पिछली कड़ियाँ - एक , दो , तीन , चार , पांच , छः , सात , आठ , नौ , दस , ग्यारह , बारह , तेरह , चौदह , पंद्रह , 16 , 17 , 18 आओ कहें.....
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आओ कहें...दिल की बात
कैस जौनपुरी
कामवाली बाई
मैं एक कामवाली बाई हूँ. वैसे तो कामवाली बाई का नाम सुनते ही लोगों के दिमाग में एक चालीस-पचास साल की बूढी औरत का खयाल आता है. लेकिन बदलते हुए वक्त के साथ बहुत कुछ बदल जाता है. उसी तरह हम कामवाली बाईयों का भी हिसाब-किताब बदल चुका है. पहले कोई कामवाली बाई मजबूरी में बनती थी लेकिन आज बात कुछ और है. मजबूरी ने पेशे का रूप ले लिया है.
पहले कामवाली बाई पैसे कमाकर अपने बच्चों का पेट पालती थी. आज माँ भी काम करती है और बेटी भी. मैं भी एक कामवाली बाई की बेटी और एक कामवाली हूँ. मेरी उमर है सत्रह साल. बदकिस्मती है लेकिन बताना जरुरी है क्यूंकि बात ही ऐसी है.
हम कामवाली बाईयां लड़कों को स्कूल भेजती हैं ताकि वो सर उठाके जी सकें. और लड़कियाँ तो काम करने के लिए ही बनी हैं. कामवाली बाई के घर में पैदा होने वाली लड़की एक नई बाई बन जाती है. जिस तरह सबके घर में लड़का होता है तो खुशी होती है कि “चलो लड़का है. बात आगे बढ़ेगी.” उसी तरह हमारे यहाँ जब लड़की होती है तो लगता है जैसे “एक और हाथ-पैर हो गए.”
कभी-कभी बुरा भी लगता है कि “एक और आ गई हमारी तरह दूसरों का कचरा साफ़ करने के लिए.”
कुछ भी हो, जिन्दा रहने के लिए कुछ न कुछ तो करना ही पड़ता है. अगर हम भी पैदा होतीं किसी अमीर के घर, तो हम भी स्कूल जातीं. इस बात का इतना ज्यादा अफ़सोस नहीं होता कि मैं एक कामवाली बाई हूँ. अपनी मेहनत का खाती हूँ. दुनिया भर के कामों में एक काम ये भी है, तो क्या बुरा है? वैसे भी, वेश्या बनकर इज्जत गवाने से तो अच्छा ही है कि हम इज्जतदार लोगों के घरों में काम करती हैं.
मैं भी एक इज्जतदार घर में काम करती हूँ. इस घर में एक पति-पत्नी हैं. अभी-अभी एक प्यारा सा बेटा हुआ है जो ज्यादातर मेरे ही पास रहता है. उसी की देखभाल के लिए मुझे रखा गया है. अच्छी सोसाइटी है. पति-पत्नी दोनों काम पर जाते हैं.
सबकुछ अच्छा चल रहा था. अचानक, एक दिन मुझे कुछ महसूस हुआ. पत्नी जिसे मैं ‘दीदीजी’ कहती हूँ, अपने पति जिसे मैं ‘साबजी’ कहती हूँ, का मोबाइल ढूँढ़ रहीं थीं. और साबजी बड़े सकपकाए से थे. पता नहीं क्यूँ? उस वक्त मैं बाथरूम में नहा रही थी. मैं मियाँ-बीवी दोनों की बातें सुन रही थी. पत्नी कह रही थी, “अरे तुमने अपना फोन कहाँ रख दिया?” और पति का जवाब था “पता नहीं यार, मिल नहीं रहा. यहीं सोफे पे ही तो रखा था.” मैं सब सुन रही थी. और सोच रही थी “ये लोग बिना मेरे एक फोन भी नहीं सम्भाल सकते तो एक बच्चा क्या संभालेंगे?” मैं जल्दी-जल्दी नहा के बाहर आई और फोन ढूंढने लगी. तभी मैंने देखा ‘साबजी’ जल्दी से बाथरूम में घुस गए. ऐसा लगा जैसे वो मेरे निकलने का ही इन्तजार कर रहे थे. और जल्दी से बाथरूम से बाहर आए और सोफे पे बैठ गए. मुझे कुछ अजीब लग रहा था. पहले कभी ‘साबजी’ को इतनी हड़बड़ी में नहीं देखा था. मैं ये सब देख रही थी और सोच रही थी कि “साबजी का फोन घर में ही होगा इसमें इतना घबराने वाली बात क्या थी? और फिर तीन-तीन लोग मिलकर एक फोन को ढूँढ़ रहे थे.”
तभी फोन मिल गया. ‘साबजी’ को ही मिला. उन्होंने कहा, “ये रहा, सोफे में घुस गया था.” और इतना कहकर फोन उन्होंने ‘दीदीजी’ को दे दिया. और खुद एक लम्बी सांस ली. ऐसा लगा जैसे कोई कीमती चीज खो गई थी और अचानक मिल गई हो.
खैर, बात आई, गई और हो गई. उसके बाद फिर कभी फोन नहीं खोया. कुछ दिन बीते, उस दिन सन्डे था. मैं नहाने के लिए बाथरूम में जा ही रही थी. तभी ‘साबजी’ ने कहा, “दो मिनट रुको.” मैं पीछे हट गई. ‘साबजी’ बाथरूम में गए और थोड़ी देर बाद वापस आए. फिर मैं नहाने के लिए अन्दर घुस गई. मैंने बाथरूम को गौर से देखा. सबकुछ अपनी जगह पे था. मैं नहाके बाहर आई और देखा ‘साबजी’ बाहर बेसब्री से मेरे निकलने का इन्तजार कर रहे थे. मेरे निकलते ही वो बाथरूम में घुस गए और उसी दिन की तरह जल्दी से बाहर आ गए.
अब मुझे कुछ शक हुआ “कुछ तो गडबड है?” थोड़ी देर बाद मैं वापस बाथरूम में गई और ध्यान से देखा. सबकुछ अपनी ही जगह पे था सिवाय एक चीज के. और वो चीज थी ‘ओडोनिल’ का पैकेट. उस पैकेट में ओडोनिल नहीं था. वो खाली था. अब मेरा माथा ठनका. इसका क्या मतलब है? घर में सारा काम तो मैं करती हूँ. ओडोनिल भी मैं ही बदलती हूँ फिर ये पैकेट खाली कैसे हुआ? इसका मतलब ‘साबजी’ मेरा नहाते हुए विडियो बनाते हैं? मैं तो बाथरूम की दीवार से सटकर खड़ी हो गई. ये क्या बात थी? मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था. ‘साबजी’ ने कभी ऐसी कोई हरकत नहीं की थी जिससे मैं उनकी नियत पे शक करती. मगर ये क्या था? इससे क्या मिलेगा साबजी को? ये मर्द लोग भी ना बड़े अजीब होते हैं. इन्हें कब क्या चीज अच्छी लगती है कोई नहीं जानता. लेकिन मुझे ये जानना था कि मेरे साबजी मेरे नहाने से पहले बाथरूम में क्यूँ जाते हैं? और क्यूँ मेरे निकलते ही बाथरूम में फिर जाते हैं?
इसके लिए मैंने मौका देखकर साबजी का मोबाइल उठाया और देखने लगी. मगर तभी साबजी ने देखा लिया और मैंने जल्दी से फोन वापस रख दिया. मैंने साबजी को देखा. उन्होंने मुझे डांटने के बजाय कुछ नहीं कहा. और वो डर से गए थे. अब मुझे पूरा यकीन हो गया था कि ये मोबाइल का ही चक्कर है.
इस बात को बीते कई दिन हो गए हैं. उस दिन से साबजी मुझसे कटे-कटे से रहते हैं. खुद मुझे कोई काम नहीं कहते. सारा काम दीदीजी से ही कहलवा देते हैं.
अब मुझे ये नहीं समझ में आ रहा कि मैं क्या करूँ? मैंने तो सबूत के तौर पे कुछ देखा भी नहीं. लेकिन साबजी अपने भोलेपन से पकड़े गए. मैं कई बातों से डरती हूँ. एक तो ये कि अगर मैंने कुछ कहा तो सबसे पहले मेरी नौकरी जायेगी. उससे भी ज्यादा नुकसान दीदीजी का होगा. उनका अपने पति के ऊपर से विश्वास उठ जाएगा. घर में झगड़े होंगे सो अलग. और कौन जाने साबजी के मन में क्या था? क्यूंकि उसके बाद वो फिर कभी इस तरह मेरे और बाथरूम के आसपास मँडराते हुए नजर नहीं आए. अगर वो गलत नियत के होते तो जरुर कुछ न कुछ गलत करते. कुछ भी हो साबजी आदमी बड़े अच्छे हैं. और अगर उन्होंने मेरा एमएमएस बनाया भी तो कभी मुझे ब्लैकमेल करने की कोशिश क्यूँ नहीं की? अब ऐसे साबजी के ऊपर इल्जाम भी लगाऊं तो कैसे?
मैं जितने भी साबजी हैं और जो लोग घर में कामवाली बाई रखते हैं उनसे बस यही कहना चाहती हूँ कि हमें इस तरह तमाशा न बनाएँ. आपलोग बड़े लोग हैं. हम छोटे लोग हैं. लेकिन इज्जत हमें भी प्यारी होती है. इस तरह हमारी मजबूरी का फायदा न उठाएँ.
हम तो अपने काम से काम रखते हैं. हमें नहीं पता कब आपकी नजर हमारे शरीर के किस हिस्से पे पड़ती है. सच कहा जाए तो हम जो काम करते हैं वो आपकी घर की औरतों का है लेकिन आप बड़े लोग हैं. पैसे खर्च कर सकते हैं. इसलिए आराम खरीद सकते हैं. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि आप हमें शर्मशार करें. हम जो भी हैं, हैं तो एक औरत ही ना. हमें पता है मर्द की जात और मर्द की औकात.
हम बहुत कुछ सहते हैं ताकि आपके घरों में शान्ति रहे. हम भी मजबूर हैं क्या करें? एक औरत का जिस्म लेके घूमते हैं कहाँ तक लोगों की नजर पे इल्जाम लगाते रहेंगे. वैसे भी, एक औरत की जगह एक मर्द के पास ही होती है. अगर हम इंसानी फितरत समझते हैं तो थोड़ी शराफत आपलोग भी दिखाएँ.
मैं गलत-सही की बात नहीं कर रही. सच कहूँ तो किसी गैरमर्द के घर में घर की औरत का काम करना ही गलत है लेकिन क्या करें? ये रिवाज हमने नहीं बनाया. हमें तो ये विरासत में मिला है. ये हमारी किस्मत है. लेकिन अब आपलोग हमारी किस्मत का मजाक तो न बनाएँ...? मुझे पता है कुछ बाईलोग ऐसा करती हैं. साबजी को खुश रखती हैं और अपनी आमदनी बढ़ाती हैं. इसीलिए मैंने पहले ही कहा मैं सही-गलत की बात नहीं कर रही हूँ. दुनिया में बहुत कुछ होता है. लेकिन आपलोग इस तरह मत कीजिए. आपलोग डरते हैं इसलिए ऐसा करते हैं. औरत सिर्फ प्यार करने के लिए बनी है. उसे सिर्फ प्यार कीजिए. औरत की इज्जत को यूँ खराब न कीजिए.”
सोच रही हूँ मैं खुद ये नौकरी छोड़ दूँ. फिर सोचती हूँ नया साब पता नहीं कैसा हो? इसने तो सिर्फ विडियो ही बनाया था. फिर डिलीट भी जरुर कर दिया होगा. क्यूंकि मैंने एक बार मोबाइल देखने की कोशिश की थी. तो इतना तो तय है कि बात बीत चुकी है लेकिन मैं क्या करूँ? कोई मुझे बताए...?
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कैस जौनपुरी
qaisjaunpuri@gmail.com
www.qaisjaunpuri.com
बहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंnai technology aur kamwalee bai ke badate dukh- bahut khoob
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