आगे आगे चलता हूँ आप मेरे पीछे पीछे बिना किसी चिन्ता के चले आइये। ”

जब हम शहर के फाटक पर आये तो वह बहुत ज़ोर से चीखा और उसने अपनी गदा से फाटक का ताला तोड़ दिया। चौकीदारों को डरा दिया।

वह उनसे बहुत ज़ोर से बोला — “ओ गधो। जा कर अपने मालिकों को बोल दो कि बिहज़ाद खान राजकुमारी मीरनिगार और कामगर के राजकुमार[16] को जो उनका दामाद है चुपचाप चोरी से लिये जा रहा है। नहीं तो वे उनको यहाँ के महल में रहने दें और रहने का आनन्द लेने दें। ”

यह खबर तुरन्त ही राजा के पास पहुँची तो उसने अपने वजीर को इन तीनों को पकड़ने का और उनको हाथ पाँव बाँध कर अपने पास लाने का हुकुम दिया और फिर राजा के सामने ही उनके सिर काटने का भी हुकुम दिया।

कुछ ही देर में बहुत सारे सिपाही लोग वहाँ आ गये। सारे में आसमान तक धूल उड़ने लगी। बिहज़ाद खान ने हम दोनों को एक पुल की आर्च या मेहराब पर बिठा दिया जो कि जौनपुर के पुल की तरह से 12 मेहराबों का बना हुआ था।

खुद वह वापस घूम गया और सिपाहियों के घोड़ों की तरफ चला गया और उनके बीच में शेर की तरह घुस गया। वहाँ उसने उन सिपाहियों को काई की तरह से फाड़ दिया। वह दो सरदारों की तरफ चल दिया और दोनों के सिर काट दिये।

जब सरदार मर गये तो उनकी सारी सेना भी इधर उधर भाग गयी क्योंकि कुछ ऐसा कहा जाता है कि सब कुछ सिर पर ही निर्भर करता है। अगर वह चला गया तो समझो सब कुछ चला गया।

राजा तुरन्त ही अपनी सेना ले कर उनकी सहायता के लिये आ गया तो बिहज़ाद खान ने उन सबको भी हरा दिया। राजा भी वहाँ से भाग गया इसलिये यही सच है कि अल्लाह अकेले ही सबको जीत देता है।

पर बिहज़ाद खान ने इतनी बहादुरी से यह सब किया कि शायद रुस्तम अगर खुद भी होता तो शायद इतनी अच्छी तरह से इस मामले को नहीं सँभाल पाता।

जब उसने देखा कि लड़ाई का मैदान खाली हो गया और उसका पीछा करने वाला अब वहाँ कोई नहीं रहा। लड़ने के लिये भी कोई नहीं रहा तो वह छिप कर हमारे पास आया जहाँ हम बैठे हुए थे और वहाँ से हम दोनों को ले कर फिर आगे चल दिया।

उसके बाद हमारी यात्रा छोटी ही थी। कुछ देर में हम अपने देश की सीमा तक पहुँच गये। वहाँ से मैंने एक चिठ्ठी अपने पिता राजा को भेजी कि हम आ रहे हैं।

वह वह चिठ्ठी पढ़ कर बहुत खुश हुए और अल्लाह को धन्यवाद दिया। जैसे मुरझाये हुए पेड़ पानी देने से हरे भरे हो जाते हैं उसी तरह से मेरे आने की खबर पा कर मेरे पिता भी बहुत खुश हो गये।

उन्होंने अपने सारे अमीरों को अपने साथ लिया और एक बड़ी नदी के किनारे पर मेरा स्वागत करने के लिये आ गये। नदियों की देखभाल करने वाले ने नावों को हुकुम दिया गया कि वह हमें नदी पार करा कर लायें।

मैं नदी के इस पार से उस पार खड़े अपने शाही लोगों के झुंड को देख रहा था कि मैं कब जा कर अपने पिता के पाँव चूमूँ। मैंने अपना घोड़ा नदी में उतार दिया और नदी तैर कर पार कर पिता के पास पहुँच गया। पिता ने मुझे प्यार से अपने गले से लगा लिया।

इस पल हमारे सामने एक और मुश्किल आ खड़ी हुई। जिस घोड़े पर मैं चढ़ कर वहाँ तक आया था शायद वह उस घोड़ी का बच्चा था जिस घोड़ी पर चढ़ कर राजकुमारी आयी थी। शायद वे हमेशा एक साथ ही रहे होंगे।

तो जैसे ही मेरा घोड़ा नदी में कूदा राजकुमारी की घोड़ी बेचैन हो गयी। वह मेरे घोड़े के पीछे दौड़ी और वह भी नदी में कूद पड़ी और तैरने लगी।

राजकुमारी यह देख कर चौंक गयी। उसने उसकी लगाम खींची। घोड़ी का मुँह कोमल था सो वह पलट गयी।

राजकुमारी ऊपर आने की कोशिश करती रही पर फिर वह भी घोड़ी के साथ ही नदी में डूबती चली गयी। दोनों में से किसी का भी फिर कोई पता नहीं चला।

यह देख कर बिहज़ाद खान राजकुमारी को बचाने के लिये खुद भी घोड़े सहित नदी में कूद गया। वह एक भँवर में फँस गया और उसमें से बाहर नहीं आ सका। उसने बहुत हाथ पैर मारे पर वह उसमें से बाहर नहीं आ सका।

राजा ने जब यह सब देखा तो नदी में जाल डलवा दिया और मल्लाहों और तैराकों को नदी छानने का हुकुम दिया। उन सबने सारी नदी छान मारी पर उन्हें कहीं कुछ नहीं मिला।

ओ दरवेशों। इस घटना ने मेरे दिमाग पर इतना असर डाला कि मैं तो बिल्कुल पागल ही हो गया। उसके बाद मैं एक तीर्थयात्री बन गया और इधर उधर घूमता रहा और बस यही कहता रहा “इन तीनों का यही होना था जो तुमने देखा अब दूसरी तरफ का देखो। ”

अगर राजकुमारी कहीं गायब हो गयी है या मर गयी है तो मेरे दिल को किसी तरह की तसल्ली हो जायेगी। क्योंकि फिर मैं उसकी खोज में चला जाता नहीं तो अपने इस नुकसान को तसल्ली से झेलता पर अब जब इतने भयानक ढंग से वह मेरी आँखों के सामने ही चली गयी तो यह धक्का मुझसे बरदाश्त नहीं हुआ।

आखिर मैंने उसी नदी में डूब कर जान दे देने की ठानी ताकि मैं अपनी प्रिया से मरने के बाद मिल सकूँ।

सो एक रात मैंने उस नदी में डूबने की सोचा। मैं बस उसमें कूदने ही वाला था कि तभी उसी परदे वाले घुड़सवार ने जिसने तुम दोनों को बचाया था आ कर मेरा हाथ पकड़ लिया।

उसने मुझे तसल्ली देते हुए कहा — “तसल्ली रखो। राजकुमारी और बिज़हाद खान दोनों ज़िन्दा हैं। तुम बेकार में ही अपनी जान देने पर क्यों तुले हुए हो। ऐसी घटनायें तो दुनिया में हो ही जाती हैं। अल्लाह पर भरोसा रखो।

अगर तुम ज़िन्दा रहे तो तुम उन दोनों से मिल पाओगे जिनके लिये तुम अभी जान देने जा रहे हो। अब तुम यहाँ से रम राज्य[17] चले जाओ। दो और बदकिस्मत दरवेश वहाँ पहले से ही मौजूद हैं। जब तुम उनसे मिलोगे तब तुम्हारी इच्छाएँ पूरी हो जायेंगी। ”

सो ओ दरवेशो। मैं अब यहाँ आ गया हूँ। मेरे दैवीय सलाहकार के कहे अनुसार मुझे पूरा विश्वास ही कि अब हम सबकी इच्छाएँ पूरी हो जायेंगी।

इस तीर्थयात्री की यही कहानी है जिसको उसने तुम लोगों से पूरा पूरा कह दिया है।


[1] Adventures of the Third Darwesh (Tale No 4) –Ttaken from :

http://www.columbia.edu/itc/mealac/pritchett/00urdu/baghobahar/05_thirddarvesh.html

[2] Chaupad is a kind of Dice Game.

[3] Backgammon – a Dice Game

[4] Gumbad or Dome is essentially a Muslim architecture of the building. See the picture of the Dome above – you can see three Domes there on the top of the buiding.

[5] Azur, the father of Abraham, was a famous statuary and idol-worshipper, according to the ideas of Muhammadans.

[6] Niman Saiyah

[7] Frank Island - By the Island of the Franks. It is most probable that the author means Britain. The description of the capital is more adapted to London sixty years ago than to any other European city. This, Mir Amman might have learned from some of the resident Europeans, while he filled up the rest from his own luxuriant imagination. [S: I really cannot conceive which Island my author alludes to; it does not relate in the remotest degree to our noble Island, except the lighting of the streets; and thank God the manners he describes are contrary to ours.]

[8] Translated for the word “Eunuch”. I have used this word to maintain the decency of the language. The "eunuch" is of course out of place in a Christian city; at least he does not hold the same rank as in the East.

[9] Kai-Khusru

[10] Kashan

[11] In Asia barbers not only shave a person but give a bath too.

[12] Translated for the words “Foster Brother”

[13] Ibarahim Adham – A Prince of Khurasan, who quitted a throne in order to lead a life of piety. A Prince of Persia who became a faqeer from disappointed love.]

[14] A celebrated city of Khurasan, famous in former times for its riches.

[15] Bihzad Khan

[16] Princess Mihrnigar and the Prince of Kamgar

[17] Rum Kingdom

(क्रमशः अगले खंडों में जारी...)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: लोक कथा - किस्सए चार दरवेश - सुषमा गुप्ता - खंड 12
लोक कथा - किस्सए चार दरवेश - सुषमा गुप्ता - खंड 12
https://4.bp.blogspot.com/-20pGDMCFY8s/Xdtk0F-GhVI/AAAAAAABQZg/6ydi2FAXcdwFkv_uLecr20VDvXkR_X2gwCK4BGAYYCw/s320/hgjkbfkjhbagcmdj-777925.jpg
https://4.bp.blogspot.com/-20pGDMCFY8s/Xdtk0F-GhVI/AAAAAAABQZg/6ydi2FAXcdwFkv_uLecr20VDvXkR_X2gwCK4BGAYYCw/s72-c/hgjkbfkjhbagcmdj-777925.jpg
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2019/11/folk-tales-of-four-derweshes-12.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2019/11/folk-tales-of-four-derweshes-12.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content